भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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रविवार, 21 मार्च 2021

कल्पना दत्तः चटगांव शस्त्रागार कांड की नायिका

 


गिरफ्तार हुईं कल्पना

 कल्पना दत्त (बाद में कल्पना जोशी )का जन्म 27 जुलाई 1913 को श्रीपुर, बोउल खाली उपजिला, चटगांव जिला, बंगाल प्रदेश ;अब बांग्लादेश में हुआ था। श्रीपुर मात्र 300 घरों का छोटा-सा गांव था। उनका परिवार पुरातनपंथी
परम्परावादी विचारों का बड़ा जमींदार परिवार था। कल्पना के पिता विनोद बिहारी दत्त थे और माता का नाम
शोभना देवी। परिवार शिक्षित था और इसके सदस्य बाद में स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ गए।

शिक्षा और राजनैतिक सक्रियता

 कल्पना की आरंभिक शिक्षा घर पर हुई। उसके बाद उसे डॉ. खास्तगीर बालिका हाई स्कूल में दाखिल करा दिया गया। यह स्कूल परिवार के ही कुछ सदस्यों ने स्थापित किया था। कल्पना पढ़ाई में बड़ी तेज थी और हमेशा अव्वल आया करती। उसने सुप्रसिद्ध  बंगला पुस्तक ‘‘पथेर दाबी’ पढ़ ली, साथ ही कन्हाईलाल तथा कई क्रांतिकारियों की जीवनियां भी पढ़ीं। उसक दो चाचा गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। इसका
उस पर बड़ा असर पड़ा। कल्पना को विज्ञान का बड़ा शौक था। महान वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय को वह अपना आदर्श मानती थी। कल्पना संस्कृत और गणित में भी बहुत तेज थी।
समय के साथ उसके परिवार में राजनैतिक मतभेद पैदा हो गए। गांधी जी चटगांव आए और इस परिवार की
कपड़े की दुकान पर बंग लक्ष्मी मिल्स के स्वदेशी कपड़े रख गए। परिवार की कई स्त्रियां गांधी का ‘दर्शन’ करने
गईं, यहां तक अपने गहने तक उन्हें दान कर आईं।
कल्पना ने 1929 में चटगांव से मैट्रिक पास किया। उसी वर्ष वहां एक विद्यार्थी सम्मेलन आयोजित किया गया
जिसमें कल्पना ने अपने चाचा की सहायता से भाषण भी दिया। चटगांव के नौजवान क्रांतिकारी संगठनों में
संगठित होने लगे। उसके एक सदस्य पूर्णेन्दु दस्तीदार कल्पना के घर आने-जाने लगे। कल्पना धीरे-धीरे
प्रशिक्षित होने लगी।
कल्पना ने कलकत्ता के बेथ्यून कॉलेज में भर्ती ले ली। उसके विषय थे भौतिक शास्त्र, गणित और वनस्पति
शास्त्र। साथ ही उसने व्यायाम, बोटिंग, इ. भी सीखी। उसने हिन्दी और फ्रेंच का भी अध्ययन किया। जल्द ही उसका संपर्क सूर्यसेन, अनंत सिंह, गणेश घोष तथा अन्य प्रसिद्ध  क्रांतिकारियों से हुआ।
उसने लाठी, छुरा, इत्यादि चलाने में ट्रेनिंग पाई।
कल्पना ने अप्रैल 1930 में जवाहरलाल नेहरू की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए बेथ्यून कॉलेज मे हड़ताल संगठित की। कॉलेज की महिला प्रिंसिपल ने विद्यार्थियों से दुर्व्यवहार किया। बाद में प्रिंसिपल को माफी मांगनी पड़ी।
