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बुधवार, 29 जून 2016
at 7:25 pm | 0 comments |
मेडम बिन्ह और भारत
वियतनाम की क्रांति की योध्दा न्गुऐन थि बिन्ह जो मेडम बिन्ह नाम से प्रसिध्द हैं ने अपनी बहुत ही दिलचस्प आत्मकथा लिखी है. इस आत्मकथा में उन्होंने वियतनाम की क्रांति के दौरान भारत सरकार और भारतीय जनता द्वारा दिये गये सहयोग की कई जगह चर्चा की है. वह स्वाभाविक ही है क्योंकि उस समय हमारा देश साम्राज्यवाद विरोध और गुटनिरपेक्षता की नीति पर दृढता से काम करता था और भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वियतनाम पर अमेरिकी हमलों की खुल कर निंदा की थी. भारत की जनता जिनमें कम्युनिस्ट पार्टियां अग्रणी थीं, ने अपनी आजादी, देश के एकीकरण और शांति की स्थापना के लिये सघर्षरत वियतनाम की जनता के प्रति गहरी एकजुटता का इजहार किया था. मेडम बिन्ह ने अपनी इस आत्मकथा में इस योगदान को कृतज्ञता के साथ रेखांकित किया है.
पर एक स्थान पर भारत के संबंध में अपने अनुभव साझा करते हुये उन्होंने जो कुछ लिखा है वह बहुत ही रोचक और प्रासंगिक है. मुझे लगा कि इसे आप सबके साथ शेयर करना चाहिये. अत: मेडम बिन्ह द्वारा लिखित उनकी आत्मकथा- 'परिवार, दोस्त और देश' के पृष्ठ- 186 के पहले और दूसरे पैरों का अविकल पाठ प्रस्तुत है-
"समाजवादी चीन के अलावा मुझे एशिया के अनेक देशों की यात्रा का मौका मिला. भारत ने मेरे ऊपर गहरी छाप छोडी. हो ची मिन्ह की भारत में जबरदस्त प्रतिष्ठा और सम्मान है, विशेषकर कोलकता और बंगाल में जहां कम्युनिस्ट पार्टी प्रभावशाली थी. भारत के लोगों को वियतनाम के संघर्ष के प्रति विशेष सहानुभूति थी. परंतु भारत में मुझे अमीर और गरीब के बीच में बहुत अधिक अंतर देखने को मिला. एकतरफ जहां राज्यपाल एक खूबसूरत महल में रहता है जिसके चारों तरफ पार्क हैं या ऐसा वन है जिसमें हिरन विचरण करते रहते हैं; तो दूसरी तरफ नजदीक ही ऐसे लोग हैं जो बेहद गरीब थे.
मैं हैरान थी: ऐसी स्थिति क्यों है? क्या यह जातीय व्यवस्था की लंबी चली आरही विरासत के कारण है? क्या यह धर्म के कारण है? राजनीतिक रुझानों के कारण है? लगभग दो सदी के ब्रिटिश आधिपत्य का नकारात्मक परिणाम है? भारत के पास एक अतीत और शानदार संस्कृति है. आज उनके पास विशेषज्ञों की सबसे बडी संख्या है. यह असामान्य है, परंतु भारत में दो कम्युनिस्ट पार्टियां हैं. मुझे यह लगता है कि भारत के लोग यदि अपनी जनता को और अधिक मजबूती से एकताबध्द कर लें और अपने नागरिकों की क्षमताओं एवं अपने प्राकृतिक संसाधनों का पूरा फायदा उठायें, तो वह एक प्रमुख राजनीतिक एवं आर्थिक ताकत बन जायेंगे."
दिसंबर 2015 में प्रकाशित इस आत्मकथा का उपर्युक्त अंश अपने आप ही बहुत कुछ कह जाता है और किसी टिप्पणी अथवा व्याख्या का मुहंताज नहीं है. लेकिन में अपनी ओर से केवल इतना जोडना चाहता हूँ कि भारत में आज दो नहीं कई कम्युनिस्ट पार्टियां हैं जो अपने जन्म के वक्त मातृ पार्टी को संशोधनवादी बता कर अलग पार्टी गठित कर लेती हैं लेकिन कुछ दशकों बाद या तो वाम संकीर्णता का शिकार होकर दम तोड देती हैं अथवा उसी रास्ते पर चल पडती हैं जिसकी आलोचना कर वे मातृ पार्टी से अलग हुयी थीं.( गिरीश)
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बुधवार, 15 जून 2016
at 6:58 pm | 0 comments |
कैराना- कांधला प्रकरण; भाकपा ने भाजपा को घेरा
लखनऊ- 15 जून 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया है कि भाजपा एवं संघ परिवार उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों से पहले मुजफ्फर नगर दंगों की तर्ज पर जनता को सांप्रादायिक तौर पर विभाजित करना चाहती है ताकि जनता को एक बार फिर से छला जा सके और लोकसभा की तरह विधानसभा पर भी कब्जा जमाया जा सके. कैराना और कांधला से हिंदुओं के पलायन का कथित शिगूफा इसी उद्देश्य से छेडा गया है.
