भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

रविवार, 26 अगस्त 2012

कामरेड अवतार कृष्ण हंगल दिवंगत

वयोवृद्ध कम्युनिस्ट, प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सांस्कृतिक आन्दोलन के पुरोधा, भारतीय रंगमंच के शिखर पुरूष एवं  बॉलीवुड के प्रख्यात अभिनेता अवतार कृष्ण हंगल का रविवार को 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह काफी समय से बीमार थे। 13 अगस्त को अपने स्नानघर में फिसल कर गिरने से उनके दाएं जांघ की हड्डी टूट गई थी और रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी। सर्जरी कराने के लिए उन्हें 16 अगस्त को  उपनगरीय सांताक्रूज के आशा पारेख अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी सर्जरी नहीं हो पाई क्योंकि उन्हें सीने व सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।
वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक योद्धा की भूमिका में उन्होंने भूखा रहना पसन्द किया परन्तु समर्पण नहीं किया था। ज्ञातव्य हो कि लम्बे दौर तक शिवसेना और भाजपा की साम्प्रदायिक गुंडागीरी के कारण उन्हें फिल्मों में काम मिलना बन्द हो गया था। परन्तु साम्प्रदायिकता के खिलाफ उनके संघर्ष में कभी कोई कमी नहीं आई।
15 अगस्त 1917 को मौजूदा पाकिस्तान के सियालकोट में उनका जन्म हुआ था और भारत विभाजन के दर्द के साथ वे मुम्बई पहुंचे थे। उनका बचपन पेशावर में गुजरा था। अभिनय का शौक भी उन्हें बचपन से ही था लेकिन शुरुआत में उन्होंने इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया। हंगल ने अपने अभिनय के सफर की शुरुआत उम्र के 50वें पड़ाव पर की। वर्ष 1966 में बनी बासु भट्टाचार्य की फिल्म तीसरी कसम में वह पहली बार रूपहले पर्दे पर नजर आए। उसके बाद वह जाने-माने चरित्र अभिनेता के रूप में पहचाने जाने लगे। वह कभी रामू काका के रूप में नजर आए तो कभी इमाम साहब के रूप में। खुद हंगल को फिल्म शोले में इमाम साहब तथा शौकीन में इंदरसेन उर्फ एंडरसन की भूमिकाएं बहुत पसंद थीं। अब तक करीब 200 फिल्मों में अभिनय कर चुके हंगल को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए वर्ष 2006 में पद्म भूषण से नवाजा गया। हंगल ऑस्कर के लिए नामित फिल्म लगान में शंभू काका के रूप में नजर आए। फिल्मों में आखिरी बार वह दिल मांगे मोर में अभिनय करते दिखे। उन्होंने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया था। उन्होंने नमक हराम, शोले, शौकीन, आईना, बावर्ची जैसी फिल्मों में भूमिका निभाई था। सात साल के बाद हाल ही में वह एक टीवी सीरियल ‘मधुबाला’ के एक दृश्य में नजर आए थे। शोले में एक अंधे बुजुर्ग मुस्लिम की भूमिका में उनका एक डॉयलाग ‘इतना सन्नाटा को है भाई’ आज तक लोकप्रिय है। हंगल ने शशि कपूर और रेखा अभिनीत फिल्म काली घटा में बतौर खलनायक काम किया था। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म असफल रही थी लेकिन हंगल के अभिनय की सभी ने दिल खोलकर तारीफ की थी।
हिन्दी फिल्मों में अकसर निरीह से पिता, दादा और नौकर की भूमिकाओं में दिखाई देने वाले हंगल एक बेहतरीन अभिनेता के साथ-साथ अच्छे टेलर भी थे। जिंदगी के 50 वसंत देखने के बाद फिल्मों का रुख करने वाले हंगल ने अपनी आत्मकथा ‘लाइफ एण्ड टाइम्स ऑफ ए.के. हंगल’ में लिखा है कि उनके पिता के एक मित्र ने उन्हें दर्जी बनने का सुझाव देते हुए कहा था कि इससे वह स्वतंत्र रूप से अपनी आजीविका चला सकते हैं और कपड़े सिलने का कारोबार एक फलता-फूलता उद्योग भी है। उन्हें यह विचार बहुत पसंद आया और इस तरह न्यायाधीशों और बड़े सरकारी मुलाजिमों के घर के चिराग ने टेलरिंग में अपना भविष्य तलाशने का फैसला किया। हालांकि उन्होंने बड़े जतन से अपनी राह बनाई क्योंकि टेलरिंग के नाम पर उन्हें बटन तक टांकना नहीं आता था। उनके बहनोई ने इस काम में हंगल की मदद की और उन्हें इंग्लैंड में प्रशिक्षित एक दर्जी के पास ले गए। उस दर्जी ने हंगल को प्रशिक्षण देने के लिए 500 रुपए मांगे जिन्हें हासिल करने के लिए हंगल को दर्जीगीरी अपनाने के फैसले से पहले ही नाराज हो चुके अपने पिता हरि किशन हंगल से गुजारिश करनी पड़ी। उन्होंने अपने पिता को धन मांगने के लिए कई खत लिखे लेकिन किसी का जवाब नहीं आया। आखिर में उन्होंने इस धमकी के साथ लिखा कि अगर पैसे नहीं मिले तो वह कभी घर वापस नहीं लौटेंगे। इस बार पिता का दिल पसीज गया और धन मिलते ही हंगल को टेलरिंग का उस्ताद मिल गया।
अभी कुछ साल पहले वे इप्टा के नए साथियों को एक्टिंग का प्रशिक्षण देने लखनऊ आये थे और कई दिनों तक यहां रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं पर उनके लिखे लेख ”पार्टी जीवन“ में प्रकाशित हुए थे।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कौंसिल एवं ”पार्टी जीवन“ की ओर से अपने इस पुरोधा को आखिरी सलाम।

2 comments:

स्वप्निल ने कहा…

good nice and appealing.
....

बेनामी ने कहा…

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट
का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित
है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता
है...

हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने
दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
Also see my website - खरगोश

एक टिप्पणी भेजें

Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य