कल्पना दत्त ’छात्री संघ’ ;गर्ल स्टूडेंट ऐसोसिएशनमें शामिल हो गई। यह एक अति-क्रांतिकारी संगठन था
जिसमें बीना दास और प्रीतिलता व द्देदार जैसी क्रांतिकारी छात्राएं शामिल थीं।
चटगांव शस्त्रागार पर हमला
क्रांतिकारी युवाओं ने 18 अप्रैल 1931 को चटगांव के ब्रिटिश शस्त्रागार पर हमला कर दिया। इस खबर ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया। खबर तेजी से फैल गई। कल्पना जल्द से जल्द चटगांव चली जाना चाहती थी लेकिन उसे कॉलेज से ट्रांसफर नहीं मिल रहा था। काफी समय बर्बाद हो गया जिसका उसकी पढ़ाई पर असर पड़ा। वह प्राइवेट छात्र के रूप में परीक्षा में बैठी। उसका सेंटर चटगांव में ही पड़ा। कल्पना ने चटगांव कॉलेज में बी.एस.सी. में एडमिशन ले लिया।
वह क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए अधीर हो रही थी। उसने पिस्तौल तथा अन्य हथियारों की ट्रेनिंग लेना अधिक सक्रियता से लेना शुरू कर दिया। अपने मैट्रिक के दिनों मे कल्पना एक कम्युनिस्ट साथी के संपर्क में आ चुकी थी जिसका नाम था सुरभा दत्त। इससे उसके विचार बनने लगे थे। कल्पना ने अनन्त सिंह को, जो क्रांतिकारी दल के नेताओं में से एक थे, दल में शामिल होने पर मजबूर कर दिया। उसे रेलवे लाइन उड़ाने के
ग्रुप में शामिल कर लिया गया। इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के सूर्य सेन ने कल्पना दत्त को कलकत्ते से एसिड, रसायन तथा अन्य सामग्री का इंतजाम करने के लिए कहा। कल्पना खुद यह सारा सामान ले आई। वह विस्फोटक तैयार करने की विशेषज्ञ बन गई। उसे ‘एक्शन स्क्वाड’ में शामिल कर लिया गया।
जेल को बम से उड़ने की पहली कोशिश असफल रही। जेल में दिनेश गुप्ता और रामकृष्ण बिस्वास को फांसी
दी जाने वाली थी। कल्पना को 17 दिसंबर 1932 को चटगांव के पहाड़ तली में स्थित योरपियन क्लब के पास से गिरफ्तार कर लिया गया। वह पुरुष वेश में घूम रही थी। इसके एक सप्ताह बाद ही प्रीतिलता वद्देदार
के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने क्लब पर हमला कर दिया। यह हमला जलालाबाद के उस नरंसहार के बदले
में था जिसमें ब्रिटिश सैनिकों ने कई युवाओं की हत्या कर दी थी। प्रीतिलता गंभीर रूप से घायल हो गई और पकड़े
जाने से बचने के लिए उसने सायनाड खाकर आत्महत्या कर ली। प्रीतिलता कल्पना दत्त की सहपाठिनी और
क्रांतिकारी दल में सहयोगिनी थी। पुलिस ने कल्पना को उक्त कांड में फंसाने की कोशिश की लेकिन सबूतों
के अभाव में उसे जमानत पर छोड़ दिया गया। उसे अपने घर में बंदी बनाकर चारों ओर पुलिस का पहरा
बिठा दिया गया। उसे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।
फिर भी कल्पना मौका पाते ही घर से भाग निकली। उनके पिता को काम से निकाल दिया गया और घर पर
छापा मारकर सारा सामान जब्त कर लिया गया।
कल्पना और सूर्यदा

