भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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बुधवार, 29 मार्च 2017

CPI on Meet Ban

लखनऊ- 29 मार्च, 2017. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की हाल ही में पदारुढ सरकार ने मीटबंदी के मामले में न्यायसंगत कदम उठाने के बजाये राजनैतिक उद्देश्यों के लिये इसे एक वर्ग विशेष के विरुध्द अभियान के रुप में चलाया हुआ है. राज्य सरकार को इस दुर्भावनापूर्ण कदम में सुधार करना चाहिये. एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि मीट से जुड़े कारोबार से कुछ न कुछ हर समुदाय के लोग जुड़े हैं, लेकिन सरकार और भाजपा से जुड़े लोग इसकी आड़ में मुस्लिम समाज पर हमले बोल रहे हैं. पुलिस अविवेकपूर्ण तरीके से सरकार के फैसले को अंजाम दे रही है तो सरंक्षण प्राप्त अराजक तत्व मीट विक्रेताओं के प्रतिष्ठानों पर हमले बोल रहे हैं. गत दिनों हाथरस सहित कई स्थानों पर मीट विक्रेताओं के खोखों/ दुकानों में आग लगा दी गयी. सरकार का उद्देश्य खाली एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना मात्र था तो उसे पहले मीट कारोबारियों को लाइसेंस प्राप्त करने और सुरक्षित स्थानों पर अपनी दुकान आदि शिफ्ट करने की चेतावनी दी जानी चाहिये थी. जो नगर निकाय अवैध कमाई के चलते कारोबारियों के लाइसेंस नवीनीकृत नहीं कर रहे अथवा नये लाइसेंस जारी नहीं कर रहे, पहले उनसे ऐसा करने के लिये कहा जाना चाहिये था. सरकार द्वारा नोटबंदी की तरह राजनैतिक उद्देश्यों से की गयी मीटबंदी के दुष्परिणाम आने शुरु होगये हैं. हर तबके के अनेक लोग मीट खाते हैं और आज उससे बने व्यंजन लोगों की थाली से गायब हो रहे हैं. कई चीजों के दाम बढ़ना शुरु होगये हैं और उद्योग व्यापार पर भी संकट आया है. बेरोजगारी बढ़ना तो अवश्यंभावी है. मीट महंगा होने से सब्जी दालों की खपत बढ़ी है, और उनकी कीमतों में उछाल आना शुरु हो गया है. किसानों के रिटायर्ड पशुधन या तो बिक नहीं रहे या बहुत कम कीमत पर बिक रहे हैं. पशु पैंठ ( हाट ) बाजारों तक पर पुलिस छापेमारी कर रही है और कथित हिदूवादियों के लंपट गिरोह किसानों और व्यापारियों को पशु बाजारों से खदेड़ रहे हैं. चारे का संकट पैदा होने जा रहा है और इससे दूध और उससे बने पदार्थों के दाम बढ़ सकते हैं. डा. गिरीश ने कहा कि मीट उद्योग से जुड़े होटल, टैनरी, साबुन, फर्टिलाइजर और ट्रांसपोर्ट जैसे तमाम उद्योग भी चौपट होरहे हैं और निर्यात दर गिरने से विदेशी मुद्रा की आमद घटेगी. अतएव उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी घोषित नीति “सबका साथ सबका विकास” पर चलते हुये मीटबंदी के अपने फैसले में सुधार करना चाहिये. डा. गिरीश

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