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रविवार, 28 जुलाई 2013

मोनाकाडा क्रांति की 60 वीं जयंती पर गोष्ठी



लखनऊ,28 जूलाई 2013 : आज अपरान्ह दो बजे 22-क़ैसर बाग में विश्व शांति एवं एकजुट्टता संगठनके तत्वावधान में एक गोष्ठी का आयोजन क्यूबा के मोनाकाडा में 26 जूलाई 1953 को घटित क्रांति की 60 वीं जयंती के उपलक्ष्य में किया गया। प्रारम्भ में कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने इस क्रांति और बाद की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
अपने उदघाटन सम्बोधन में लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ रमेश दीक्षित नें बताया कि 26 जूलाई 1953 की क्रांति विफल तो हो गई थी किन्तु इसने जनता को शिक्षित करके उसके सहयोग से पुनः क्रांति की तैयारी का मार्ग प्रशस्त किया। 1956 और 1957 में भी क्रांति के छिट-पुट प्रयास हुये किन्तु सफलता 1 जनवरी 1959 को मिली जब फिडेल कास्तरो ने क्यूबा की सत्ता पर अधिकार कर लिया। 1961 में उन्होने खुद को मार्क्स वाद के प्रति समर्पित कर दिया और रूस के साथ मिल कर साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में अपना सहयोग दिया।
डॉ वीरेंद्र यादव ने साहित्यकारों के क्रांति के प्रति योगदान को रेखांकित किया एवं उनके और अधिक सक्रिय होने की अपेक्षा की। शकील सिद्दीकी साहब ने याद दिलाया कि 1952 में भाकपा संसद में मुख्य विपक्षी दल था अब फिर वही गौरव प्राप्त करना चाहिए।
पूर्व पी सी एस अधिकारी पी सी तिवारी जी नें बताया कि क्यूबा की तरक्की का कारण वहाँ साक्षरता का होना है। उन्होने अपेक्षा की कि AIPSO  के माध्यम से जनता को जाग्रत करके क्रांति के लिए तैयार किया जाये। कामरेड आशा मिश्रा ने क्यूबा और फिडेल कास्तरो से प्रेरणा ग्रहण करने की आवश्यकता पर बल दिया।
जनवादी लेखक संघ के डॉ गिरीश चंद्र श्रीवास्तव ने साहित्यकारों का आव्हान किया कि वे जनोन्मुखी क्रान्ति से उत्प्रेरित साहित्य का सृजन करें तभी जनता को जाग्रत करके विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।  
डॉ गिरीश ने कहा कि 35 वर्ष पूर्व अलीगढ़ विश्वविद्यालय में जब उन्होने क्यूबा की क्रांति की 25 वीं वर्षगांठ मनाई थी तब युवाओं में क्रांति के प्रति झुकाव था आज की गोष्ठी में युवाओं की अनुपस्थिति उपभोकतावाद का दुष्परिणाम है। फिर भी उन्होने संतोष जताया कि युवतियों ने उपस्थित होकर इस कमी को दूर कर दिया है। उन्होने देश की वर्तमान परिस्थितियों को वांम- पंथ के अनुकूल बताया और क्यूबा आदि देशों की क्रांतियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ्ने का आव्हान किया।
एप्सो के सेक्रेटरी जनरल आनंद तिवारी जी ने विद्वानों आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुये सफलता की आशा प्रकट की। कामरेड कल्पना पांडे जिंनका इस गोष्ठी के आयोजन में सक्रिय योगदान रहा का भी यही विचार था कि स्थिति निराशाजनक नहीं है और हम अवश्य ही अपने उद्देश्य में सफल रहेंगे।
अंत में कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने उत्तर प्रदेश में AIPSO     संगठन को पुनः सक्रिय करने की काना करते हुये ऐसे आयोजन आगे भी करते रहने का आश्वासन दिया।

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