भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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सोमवार, 31 मई 2010

देशांतर/चोरी छिपाये न छिपे - अंतोन चेखव

तीन देहाती घोड़ों के पीछे, बेहद एहतियात बरतते हुए अपनी शिनाख्त महफूज रख, पीटर पॉसुडिन किसी गुमनाम खत की पुकार के वश-पीछे की गलियों से ‘एनः प्रांत’ के छोटे से आंचलिक नगर की ओर-कदम उछालता चला जा रहा था।“कितना प्रच्छन्न; वाह; धुंए समान काफूर हो आया हूं ना- कोट की गरेबान में चेहरा लुपकाया वह मन ही मन इतराया। अपनी वाहियात षडयंत्री योजनाओं की कामयाबी के बाद, अब, इस ख्याल-कि कितनी चालाकी दिखा उन्होंने रास्ते फुदक लिये-से बेहद प्रफुल्ल वे नीच बर्बर परस्पर पीठें ठोक रहे होंगे - हा! हा! विजयोल्लास के चरम पर, यह सुन - ‘लिऑपकिन तिऑपकिन को मेरे पास लाओ’ उनके चेहरे की उड़ी हवाई और सिर पर मंडराये आतंक को मैं टुकुर टुकुर देख रहा हूं। कितना बवाल मचा होगा वहां। हा! हा!”मनमोदन से चुकने के बाद पासुडिन ने कोचवान को वार्तालाप में उलझाया। ख्याति के लोभी हर आदमी समान उसने सर्पप्रथम अपने ही बाबत पूछा:”जरा बताओ, तुम जानते हो पॉसुडिन कौन है?““मुझे क्या मालूम?” कोचवान ने खीसंे निपोरी। “हमें बस यही पता वह कौन है।”“हंस क्या रहे हो?”“कितना अजीब। यह सोचना कि पॉसुडिन कौन है, जबकि हर कोई छोटे से छोटे हर कारकून को जानता है। इसलिए तो वह यहां है, हर किसी के जाना जाने के लिए।”“ठीक-तो उसके बारे में क्या ख्याल है? वह अच्छा आदमी है ना?”“बुरा नहीं,” किसान जम्हाई लेता है। वह एक अच्छा जेंटिलमॅन है; अपना काम समझता है। करीब दो वर्ष पूर्व ही तो उसे यहां भेजा गया था, और देखो, उसने तभी से कमाल कर दिया।“क्या-क्या किया उसने? ठीक से बताओ।”“उसने कई बढ़िया काम किये हैं, ईश्वर उसका भला करे। वह रेलरोड लाया, उसने खोखिंकोव को जिलाबदर किया, बहुत ही खराब आदमी था वो खोखिंकोव; बदमाश, कमीना। पहले वालों को तो उसने जाल में फंसा लिया था, लेकिन पॉसुडिन क्या आया कि खोखिंकोव ऐसा लोप हुआ मानो कभी था ही नहीं। जी हां, सर! पॉसुडिन के हाथों में कभी रिश्वत नहीं रखी जा सकती; कतई नहीं! अगर आप उसे सौ या हजार रूबल रिश्वत देते तो किसी पाप का बोझ उस पर से नहीं - वाकई नहीं - उतार पाते।”‘खुदा का शुक्र है कम से कम उस बाबत मुझे ठीक समझा गया!’ मन में बोलता पॉसुडिन उल्लास से जा भरा। ‘वाकई शानदार’“वह खुशमिजाज जेंटिलमॅन है। हमारे कतिपय आदमी, एक बार, उसके पास कुछ शिकायतें ले गये तो उसने उनके साथ जेंटिलमॅनों जैसा ही बरताव किया। सबसे हाथ मिला बोला, ‘आइये बैठिये।’ बड़ा फुरतीला, बल्कि उतावला जेंटिलमॅन है वह; गुपचुप चर्चा जरा पसंद नहीं उसे, एकदम फटाफट - हमेशा फटाफट! धीमे कदम जरा नहीं, बिलकुल नहीं! हमेशा दौड़ता, भागता हुआ। हमारे लोगों की बात पूरी हुई न हुई कि चिल्ला पड़ाः ‘गाड़ी लाओ!’ और सीधा यहां, हमारे यहां चला आया। सारे मामलात आनन फानन निपटा दिये, एक कोपेक की भी रिश्वत नहीं ली। पिछले वाले से हजार गुना बेहतर है वह हांलाकि वह भी भला था। वह साफ सुथरा था, और आनबान बनाये रखना पसंद करत, लेकिन पूरे इलाके भर कोई उससे ऊंची आवाज नहीं बोल सकता था। सड़क पर जब होता दस मील तक उसकी आवाज सुनाई देती। लेकिन काम के निपटारे बाबत वर्तमान वाला ही हजार गुना कुशाग्र। इस वाले का भेजा खोपड़ी के ठीक ठिकाने ही नहीं दूसरे से सौ गुना बड़ा है। ये हर तहर बढ़िया आदमी है; सिर्फ एक ही बात तकलीफदेह यह कि - शराबखोर है!”