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सोमवार, 26 जुलाई 2010

ऐसे समय में भी

एक ऐसे समय में

जब मुसलमान शब्द

आतंक का पर्याय हो गया है

मैं ख़ुश हूँ

कि मेरे शहर में रहते हैं

बादशाह हुसेन रिज़वी

जो इंसान हैं उसी तरह

जिस तरह होता है

कोई भी बेहतर इंसान

पक्षी उनकी छत से उड़कर

बैठते हैं हिन्दुओं की छत पर

और उनके पंजों में बारूद नहीं होता

उनके घर को छूकर

नहीं होती जहरीली हवा

उसी तरह खिलते हैं उनके गमलों में फूल

जैसे किसी के भी

उनका हृदय हातिमताई है

जिसमें है हर दुःखी के लिए

सांत्वना के शब्द

सच्चे आँसू/और बहुत सारा वक़्त

हालांकि इतने बड़े लेखक के पास

नहीं होना चाहिए/उन चीजों के लिए वक़्त

आतंक के शोर के बाद भी

कम नहीं हुए हैं/उनके हिन्दू मित्र

आते हैं सेवइयाँ खाने/ढेर सारा बतियाने

आज भी वे लिख रहे हैं

मानवीय पक्ष की/जनवादी कहानियाँ

मैं ख़ुश हूँ/कि वे मेरे शहर में रहते हैं।


- रंजना जायसवाल

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