भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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Communist Party of India, U.P. State Council

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शनिवार, 18 जून 2011

ग़ज़ल

राह तो एक थी हम दोनों की

आप किधर से आए-गए।

हम जो लूट गए पिट गए,

आप जो राजभवन में पाए गए!



किस लीलायुग में आ पहुंचे

अपनी सदी के अंत में हम

नेता, जैसे घास-फूंस के

रावन खड़े कराए गए।



जितना ही लाउडस्पीकर चीखा

उतना ही ईश्वर दूर हुआ

(-अल्ला-ईश्वर दूर हुए!)

उतने ही दंगे फैले, जितने

‘दीन-धरम’ फैलाए गए।



मूर्तिचोर मंदिर में बैठा

औ’ गाहक अमरीका में।

दान दच्छिना लाखों डालर

गुपुत दान करवाये गये।

दादा की गोद में पोता बैठा,

‘महबूबा! महबूबा...’ गाए।

दादी बैठी मूड़ हिलाए

‘हम किस जुग में आए गए।’

गीत ग़ज़ल है फिल्मी लय में

शुद्ध गलेबाजी, शमशेर

आज कहां वो गीत जो कल थे

गलियों-गलियों गाए गए!

- शमशेर बहादुर सिंह

1 comments:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

वे धर्म नहीं हैं केवल ढोंग-पाखण्ड हैं.धर्म वह होता है जो धारण करता है.यथार्थ का सत्य चित्रण है इस गजल में.

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