सूर्यसेन किसी तरह रात और दिन में छिपते तथा भागते रहे और पुलिस के जाल से बचते रहे। इसी दौरान वह पुलिस फायरिंग में घायल हो गई। वह और मणिन्द्र दत्त पूरे दो घंटे एक तालाब के पानी में छिपे रहें। फिर भी वह भागती गई। आखिरकार उसे चटगांव के पास समुद्री किनारे एक छोटे-से कस्बे से गिरफ्तार कर लिया गया।
कल्पना और कई अन्य साथियों को पकड़कर पुलिस ले गई। एक पुलिस अफसर ने उसे थप्पड़ मारा। इस पर
वहां उपस्थित फौजी कमांडर ने थप्पड़ मारने वाले को डांटते हुए कहाः ‘‘उसे उचित सम्मान दो।’’ कल्पना पुलिस
और फौजी अधिकारियों के बीच बड़ी लोकप्रिय हो गई।
सूर्यसेन और तारकेश्वर दस्तीदार को फांसी की सजा सुनाई गई जबकि कल्पना दत्त को आजन्म कारावास की
सजा मिली। विशेष ट्रिब्यूनल जज ने कहा कि वह सिर्फ 18 वर्ष की थी। उसे अंडमान में काला पानी की सजा
के लिए भेजा जाने वाला था लेकिन महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने हस्तक्षेप कर रुकवा दिया। उसे पहले तो हिजली
और राजशाही जेलों में भेजा गया, फिर सितंबर 1934 से अक्टूबर1935 तक मेदिनीपुर जेल में रखा गया। फिर
दिनाजपुर जेल और उसके बाद मेदिनीपुर जेल में वापस लाया गया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
कल्पना दत्त और अन्य कैदियों की रिहाई के लिए आंदोलन जोर पकड़ता गया तथा सरकार पर दबाव बढ़ता
गया। 1938-39 में कैदियों की रिहाई का आंदोलन तेज हो गया। इसके अलावा गांधीजी और टैगोर ने भी दबाव
बनाया। फलस्वरूप कल्पना दत्त तथा कई अन्य को 1 मई 1939 को रिहा कर दिया गया।
रिहाई के बाद कल्पना को रविन्द्रनाथ टैगोर की ओर से पत्र मिला। इसमें उन्होंने कल्पना को उसके भविष्य के कर्तव्यों का ध्यान दिलाते हुए उसे आशीर्वाद दिया।
कल्पना के अधिकतर साथी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो चुके थे। अभी कल्पना पशोपेश में थी। वह वेदान्त
और गीता के आध्यात्मिक प्रभाव में भी थी। साथ ही उसे कम्युनिस्टों के विचार जरा ज्यादा ही सिधान्तिक लगते थे। उसे महसूस हो रहा था कि ‘जनता के बीच’ काम होना चाहिए। कोई भी कॉलेज कल्पना दत्त को एडमिशन देने
को तैयार नहीं था। आखिरकार उसने 1940 में बी.ए. पास किया ओर एम. ए.;गणित में एडमिशन लिया।
1940-41 में उसे फिर ‘गृह-बंदी’ में रखा गया वापस कलकत्ता लौटकर उसने ‘अध्ययनमंडली’ का गठन किया। साथ ही हस्तलिखित पत्रिका ‘पथेय’ निकालना शुरू किया। उसने लगभग सौ सदस्यों वाली एक नारी समिति भी गठित की।
उसने ‘रात-दिन’ स्कूल स्थापित किए। उसने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान चटगांव पर जापानियों द्वारा बमबारी के दौरान रक्षा-उपायों संबंधी काम किया। इस संदर्भ में उसने महिला आत्मरक्षा समिति’ के गठन में भाग लिया। इस बीच वह दो बार टाइफायड से गंभीर रूप से बीमार हुई।
कल्पना को अब जनता के बीच काम करने के कई अवसर मिले। उसने संथाल मजदूरों, आदिवासियों, सफाई
श्रमिकों, धोबियों, इ. तबकों के बीच, उनकी झुग्गियों में जाकर बहुत सक्रियतासे काम किया। इसके अलावा उसने
1943 के बंगाल में पड़े महा-अकाल में बड़ा काम किया। उसे किसान सभा में भी काम करने का मौका मिला।
कलकत्ता में उसने ट्रामवे तथा अन्य मजदूरों के बीच सक्रिय काम किया।
वह ट्रामवे वर्कर्स यूनियन के ऑफिस में होलटाइमर बन गईं।
इन कार्योंं के दौरान कल्पना दत्त कम्युनिस्ट पार्टी के काफी नजदीक आ गईं। उन्हें 1942 में, जब वे
टाइफायड से बीमार थीं, सूचना दीगई कि उन्हें भा.क.पा. का सदस्य बना लिया गया है।
दिसंबर 1942 में कल्पना पार्टी स्कूल में भर्ती होने बंबई गईं। वहां उनकी मुलाकात पार्टी के महासचिव पी.सी. जोशी से हुई। उन्हें प्रादेशिक स्तर पर पार्टी संगठनकर्ता बनाया गया।
उनकी चार बहनें भी पार्टी की सदस्य बन गईं। अगस्त 1943 में पी.सीजोशी और कल्पना दत्त की शादी हो गई।
कल्पना जोशी ने कई जनसंघर्षोंं का नेतृत्व किया और कई अन्य में भाग लिया। इनमें से एक था जनवरी 1946 में चटगांव के पाटिया में हड़तालें और प्रदर्शन। यह ब्रिटिश सिपाहियों द्वारा किए गए अत्याचारों के विरोध में था। कल्पना और उसके साथियों ने इनका नेतृत्व किया।
1946 में कल्पना जोशी ने भाक. पा. उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान सभा के लिए चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

