भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

Mr. Modee Must Go: Farmers Gathered in Delhi.


किसानों के हालात भले न बदलें सरकार जरूर बदल देगा किसानों का आक्रोश

नई दिल्ली- अखिल भारतीय किसान सभा सहित देश के लगभग दो सौ किसान संगठनों के बैनर तले बड़ी संख्या में यहाँ रामलीला मैदान में पहुँच चुके हैं। कल चार अलग अलग दिशाओं से किसानों ने रामलीला ग्राउंड तक पैदल मार्च किया। आज वे रामलीला ग्राउंड से संसद जाने की तैयारी में हैं जहां वे अपनी खुली संसद आयोजित कर अपनी व्यथा प्रकट करेंगे।
मौसम की दुश्वारियों और यात्रा की कठिनाइयों को झेलते हुये ये किसान यूं ही दिल्ली नहीं पहुंचे हैं। इसके पीछे उनकी वह महापीड़ा छिपी है जो उन्हें पूंजीवादी दलों की सरकारों खास कर इन साढ़े चार साल में मोदी सरकार ने दी है। वर्ष दर वर्ष अपनी बदहाली और कंगाली से झूझते किसान फांसी के फंदे पर झूलते रहे और राजसत्तायेँ अट्टहास करती रहीं।
अपने चुनाव अभियान में मोदी ने किसानों के कर्जे माफी और उनकी आमद दो गुना करने का वायदा किया था, लेकिन सरकार ने किसानों के प्रति वही धोखाधड़ी का रवैया अपनाया जिसे की वह अन्य तबकों के लिए अपनाती रही है। उन्होने भाजपा और मोदी पर बड़ा भरोसा किया था और उन्हें भारी बहुमत से सत्ता सौंपी थी।  लेकिन आमदनी दोगुना करना तो दूर वे और भी बदहाली के गर्त में धकेल दिये गए।
अतएव आज वे मांग कर रहे हैं कि उनकी आमदनी डेढ़ गुना करने का बिल संसद में पास किया जाये और एक बार उन्हें सारे कर्जों से मुक्त किया जाये। वे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की मांग भी कर रहे हैं जिसके बारे में सरकार और भाजपा भ्रम फैला रही है कि उसे तो लागू कर दिया गया। इसके अलाबा तमाम क्षेत्रीय समस्याएँ भी हैं। कहीं गन्ने का उन्हे भुगतान नहीं मिला तो कहीं चीनीं मिलें नहीं चलीं। कहीं धान, बाजरा, आलू प्याज का मूल्य नहीं मिला तो महंगे डीजल, बिजली और फर्तीलाइजर्स ने उनकी कमर तोड़ रखी है। अनेक ऐसे सवाल हैं जो उनके आक्रोश को बड़ा रहे हैं और उन्हें खींच कर दिल्ली ले आए हैं।
एक तरफ उनमें इस सरकार के प्रति गहरा गुस्सा है तो दूसरी ओर अपनी अभूतपूर्व एकता पर भारी उत्साह है। यह गुस्सा और उत्साह भले ही उनके हालात न बदले लेकिन मौजूदा सरकार को जरूर बदल देगा। देखना है सरकार उनके प्रति सहानुभूति का रवैया अपनाती है या फिर उन्हें कोरे आश्वासन और झूठे दाबों से टरकाती है। पर इतना तय है कि किसानों का यह सैलाब अब किसी झूठ को और सहने को तैयार नहीं।
डा। गिरीश,

