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सोमवार, 31 मई 2010

पेंशनयाफ्ता मजदूरों की जेब पर डाका

गत दिनों भारत सरकार ने निजी क्षेत्र में कार्यरत 4.5 करोड़ मजदूरों की जेब पर दिन-दहाड़े डाका डालते हुए कर्मचारी पेंशन योजना 1995 में भारी कटौती कर दी है जबकि 1995 में फैमिली पेंशन स्कीम को कर्मचारी पेंशन योजना में तब्दील करते समय केन्द्र सरकार ने वृद्ध कर्मचारियों की भलाई हेतु बड़े लम्बे चौड़े वायदों का ढोल पीटा था। जगह-जगह सेमिनार- मीटिंग्स आदि किये गये तथा मजदूर संगठनों द्वारा उठाई गई शंकाओं को दरकिनार कर दिया गया। फैमिली पेंशन योजना के तहत मजदूर व मालिकों के अंशदान से 1.17 प्रतिशत कुल 2.33 प्रतिशत तथा सरकार का भी 1.17 यानी 3.51 प्रतिशत का अंशदान होता था तथा मृत्यु की स्थिति मेें कर्मचारी कीविधवा को पेंशन मिलता था। 1995 में मालिकों के अंशदान से 8.33 प्रतिशत की कटौती करके तथा बहुत बाद से सरकार द्वारा अपना 1.17 प्रतिशत का अंशदान पुनः शुरू करने (पेंशन योजना लागू होने के बाद सरकार ने अपना 1.17 प्रतिशत का अंशदान पुनः बंद कर दिया था) के बाद कुल 9.5 प्रतिशत का फंड इसके लिए स्थापित किया गया।यह गौर करने वाली बात है कि अंशदान 12 प्रतिशत होने के बाद अगर सिर्फ पारिवारिक पेंशन योजना होती तो उसमें 2.33 प्रतिशत ही अंशदान जाता तथा 21.67 प्रतिशत (दोनों हिस्से मालिक - मजदूर के) मजदूरों के अपने फंड में जाते जबकि कर्मचारी पेंशन योजना के बाद 8.33 प्रतिशत पेंशन में तथा सिर्फ 15.67 प्रतिशत अंशदान अपने फंड में जाता है। 1995 में 5000 रु. वेतन कोआधार बनाया गया तथा मई 2001 में 6500 रु. प्रतिमाह वेतन पेंशन हेतु तय किया गया। इसके बाद इस वेतन सीमा में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है, जबकि 1995 के थोक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को 100 माना जाये तो वह अब 350 के करीब है। यानी इसके अनुसार पेंशन हेतु वेतन सीमा 17500 रु. होनी चाहिए थी। वेतन सीमा में बढ़ोतरी न होने का खामयाजा पेंशनभोगी भुगत रहे है तथा हर साल एक माह का वेतन (8.33 प्रतिशत) पेंशन कोष में देने के बावजूद मजदूरों को इस फंड में जमा उनके पैसे के ब्याज के बराबर ही पेंशन बमुश्किल मिल रहा है। बहुत सारे राज्यों में आम नागरिकों की वृद्ध या विधवा पेंशन भी राज्य सरकारों द्वारा 700 रु. प्रतिमाह दिया जा रहा है, जबकि कर्मचारी पेंशन योजना के अंतर्गत आज भी बहुत सारे पेंशनभोगी है, जो अंशदान देने के बावजूद मात्र 300-400 रु. तक पेंशन ले रहे हैं। यहां यह भी जानना आवश्यक है कि पेंशन हेतु वेतन सीमा सिर्फ निजी क्षेत्रों के 4.5 करोड़ कर्मचारियेां के लिए ही लागू है। बाकी इस देश में किसी भी महकमे में पेंशन हेतु वेतन सीमा तय नहीं है। इसलिए उनकी वेतनवृद्धि के साथ ही उनके पेंशन में इस वृद्धि का लाभ अच्छा खासा मिल जाता है। हैरानी की बात है कि पेंशन कानून 1995 की धारा 32 के अनुसार केन्द्र सरकार को हर साल पेंशन की समीक्षा करनी थी, ताकि पेंशन से मिलनेवाली रकम को बाजार के मूल्य से सामंजस्य बनाया जा सके। मगर सरकार ने गत 9 सालों से कोई समीक्षा नहीं की। उसके विपरीत बड़ी बेशर्मी से सरकार ने कर्मचारी पेंशन योजना की धारा 12 ए जिसके तहत पेंशन की 1/3 भाग की रकम के सौ गुणा रकम के बराबर एक मुश्त राशि पेंशनभोगी को मिलने का प्रावधान था को अपनी एक अधिसूचना जीएसआर-688 (इ) ता. 