भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

गुरुवार, 10 जून 2010

वियतनाम को लाल सलाम

960 और 1970 के दशक के आरंभ में हमारे छात्र जीवन के दौरान ”तेरा नाम वियतनाम, मेरा नाम वियतनाम“ नारा लगता था। वियतनाम का नाम लेने से ही लाखों युवाओं एवं लोगों में प्रेरणा का भाव पैदा हो जाता था। शक्तिशाली अमरीकी साम्राज्यवाद का वीरतापूर्ण सामना करने का यह एक प्रतीक था। वियतनाम ने आखिरकर अमरीकी साम्राज्यवाद को हराया लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, इस लम्बी लड़ाई में तीस लाख लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी। 30 मई, 1975 को सैगोन शहर मुक्त हो गया तथा दक्षिण वियतनाम की आजादी और दक्षिण एवं उत्तरी वियतनाम के एकीकरण की घोषणा की गयी तथा एक नया राष्ट्र वियतनाम समाजवादी गणतंत्र अस्तित्व में आया। वियतनाम के एकीकरण की 35वीं वर्षगांठ में मुझे और सीपीआई (एम) पोलिट ब्यूरो सदस्य एसआर पिल्लई को भाग लेने का मौका मिला। वर्षगांठ समारोह का आयोजन 26 अप्रैल से 2 मई, 2010 तक हुआ। यह मेरी पहली वियतनाम यात्रा थी।20वीं सदी के उत्तरार्ध में वियतनाम का संघर्ष साम्राज्यवाद विरोध का प्रतीक बन गया था और इसका प्रभाव अधिकांश देशों में था- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से। अमरीकी साम्राज्यवाद बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया था तथा यूरोप, एशिया और लैटिन में हर यूनिवर्सिटी एवं कालेज परिसर मानो युद्ध का मैदान बन गया था जब वियतनाम के प्रति एकजुटता प्रकट करने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियां एवं प्रदर्शन हुआ करते थे। पूरे अमरीका में सेना में जबरन शामिल करने का विरोध होने लगा। अमरीका में सेना में काम करना प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य है और इसका उल्लंघन दंडनीय है। वियतनाम के वीरतापूर्ण संघर्ष का इतना प्रभाव था।नूतन एवं युवा वियतनामसाढ़े तीन दशक गुजर गये। नई पीढ़ी को वियतनाम की जानकारी नहीं है। यहां तक कि वियतनाम की आठ करोड़ 60 लाख जनसंख्या में से दो तिहाई का जन्म सैगोन एवं दक्षिण वियतनाम की मुक्ति के बाद हुआ। आज वियतनाम के 50 प्रतिशत लोग 25 साल से कम उम्र के हैं। यह मौका है जब हमें वियतनाम के वीरतापूर्ण संघर्ष और वहां के लोगों के बलिदान को याद करना चाहिए जिसके फलस्वरूप सबसे क्रूर साम्राज्यवादियों की पराजय हुई।वियतनाम न केवल एक बहादुर देश है, बल्कि एक सुंदर देश भी है। वहां के लोग विनम्र, शिष्ट एवं परिश्रमी हैं। यह एक विकासशील देश है, अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा किये गये नुकसान की भरपाई करने में लगा है। वर्षगांठ समारोह में बिरादराना प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादा नहीं थी। लेकिन अमरीका, जर्मनी, पोलैंड, रूस एवं अन्य देशों के पूर्व सैनिक एवं वार वेटरन्स मौजूद थे तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं मैत्री संघों के प्रतिनिधि भी शामिल थे।