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रविवार, 18 नवंबर 2018

जनता के आम हितों से किनाराकशी भाजपा को महंगी पड़ेगी : भाकपा




लखनऊ- 18 नवंबर: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य काउंसिल की बैठक यहां मथुरा के वरिष्ठ नेता कामरेड गफ्फार अब्बास एडवोकेट की अध्यक्षता में संपन्न हुयी।
बैठक में देश और प्रदेश के मौजूदा हालात पर राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने एक व्यापक समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर 20 साथियों ने चर्चा में भाग लिया। बैठक में कार्यक्रम एवं संगठन संबंधी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये।
डा॰ गिरीश ने कहाकि केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकार हर मोर्चे पर विफल होचुकी हैं। चुनावों के समय भाजपा ने जनता से जो भी वायदे किये उनमें से एक भी पूरा नहीं किया गया। इन सरकारों की अकर्मण्यता और अहमन्यता ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। परिणामस्वरूप बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और कमजोर तबकों पर अत्याचार की मार से लोग कराह उठे हैं। रुपये की कीमत में अभूतपूर्व गिरावट सरकार कथित कुशलता की कलई खोलने को काफी है। इसका नतीजा है कि सरकार का जनाधार बुरी तरह खिसका है। यही वजह है कि देश भर में हाल में हुये कई उपचुनावों में भाजपा को भारी पराजय का मुख देखना पड़ा है।
डा॰ गिरीश ने कहाकि पांच राज्यों की विधान सभाओं के चुनावों और लोकसभा चुनावों में  संभावित पराजय के भय से समूचे संघ परिवार ने विभाजनकारी और सांप्रदायिक एजेंडों पर पूरी ताकत झोंक दी है। सत्ता के चार सालों में मंदिर निर्माण पर पूरी खामोशी ओड़े रही भाजपा और संघ गिरोह ने अब मंदिर निर्माण का बेसुरा राग छेड़ दिया है। शहरों के ऐतिहासिक लोकप्रिय नामों को भी जबरिया बदला जारहा है। इस नाम परिवर्तन की सनक पर जनता का भारी मात्रा में धन व्यय किया जारहा है। गंगा को स्वच्छ बनाने के नाम पर ये गंगाभक्त बड़ी धनराशि डकार गये और गंगा की हालत आज भी जैसी की तैसी बनी हुयी  है। इनकी गोवंश रक्षा नीति ने आवारा पशुओं के विशाल झुंड पैदा कर दिये हैं जो किसानों की फसल उजाड़ रहे हैं और लोगों की जानें लेरहे हैं। समूची जनता त्राहि त्राहि कर रही है।
अतएव जनता की आँखों में धूल झोंकने की गरज से और एक क्षत्र तानाशाही लादने के उद्देश्य से सर्वोच्च न्यायालय को निशाना बनाया जारहा है। यह देश लोकतन्त्र और संविधान के लिये बहुत ही घातक है। वोट और सत्ता की भूख ने उन्हें अंधा बना दिया है। मोदी, योगी, भागवत और उनके अन्य सभी नेता अनापशनाप झूठ वमन कर रहे हैं और गोदी मीडिया तटस्थता का चोला दूर फेंक उनके कीर्तन में लगा है। लेकिन भाकपा की राय है कि ये न 1989 है न 1992, जबकि देश की जनता को उन्होने बरगला लिया था। जनहितों से किनारा कर भ्रामक एजेंडे पर काम करना उनके लिये उलटा पड़ने वाला है, डा॰ गिरीश ने कहा।
इन चुनौतियों से निपटने को भाकपा ने वामपंथी दलों के साथ मिल कर व्यापक जन चेतना निर्मित करने को अभियान चलाने पर ज़ोर दिया। 3 से 6 दिसंबर के बीच जिलों जिलों में “संविधान, धर्मनिरपेक्षता एवं लोकतन्त्र के समक्ष चुनौतियां” विषय पर विचार गोष्ठियाँ एवं सभा आदि आयोजित की जायेंगी। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) से इस मुद्दे पर सहमति बन चुकी है। अन्य वामपंथी दलों से भी चर्चा की जाएगी।
भाकपा ने अपने जिला स्तरीय नेताओं को राजनैतिक प्रशिक्षण देने हेतु एक चार दिवसीय शिविर आयोजित करने का निर्णय भी लिया। यह शिविर 6 से 9 दिसंबर के बीच बदायूं में होगा। इसमें जिला सचिव और सहसचिवों को भाग लेना है।
भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने 29 और 30 दिसंबर को दिल्ली में होने वाले देश के किसानों के संयुक्त आंदोलन को समर्थन प्रदान किया है और ज्यादा से ज्यादा किसान साथियों से दिल्ली पहुँचने की अपील की है।
बैठक में पार्टी की लोकसभा चुनावों की तैयारी पर भी चर्चा हुयी। भाकपा प्रदेश में 10 सीटें लड़ने की योजना पर कार्य कर रही है।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव


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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