कल्पना जोशी 1948 में अंडरग्राउंड चली गईं। 1951 में जब पार्टी पर से पाबंदी हटाई गई तो उन्हें वित्तीय एवं राजनैतिक कारणों से नौकरी करनी पड़ गई। उन्हें प्रो. पी.सीमहालनोबिस के तहत इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीच्यूट में काम मिल गया। उन्होंने मुख्यतः नेशनल सैम्पल सर्वे ;एन.एस.एस. में काम किया। वे इंस्टीच्यूट ऑफ स्टडीज इन रश्शियन लैंग्वेज की संस्थापक-डाइरेक्टर भी थीं। उन्होंने ‘चिटगांग आर्मरीरेडर्सःरेमिनिसेन्सेज’ ;चटगांव शस्त्रगार कांड के साथियों के संस्मरण नाम से आत्म-कथात्मक पुस्तक भी लिखी। इसे अंग्रेजी में पी.सी. जोशी और निखिल चक्रवर्ती ने अनूदित किया। जोशी ने इसकी भूमिका भी लिखी। कल्पना ने लिखाः ‘‘हमें अपने स्कूली दिनों में अपने भविष्य का कोई खाका स्पष्ट नहीं था। और तब झांसीं की रानी की कहानी ने हमें प्रेरित कर दिया।’’ कल्पना दत्त जोशी की मृत्यु 5 फरवरी 1995 को हो गई।

-अनिल राजिमवाले

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मंगलवार, 9 मार्च 2021

CPI in UP will support peasants and workers movement on March 15, 2021


उत्तर प्रदेश में जमीन बचाने, सार्वजनिक क्षेत्र बचाने, गरीबों के आवास बचाने, संविधान बचाने और महंगायी को पर्याप्त मात्र में नीचे लाने को 15 मार्च को सड़कों पर उतरेगी भाकपा

 

लखनऊ- 9 मार्च 2021, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के सचिव मंडल ने कहाकि आज किसानों की ज़मीनें बचाने, कारपोरेट खेती पर रोक लगाने एवं देशाहित में आवश्यक वस्तु अधिनियम को समाप्त करने से बचाने तथा बिजली बिल संशोधन अधिमियम को खारिज कराना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही फसलों की कीमतों के न्यूनतम मूल्य दिलाने की गारंटी करने वाला कानून बनाया जाना भी समय की जरूरत है। न्यूनतम समर्थन मूल्य भी स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले के आधार पर होना चाहिये, न कि सरकार की मनमर्जी के अनुसार। ऐसे समय में जब डीजल, पेट्रोल, खाद और कीटनाशकों की कीमतों ने सारे रिकार्ड तोड़ रखे हैं, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस साल का गेहूं खरीद मूल्य 1975 निर्धारित करना किसानो को और भी देवालिया बनायेगा, भाकपा ने कहा है।

