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बुधवार, 1 जून 2016

दादरी हत्याकांड को लेकर सांप्रदायिकता भडकाने में जुटा संघ गिरोह: भाकपा ने राज्य सरकार से की कडे कदम उठाने की मांग

लखनऊ- 1जून 2016: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने दादरी के अखलाक हत्याकांड के संबंध में फोरेंसिक लैब की एक कथित रिपोर्ट को लेकर भाजपा और संघ परिवार द्वारा फिर से घृणित सांप्रदायिक राजनीति शुरू करने की कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने राज्य सरकार से भी मांग की है कि वह इस जांच के संबंध में भ्रम की स्थिति समाप्त करे और संघ परिवार द्वारा फिर से सांप्रदायिकता फैलाने और न्याय की प्रक्रिया को उलटने की साजिश को विफल करे. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अखलाक के घर/ फ्रिज में मिले मीट के बारे में पहले ही एक रिपोर्ट आचुकी है जिसमें उसे गोमांस नहीं, बकरे का मांस बताया गया है. अब यह कथित नई रिपोर्ट को लेकर भाजपा और संघ परिवार ने नया वितंडा खडा कर दिया है. ये वो लोग हैं जो दंगे कराने को मंदिरों में गोमांस और मस्जिदों में सूअर का गोश्त फैंकने की घृणित कार्यवाहियों को अंजाम देते रहे हैं. आज जब वे केंद्रीय सत्ता में हैं तो कुछ भी करने, कोई भी षडयंत्र रचने की स्थिति में हैं. और आये दिन यही किया भी जारहा है. डा. गिरीश ने कहा कि नोएडा की एसएसपी किरन एस ने बीबीसी को दिये इंटर्व्यू में कहा है कि मथुरा की फोरेंसिक लैब ने जिस मीट की रिपोर्ट दी है वह अखलाक के घर से नहीं, घर से दूर ट्रांसफार्मर्स के पास से कलेक्ट किया गया था जहाँ से अखलाक का शव बरामद किया गया था. इसका क्या यह मतलब नहीं कि यदि यह रिपोर्ट सही भी है तो हत्यारों ने षडयंत्र के तहत यह गोमांस वहां प्रायोजित किया. राज्य सरकार को पहेलियां बुझाने के बजाय पूरे मसले पर साफ राय व्यक्त करनी चाहिये ताकि सांप्रदायिक तत्व अपने षडयंत्रों में कामयाब न होपायें. भाकपा राज्य सचिव मंडल ने इस बात को गंभीरता से नोट किया कि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही भाजपा और संघ के दसों मुख खुल गये हैं और वह अखलाक की सांप्रदयिकता फैलाने और बिहार के चुनाव में उसका लाभ उठाने की गरज से की गयी हत्या को जायज ठहराने में जुट गये हैं. इतना ही नहीं वे अखलाक परिवार पर मुकदमा दर्ज कराने और पीडित परिवार को दी गयी राहत को लौटाने जैसी घृणित बातें कर रहे हैं. वे असहिष्णुता की सारी हदें पार कर रहे हैं. सनातन भारतीय संस्कृति में इसका कोई स्थान नहीं है. यह हिंदुत्त्व के लबादे में लपेटी गयी संघ परिवार की अपनी संस्कृति है जो हिंसा और अंतत: सत्ता तक पहुंचने की उसकी भूख मिटाने के लिये गढी गयी है. सवाल यह भी उठता है कि यदि अखलाक के घर में बीफ पकने का संदेह कुछेक लोगों को था, तो उन्हें कानून के हवाले करने को कदम उठाना चाहिये था. हत्या कर कानून हाथ में लेने का अधिकार उन्हें किसने सौंपा? भाकपा की दृढ राय है कि यह राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित दर्दनाक हत्या का मामला है और उसे इसी रूप में देखा जायेगा. पूरा मसला कमरतोड महंगाई से ध्यान हठाने में भी भाजपा की मदद कर रहा है, यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिये. डा. गिरीश, राज्य सचिव

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