फ़ॉलोअर
बुधवार, 17 जुलाई 2013
at 6:39 pm | 0 comments | एफ डी आई, दूर संचार, बीमा, रक्षा क्षेत्र
संचार क्षेत्र में विदेशी पूँजी निवेश बेहद घातक. भाकपा ने वापस लेने की मांग की.
लखनऊ-१७ जुलाई. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी पूँजी निवेश (एफ डी आई ) की दर बड़े पैमाने पर बढ़ाने की कड़े शब्दों में निंदा की है. भाकपा इस फैसले को पूरी तरह नकारती है और इसे अविलम्ब बापस लेने कि मांग करती है.
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ.गिरीश ने कहा कि दूर संचार, बीमा, क्रेडिट इनफार्मेशन एंड असेट्स रिकंस्ट्रक्शन कम्पनीज और यहाँ तक बेहद सम्वेदनशील रक्षा क्षेत्र तक में एफ डी आई को बढ़ाना बेहद घातक और देश के हितों के हर तरह विपरीत है. इस समय देश की अर्थव्यवस्था पहले ही बुरी हालत में पहुँच चुकी है. डालर के मुकाबले रुपया सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच चूका है. सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी ) की वृध्दि दर पांच प्रतिशत के नीचे जा पहुंची है. बेरोजगारी बड़ने से नौजवानों का भविष्य अंधकारमय हो गया है. हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं. तेल कम्पनियां पेट्रोल और डीजल के दामों में मनमाने तरीके से बडोत्तरी कर रहीं हैं.
कान्ग्रेस के नेत्रत्व वाली संप्रग-2 सरकार अपनी जनविरोधी नीतियों की समीक्षा करने के बजाय एफ डी आई के बल पर हालात सुधारना चाहती है. यह बीमारी के कारणों के जरिये ही बीमारी का निदान करने जैसा ही है.
भाकपा केंद्र सरकार से इस देश विरोधी फैसले को वापस लेने की मांग करती है. साथ ही जनता से अपील करती है कि सरकार के इस फैसले का जम कर विरोध करे.
डॉ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश.
»» read more
सी पी आई का साहस ---राष्ट्रीय सहारा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उसने देश के लोकतंत्र की सबलता के प्रतीक ˜सूचना का अधिकार कानून की मर्यादा का खयाल रखा और पार्टी से संबंधित सवालों का बेबाकी से जवाब दिया। हैरानी यह है कि जिस कांग्रेस की अगुवाई में देश को यह युगांतरकारी अधिकार मिला था वही पार्टी इस कानून के लिहाज में पीछे रह गई। यह और अफसोसनाक है कि लोकतांत्रिक लिहाज की इस अवज्ञा में बीजेपी, सीपीएम, एनसीपी और बीएसपी जैसे राष्ट्रीय दलों ने भी उसका साथ दिया। राजनीतिक दलों को इस कानून की जद में लाए जाने की विरोधी खुद सीपीआई भी है लेकिन तिरस्कार की जगह उसने इस व्यवस्था का सम्मान रखा और साथ में लोकतांत्रिक अंदाज में अपनी आलोचना भी रखी। लेकिन बाकी पार्टियों के आचरण से झलक गया है कि वे किसी भी हालत में अपनी ˜सूचना अपने वोटरों के साथ साझा करने को तैयार नहीं हैं। खबर है कि कानून मंत्रालय ने सूचना अधिकार कानून में वे संशोधन भी तैयार कर लिए हैं जो राजनीतिक पार्टियों के लिए कवच का काम करेंगे। पहले र्चचा थी कि अध्यादेश के रास्ते ये संशोधन प्रभावी कर दिए जाएंगे। लेकिन खाद्य सुरक्षा के तुरंत बाद दूसरा अध्यादेश, वह भी ऐसे संवेदनशील मसले पर लाए जाने से शायद बचना चाह रही थी सरकार। सरकार को मालूम है कि सूचना कानून में इस सेंध के बाद कैसा बवाल मचना है। इसीलिए वह सभी पार्टियों को साथ कर संसद के रास्ते इस कानून की धार को मंद करने की राह पर चलना चाहेगी। अब यह देखिए कि सीपीआई ने इस कानून के तहत यही तो बताया कि उसे पिछले वर्षो में कहां से और कितना फंड मिला। बड़े चंदों की रसीदें भी उसने दिखाई। पारदर्शिता के इस आचरण से पूरे देश के दिल पर थोड़ा मरहम तो जरूर लगा होगा जो महाभ्रष्टाचारों की अनंत कथा सुन-सुन कर सुलगने लगा है। सूचना के अधिकार को अपने