हाथरस और हरदोई हादसों पर भाकपा ने गहरा दुख जताया

 लखनऊ- 6 नवंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कल हरदोई जनपद में रेल हादसे में चार मजदूरों की मौत और हाथरस में पुलिस द्वारा विकलांग दलित की हत्या पर गहरा दुख और क्षोभ प्रकट किया है। डा॰ गिरीश ने प्रत्येक म्रतक के परिवार को रुपये 20- 20 लाख का मुआबजा तथा परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में डा॰ गिरीश ने कहाकि भाजपा शासन में प्रशासनिक लापरवाही और अत्याचारों की सारी हदें टूट गयी हैं। एक माह में ही केवल उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत कई बड़े रेल हादसे हुये जिनमें दर्जनों लोग जान से हाथ धो बैठे। अपराधों और सड़क हादसों में भी हर रोज तमाम लोग मारे जारहे हैं। योगी की पुलिस अब रक्षक नहीं भक्षक का काम कर रही है। इसका सीधा कारण है कि केंद्र और राज्य की सरकारें हरी कीर्तन में व्यस्त व्यस्त हैं, शासन प्रशासन पर उनका कतई ध्यान नहीं है।
उन्होने कहाकि इससे बड़ी बिडंबना क्या होगी कि कल हाथरस में पुलिस ने ठेला लगाकर जीवनयापन करने वाले विकलांग दलित युवक से धौंस मांगी और न देपाने पर पीट पीट कर उसकी हत्या कर दी। भारी जन दबाव के चलते हत्यारे दरोगा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुयी है लेकिन अभी उसकी गिरफ्तारी किया जाना जरूरी है। साथ ही म्रतक परिवार को वो सभी सुविधायें और पावनायें दी जानी चाहिये जो कि लखनऊ में पुलिस द्वारा मारे गये श्री तिवारी के परिवार को दी गईं थीं, डा॰ गिरीश ने मांग की है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा ,  उत्तर प्रदेश  
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शनिवार, 3 नवंबर 2018