दूसरी ओर समस्त सार्वजनिक क्षेत्र को बेच कर कार्पोरेट्स/ पूँजीपतियों के हवाले करने से देश के प्राक्रतिक संसाधनों की लूट बड़ेगी और संप्रभुता को खतरा उत्पन्न होने जा रहा है। श्रम क़ानूनों को नष्ट कर बनाये 4 लेबर कोड्स के जरिये मजदूरों से यूनियन बनाने- चलाने का अधिकार छीन लिया गया है, मजदूरों को उनके दमन और शोषण से बचाव के सभी रास्ते बंद होगये हैं और मजदूरों को मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कार्यस्थल पर सुरक्षा संबंधी प्रविधानों से वंचित कर दिया गया है।

राष्ट्रीय संपदा और किसानों मजदूरों को कार्पोरेट्स के हाथों लुटवाने के जघन्य पाप को प्रधानमंत्री ने वैचारिक जामा पहनाने की पुनः कोशिश की है। वे निर्लज्जता से कह रहे हैं कि सरकार का काम उद्योग व्यापार चलाना नहीं। यदि सरकार अपने नागरिकों के हितरक्षा से मुकर रही है और मेहनतकशों द्वारा खड़ी की गयी संपदाओं को बेचने पर उतारू है तो देश के मतदाताओं को भी उसे हटा देने का नैतिक अधिकार है, और वे जरूर इस अधिकार का प्रयोग करेंगे, भाकपा ने कहा है।

इस बीच सरकार ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया है और सभी जरूरी चीजों की महंगाई बढ़ने से आम और खास सभी लोग त्राहि त्राहि कर उठे हैं। केन्द्र से बढ़ने वाली कीमतों में राज्य का टैक्स भी जुड़ जाता है और महंगाई का उच्चतम स्तर असहनीय हो जाता है।

प्रधानमंत्री के वक्तव्य से उत्साहित उत्तर प्रदेश की सरकार ने बेहद महंगे सरकारी पर्यटक आवासों को लीज पर देने का फैसला ले डाला। राज्य सरकार हर जनविरोधी करतूत पर उतारू है। पहले माफियाओं के मकान ढहा कर वाहवाही लूटने में मशगूल उत्तर प्रदेश सरकार ने अब गरीबों और आम नागरिकों- खासकर दलितों, अल्पसंख्यकों के आवासों को ढहाना शुरू कर दिया है। हाथरस में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निर्मित बाल्मीकि परिवारों के मकानों को बिना किसी कारण के बिना नोटिस दिये ढहा दिया। इलाहाबाद में कल प्रोफेसर फातमी एवं उनकी बेटी के मकान को ढहा दिया गया। सामंती तत्वों और भूमाफियाओं को कब्जा दिलाने को प्रदेश भर में दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के उन मकानों को ढहाने का अभियान बड़े पैमाने पर जारी है, जिनमें वे कई पीढ़ियों से रह रहे हैं।  

एक ओर लोगों के मकान ढहाए जारहे हैं वहीं जगह जगह लेबर कालोनियों के मकानों पर दबंगों ने आधिपत्य जमा लिया है। योगी सरकार कानून संविधान और उसकी प्रस्थापनाओं पर खुले हमले कर रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने धर्मनिरपेक्षता को संस्क्रति के विकास में बाधा बता कर संविधान पर बड़ा हमला बोला है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस सब पर कडा ऐतराज जताती है। भाकपा ने किसानों की जमीन की रक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने, महंगाई को उल्लेखनीय तादाद में नीचे लाने, लोगों को बेघर बनाने से रोके जाने और संविधान पर हमलों का प्रतिकार करने को 15 मार्च के किसानों- कामगारों के आंदोलन को जमीनी समर्थन करने का निर्णय लिया है। साथ ही भाकपा बैंकों, बीमा और जनरल इंश्योरेंस के कर्मियों के आंदोलनों का पुरजोर समर्थन करेगी। तदनुसार भाकपा की जिला इकाइयों को निर्देश जारी किया गया है।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 3 मार्च 2021

