फ़ॉलोअर
गुरुवार, 10 जून 2010
at 7:20 pm | 0 comments |
न्यायिक फैसला - वर्कमेंस कंपनसेशन एक्ट में अधिकतम वेतन की सीमा अनुचित
“न्यनतम मासिक वेतन निर्धारित किया जा सकता है, किंतु अधिकतम मासिक वेतन की पाबंदी नहीं हो सकती। अधिक मासिक वेतन की पाबंदी लगाना मजदूर वर्ग के हितों के विपरीत है और निश्चय ही ऐसा करना मूलभूत अधिकारों को प्रभावित करता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 (1) जी (पेशा करने का अधिकार) और 21 (जीने का अधिकार) के अंतर्गत सुरक्षित किया गया है। वर्कमेंस कंपनसेंशन एटक 1923 की धारा 4 (1) और इसके प्रावधानों के मातहत 4000/- रुपये अधिकतम मासिक वेतन निर्धारित करने की प्रक्रिया ही इस कानून के घोषित उद्देश्यों के विरुद्ध हैं और इसलिए इस कानून को तदनुसार संशोधित किया जाना उचित है।”मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन किरुबाकरन ने 8 फरवरी 2010 को सुनाये फैसले में उपर्युक्त व्यवस्था देते हुए कहा है कि इस कानून का मकसद काम के समय दुर्घटना में घायल होने, अपंग होने अथवा मृत्यु होने की अवस्था में मुआवजा की भरपायी है, इसलिए इस मामले में अधिकतम मासिक वेतन की कोई सिलिंग उचित नहीं है। यह फैसला ओरियंटन इंशोरेंस कंपनी द्वारा दायर अपील याचिका के निष्पादन के रूप में आया। 20 अगस्त 2003 को एक राजमिस्त्री को दुर्घटना में 80 प्रतिशत क्षमता नुकसान अर्थात अपंगता हो गयी। उपश्रमायुक्त ने राजमिस्त्री को 4,34,650/- रुपये का अवार्ड घोषित किया। तब इंशोरेेस कंपनी ने उच्च न्यायालय में इस अवार्ड के विरुद्ध याचिका दाखिल की। कोर्ट ने उपश्रमायुक्त के अवार्ड की मान्यता देते हुए लिखा: “श्रमिक की बढ़ती आय और क्रय क्षमता, मुद्रास्फीति और बढ़ते जीवन निर्वाह व्यय के आलोक में मासिक वेतन की तदनुसार वृद्धि लाजिमी है। इस संदर्भ में 4000/- मासिक वेतन की सीमा अत्यंत कम है, जिसकी विलुप्ति अथवा सीमा वृद्धि पुनर्विचार जरूरी है।”गलती करने वालों को क्षमा... श्रमिको को सजा?उक्त फैसले में सर्वोच्च न्यायालय के 5 जनवरी को जस्टिस जी.एस. सिंघवी और जस्टिस अशोक कुमार गांगुली के बेंच द्वारा हरजिंदर सिंह बनाम पंजाब स्टेट वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन मामले में दिये गये निर्णय का हवाला देते हुए निम्नांकित अंश उद्धत किया गया हैः-“छंटनी के मामलों में नियोजकों की बहुचर्चित कुल जमा दलील होती है कि श्रमिक की प्रारंभिक नियुक्तियां नियमानुसार नहीं थी और इसलिए अगर इन्हें पुनः बहाल किया गया तो उद्योग प्रतिष्ठान पर असहय वित्तीय बोझ बढ़ेगा। ऐसे मामलों में गलती करनेवालों के उत्तरदायित्व को नकारते हुए बहुधा अदालतें ऐसी छंटनी दलीलों को मंजूर करती हैं और तब गलती करनेवालों के दायित्व को अनदेखा किया जाता है और परोक्ष रूप से गलतियों के लाभार्थी श्रमिकों को उस गलती की सजा दी जाती है। ऐसा करने में इस तथ्य को भुला दिया जाता है कि संबंधित श्रमिक लंबे समय तक नियोजन में रहकर काम किया है और उसके एवज में उसे अत्यल्प पारिश्रमिक मिला है, जा ेउसके जीवन निवार्ह का एकमात्र आधार है। यहां यह बताने की जरूरत नहीं कि उस आदमी को जीविका से वंचित करना उस आदमी के जीने के संवैधानिक मूलभूत अधिकारों से वंचित करना है।... इसलिए न्यायालय का काम संविधान के निदेशक सिद्धांतों में वर्णित दर्शन के अनुकूल होना चाहिए।... नियोजकों, सरकारी या निजी, द्वारा उछाली गयी ऐसी छिछली दलीलों के प्रभाव में आकर श्रमिकों को समुचित न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।”
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...5 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The following is the text of the political resolution for the 22 nd Party Congress, adopted by the national council of the CPI at its sess...
-
Manifesto of the Communist Party Karl Marx and Fredrick Engels Prefaces to various language editions 1872 German Edition 1882 Russian Edit...
-
उत्तर प्रदेश के कोने कोने में फूंकी गयीं काले क्रषी क़ानूनों की प्रतियां आपातकाल सरीखे हालातों के बावजूद प्रदेश में निरंतर बढ़ रहा है किसा...
-
उठ जाग ओ भूखे बंदी, अब खींचो लाल तलवार कब तक सहोगे भाई, जालिम अत्याचार तुम्हारे रक्त से रंजित क्रंदन, अब दश दिश लाया रंग ये सौ बरस के बंधन, ...
-
भाकपा की राज्य कौंसिल बैठक शुरू भाकपा राष्ट्रीय सचिव शमीम फैजी ने जारी किया आन्दोलन का पोस्टर लखनऊ 18 अप्रैल। भारतीय कम्युनिस्ट पार्...
-
चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो चलो लहूलुहान पांव ले के भी चले चलो चलो कि आज साथ-साथ चलने की जरूरतें चलो कि ख़त्म हो न जाएं जिन्द...
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल के सचिव डा0 गिरीश ने 17 से 21 सितंबर तक काठमांडू में संपन...
-
(विगत 26 अप्रेल 2013 को कॉमरेड अनिल राजिमवाले का व्याख्यान रायगढ़ इप्टा और प्रलेस के संयुक्त आयोजन में हुआ था। इसके बाद 27 तथा...
-
7 नवंबर को हम फिर से एक बार हर वर्ष की तरह रूसी क्रांति की वर्षगांठ मना रहे हैं। यह इतिहास की ऐसी असाधारण घटना है जिस पर काफी कुछ लिखा...
-
हरिशंकर परसाई की कहानियों में पात्र-वैविध्य की बात हम कर चुके हैं, इस वैविध्य का बहुत बड़ा कारण परिस्थितियां, उनसे जूझते चरित्र का निर्मित हो...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें