भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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सोमवार, 25 अप्रैल 2022

भाकपा उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधिमंडल ने इलाहाबाद पहुंच समूहिक हत्याकांड की पड़ताल की


 सुनियोजित लक्ष्यों पर बुलडोजर चला कर भय तो उत्पन्न किया जा सकता है, कानून का राज नहीं: डा॰ गिरीश।

लखनऊ- 25 अप्रैल 2022, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्य सचिव डा॰ गिरीश के नेत्रत्व में जनपद- इलाहाबाद के थाना- थरवई अंतर्गत ग्राम- खेवराजपुर का दौरा किया जहां गत 16 अप्रैल को एक पशु व्यापारी सहित उसके परिवार के 5 व्यक्तियों की बर्बर तरीके से हत्या कर घर में आग लगा दी गयी थी।

प्रतिनिधिमंडल में डा॰ गिरीश के अतिरिक्त भाकपा राज्य कार्यकारिणी सदस्य का॰ नसीम अंसारी, भारतीय खेत मजदूर यूनियन के राज्य सचिव का॰ फूलचंद यादव, उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव का॰ जवाहरलाल विश्वकर्मा तथा इलाहाबाद के भाकपा नेता का॰ रामफेर तिवारी आदि प्रमुख रूप से शामिल थे।

प्रतिनिधिमंडल ने वहां पहुँच कर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, परिवार के एकमात्र शेष सदस्य पशु व्यापारी के युवा पुत्र श्री सुनील सिंह यादव से भेंट कर उन्हें ढाढस बंधाया तथा निकट संबंधियों व ग्रामवासियों से घटना के बारे में जानकारी ली।

इलाहाबाद से यहां पहुंचने पर एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहा कि पशु व्यापारी, उनकी पत्नी, दिव्यांग बेटी, गर्भवती बहू और एक साल की बेटी की न्रशंस हत्या और हत्या के पहले की गयी बर्बरता कानून के राज की घनघोर असफलता और राज्य सरकार के माथे पर कलंक का टीका है। भाकपा इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना करती है।

पुलिस और खुफिया तंत्र की इससे बड़ी विफलता क्या हो सकती है कि घटना के 9 दिन बीत जाने के बाद भी अपराधियों को पकड़ना तो दूर हत्यारों का सुराग तक नहीं लगाया जा सका है। इससे पीड़ित परिवार व्यथित, चिंतित और घबराया हुआ है। म्रत व्यापारी के पुत्र सुनील ने कहाकि मेरे परिवार के हत्यारे जल्द से जल्द पकड़े जाने चाहिए और हमें न्याय मिलना चाहिये। एक रिश्तेदार महिला ने कहाकि हम चाहते हैं कि जो हादसा हमारे साथ हुआ है वह किसी अन्य के साथ न हो। इसके लिये जरूरी है कि सभी हत्यारे जल्द से जल्द जेल के सींखचों के पीछे हों।

उपस्थित ग्रामवासियों ने बताया कि जनपद इलाहाबाद में सन 2017 से अब तक 8 परिवार खत्म कर दिये गये हैं जिनमें 34 का कत्ल हुआ है। इन हत्याओं से पहले कई में महिलाओं/ बालिकाओं से दरिंदगी तक हुयी। एक अन्य सामूहिक हत्याकांड तो अप्रैल माह में ही हुआ है। वे कहते हैं कि इन संगीन वारदातों के अपराधियों को पुलिस ने पकड़ा होता तो अपराधियों की हिम्मत एक के बाद एक हत्याकांडों को अंजाम देने की न होती। इन सामूहिक हत्याकांडों के अतिरिक्त जनपद में हर दिन एक दो हत्याएं अथवा संगीन आपराधिक वारदातें हो रहीं हैं।

इन घटनाओं से इलाहाबाद के नागरिक भयभीत हैं। अकारण सी दिखने वाली इन वारदातों ने लोगों को अंदर तक हिला दिया है। पुलिस का नाकारापन और विफलता उन्हें विचलित किए हुये है। यह कानून के राज की विफलता और राज्य सरकार की अक्षमता का प्रतीक है। जो सरकार सुनियोजित लक्ष्यों पर बुलडोजर चला कर वाहवाही और वोट बटोरती है वह प्रदेश के नागरिकों के जीवन की रक्षा करने में असमर्थ है। इलाहाबाद या किसी अन्य जगह का नाम बदलने मात्र से वहां सुशासन कायम नहीं होजाता राज्य सरकार को समझना चाहिए।

भाकपा ने मांग की है कि इस समेत समूचे हत्याकांडों का विश्वास करने योग्य खुलासा जल्द से जल्द किया जाये और अपराधियों को जेल के सींखचों के पीछे भेजा जाये। उत्तर प्रदेश पुलिस के निकम्मेपन और अहमन्यता को देखते हुये जरूरी होगया है कि जांच केंद्रीय एजेंसियों को सौंपी जाये। खेवराजपुर हत्याकांड और आगजनी से विनष्ट परिवार के वारिश सुनील यादव को अपने जीवन को पुनः पटरी पर लाने के लिये रुपये पचास लाख का आर्थिक अनुदान दिया जाये।

भाकपा ने चेतावनी दी कि प्रदेश के लोगों की जिंदगियाँ समाप्त करने के इस खेल को भाकपा मूकदर्शक बन देखती नहीं रहेगी और शीघ्र ही इसके खिलाफ सशक्त आवाज उठायी जाएगी।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 18 अप्रैल 2022

Press Note of CPI


उत्सवों की आड़ में की जारही भड़कावे की कारगुजारियाँ पूर्व नियोजित: भाकपा

लखनऊ- 18 अप्रैल 2022, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने इस बात पर गहरी चिन्ता जताई है कि हाल के दिनों में भाजपा और संघ परिवार ने धर्म के नाम पर हिंसा का खुला खेल खेला हुआ है। पांच राज्यों के चुनावों में चार में सत्ता हथियाने के बाद यह सांप्रदायिक तांडव और अधिक भयावह रूप से सामने आया है।

भाकपा ने कहा होली के अतिरिक्त हिन्दू धार्मिक उत्सवों को लोग निजी तौर पर मनाते चले आ रहे हैं। लेकिन इस बार अचानक इन उत्सवों को भीड़ के उत्सवों में बदल दिया गया है। पूर्व नियोजित तरीके से संघ के आनुषांगिक संगठन शस्त्रों, भयावह आवाज वाले ध्वनि विस्तारकों (डीजे) और अवांच्छित नारों के साथ एक समुदाय के धर्मस्थलों के इर्द गिर्द अवांच्छित गतिविधियां कर उकसावे पैदा कर रहे हैं। परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश सहित तमाम जगहों पर आपसी टकराव होते होते बचे हैं तो कई जगह हिंसक झड़पें तक हुयी हैं।

इन भड़काऊ और राजनीति से प्रेरित आयोजनों में आम हिन्दू समुदाय भाग नहीं ले रहा। लेकिन बजरंग दल आदि संगठन सुनियोजित तरीके से इनमें दलित- पिछड़े वर्ग के बेरोजगारों को धर्म की घुट्टी पिला कर उद्वेलित करके ला रहे हैं और उन्हें सांप्रदायिकता के लिए ईंधन के तौर पर स्तेमाल कर रहे हैं। पुलिस प्रशासन सत्ता के दवाबों में काम कर रहा है और स्थितियों से पेशेवर तरीकों से निपटने में अक्षम पा रहा है। यह जांच का विषय है कि इन आयोजनों में व्यय किया जा रहा भारी मात्रा में धन किन स्रोतों से आ रहा है।

कमरतोड़ महंगाई, सीमाएं लांघ चुकी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, बलात्कार और अपराधों की बाढ़ और गैर कानूनी प्रशानिक अत्याचारों से आम जन का ध्यान हटाने के उद्देश्य से भी यह सब किया जा रहा है।

शांति की बात करने वालों को शारीरिक रूप से और सोशल मीडिया के जरिये प्रताड़ित किया जा रहा है। कुछेक चेनलों और अखबारों को छोड़ कर अधिकांश मीडिया भी घटनाओं को निष्पक्ष रूप से पेश करने के बजाय समुदाय विशेष को निशाना बना रहा है। यह हालत तब है जब मीडियाकर्मियों को भी फासिस्टी दमनचक्र का निशाना बनाया जा रहा है।

भाकपा ने कहा राजनीतिक उद्देश्यों से समाज को बांटने की इन कोशिशों से सारा देश चिंतित है। देश के 13 राजनैतिक दलों ( उत्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां शामिल नहीं ) ने संयुक्त बयान जारी कर अशांति और विभाजन पैदा करने वाली गतिविधियों पर चिन्ता जताई है और आमजन से शांति बनाए रखने की अपील की है।

भाकपा के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मंडल ने सभी से शांति और भाईचारा बनाने की अपील की है और अपने समस्त कार्यकर्ताओं और इकाइयों से अपील की है कि वे दलितों वंचितों और कमजोरों को शिक्षित कर समरसता बनाये रखने को प्रेरित करें।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा , उत्तर प्रदेश

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रविवार, 3 अप्रैल 2022

भाकपा उत्तर प्रदेश ने प्रतापगढ़ में तहसील लिपिक की हत्या पर गहरा आक्रोश जताया


घटना की सीबीआई जांच और म्रतक परिवार को 50 लाख रु॰ की आर्थिक सहायता देने की मांग की

लखनऊ- 3 अप्रैल 2022, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने जनपद- प्रतापगढ़ की तहसील लालगंज के नकल लिपिक एवं पूर्व नाजिर सुनील कुमार शर्मा की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की है। भाकपा ने हत्या की जांच सीबीआई को सौंपे जाने की मांग राज्य के मुख्यमंत्री से की है।

सीबीआई जांच इसलिए जरूरी है कि इस हत्या का आरोप उसी तहसील के उप जिलाधिकारी पर लग रहा है। बताया जाता है कि उन्हें प्रतापगढ़ जनपद की राजनीति के धुरंधरों का संरक्षण प्राप्त है, ऐसे में पुलिस अथवा राज्य सरकार की एजेंसियां शायद ही निष्पक्ष जांच कर पायें।

