भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम: नयी घोषणाओं से क्या होगा जब सार्वजनिक चिकित्सा सेवा है ठप्प


सरकारी आंकडों के ही अनुसार देश में हर साल लगभग अड़सठ हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है और जन्म के एक महीने के भीतर ही नौ लाख से ज्यादा बच्चे मर जाते हैं और सरकार का दावा है देश तरक्की कर रहा है और आर्थिक वृद्धि 9 प्रतिशत के लगभग चल रही है।

महंगाई भ्रष्टाचार, घोटालों और काले धन के मुद्दों से बुरी तरह घिरी सरकार को अब जनता के मुद्दे याद आने लगे हैं, जो उसने ”जननी शिशु सुरक्षा“ कार्यक्रम की घोषणा कर दी और दावा कर रही है कि सभी राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में रहने के दौरान मुफ्त दवा और भोजन की व्यवस्था करायें और उन्हें सभी तरह की जांॅच और अस्पताल आने-जाने का खर्च या साधन उपलब्ध करायें।

कोई भी समझ सकता है कि सरकार के इस तरह के दावे का कोई मतलब नहीं रह जाता जब सरकार ने स्वयं ही सरकारी डिस्पेंसरियों, जिला अस्पतालों और अन्य बड़े अस्पतालों को पहले ही पंगु बना दिया है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सरकार की सारी कोशिश प्राइवेट अस्पतालों को बढ़ावा देने की और सरकारी अस्पतालों को कमजोर करने की तरफ है। इसी नीति के तहत किसी भी सरकारी अस्पताल में न पूरे डाक्टर है, न नर्स, न फार्मासिस्ट, न एक्सरे स्टाफ, न लेब्रोरेटरी स्टाफ, न अस्पतालों में दवाईयां है, न सरकारी अस्पतालों की एक्सरे मशीन चालू हैं, न अल्ट्रा साउंड मशीनें, न लेबोरेटरियां, कहीं एक्सरे मशीन है तो स्टाफ नहीं। कहीं स्टाफ है तो एक्सरे मशीन नहीं। यदि एक्सरे स्टाफ और मशीनें दोनों हैं तो भी मरीजों का एक्सरे नहीं होता क्योंकि अस्पताल के बाहर कई प्राइवेट निदान केन्द्र एक्सरे मशीनें लिए बैठे हैं जो सरकारी अस्पताल के सुपरिन्टेन्डेन्ट को कमीशन देते हैं। अतः मरीजों को बाहर ही एक्सरे कराने पर मजबूर किया जाता है। खून की जांच और अन्य सभी जांचों के मामले में भी यही होता है।

इस सबके लिए केवल अस्पताल सुपरिडेंन्ट ही जिम्मेदार नहीं। सरकार की ऊपर से नीचे तक यही नीति है कि सभी काम प्राइवेट में ही कराये जायें। सुपरिटेंडेंट भी उसी नीति को अमल में ला रहे हैं।

अब तो सरकारी अस्पतालों में फीस भी ली जाने लगी है। देश की राजधानी दिल्ली में भी सरकार के विभिन्न अस्पतालों में अलग-अलग काम के लिए फीसें तय हैं। फीस दिये बगैर कोई काम नहीं होता और साल-दर-साल अस्पताल की एक बाद दूसरी सेवा पर फीस की व्यवस्था लागू की जा रही है।

जब सरकारी डिस्पेंसरियों और अस्पतालों का सरकार ने यह हाल कर रखा है तो ”जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम“ की घोषणा से क्या होगा जबकि सरकार का सारा जोर सरकारी अस्पतालों को ठप्प करने का और प्राइवेट क्लीनिकों, प्राइवेट नर्सिंग होमों और प्राइवेट अस्पतालों को बढ़ावा देने का है।

पिछले सप्ताह दिल्ली के अखबार में खबर छपी कि एक व्यक्ति अपने बच्चे को लेकर एम्स गया, एम्स जो दिल्ली का सबसे बड़ा अस्पताल है। यह सरकारी अस्पताल है। बच्चे को हृदय की कोई समस्या थी उसे कहा गया कि इस इलाज के लिए 21000 रूपये पहले जमा कराओ तब इलाज शुरू होगा। इतने पैसे उसके पास थे नहीं, बच्चे को लेकर वापस अपने घर चला गया। किसी तरह वह इस मामले को हाईकोर्ट ले गया। जाहिर है किसी भले और तेज दिमाग वकील ने इसमें उसकी मदद की होगी। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पैसे नहीं है इस कारण बच्चे का इलाज नहीं हो सकता यह गलत बात है। हाईकोर्ट ने दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल को, जो दिल्ली का एक अन्य बड़ा सरकारी अस्पताल है और जहां हृदय चिकित्सा के विशेष प्रबंध हैं, आदेश दिया कि इस बच्चे का इलाज किया जाए। अब मामला इतना उछल गया है और हाईकोर्ट का आदेश हो गया है तो उसका इलाज अवश्य ही हो जायेगा। पर देश का हर आदमी तो इस तरह अदालत के जरिये राहत नहीं पा सकता।

स्वयं विश्व बैंक की रिपोर्ट है कि एक तिहाई भारतीय तो पैसे न होने के कारण इलाज के लिए जाते ही नहीं हैं। अन्य रिपोर्टों के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में इलाज की समुचित व्यवस्था न होने के कारण जो लोग निजी अस्पतालों में इलाज कराने की हिम्मत करते हैं उनमें से बड़ी तादाद में लोग घर की परिसम्पत्तियां बेचकर ही इलाज का खर्च चुकाते हैं। इस हालत के लिए नवउदारवाद की आर्थिक नीतियां जिम्मेदार है। इन नीतियों को बदले बिना जननी सुरक्षा कार्यक्रम महज घोषणा बन कर रह जाते हैं।

- आर.एस. यादव

1 comments:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

यह स्कीम भी जन कल्याण के लिए नहीं इस पैसे की बन्दर-बाँट के लए ही लाई गई होगी.जब ढांचा ही विकृत है तो जन कल्याण हो ही नहीं सकता.

एक टिप्पणी भेजें

Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य