कामकाज में दखलंदाजी के रूप में क्यों ले रही हैं पार्टियां! सभी पार्टियां चंदे पर चलती हैं और रकम की मात्रा सत्ता में उनकी हनक के अनुपात में घटती-बढ़ती रहती है। चंदे के स्रेत और मात्रा को गोपनीयता के चादर में छुपाना पार्टियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा देता है। राजनीतिक पार्टियों की हैसियत वोटर बनाते हैं और पार्टियों को आज नहीं तो कल उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझनी होगी। केंद्रीय सूचना आयोग की डेडलाइन खत्म होने के बाद अब उन पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता खुल गया है जिन्होंने मांगी गई सूचना निर्धारित समय तक नहीं दी। लेकिन, कार्रवाई के लिए भी डेढ़ महीने का अंतराल है। जाहिर है कि पार्टियां इस अंतराल के अंदर ही कानून में बदलाव लाना चाहेंगी। जनहित के लिए बनने वाले कानून भले पार्टियों के बीच घमासान में दब कर दम तोड़ देते हों, सूचना अधिकार पर चलने वाली तलवार का हाथ कोई रोक नहीं पाएगा। कानून में बदलाव वही लोग करने वाले होंगे जिन्हें देश ने इसी काम के लिए चुन कर भेजा है। यह बात दीगर है कि वे ताकत का इस्तेमाल लोकतंत्र की मजबूती नहीं, बल्कि अपने हितों की पूर्ति के लिए कर रहे होंगे।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CPI Condemns Attack on Kanhaiya Kumar - *The National Secretariat of the Communist Party of India issued the following statement to the Press:* The National Secretariat of Communist Party of I...6 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...8 वर्ष पहले
-
रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा - लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम ...9 वर्ष पहले
Side Feed
सदस्यता लें




Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद यूरोपीय यूनियन और इस्राइल के साथ बिना किसी सार्वजनिक चर्चा के मुक्त व्यापार समझौता करने के प्रया...
-
Left Parties along with other secular democratic parties and opposition in general have called for a countrywide hartal on 5th July from 6 a...
-
जातीय जनगणना , अल्पसंख्यकों के प्रति घ्रणा अभियान , विधायक निधि में बढ़ोत्तरी , महंगाई और बेरोजगारी , बुलडोजरवाद और पुलिसराज के विरूध्द...
-
हापुड़ में फैक्ट्री मजदूरों की दर्दनाक मौत पर भाकपा ने गहरी वेदना प्रकट की भाकपा की मेरठ मंडल की इकाइयों को आवश्यक कदम उठाने और 8 जून को ...
-
बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी जाति आधारित गणना करायी जाये: वामदल प्रकरण पर सर्वदलीय बैठक शीघ्र बुलाये जाने की मुख्यमंत्री से मांग की ...
-
अखनूर बस हादसे के लिये उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह जिम्मेदार: डा॰ गिरीश भाकपा नेता ने म्रतकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की , घायलों क...
-
उत्तर प्रदेश में निरंतर सामने आ रहे भ्रष्टाचार के मामलों पर केंद्र और राज्य सरकार की चुप्पी हैरान करने वाली भाकपा ने घोटालों की ज़िम्मेदा...
-
कांबड़ियों की मौत प्रशासनिक अव्यवस्थाओं का परिणाम: भाकपा आस्थावानों को उकसा कर उन्हें राम भरोसे छोड़ देती है सरकार लखनऊ- 24 जुलाई ,2022,...
-
कानपुर की दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा निर्मित घ्रणा और उन्माद के वातावरण की देन प्रशासन ही नहीं शासन की भी है ज़िम्मेद...
-
वामपंथी एवं जनवादी दलों का राज्य स्तरीय ‘ सम्मिलन ’ संपन्न बुलडोजरवाद , पुलिस उत्पीड़न , वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हमले , संविधान और लो...