26.09.2008 द्वारा खत्म कर दिया।इस धारा के तहत अगर किसी कर्मचारी को 1200 रु. पेंशन बनता था तथा वह अपना 1/3 भाग यानी 40 रु. पेंशन छोड़ देता था तो उसे 4 का सौ गुणा यानी 40 हजार रु. पेंशन शुरू होने के साथ ही एकमुश्त राशि मिल जाती थी। इसके अलावा 800 रु. पेंशन भी मिलता था। सरकार का दूसरा हिस्सा इस कानून की धारा 13 को खत्म कर मजदूरों पर किया गया जिसके तहत पूंजी वापसी का प्रावधान था। उदाहरार्थ द्वारा 13 के विकल्प (1) के अनुसार 1200 रु. पेंशन लेनेवाला मजदूर 10 प्रतिशत पेंशन छोड़ देता था तो उसे 1080 रु. पेंशन प्रतिमाह मिलता था तथा उसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा को एक लाख बीस हजार रु. एकमुश्त मिल जाता था। इसके अलावा विधवा को 540 रु. पेंशन प्रतिमाह मिलता था।निजी क्षेत्र के पेंशनभोगियों पर एक और बड़ा हमला करते हुए सरकार ने अधिसूचना जीएसआर-438 (ई) ता. 09.06.2008 द्वारा मजदूरों को 1995 के कानून के तहत मिलनेवाला पेंशन को कम कर दिया। 1971 सेे 1995 तक के पेंशन गणक को कम कर दिया है। उसका परिणाम हो रहा है कि इस अधिसूचना से पहले अगर किसी का पेंशन 1400 रु. बनता था तो अब इतनी ही अवधि का पेंशन 1250 रु. यानी पहले की तुलना में 150 रु. कम बन रहा है। साथ ही आगे समय में यह कमी 350 रु. तक हो जायेगी। यह एक ऐसा हमला है जो पेंशनभोगियों को जीवन भर आर्थिक हानि पहुंचाएगा, जबकि चीजों की कीमत में 350 गुणा बढ़ोतरी हुई है।एक तथ्य यह भी है कि इस देश में मंत्री से लेकर संतरी तथाअधिकारी से लेकर चपरासी तक हर एक के पेंशन में 1995 की तुलना में अब तक भारी वृद्धि हुई है। मगर सरकार द्वारा यही मापदंड निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भी अपनाया जाना चाहिए था। इसी प्रकार सरकार ने न्यूनतम पेंशन लेनेवालों (50 वर्ष से ऊपर तथा 58 साल से नीचे की उम्र में पेंशन लेनेवालों) की कटौती दर 3 प्रतिवर्ष से बढ़ाकार 4 प्रतिशत कर दी है। साथ ही जो लोग 10 साल की सर्विस पूरी नहीं कर रहे हैं, उनकी रकम की वापसी भी काफी कम दर हो रही है। यानी सरकार ने कर्मचारी पेंशन योजना की हर सुविधा के अंदर 1995 की तुलना में 2008 से भारी कटौती कर दी है।निजी क्षेत्र के साढ़े चार करोड़ कर्मचारियेां की पेंशन योजना में इस अन्यायपूर्ण कटौती की तरफ यथोचित ध्यान नहीं दिया गया है। पेंशन में छीनी गयी सुविधाओं को बहाल करने, पेंशन निर्धारण में वेतन सीमा हटाने और पेंशन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ जोड़ने की मांग उठाना सर्वथा न्यायपूर्ण है। निजी क्षेत्र के 4.5 करोड़ कर्मचारियों की पेंशन सुविधा में सरकार द्वारा भारी कटौती के बावजूद भी मजदूर संगठनों द्वारा सार्थक विरोध नहीं हुआ जबकि अन्य मुद्दों पर काफी आंदोलन चले हैं तथा आगे भी चलेंगे। इसलिए मई दिवस पर हमारा प्रण होना चाहिए कि आगे आने वाले समय में कर्मचारी पेश्ंान योजना में सरकार द्वारा छीनी गई सुविधाएं वापस कराने, पेश्ंान हेतु वेतन सीमा हटवाने, पेंशन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़वाने व किसी भी हालत में कर्मचारियेां की पेंशन आम नागरिकों की पेंशन से कम न होने देने तथा अन्य सुधारों हेतु इन मांगों को भी अन्य मांगों के साथ प्रमुखता से उठाये।
- बेचू गिरी

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