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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

दुर्गाशक्ति के बाद अब लेखक कँवल भारती को निशाना बनाना महंगा पड़ेगा सरकार को.

शोषित,पीड़ित,दमित और दलितों के लिये अपनी कलम को सदैव सक्रिय रखने वाले श्री कँवल भारती की गिरफ्तारी से सारे देश में आलोचना झेल रही समाजवादी पार्टी और उसकी सरकार के कर्ता-धर्ताओं ने लगता है भूल सुधार न करने की कसम खाली है. तभी तो कल सरकार के एक दबंग मंत्री के सिपहसालारों ने पुलिस अधीक्षक, रामपुर से मिल कर लेखक के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्यवाही करने की मांग कर डाली. ऐसी ही हठधर्मिता दुर्गाशक्ति के निलम्बन के मामले में अपनायी गयी. पूरी की पूरी सरकार एक अदने से अधिकारी के खिलाफ ऐसे ही मोर्चा खोले हुये है मानो चीन और पाकिस्तान से जूझ रही हो. मुझे आश्चर्य इस बात पर होता है कि सरकार और परिवार के सुप्रीमो जब-तब आपात्काल के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं लेकिन आपातकाल जैसी ही कारगुजारियों में संलिप्त अपनी पार्टी की सरकार की कारगुजारियों पर रोक नहीं लगा रहे हैं. अपने सबा साल के शासनकाल में इस सरकार ने पहले ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों को किनारे किया और भ्रष्ट, नाकारा और चाटुकार अधिकारियों को ताकत के केन्द्रों पर आरूढ़ किया. फिर खनन मफियायों को प्रश्रय देने के लिये दुर्गाशक्ति का निलम्बन कर उसे चार्जशीट देदी.इतना ही नहीं उसे आत्मसमर्पण कराने के लिये सर्वोच्च सत्ता शिखर से धमकियाँ तक दी गयीं. यहाँ तक कि साम्प्रदायिक हथकंडे अपनाने से भी यह सरकार चूकी नहीं.ये बात अलग है कि कई मुस्लिम इदारों और समाज ने सरकार के आकाओं की इस साजिश का पर्दाफाश कर दिया. सता-परिवार के एक राजनीतिशास्त्र के विद्वान् ने तो संघवाद की धज्जियाँ विखेरते हुये केंद्र से मांग कर डाली कि वह उत्तर प्रदेश से समस्त आई.ए.एस. अधिकारियों को वापस बुला ले. एक कदम और आगे बढ़ाते हुए सरकार ने लेखक कँवल भारती को गिरफ्तार करा दिया और अब उनके खिलाफ एन.एस.ए. लगाने की साजिश रची जा रही है. ये सारे कदम इस बात के परिचायक हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार उसी अधिनायकवाद का सहारा ले रही है जिसकी आलोचना समय-समय पर सरकार के आका करते रहे हैं. लेकिन सरकार के कर्णधारों को समझ लेना चाहिये कि सत्ता के बलबूते वे अपनी मनमानी को बेशक जारी रख सकते हैं लेकिन ये मनमानी सत्ता की जड़ें हिला सकती है. डॉ.गिरीश .

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