न्यायिक सक्रियता, संघ की बौखलाहट और मन्दिर राग




अदालतों के हाल के कुछ निर्णयों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उसके आनुसांगिक संगठनों खासकर भाजपा की बौखलाहट निरंतर बढ़ती जारही है। इस बौखलाहट के चलते एक ओर वह सर्वोच्च न्यायालय पर हमलावर हुये हैं वहीं उन सबने अयोध्या में मन्दिर निर्माण का कीर्तन पुनः तेज कर दिया है। सारी सीमायें लांघ कर सर्वोच्च न्यायालय पर जिस भौंडे ढंग से हमले किये जारहे हैं वे देश और लोकतान्त्रिक समाज के लिये बेहद चिंता का सबब बनते जारहे हैं। अंततः ये हमले हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली और संविधान के ऊपर हैं।
इसी बीच संघ, विश्व हिन्दू परिषद और संघ के तमाम सहोदरों ने चार साल की हैरान करने वाली चुप्पी को तोड़ते हुये अयोध्या में मन्दिर आंदोलन को धार देना शुरू कर दिया है। अब बात यहां तक पहुंच गयी है कि अध्यादेश लाकर और कानून बना कर मन्दिर बनाने की मांग की जारही है। यह मांग किसी और ने नहीं विजयादशमी पर अपने परंपरागत भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्वयं की। नाटकीयता की हद यह है कि सरकार का नियंता संघ अपनी ही सरकार से मांग करने का अभिनय कर रहा है।
लेकिन  महामुख के खुलते ही दसों मुख खुल गये हैं। कथित विहिप और संत समाज तो पहले ही अभियान की रूपरेखा तैयार कर चुके थे अब गिरराज किशोर और सुब्रह्मण्यम स्वामी सरीखे भाजपा के वाचाल भी सक्रिय होगये हैं। एक दो नहीं संवैधानिक पदों पर बैठे कोई दर्जन भर दुर्मुख एक ही भाषा बोल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह डाला कि मन्दिर निर्माण तो जारी है। उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने कहाकि 2019 से पहले ही मन्दिर का निर्माण अवश्य होगा भले ही उसके लिये कानून बनाना पड़े। राम भक्त दर्शाने की होड़ मची है। तोगड़िया और शिवसेना प्रमुख देखने में भले ही अलग दिखाई देते हों पर उनका मन्दिर राग भाजपा और संघ के लिये आधार तैयार करने वाला ही नजर आरहा है।
केरल के सबरीमाला मन्दिर के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सभी स्त्रियों के प्रवेश के निर्णय पर संघ और भाजपा ने सारी सीमायें लांघ कर अपनी फौजें सड़कों पर उतार दीं। इतना ही नहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सर्वोच्च न्यायालय को खुल्लमखुला नसीहत दे डाली कि सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे निर्णय नहीं देने चाहिये जो जनता की आस्था के विपरीत हों और जिन्हें लागू नहीं किया जासके। यह सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता और हमारे संविधान पर खुला हमला है जिसके तहत व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की सर्वोच्चता स्थापित की गयी है। इस प्रकरण ने संघ और भाजपा के नारी सम्मान और स्वातंत्र्य के प्रति ढोंग को भी उजागर कर दिया। एक केन्द्रीय महिला मन्त्री ने तो बेहद फूहड़ बयान देकर नारी की निजता पर घ्रणित हमला बोला।
ऐसा नहीं कि भाजपा ऐसा पहली बार कर रही है। वह ऐसा बार- बार और लगातार करती आयी है। आस्था और श्रध्दा उसके राजनीतिक कवच- कुंडल हैं। इन्हीं की आड़ में इस समूह ने 6 दिसंबर 1992 को राष्ट्रीय एकता परिषद को दिये अपने वचन और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की धज्जियां बिखेरते हुये अयोध्या के विवादित ढांचे को ही ज़मींदोज़ कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय पर संघ परिवार का ताज़ा हमला उसके अधीन विचारधीन अयोध्या विवाद की सुनवाई जनवरी 2019 में शुरू करने के फैसले को लेकर है। संघ भली प्रकार जानता है कि 29 अक्तूबर को सक्षम बेंच के अभाव में सुनवाई संभव नहीं थी और एक सक्षम बेंच के गठन के लिये भी वक्त चाहिये होता है। लेकिन संघ को तो राजनीति करनी थी। पहले कहा गया कि यह सब कांग्रेस के दबाव में किया जारहा है। जब यह पटाखा फुस्स होगया तो कहा जाने लगाकि सर्वोच्च न्यायालय करोड़ों हिंदुओं की भावना से खिलवाड़ न करे। यह सर्वोच्च न्यायालय को खुली धमकी है जो अपने वोट बैंक को बरगलाने के लिये की जारही है।
सर्वोच्च न्यायालय ही नहीं तमाम स्वायत्त संस्थाओं को भी संघ परिवार तहस नहस कर रहा है। निर्वाचन आयोग, सीबीआई, सीवीसी और अब रिजर्व बैंक को निशाने पर लिया गया है।
संघ और भाजपा की इस बौखलाहट और कारगुजारियों के लिये पर्याप्त कारण भी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और मोदीजी द्वारा जनता को तमाम सब्जबाग दिखाये गये थे। आज उनकी कलई पूरी तरह खुल गयी है। दो करोड़ नौजवानों को हर वर्ष रोजगार देने का वायदा अब उन्हें पकौड़े तलने की नसीहत में बदल गया है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने, विदेशों से कालाधन वापस लाकर हर खाते में रुपये- 15 लाख पहुंचाने, आतंकवाद की रीड़ तोड़ने, पाकिस्तान की आँखों में आँखें डाल कर बात करने जैसे झांसे और “न खाऊँगा न खाने दूंगा” जैसी कसमें सभी तार- तार होचुके हैं। भाजपा स्वयं इन्हें चुनावी जुमला बता चुकी है।
नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के दुष्परिणाम सभी के सामने हैं। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में अभूतपूर्व व्रध्दी और कमरतोड़ महंगाई, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रुपये की निरंतर गिरती कीमत और भ्रष्टाचार के मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता ने भाजपा के पैरों तले से जमीन खिसका दी है। राफेल विमान सौदे में सीधे प्रधानमंत्री की लिप्तता ने डूबते जहाज की पैंदी में एक और छेद कर दिया। इसे भाजपा भी समझ रही है और संघ भी। विकास, स्वच्छता अभियान और विदेशों में छवि निर्माण के ढोंग भी परवान नहीं चड़ सके। सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा पर चढ़ कर फायदा उठाने का मंसूबा आरएसएस के बारे में सरदार पटेल के स्पष्ट विचारों ने धराशायी कर दिया।
हाल के कुछ न्यायिक फैसलों ने भी संघ और भाजपा की कथनी करनी और दोगलेपन को उजागर किया है। सबरीमाला मन्दिर में सभी आयु की महिलाओं के प्रवेश, शहरी नक्सल के नाम पर गिरफ्तार बुध्दिजीवियों की गिरफ्तारी के मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार के लिये स्वीकार करना, सीबीआई प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 31 वर्ष पुराने हाशिमपुरा मामले में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाना और उत्तर प्रदेश में 68,500 शिक्षकों की भर्ती में हुये घोटाले की इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई से जांच के आदेश पारित करना आदि तमाम मामले हैं जो भाजपा, संघ और उनकी सरकारों की कारगुजारियों को बेनकाब करते हैं।
इन सब से बौखलाया संघ परिवार मन्दिर मुद्दे की सुनवाई को जनवरी तक बढ़ाए जाने को कुटिलता से आस्था का प्रश्न बना कर सर्वोच्च न्यायालय पर हमले बोल रहा है। हर तरफ से घिरे और पूरी तरह बेनकाब संघ के सामने “मन्दिर शरणम गच्छामि” के अलाबा कोई रास्ता नहीं है। अतएव अध्यादेश लाकर अथवा कानून बना कर मन्दिर बनाने की आवाजें तेज हो गईं हैं। मोहन भागवत और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच हुई गुफ्तगू भी इसी उद्देश्य से है। संघ के महासचिव ने 1992 जैसा आंदोलन छेड़ने की धमकी दी है। यह साख बचाने और चेहरा छिपाने की कवायद भी होसकती हैं।  
अब देखना यह है कि क्या संघ के निर्देशों का पालन करते हुये केन्द्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र से पहले मन्दिर निर्माण के लिये अध्यादेश लाएगी? या फिर संसद में कोई बिल लाकर यह जताने का प्रयास करेगी कि वह तो मन्दिर निर्माण के लिये प्रतिबध्द है। लेकिन इस बिल के अधर में लटक जाने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। पर भाजपा को लोगों को भ्रमित करने का बहाना तो मिल ही जाएगा। कानूनी पेंच यह भी है कि अयोध्या के विवादित भूखंड का अदालती निर्णय आने से पहले वहाँ कोई निर्माण संभव नहीं है। भाजपा और संघ यह भली प्रकार जानते हैं। अतएव मन्दिर राग अलापना उनकी मजबूरी है तो न्यायपालिका को धमकाना उनकी राजनैतिक जरूरत। इसे वे निरंतर जारी रखेंगे भले ही देश के लोकतान्त्रिक ढांचे को कितनी ही क्षति क्यों न उठानी पड़े।
डा॰ गिरीश