Press Note of CPI UP


 

भाकपा के प्रतिनिधिमंडल ने अलीगढ़ के गांव किवलाश पहुंच दलित बिटिया की हत्या के संबंध में गांववासियों से भेंट की, घटनास्थल का निरीक्षण किया

पुलिस द्वारा गढ़ी गयी कहानी को संदेहास्पद बताते हुये घटना की सीबीआई से जांच की मांग की

लखनऊ/ अलीगढ़- 3 मार्च 2021, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डा॰ गिरीश के नेत्रत्व में भाकपा का एक प्रतिनिधि मंडल आज अलीगढ़ जनपद के थाना- अकराबाद अंतर्गत किवलाश गांव पहुंचा। प्रतिनिधि मंडल में राज्य काउंसिल सदस्य एवं जिला सचिव अलीगढ़ का॰ सुहेव शेरवानी, सहसचिव का॰ इरफान अंसारी, का॰ हरीश लोदी, भाकपा हाथरस के कार्यकारी सचिव का॰ संजय खान, सहसचिव का॰ सत्यपाल रावल, मोहम्मद मुकीम एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ( एआईएसएफ़ ) हाथरस के जिला सचिव हितेश अंबेडकर आदि शामिल थे।

प्रतिनिधि मंडल ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया। घटना के संबंध में गांववासी स्त्री- पुरुषों से जानकारी ली। पीड़िता के परिवार को पुलिस ने थाना- अकराबाद बुला लिया था, प्रतिनिधि मंडल जब उनसे मिलने थाना पहुंचा तो वे वहाँ से जा चुके थे। अतएव उनसे भेंट न हो सकी। गांव में स्थित डा॰ भीमराव अंबेडकर प्रतिमा के समक्ष उपस्थित गांववासियों को डा॰ गिरीश ने संबोधित किया। प्रतिनिधि मंडल ने अकराबाद थाने के समीप मौजूद पत्रकारों के साथ वार्ता की, और घटना के संबंध में भाकपा का पक्ष रखा।

किवलाश गांव में गांववासियों और अकराबाद में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुये भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहाकि नाबालिग और वह भी कम विकसित ज्ञानेन्द्रियों वाली बालिका के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश और असफल रहने पर बहशी तरीके से की गई हत्या रोंगटे खड़े करने वाली है। घटनास्थल के निरीक्षण से पता लगता है कि जहां हत्या की गयी वहां से लाश को घसीट कर कई मीटर दूर ला कर पटक दिया गया। इतनी जघन्य वारदात को शातिरों का कोई ग्रुप ही अंजाम दे सकता है। लेकिन पुलिस ने पड़ोसी गांव के एक अवयस्क युवक पर आरोप निरूपित कर मामले से पल्ला झाड लिया है। पुलिस द्वारा गड़ी गयी कहानी में कई झोल हैं और उस पर सहज विश्वास नहीं किया जा सकता। गत दिनों उन्नाव में तीन बहिनों की जहरखुरानी, जिसमें दो की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी थी के बारे में भी पुलिस ने ऐसी ही कहानी गड़ी थी।

सुहेव शेरवानी ने पत्रकारों को बताया कि पुलिस की इस कहानी पर न तो गांववासियों को विश्वास हो रहा है और थाने के बाहर मौजूद जनसमुदाय भी इस कहानी को नकार रहा है। अतएव घटना की सचाई सामने आनी चाहिए।