‘हे भगवान!’ पॉसुडिन सोचने लगा।“तुम्हे कैसे मालूम उसने पूछा कि मैं- कि वो शराबी है?”“ओह, बेशक, हुजूर हालांकि मैंने उसे कभी भी नशा किया हुआ नहीं देखा। जो सच नहीं वह नहीं कहूंगा, दरअसल लोगों ने मुझे कहा - यद्यपि उन्होंने भी उसे नशा किया हुआ नहीं देखा; लेकिन उसके बारे में ऐसा ही कहा जाता है। सार्वजनिक स्थानों पर, या किसी से मुलाकात के दौरान, या बॉल-समारोहों के बीच वह भी नहीं पीता; वह घर में ही गटकता है। सुबह उठा, आंखे मलीं, कि ध्यान में उसके पहली चीज जो आ समाये वह होती है वोडका! उसका खानगी नौकर एक गिलास भर कर लाया न लाया कि गले उतार दूसरा मंगवाता है, और इसी तरह सारे दिन। और एक मजेदार बात बताऊं कि इतना पीने पर भी चेहरे पर कोई असर कभी नहीं! अपने को आपे में रखना बखूबी जानता है। जब अपना खोखिंकोव पीता आया तब लोग क्या कुत्ते तक भौंकते, लेकिन पॉसुडिन की नाक तक लाल नहीं होती। अपने अध्ययन कक्ष में जा बैठ सुड़कता रहता है। उसने अपनी मेज पर जमाये रखे किसी न किसी किस्म के पात्र में नली फिट की हुई है ताकि कोई न जान सके वह क्या कर रहा है जबकि पात्र मदिरा से लबालब होता है। थोड़ी ही सी हरकत की दरकार - बस, छोटी सी नली के सिरे तक झुको, सुड़को और मदमस्त हो जाओ। बाहर घूमते क्षण भी, अपने बैग में....”...‘उन्हें ये सत्र कैसे मालूम?’ बेहद भौंचक पॉसुडिन सोचता है। ‘हे भगवान, ये तक उन्हें पता है! कितना भयानक!...“और फिर, स्त्रियों के मामले में, वह बेहद धूर्त है।” चालक ने हंसते-हंसते मसखरे अंदाज में सिर लहराया। “बेहद लज्जास्पद बात है, वाकई शर्मनाक! उसने दस रख रखी हैं। दो तो उसी के घर में रहती हैं। एक का नाम है नतासिआ इवानोवना; उसे एक तरह से, पटरानी बना रखा है; दूसरी, क्या अजीब नाम उसका? ओह हां, लुडमिला सेमिओनावना। वह ऐसी गोया उसकी सेक्रेटरी हो। दसियों की सरगना है नतासिआ। उसके वश इतनी शक्तियां कि लोग पॉसुडिन की बनिस्वत उससे खौफ खाते हैं। और, तीसरी छिछोरी का क्या कहना- वह काशलाना स्ट्रीट में रहती है। कितना लज्जास्पद!“‘ये तो उनके नाम तक जानता है, ‘पॉसुडिन सोचने लगा, उसका चेहरा पीला पड़ गया। ‘और सोचो जरा, कौन है ये? - एक मामूूली किसान, कोचवान! कितनी भद्दी बात!’“तुम्हे यह सब कैसे पता चला?” उसने चिढ़ते हुए पूछा।“लोग ऐसा कहते हैं। मैंने खुद अपनी आंखों से नहीं देखा, लेकिन औरों के मुंह से सुना। ठीक क्या है कह नहीं सकता। किसी नौकर का या कोचवान का मुंह बंद करना मुश्किल है, और फिर, बहुत कर यह ही संभव कि नतासिआ स्वयं यहां-वहां जा सारी गलियां घूम अपनी हैसियत का एहसास अन्य स्त्रियों को कराती हो। कोई भी ऐसा आदमी नजरों से लुका नहीं रह सकता। फिर बात यह कि ये पॉसुडिन मुआयनों के अपने दौरे गोपनीय रखने लगा है। बीते दिनों जब कभी बाहर जाने का निर्णय लेता, तो महिना भर पहले प्रगट करता और जब जाता इतना होहल्ला, इतना उधम, इतना शोर होता- भगवान बचाये! आगे, पीछे, दोनों बाज घुड़सवार। अपने गंतव्य पहुंच, जरा झपकी ले, भरपेट खा पी चिल्ला, चीख-चीख पैर पटक-पटक प्रशासकीय काम कर दूसरी झपकी ले, जैसा आया वैसा ही लौट जाता। हालांकि अब कोई बात कानों पड़ी कि वह गुपचुप - ताकि कोई देखे न जाने - निगरानी रखता है,” सोचता है कि होगा, चिंता न करो बात आयी गयी- शायद कहीं किसी ने मजाक भी की होगी। वह घर से बाहर ऐसा जा खिसकता है कि कोई कर्मचारी देख न पाये, और टेªन पकड़ता है। गंतव्य के स्टेशन पर पहुंच न तो तेज तर्रार घोड़ों से लैस डाकगाड़ी और न ही किसी बग्धी पर सवार होता है बल्कि भीड़ में घुस-घुसा बाहर निकल स्वयं को किसी वृद्ध समान लबादे में लपेट पूरी राह किसी बुड्ढे कुत्ते जैसा गले से खरखराता रहता है ताकि उसकी आवाज पहचानी न जाये। लोग इतनी दिल्लगी बिखेरते ये सब सुनाते हैं कि हंसते-हंसते पेट फट जाये। मूढ़ बना गाड़ी में सवार सोचता होगा कोई क्या पहचानेगा। लेकिन जरा ही दिमाग चला हर कोई चीन्ह लेता है कौन है - हह!”