कैराना में कथित जांच दल भेजे जाने की भाजपा की कवायद को भाकपा ने लोगों की आंख में धूल झोंकने वाला और प्रकरण में बेनकाव हुये अपने सांसद को बचाने की चेष्टा बताया. यह ठीक ऐसे ही है जैसे अपने गिरोह के एक गुंडे के कुकर्मों पर पर्दा डालने को एक गुंडा गिरोह जांच करने जाये. भाकपा ने मीडिया और कैराना की जनता को बधाई दी कि उसने भाजपा और संघ परिवार की इस साजिश को परवान चढने से पहले ही उसका पर्दाफाश कर दिया है. लेकिन भाजपा चुप बैठने वाली नहीं है और 2017 के विधान सभा चुनावों तक वह इसी तरह के तमाम हथकंडे जारी रखेगी, भाकपा ने खुला आरोप लगाया है.
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि मोदी सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में हर मोर्चे पर पूरी तरह विफल साबित हुयी है. हर तरह की उत्पादन दर घटी है, डालर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती ही जारही है, अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम कीमतें होने के बावजूद महंगाई कुलांचें भर रही है, देश का बडा भाग सूखे की चपेट में है और केंद्र सरकार राहतकारी कदम उठा नहीं पारही है, दो करोड रोजगार देने का वायदा छलावा साबित हुआ है और रोजगार सृजन में कमी आयी है, काला धन वापस आना तो दूर माल्या जैसे भाजपा के दोस्त पूंजीपति माल हडप कर विदेशों में गुलछर्रे उडा रहे हैं तथा उनमें से अनेक बैंकों का कर्जा हडप किये जारहे हैं. इतना ही नहीं दो साल पूरे होते होते भाजपा के कई घपले घोटाले उजागर हो चुके हैं और महाराष्ट्र में तो उसे अपने एक महत्त्वपूर्ण मंत्री को हठाना भी पडा है. विकास का मोदी का वायदा भी पूरी तरह विफल रहा है.
इसके अलाबा उत्तर प्रदेश में भाजपा अनेक जातीय और निहित स्वार्थी खांचों में बंटी है और तमाम कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री पद हेतु एक सर्वसम्मत चेहरा पेश नहीं कर पारही है. ऐसे में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से जनता को संदेश देने को भाजपा की झोली में कुछ था ही नहीं अतएव अपनी पूर्व निर्धारित योजना के तहत उसने अपने सांसद के माध्यम से कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उछलवाया और उसे कश्मीर के पलायन की तरह बताया.
जहाँ तक पलायन की बात है, बुंदेलखंड से लगभग 70 फीसदी लोग सूखे की चपेट में आने से पलायन कर चुके हैं. केंद्र और उत्तर प्रदेश में रही सरकारों की गलत नीतियों के चलते हर गांव से तमाम लोग रोजगार के लिये अपनी जन्म और कर्मभूमियों को छोड रहे हैं और गांव गांव घरों पर ताले लटके हुये हैं. जब जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आयी तमाम अल्पसन्ख्यकों को सुरक्षित स्थानों को पलायन करना पडा. हुकुम सिंह, बाल्यान और संगीत सोम जैसे नेताओं के प्रभाव क्षेत्रों से तमाम दलितों को बलपूर्वक खदेड कर उनकी संपत्तियों को हडप लिया गया. भाजपा में हिम्मत है तो इन पलायनों पर भी श्वेतपत्र जारी करे.
भाकपा राज्य सरकार से मांग करती है कि वह सांप्रदायिकता भडकाने, अफवाह फैलाने और जान बूझ कर तथ्यों को तोड मरोड कर पेश करने जैसी माकूल दफाओं में हुकुम सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेजे और उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शांति- सौहार्द की रक्षा करे. इस मोर्चे पर कोई भी ढिलाई अखिलेश सरकार को कठघरे में खडी करेगी, भाकपा ने चेतावनी दी है.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर
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मंगलवार, 14 जून 2016
at 6:44 pm | 0 comments |
भाकपा ने दी मुद्राराक्षस को श्रध्दांजलि
लखनऊ- 14 जून 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने प्रसिध्द लेखक, आलोचक और समाजसेवी श्री मुद्राराक्षस को विनम्र श्रध्दांजलि अर्पित की है और उनके शोक संतप्त परिवार और अभिन्न मित्रों के प्रति सहानुभूति जताते हुये दुख की इस घडी में उनके साथ खडे रहने का मंतव्य जताया है.
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा कि मुद्राराक्षस समाज के यथास्थितिवाद, संप्रदायवाद और शोषण की हर पृवृत्ति के विरुध्द न केवल लेखनी के माध्यम से अपितु अनेक आन्दोलनों में भागीदारी के जरिये आजीवन संघर्ष करते रहे. उन्हें जो कुछ गलत लगा उसके खिलाफ कलम उठाने में उन्होने कोई परहेज नहीं किया. उनका संपूर्ण संघर्ष मानवता, बंधुता, समानता और न्याय के पक्ष में खडा है. वे भाकपा के संघर्षों में भी भागीदार बने और जहाँ भी उन्हें लगा कि कम्युनिस्ट आंदोलन की आलोचना होनी चाहिये उन्होने खुल कर आलोचना की. हम अपने एक मित्र, सहयोगी और आलोचक के रूप में उन्हें सम्मान देते रहे और हमारा यही भाव हमेशा उनके प्रति बना रहेगा, भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है.
आज जब देश की आम और मेहनतकश जनता एक कट्टरपंथी, षडयंत्रकारी और कारपोरेट्स की लूट को बढावा देने वाली सरकार के हमलों को झेल रही है, मुद्राराक्षस जैसी शख्सियत का विदा होजाना देश समाज और आमजनों के हितों के लिये बडी क्षति है. अपेक्षा है कि अवश्य ही नये और युवा साथी आगे आयेंगे और मुद्राराक्षस द्वारा खडे किये गये संघर्ष के प्रतिमानों को आगे बढायेंगे. यही उनके प्रति व्यवहारिक श्रध्दांजलि होगी.
डा. गिरीश,
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शुक्रवार, 3 जून 2016
at 6:02 pm | 0 comments |
सत्ता और धर्म के बीच घालमेल की देन है मथुरा प्रकरण: भाकपा ने की न्यायिक जांच की मांग.
लखनऊ- 3 जून - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल मथुरा में जयगुरुदेव समर्थकों और पुलिस के बीच हुयी मुठभेड़ जिसमें कि दो पुलिस अफसरों को जान गंवानी पड़ी, गहरी चिंता व्यक्त की है. पार्टी ने दोनों शहीद अफसरों के प्रति अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की है. पार्टी ने उनके परिवारों के प्रति संपूर्ण संवेदना का इजहार करते हुए उनकी हर संभव मदद किये जाने की मांग राज्य सरकार से की है. भाकपा की राय है कि मृतक सत्याग्राहियों में कई ऐसे भोले भाले लोग रहे होंगे जिन्हें अपने नेताओं के कुत्सित इरादों का दूर दूर तक पता नहीं रहा होगा. ऐसे लोगों के परिवार भी सहानुभूति के पात्र हैं. पार्टी चाहती है कि इस संगीन मामले की जांच ऐसी संस्था से कराई जाये जो राज्य सरकार के प्रभाव में न हो.
मथुरा काण्ड पर जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहाकि यह सारा प्रकरण सत्ता, धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्ड, पाखण्ड के जरिये धनार्जन और इस सबके जरिये वोट की राजनीति के नापाक घालमेल का परिणाम है. बाबा जयगुरुदेव की मृत्यु के बाद प्रदेश के सत्ताधारी परिवार द्वारा इस मामले को जिस तरह डील किया गया उसका यही परिणाम हो सकता था. गुरुदेव की विरासत के लिये जूझ रहे एक ग्रुप को सत्तारूढ़ करा दिया गया तो असंतुष्ट ग्रुप की अराजक कारगुजारियों को नजरंदाज किया गया. यहाँ तक कि प्रशासन को भी निर्देश थे कि बिना कठोर कार्यवाही के जवाहर बाग़ को कब्जामुक्त कराया जाए. अब जब मुख्यमंत्री चारों तरफ से घिरे नजर आरहे हैं, सारी जिम्मेदारी प्रशासन और पुलिस पर डाल रहे हैं. मथुरा में बड़े पैमाने पर गोला बारूद जमा होते रहे और केंद्र व राज्य की खुफिया एजेंसियां सोती रहीं. यह संपूर्ण प्रशासनिक विफलता का मामला है जिस पर गंभीरता से विचार किये जाने की जरुरत है, राजनैतिक रोटियाँ सेंकने की नहीं
अतएव भाकपा मांग करती है कि समूचे प्रकरण की जांच उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायधीश से कराई जाये.
डा. गिरीश
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बुधवार, 1 जून 2016
at 7:36 pm | 0 comments |
दादरी हत्याकांड को लेकर सांप्रदायिकता भडकाने में जुटा संघ गिरोह: भाकपा ने राज्य सरकार से की कडे कदम उठाने की मांग
लखनऊ- 1जून 2016: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने दादरी के अखलाक हत्याकांड के संबंध में फोरेंसिक लैब की एक कथित रिपोर्ट को लेकर भाजपा और संघ परिवार द्वारा फिर से घृणित सांप्रदायिक राजनीति शुरू करने की कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने राज्य सरकार से भी मांग की है कि वह इस जांच के संबंध में भ्रम की स्थिति समाप्त करे और संघ परिवार द्वारा फिर से सांप्रदायिकता फैलाने और न्याय की प्रक्रिया को उलटने की साजिश को विफल करे.
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अखलाक के घर/ फ्रिज में मिले मीट के बारे में पहले ही एक रिपोर्ट आचुकी है जिसमें उसे गोमांस नहीं, बकरे का मांस बताया गया है. अब यह कथित नई रिपोर्ट को लेकर भाजपा और संघ परिवार ने नया वितंडा खडा कर दिया है. ये वो लोग हैं जो दंगे कराने को मंदिरों में गोमांस और मस्जिदों में सूअर का गोश्त फैंकने की घृणित कार्यवाहियों को अंजाम देते रहे हैं. आज जब वे केंद्रीय सत्ता में हैं तो कुछ भी करने, कोई भी षडयंत्र रचने की स्थिति में हैं. और आये दिन यही किया भी जारहा है.
डा. गिरीश ने कहा कि नोएडा की एसएसपी किरन एस ने बीबीसी को दिये इंटर्व्यू में कहा है कि मथुरा की फोरेंसिक लैब ने जिस मीट की रिपोर्ट दी है वह अखलाक के घर से नहीं, घर से दूर ट्रांसफार्मर्स के पास से कलेक्ट किया गया था जहाँ से अखलाक का शव बरामद किया गया था. इसका क्या यह मतलब नहीं कि यदि यह रिपोर्ट सही भी है तो हत्यारों ने षडयंत्र के तहत यह गोमांस वहां प्रायोजित किया. राज्य सरकार को पहेलियां बुझाने के बजाय पूरे मसले पर साफ राय व्यक्त करनी चाहिये ताकि सांप्रदायिक तत्व अपने षडयंत्रों में कामयाब न होपायें.
भाकपा राज्य सचिव मंडल ने इस बात को गंभीरता से नोट किया कि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही भाजपा और संघ के दसों मुख खुल गये हैं और वह अखलाक की सांप्रदयिकता फैलाने और बिहार के चुनाव में उसका लाभ उठाने की गरज से की गयी हत्या को जायज ठहराने में जुट गये हैं. इतना ही नहीं वे अखलाक परिवार पर मुकदमा दर्ज कराने और पीडित परिवार को दी गयी राहत को लौटाने जैसी घृणित बातें कर रहे हैं. वे असहिष्णुता की सारी हदें पार कर रहे हैं. सनातन भारतीय संस्कृति में इसका कोई स्थान नहीं है. यह हिंदुत्त्व के लबादे में लपेटी गयी संघ परिवार की अपनी संस्कृति है जो हिंसा और अंतत: सत्ता तक पहुंचने की उसकी भूख मिटाने के लिये गढी गयी है.
सवाल यह भी उठता है कि यदि अखलाक के घर में बीफ पकने का संदेह कुछेक लोगों को था, तो उन्हें कानून के हवाले करने को कदम उठाना चाहिये था. हत्या कर कानून हाथ में लेने का अधिकार उन्हें किसने सौंपा? भाकपा की दृढ राय है कि यह राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित दर्दनाक हत्या का मामला है और उसे इसी रूप में देखा जायेगा. पूरा मसला कमरतोड महंगाई से ध्यान हठाने में भी भाजपा की मदद कर रहा है, यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिये.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
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