हम कुआलालम्पुर (मलेशिया) होकर 26 अप्रैल की शाम को हनोई पहुंचे। यह 10 घंटे की लम्बी यात्रा थी। बाद में मुझे पता चला कि कोलकाता से हनोई सीधी उड़ान होने पर केवल 2 से 3 घंटे लगेंगे। वियतनाम में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर दशकों से 7.6 प्रतिशत है जो काफी महत्वपूर्ण है तथा हमारे दोनों देशों के बीच वाणिज्य एवं बिजनेस के लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं। इस समय दोनों देशों के बीच व्यापार काफी कम है। दुर्भाग्य से इसकी उपेक्षा की गयी है। अगले तीन दिनों तक हनोई में 35वीं वर्षगांठ मनाने के लिए समारोह हुए। हनोई 1000 साल पुराना एक सुंदर शहर है और उसकी प्राच्य संस्कृति है। वहां के लोग मैत्रीपूर्ण और विनम्र हैं। पार्टी के सभी महत्वपूर्ण नेता तथा सरकार के अधिकारियों ने समारोह में भाग लिया। हमें ऐसे अनेक महत्वपूर्ण लोगों को देखकर एवं उनसे मिलकर खुशी हुई जिन्होनंे मुक्ति संघर्ष में अहम भूमिका निभायी थी।होची मिन्ह की सरलताहम वहां गये जहां होची मिन्ह रहते थे। होची मिन्ह जिन्हें लोग चाचा हो कहते हैं, महानायक हैं, राष्ट्रपिता हैं। उन्होंने अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन की यात्रा की थी तथा विश्व की परिस्थिति का अध्ययन किया था। वे फ्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक नेता थे। वे इंडो-चायना कम्युनिस्ट पार्टी, बाद में वियतनाम कम्युनिस्ट पार्टी, के संस्थापक थे। उन्हें जेल में रखा गया, देश से बाहर निकाला गया लेकिन वे मुक्ति संघर्ष के प्ररेणाóोत बन गये।उनके फोटो से हम सभी जानते हैं कि वे एक सीधे-सीधे सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। लेकिन यह देखकर आश्चर्य होता है कि वे उत्तरी वियतनाम के राष्ट्रपति के रूप में एक छोटे से घर में रहते थे जिसमें एक बेडरूम, एक वर्किंग रूम तथा काफी कम फर्नीचर था। राष्ट्रपति के रूप में उन्हें एक बड़ा सा सुंदर महल दिया गया लेकिन उन्होंने वहां रहने से मना कर दिया। वे उस महल में विदेशी मेहमानों से मिलते थे लेकिन रहते थे उस छोटे से घर में जहां वे राष्ट्रपति के रूप में 15 सालों तक रहे। वे उतने ही सरल थे जितने महात्मा गांधी। सरलता होची मिन्ह का दूसरा नाम था। होची मिन्ह का निधन 1969 में हुआ लेकिन उनके शव को सुरक्षित रखा गया है। हम उनकी समाधि पर गये और उनके प्रति आदर व्यक्त किया। हर रोज हजारों लोग उन्हें देखने आते हैं और आदर व्यक्त करते हैं।29 अप्रैल को हम सैगोन गये जिसका नाम बदल कर होची मिन्ह सिटी रखा गया है। होची मिन्ह सिटी हनोई से काफी बड़ा शहर है। यह एक आधुनिक शहर है जहां ऊंची-ऊंची इमारतें हैं। यह एक पश्चिमी शहर है जहां बड़े-बड़े होटल, रेस्तरां आदि है। 30 अप्रैल 6 बजे सुबह हम एक बड़े सेंट्रल पार्क में गये जहां शहर एवं दक्षिणी वियतनाम की मुक्ति का समारोह आयोजित किया गया। मौसम थोड़ा गर्म था। हजारों लोग पहले से ही वहां पहुंचे हुए थे। यह समारोह उसी तरह का था जैसा कि हमारे यहां दिल्ली में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। यह काफी भव्य समारोह था, यह आम लोगों का समारोह, जश्न था। चार घंटों तक हम रंगारंग कार्यक्रम देखते रहे; गर्मी, प्यास सब भूल गये।शाम को बिरादराना प्रतिनिधियों, सरकारी अधिकारियों, पूर्व सैनिकों एवं मैत्रीपूर्ण संघों के साथ मिलने-जुलने का कार्यक्रम था। इस अवसर पर संक्षिप्त भाषण दिये गये और भोजन का आयोजन किया गया।सुरंग से लड़ाई1 मई को हम कू ची जिला गये जो होची मिन्ह शहर से करीब 80 कि.