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मंगलवार, 27 जुलाई 2010

आज के युग में पैसा भगवान से ऊपर है

सुबह पेपर की मुख्य लाइन में घोर अन्याय पढ़कर और झुर्रीवाली बूढ़ी महिला का विलाप करता फोटो देखकर आंखों में आंसू आ गये।

भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल बाद आये निर्णय को पढ़कर न्यायालय से भी विश्वास उठ गया। जिन लोगों के जिगर के टुकड़ों को इस भीषणतम त्रासदी निगल गई उनके परिवार, बच्चों, सगे संबंधियों के बारे में जरा सोचो। दो वर्ष का कारावास का निर्णय सुनकर उनके दिल पर क्या गुजरी होगी। यही कि आज के दुनिया में जहां पैसों के आगे भगवान को भी झुका दिया जाता है। कौन करेगा भगवान पर भरोसा इस निर्णय को सुनकर! बल्कि हर कोई इस निर्णय के बाद न्याय व्यवस्था से निर्भय होकर केवल पैसा कमाने की फिराक में रहेगा। धिक्कार है ऐसी दुनिया पर, जहां सोने चांदी की झनकार इंसानियत को भी बहरा बना देती है। जब इतने बड़े हादसे के बाद लोग सिर्फ दो साल की सजा पाएंगे तो फिर भ्रष्टाचार, जमीनों का घोटाला करने वालों को तो शायद दो दिन की जेल की सजा ही मिलेगी या फिर वह भी पैसों के बल पर माफ करवा देंगे।

बहुत ही शर्मनाक निर्णय है पढ़ने को भी मन नहीं लगा। दुनिया से मन उठ गया। आज मुझे हमारे भोपाल शहर के उन लोगों की और अपने उन कामरेड़ों की याद आ रही है जो इस हादसे के शिकार हो गये थे, आज उनके परिवार वालों को किस मुंह से सांत्वना दूं।

धिक्कार है इस न्याय प्रणाली को एक और घटना मुझे आज यह पढ़कर याद आ रही है। वैसे म.प्र. तथा केन्द्र की सरकार ने इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया हालांकि मेरे स्वर्गीय पति होमी दाजी ने जी-तोड़ मेहनत करके इसे लोगों के सामने पेश करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी- पर बदकिस्मती से उस समय न तो वे विधायक थे और न सांसद। इसलिए दोनों सरकारों ने पैसे वालों की बातें तो सुनी पर दाजी की बातें सुनने का उनके पास समय नहीं था।

जिस दिन यह हादसा हुआ, उस दिन दाजी दिल्ली से रेल द्वारा भोपाल आ रहे थे। अचानक रेल एक स्टेशन से पहले घंटों रुकी रह गई। ट्रेन क्यों इतनी देर रुकी है यह तलाशने की दाजी ने कोशिश की तो पता चला कि भोपाल स्टेशन मास्टर का फोन आया है कि भोपाल कांड हो गया है। उस भोपाल के स्टोशन मास्टर की ड्यूटी का समय समाप्त हो चुका था तथा घर जाने का वक्त था। किंतु गैस कांड की भयानकता एवं यात्रियों की जान की हिफाजत की चिंता के कारण उन्होंने भोपाल आने वाले सभी टेªनों को एक दो स्टेशन पहले ही रुकवा दिया था। फोन कर-कर स्टेशन मास्टर ने अपनी होशियारी, जिम्मेदारी तथा सेवा भाव की एक मिसाल कायम की।

जब सब शांत होने पर टेªन भोपाल पहुंची तो दाजी भी भोपाल पहुंचे। वे स्टेशन मास्टर के कमरे के पास खड़ी भीड़ देखकर तलाश की तो दंग रह गय। उनकी भी आंखों में पानी आ गया, जब उन्होंने उस नेक स्टेशन मास्टर को टेबिल पर सिर रखे हुए, गैस से दम घुट जाने के कारण मृत पाया। वह स्टेशन मास्टर कौन थे, उनका नाम तो मुझे नहीं मालूम, न दाजी हैं जिनसे पूछकर नाम याद किया जा सका है। पर उस समय तुरन्त और उसके बाद दाजी ने कई मंत्रियों से चर्चा की, मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को भी पत्र लिखा, बात की कि ऐसे सेवाभावी तथा योग्य स्टेशन मास्टर की एक प्रतिमा उनके नेक काम का हाल लिखकर भोपाल स्टेशन के बाहर लगाना अति आवश्यक है जिससे लोगों में नेक कामों की प्रेरणा मिल सके, उनके परिवार वालों को आर्थिक सहायता देना चाहिये तथा पुरस्कार देना चाहिए। पर आज भी इस पैसे की दुनिया में लोग सेवा या अच्छे कर्मों को कहां महत्व देते हैं; लोग तो बस पैसा-पैसा और पैसा ही देखते हैं।

अगर उस भले एवं नेक दिल स्टेशन मास्टर ने यात्रियों की जिन्दगी की बजाय स्वंय के जीवन के बारे में सोचा होता तो और हजारों लोगों की जाने चली जाती जिसमें दाजी भी थे, उनकी उस समय गैस त्रासदी या टेªन दुर्घटना में ही मृत्यु हो जाती। पर पैसों की महत्वकांक्षी इस दुनिया में आज भी आम आदमी कीड़े-मकोड़ों की तरह रोज मारे जा रहे हैं।

इतने बड़े हादसे की सजा केवल दो साल ही है तो फिर लोगों की मनोवृति अपराध करने की बढ़ेगी या कम होगी। मेरा एक सुझाव है कि म.प्र. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अभी भी उस स्टेशन मास्टर के नाम का पता लगवाकर उनकी प्रतिमा भोपाल स्टेशन के बाहर लगवायें, ताकि लोगों को नेक कामों की प्रेरणा मिल सके, साथ ही उस स्टेशन मास्टर को सच्ची श्रद्धांजली अर्पित की जा सके जिसके वे सही हकदार थे। उनके परिवार वालों को भी आर्थिक सहायता सम्मान के साथ दी जाय।

- पेरीन होमी दाजी

1 comments:

बेनामी ने कहा…

Nice.

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