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गुरुवार, 1 नवंबर 2018

CPI on Hashimpura


हाशिमपुरा पर न्यायपालिका का फैसला संवैधानिक मूल्यों के प्रति उम्मीद जगाने वाला है

भाकपा ने फैसले का किया स्वागत

 लखनऊ- 1 नवंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने 31 वर्ष पुराने मेरठ के हाशिमपुरा जनसंहार के दोषी 16 पीएसी कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा के फैसले का स्वागत किया है। ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश और देश में कई संगीन मामलों के पीड़ित न्याय की आस लगाये बैठे हैं, इस फैसले ने उनमें न्याय के लिये नई उम्मीद जगाई है। भाकपा ने पीड़ितों की हानि की विकरालता को देखते हुये उन्हें पर्याप्त मुआबजे की मांग भी की है।

यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहाकि अभी मोब लिंचिंग, सांप्रदायिक दंगों और नरसंहार, बम ब्लास्ट, फर्जी मुठभेड़ें और जेनयू के छात्र नजीब के लापता होने के कई मामले जांच और न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। देर से ही मगर दुरुस्त आये इस फैसले ने जहां पीड़ित वर्ग में न्याय की उम्मीद जागी है वहीं आस्था, धर्म, जातीय और सांप्रदायिक विद्वेष से लथपथ ताकतों को म्यान में रहने का संदेश दिया है। यह प्रशासनिक मशीनरी और उन सुरक्षा बलों के लिये भी एक सबक है जो घ्रणा और हिंसा की राजनीति करने वालों के हाथों की कठपुतली बन कर भक्षक बन जाते हैं।
यह फैसला इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यकवाद और तुष्टीकरण का हौवा खड़ा करने वाली भाजपा और आरएसएस जैसी ताकतों को भी यह कठघरे में खड़ा करता है। ये ताक़तें अल्पसंख्यकों की रक्षा हेतु आवाज उठाने वाली ताकतों पर अल्पसंख्यकवाद और तुष्टीकरण के मिथ्या आरोप मढ़ती रहती हैं और अपनी हिंसा, विद्वेष और सांप्रदायिक राजनीति को जायज ठहराने की कोशिशों में लिप्त रहती हैं। इतना ही नहीं ये ताक़तें प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षाबलों में अपनी घुसपैठ और उनके सांप्रदायीकरण का निरंतर प्रयास करती रहती हैं, खासकर तब जब वे सत्ता में होती हैं।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना कर हत्याएं की गई हैं। यह हिरासत में मौत का मामला है। इसमें मानवाधिकार का हनन किया गया है और पीड़ितों को न्याय दिलाने में तीन दशक लग गए। इतने समय बाद न्याय मिलना न्यायपालिका के उद्देश्य को पूरा नहीं करता है। इस मामले में निर्दोष और निहत्थे लोगों की जानबूझ कर हत्या की गई है। यह किसी भी सुरक्षाबल और राज्य व्यवस्था के लिये शर्मनाक है।
निश्चय ही हमारी न्यायपालिका का यह फैसला हमारे संविधान में विहित धर्मनिरपेक्षता, लोकतन्त्र और न्यायिक समानता के मूल्यों को परिपुष्ट करता है और दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाला है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस फैसले का तहे दिल से स्वागत करती है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश  

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