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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

उत्तर प्रदेश में नई ताकत बन कर उभरे किसान

लखनऊ, 21 जुलाई। उत्तर प्रदेश में किसानों की बढ़ती ताकत के आगे मायावती सरकार लगातार पीछे हट रही है। दो दिन पहले दादरी कि किसानों के लिए जमीन का मुआवजा देने की मियाद बढ़ा दी गई। इससे पहले लखनऊ में दशहरी आम के ढाई सौ साल पुराने पेड़ के साथ कई बगीचे बचाने का फैसला किया गया। चंदौली में किसानों की दस हजार हेक्टेयर जमीन जो रेलवे कॉरिडोर के लिए ली जानी थी, वह फैसला रद्द कर दिया गया।

इससे राज्य के विभिन्न इलाकों में खेती की जमीन के अधिग्रहण को लेकर जो भी आंदोलन हुए, उससे किसानों की ताकत बढ़ी है। चंदौली, लखनऊ, ललितपुर, हाथरस, बलिया, इलाहाबाद, मिर्जापुर, दादरी, मेरठ, मुजफ्फरनगर और लखीमपुर जैसे कई इलाकों में किसानों के छोटे-बड़े आंदोलन हुए, जिसने नई जमीन तैयार की है। खास बात यह है कि इन आंदलनों में भूमिहीन मजदूर किसानों की अपेक्षा मझोले और बड़े किसानों की ज्यादा हिस्सेदारी रही है। इनकी कामयाबी की एक वजह यह भी मानी जाती है।

दादरी में जो किसान आंदोलन हुआ,उसमें भी मझोले किसानों की हिस्सेदारी ज्यादा थी। दादरी के किसानों के लिए हाई कोर्ट ने 2762 एकड़ जमीन लौटाने का आदेश दिया है। इसके लिए किसानों को मुआवजा वापस करना है। इसकी मियाद सरकार बढ़ा रही है। किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा कि सरकार की तरफ से जानकारी मिली है कि मुआवजा वापस करने की मियाद दो महीने के लिए बढ़ाई जा रही है।

दूसरी तरफ जिन चार गांवों सदरौना, सरौसा, भरोसा और मुजफ्फराबाद की 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना था, वह अब टल गया है। यहां वामपंथी दलों की पहल पर किसान आंदोलन शुरू हुआ था। इसी तरह चंदौली में रेलवे कॉरिडोर के लिए किसानों की दस हजार हेक्टेयर जमीन का सरकार अधिग्रहण करने वाली थी पर भाकपा के नेतृत्व में किसानों ने यहां भी नंदीग्राम और सिंगुर की तरह आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी तो फैसला रद्द कर दिया गया। भाकपा के सचिव डा. गिरीश ने कहा कि राज्य के विभिन्न इलाकों में किसानों की बढ़ती ताकत के कारण कई जगह सरकार ने टकराव टाला और फैसला बदला है।

यमुना एक्सप्रेस हाई वे अथारिटी के लिए हाथरस, मथुरा, आगरा और अलीगढ़ के 850 गांवों की नौ लाख हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण का काम भी आंदोलन के दबाव में रूक गया है। इस मुद्दे पर एक तरफ भाकपा किसानों को गोलबंद कर रही थी तो दूसरी तरफ लोकदल ने आंदोलन छोड़ दिया था। यह इलाका चौधरी अजित सिंह के राजनैतिक प्रभाव का इलाका है जिस वजह से उन्हें खुद सड़क पर उतरना पड़ा।

इससे पहले गन्ना किसानों ने भी अपनी ताकत दिखा दी थी जिसके कारण कारकार को झुकना पड़ा। गन्ना किसानों में भी ज्यादातर मझोले और बड़े किसान है। इसी तरह ललितपुर जिले के दैलवारा सहित कुछ गांवों की जमीन एक बिजली घर के लिए ली जा रही थी पर किसानों के आंदोलन के कारण यहां भी सरकार को पीछे हटना पड़ा। दो दिन पहले ही इलाहाबाद में उस जमीन को लेकर किसानों ने आंदोलन शुरू किया जो अब जेपी समूह को दी जा चुकी है। इस तरह पूरे राज्य में कई जगह किसानों के आगे सरकार झुकी है। भाकपा की एक रपट में इस बात का जिक्र किया गया है कि राज्य में किसान एक नई ताकत बन कर उभर रहा है जो एक परिवर्तनकारी संकेत है।

(साभार: “जनसत्ता”)

- अंबरीश कुमार

3 comments:

सत्य गौतम ने कहा…

...क्योंकि एक दलित को सिर छुपाने के लिए आपके दरवाजे सदा खुले मिलते हैं। इसलिए मैंने आपके ब्लॉग पर अपनी पोस्ट का अंश डाल दिया। बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूं। http://hindugranth.blogspot.com/2010/07/blog-post_24.html?showComment=1280150272374#c782414080784417812

सत्य गौतम ने कहा…

,,,क्योंकि एक दलित को सिर छुपाने के लिए आपके दरवाजे सदा खुले मिलते हैं। इसलिए मैंने आपके ब्लॉग पर अपनी पोस्ट का अंश डाल दिया। बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूं। http://hindugranth.blogspot.com/2010/07/blog-post_24.html?showComment=1280150272374#c782414080784417812

बेनामी ने कहा…

लेकिन आपकी पार्टी के किसान नेता तो मस्त हैं। आखिर किसान सभा हिन्दुस्तान में गायब कहां हो गयी है

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