मी. दूर है। यह एक यादगार दिन था। कू ची जिले ने मुक्ति संघर्ष में अहम भूमिका निभायी थी। यद्यपि हमने इसके बारे में सुन रखा था लेकिन यह एक दिलचस्प अनुभव था। कू ची वियतनाम के किसी अन्य क्षेत्र जैसर ही है। लेकिन दक्षिणी वियतनाम की राजधानी सैगोन से काफी नजदीक होने के कारण यह एक रणनीतिक जगह है। वियतनाम के लोगों ने पहले फ्रांसीसी औपनिवेशकों के साथ लड़ाई लड़ी, बाद में जपानी हमलावारों के खिलाफ, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक बार फिर फ्रांसिसियों के खिलाफ और अंततः अमरीकी साम्राज्यवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह एक दिलचस्प कहानी है। कू ची जिला हमेशा इन सभी लड़ाइयों में आगे था। वियतनाम ने सभी प्रकार की लड़ाइयां लड़ी, आकश में, धरातल पर, जल में और भूमिगत भी, सुरंगों से होकर। कू ची जिला सुरंगी लड़ाई (टन्नेल वारफेयर) के लिए मशहूर है। 20 सालों से अधिक समय तक 1948 से 1968 तक और उसके बाद भी सुरंगे खोदी गयीं। पहले उन्होंने दुश्मनों से छिपने के लिए सुरंगे खोदीं। उसके बाद वे सुरंगें खोदते गये ताकि निकलने का दूसरा रास्ता मिल सके। बाद में उन्होंने सुरंगों को ही किचन, स्टोर रूम, डायनिंग हाल, बैठकें करने के लिए रूम और यहां तक कि हथियार, गोला बारुद रखने के लिए भी स्टोर बनाये। केचव कू ची जिले में 265 कि.मी. लम्बी सुरंगें हैं। किसी को विश्वास नहीं होगा जब तक वह अपनी आंखों से देख नहीं ले। उन्होंने सुरंगे खोदने के लिए मशीन का इस्तेमाल नहीं किया। बस हाथों में कुदाल और टोकरी लिये हुए खुदाई करते चले गये। कहा जाता है कि पूरे दक्षिणी वियतनाम में 2500 कि.मी. लम्बी सुरंगें है। उन सुरंगों से वियतनामी गुरिल्लों के अचानक निकलने और गायब हो जाने से अमरीकी सैनिक हैरान थे और वे उन्हें सुरंगी चूहे कहते थे।सुरंगों के चारों तरफ जाल (ट्रैप)वियतनाम सैनिकों की तुलना में अमरीकी सैनिक लंबे, चौड़ा कंधे वाले, हट्टे-कट्टे होते हैं जबकि वियतनाम छोटे कद के होते हैं। यदि सीधी कुश्ती प्रतियोगिता हो तो वियतनामियों के लिए यह लाभदायक नहीं है लेकिन सुरंगों में प्रवेश द्वार छोटे आकर के बनाकर उन्होंने इसे अपने अनुकूल बना दिया। सुरंगों में झुककर जाना पड़ता है जो लंबे-मोटे शरीर वाले के लिए कठिन हो सकता है। उन्होंने प्रवेश द्वारों को छिपा दिया तथा चारों तरफ जाल बिछा दिये। एक बार फंस जाने पर निकलना मुश्किल है। जब सैकड़ों शिकारी कुत्ते प्रवेश द्वारों पर लाये गये तो मिर्च का पाउडर डालकर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया गया। यदि दुश्मन सुरंगों के प्रवेश द्वारों का पता लगा लेते और उन्हें खोलने की कोशिश करते तो बम विस्फोट हो जाता जिससे वे मारे जाते तथा प्रवेश द्वार नष्ट हो जाता और बंद हो जाता।अमरीकी सैनिकों को आकाश में, जमीन पर लड़ाई का प्रशिक्षण दिया गया है लेकिन जमीन के अंदर दुश्मनों से उन्होंने कभी लड़ाई नहीं लड़ी। भूक्षेत्र भी उनके अनुकूल नहीं है। घने जंगल एवं छोटी-बड़ी पहाड़ियां अमरीकी सैनिकों के अनुकूल नहीं हैं। उससे क्षुब्ध होकर अमरीकी सैनिक वियतनामियों के प्रति और क्रूर हो गये। उन्होंने पूरे इलाके में बमबारी कर दी जिसे कारपेट बोम्बिंग कहते हैं। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूरे विश्व में जितने बमों को प्रयोग किया था उसके पंाच गुना अधिक बमों का प्रयोग वियतनाम में किया गया। यहां तक कि उन्होंने काफी खतरनाक नैपम बमों एवं अन्य रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया। अधिकांश वियतनामियों को अपना घर द्वार छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तथा अमरिकीयों द्वारा बनाये गये शिविरों में रहना पड़ा। जमीन एवं जल को प्रदूषित कर दिया गया और जहर मिला दिया गया। वियतनामी लोगों को मारने के लिए असंख्य माइन बिछाये गये। कुल मिलाकर वियतनाम की लड़ाई में 30 लाख लोग मारे गये।