डा॰ गिरीश ने कहाकि पीड़िता के परिवार को न्याय मिलना चाहिये, और सचाई को उजागर करने को घटना की जांच सीबीआई को सौंपनी चाहिये। उन्होने आरोप लगाया कि भाजपा शासन में बालिकायेँ, महिलाएं और आम नागरिक कोई भी सुरक्षित नहीं हैं। अपराधी बेखौफ हो वारदातों को अंजाम देरहे हैं और मुख्यमंत्री विपक्ष को प्रताड़ित करने में जुटे हैं। गत दिनों विधान सभा में उनके द्वारा विपक्ष को अशिष्ट भाषा में धमकी दी गयी जो कि लोकतन्त्र के लिये खतरा है। मुख्यमंत्री को बंगाल की नहीं यूपी की फिक्र करनी चाहिये- जो कि जंगलराज बन चुका है।

भाकपा ने किवलाश की दलित बिटिया को न्याय दिलाने और शातिर अपराधियों को जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाने के लिये घटना की सीबीआई जांच करने की मांग की।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा,  उत्तर प्रदेश   

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मंगलवार, 2 मार्च 2021

उत्तर प्रदेश में जंगलराज

 

अलीगढ़ बालिका की संदिग्ध परिस्थितियो में हत्या की भाकपा ने निन्दा की

भाकपा का प्रतिनिधिमंडल डा॰ गिरीश के नेत्रत्व में कल अलीगढ़ पहुंचेगा

लखनऊ-2 मार्च 2021, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के सचिव मण्डल ने जनपद- अलीगढ़ के अकराबाद के अंतर्गत एक गाँव में बहरी- गूंगी दलित बालिका की संदिग्ध परिस्थितियों में बेहद खौफनाक तरीके से की गयी हत्या पर गहरा दुख और आक्रोश प्रकट किया है। भाकपा ने पीढ़ित परिवार को न्याय दिलाने, उचित मुआबजा  देने और आरोपियों  को शीघ्र जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाने की मांग की है।

यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा ने आरोप लगाया कि योगीराज में अपराधों खासकर महिलाओं और बालिकाओं के साथ दरिंदगी की वारदातें थम नहीं पा रही हैं। जिस दिन अलीगढ़ की बालिका को मौत के घाट उतारा  गया उसी दिन पीलीभीत में दुस्साहसी शोहदे एक दलित के घर में घुस गए और परिवार की 19 वर्षीय बेटी से दरिंदगी का प्रयास किया। बचाने को आयी उसकी छोटी बहिन पर भी हमला बोला। हाथरस में पुत्री से छेड़खानी की शिकायत करने वाले पिता को कल गोली से उड़ा दिया गया। जनपद कानपुर देहात में एक सभासद के दो बच्चों और शिक्षक बीबी को जिन्दा जला दिया गया जिसमें दोनों मासूम बच्चों की मौत होगयी।

इससे पूर्व हाथरस, बलरामपुर, उन्नाव, शाहजहाँपुर जैसी तमाम घटनाओं ने प्रदेश की बेटियों और उनके अभिभावकों को झकझोर कर रख दिया है। अपराधिक तत्वों पर काबू पाने में असमर्थ मुख्यमंत्री विपक्ष को विधान सभा के भीतर गुंडों की भांति धमकियाँ देते हैं। यह निंदनीय तो है ही, लोकतन्त्र के लिए भी खतरा है, भाकपा ने कहा है।  

भाकपा राज्य सचिव मंडल अलीगढ़ के घटनास्थल का जायजा लेने और पीढ़िता के परिवार से मिल कर संवेदना व्यक्त करने को कल अपना उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मंडल अलीगढ़ भेज रहा है। 3 मार्च को राज्य सचिव डा॰ गिरीश के नेत्रत्व में यह प्रतिनिधि मंडल अलीगढ़ पहुंचेगा।


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