“कैसे? कैसे?“बड़ी आसानी से। बीते दिनों, ऐसे ही आते जाते खोखिंकोव को उसकी भारी भारी भुजाओं से भांप लिया जाता था। जिसे गाड़ी पर बैठाया अगर मुंह पर गाली बके समझों खोखिंकोव। जबकि पॉसुडिन को तो देखते ही पहचान सकते हो। सामान्य यात्री का आचरण सीधा सादा, लेकिन पॉसुडिन सरलता से कोसों दूर। नगर पहुंच कोचवान पूछते हैं कहां चलें? - डाक बंगला - वह तत्क्षण चिल्ला पड़ता है। जगह गंधाती होती है, या खूब गर्म, या खूब ठंडी; वह ताजा मुर्गियां और नाना भंाति फल और मुरब्बे मंगवाता है। इस तरह डाक बंगलों पर उसे चीन्ह लिया जाता है; सर्दियों में कोई मुर्गियां और फल बुलवाये समझो पॉसुडिन है। अगर कोई खूब बनते हुए कहे ‘माय डीयर फेलो’, और तत्क्षण उसे घेरे लोग मूर्खों समान इत उत दौड़ते फिरें, पक्का मानो पॉसुडिन ही है। और फिर, उसकी देह से सामान्य महक नहीं उभरती है, तथा, सोते क्षण लेटने की उसकी अपनी ही विशिष्ट शैली है। डाक बंगले में वह सोफे पर लेट चारों बाजू इत्र छिड़क सिरहाने तीन कैंडल जलवा कर अखबार पढ़ता है। कोई आदमी क्या जरा सा तोता भी ये सब देख बता दे ये कौन शख्स है।”‘हूं’ पॉसुडिन सोचने लगा, ‘मैंने पहले से ख्याल क्यों नहीं रखा?’“और सुनो, उसे तो फलों, मुर्गियों के बगैर भी पहचाना जा सकता है। टेलीग्राम से सब कुछ पहले ही पता चल जाता है। चाहे जितना चेहरा ढंक ले, मन आये वैसा स्वयं को छिपा ले, यहां यूं ही खबर पड़ जाती है वो आ रहा है। लोग उसकी बाट जोहते हैं। पॉसुडिन ने उधर घर छोड़ा, विद ा ली, इधर उसके लिए सब कुछ तैयार! किसी को अचानक धर पकड़ गिरफ्तार करने, या बरखास्त करने आ रहा है; वे उस पर हंसते हैं। ‘हां हुजूर’, वे कहते हैं, यद्यपि आप भले अनायास आये, तथापि यहां सब कुछ व्यवस्थित है! इधर उधर चक्कर लगा अंततः आया वैसा ही लौट जाता है। बेशक, सब की प्रशंसा कर हाथ मिला व्यवधान पहुंचाने के लिए क्षमा मांगता है। बिलकुल सच कह रहा हूं, सर, यहां लोग बड़े उस्ताद हैं। हर कोई इतने कि पूछा न जाये! मसलन, आज ही क्या हुआ, जरा सुनिये। अलसुबह खाली छकड़ा लिये सड़क पर निकला क्या निकला कि यहूदी - रेस्तरां का मालिक मेरी ओर दौड़ा आया। ‘कहां चले यहूदी-स्वामी?” मैंने पूछा।... ‘कुछ मदिरा कुछ फल आदि नगर-एन ले जाना है,’ वह कहता है, ‘जनाब पॉसुडिन शायद आज वहां तशरीफ ला रहे हैं; ऐसा सुना है। ...अब तो बात साफ हो गयी ना? ...और उधर पॉसुडिन रवाना होने को तैयार हो रहा होगा, चेहरा लबादे और अन्य उपकरणों से ढंक स्वयं को यों छिपा रहा होगा कोई पहचाने नहीं। शायद, राह चलते सोच में मस्त होगा किसी को नहीं मालूम वह आ रहा है, फिर भी मदिरा और मसालेदार कीमा और पनीर उसके लिए तैयार हैं। बोलो, अब क्या कहेंगे? गाड़ी पर सवार वह सोच रहाः ‘अब, बच्चू, तुम लोगों की खैर नहीं!’ जबकि उस्तादों ने सब कुछ पहले ही छिपा दिया।”“गाड़ी पलटाओ!” पॉसुडिन खीज कर चीखा। “सीधे वापस ले चलो, साले बदमाश!”भौंचक चालक ने गाड़ी पलटायी और लौटने लगा।
- अंतोन चेखव

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