संक्षिप्त पृष्ठभूमिवियतनाम की अपनी सभ्यता है जिस पर उसे गर्व है। प्राचीन काल में एक हजार से अधिक समय तक उस पर चीनी योद्धाओं का दबदबा थाा हालांकि इसका विरोध तथा आजादी के लिए लड़ाई इन वर्षों में होती रही। बाद में वियतनाम में कई योद्धा एवं साम्राज्य स्थापित हुए। उसके बाद 18 सदी में फ्रांस ने उस पर कब्जा कर लिया। वियतनाम, लाओस एवं कम्बोडिया की सीमा समाप्त कर दी गयी तथा इंडो-चाइना नाम से एक नये प्रशासकीय देश का निर्माण किया गया। फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के खिलाफ लंबे अर्से तक संघर्ष चलता रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने फ्रांस को हराकर इंडो-चाइना पर कब्जा कर लिया। विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद फ्रांसीसी वहां फिर से आ गये और वियतनाम पर कब्जा कर लिया। वियतनाम के कम्युनिस्ट राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में सबसे आगे थे, उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया तथा फ्रांसीसी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 1954 में फ्रांस के खिलाफ निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें फ्रांस की हार हुई। इसके बाद एक समझौता हुआ जिसके तहत उत्तरी वियतनाम पूरी तरह आजाद हो गया और दक्षिणी वियतनाम में फ्रांस की सत्ता बनी रही। इसके साथ ही यह समझौता हुआ कि एक साल के अंदर पूरे वियतनाम में आम चुनाव होगा। दक्षिणी वियतनाम में एक कठपुतली सरकार बना दी गयी जिसने आम चुनाव कराने से इंकार कर दिया। एशिया में कम्युनिस्टों का प्रभाव रोकने के नाम पर अमरीका ने फ्रांस की जगह ले ली। पहले वे सलाहकार के रूप में वहां आये और बाद में अमरीकी सेना आ गयी देशभक्त वियतनामियों से लड़ने के लिए। संभवतः किसी दूसरे देश में अमरीका की यह सबसे लंबी लड़ाई थी। अमरीका की पांच लाख सेना वहां पहुंच गयी ताकि समाजवाद का रास्ता अपनाने और होची मिन्ह को अपना नेता मानने के लिए वियतनामी जनता को सबक सिखाया जा सके। अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा वियतनाम पर लादा गया सबसे घिनौना युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी थी। वियतनाम के सुंदर जंगलों, जमीन और धान की खेती को रसायनों एवं बमबारी करके नष्ट कर दिया गया तथा लोगों को बेरहमी से मारा गया।इस लंबी लड़ाई में वियतनाम के खिलाफ हरेक हथियार, सभी प्रकार के रासायनिक युद्ध का इस्तेमाल किया गया। यह वियतनामी जनता की शक्तिशाली इच्छाशक्ति ही थी जिसने विश्व की सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी ताकत को हराया। 30 अप्रैल, 1975 को अमरीकी सेना वियतनाम से वापस गयी तथा सैगोन आजाद घेाषित किया गया। वियतनाम का यह कितना शानदार मुक्ति संघर्ष था। अपने देश को आजाद करने के लिए तीस लाख वियतनामी लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। वियतनाम का हर इंच शहीदों के खून से सींचा हुआ है। इसीलिए इसे बहादुर वियतनाम कहा जाता है। यह हम सबके लिए पहले भी प्रेरणा थी और आज भी है।वियतनाम को लाल सलाम!
- एस. सुधाकर रेड्डी

1 comments:

बेनामी ने कहा…

Nice

एक टिप्पणी भेजें

Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य