आरोप है कि उक्त अधिकारी और उसके गुर्गों ने लिपिक को 30 मार्च की रात उसके घर के दरवाजे पर इस कदर पीटा कि उसकी हालत चिंताजनक बन गयी। उसका डाक्टरी मुआयना भी अगले दिन तब होसका जब उसने जिला प्रशासन से लिखित गुहार की। इस संबंध में मानवीय आधार पर जिला ट्रेड यूनियन काउंसिल (एटक) जनपद- प्रतापगढ़ के अध्यक्ष एवं भाकपा की राज्य काउंसिल के सदस्य कामरेड हेमन्त नन्दन ओझा ने कई कई बार अधिकारियों से मिल कर और लिखित आवेदन कर शर्मा की जान बचाये जाने की मांग की।

बताया जाता है कि चिकित्सकीय परीक्षण में गंभीर चोटों के सामने आने के बाद उक्त अधिकारी ने लिपिक को अपने कब्जे में लेलिया। इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती होने से रोका और लालगंज ट्रामा सेंटर में इसलिए बाधित रखा कि मामले का भंडाफोड़ न होजाये। हेमन्त नन्दन ओझा के प्रयास और जिला प्रशासन के हस्तक्षेप से उसे जिला अस्पताल लाया गया। लेकिन तब तक उसकी हालत को और भी बिगाड़ दिया गया था। अस्पताल में भी त्वरित और समुचित उपचार नहीं मिल पाने से अंततः 2 अप्रैल की देर शाम उसकी म्रत्यु होगयी और उसके छोटे छोटे 3 बच्चे अनाथ हो गए।

बताया जारहा है कि 31 मार्च से 2 अप्रैल के बीच उप जिलाधिकारी एवं उसके पोषित गुंडों ने श्री शर्मा से किन्हीं कागजातों/ स्टांप पेपर्स पर दस्तखत भी करा लिये हैं। रामराज्य में रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। ऐसी क्या वजह थी कि 30 मार्च से 2 अप्रैल के बीच पूरे 72 घंटों तक एक अदने से कर्मचारी को सत्ता मद में चूर अधिकारी के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया।

इसलिए जांच के दायरे में उप जिलाधिकारी, जिला प्रशासन और पुलिस, ट्रामा सेंटर और अस्पताल सभी आते हैं। इन अति ताकतवर लोगों की जांच राज्य से ऊपर की एजेंसी ही कर सकती है इसलिए भाकपा सीबीआई जांच की मांग कर रही है।

भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने सवाल किया कि क्या माननीय मुख्यमंत्री जी का बुलडोजर एक कर्मचारी की न्रशंस हत्या करने वालों पर भी चलेगा या फिर वह वोट बटोरने का हथकंडा ही बना रहेगा।

भाकपा ने म्रतक के अनाथ बच्चों के भरणपोषण और शिक्षा के लिये रुपए 50 लाख की सहायता प्रदान करने की मांग भी की है।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश

 

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शनिवार, 2 अप्रैल 2022

महापंडित राहुल सांक्रत्यायन एवं डा॰ भीमराव अंबेडकर के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में

 

भाकपा का “सामाजिक न्याय एवं समरसता सप्ताह”- 9 से 14 अप्रैल- 2022 के बीच।

-:विचार हेतु विषय:-  

“समाजवादी व्यवस्था के निर्माण में सामाजिक न्याय एवं समरसता की भूमिका”

(भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने प्रख्यात लेखक, घुमक्कड़, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और समाजवाद के संघर्ष के अप्रतिम योध्दा महापंडित राहुल सांक्रत्यायन के जन्मदिवस 9 अप्रेल से सामाजिक न्याय और दलित चेतना के अग्रदूत डा॰ भीमराव अंबेडकर के जन्मदिवस 14 अप्रैल के बीच सामाजिक न्याय एवं समरसता सप्ताह आयोजित करने तथा  “समाजवादी व्यवस्था के निर्माण में सामाजिक न्याय एवं समरसता की भूमिका” विषय पर विचार गोष्ठियां आयोजित करने का निश्चय किया है। प्रस्तुत आधार नोट इसी उद्देश्य से आपके उपयोग हेतु तैयार किया गया है।)

-डा॰ गिरीश।

 

हाल के वर्षों में सामाजिक न्याय के आंदोलन और सामाजिक समरसता (आपसी भाईचारे) के उद्देश्य को भारी झटके लगे हैं। सत्ता और सत्ता प्राप्ति हेतु की जाने वाली राजनीति ने दोनों मिशनों को अपनी जरूरतों के हिसाब से रौंदा है। आजादी के बाद से हमने जो कुछ हासिल किया है उसको पलटने का क्रम प्रारंभ होचुका है और अब उसे मिटाने की तैयारी है। सबकुछ ऐसे ही चलने दिया गया तो दोनों ही आन्दोलन शब्दकोश में दर्ज शब्द मात्र रह जायेंगे।

सत्ताधारियों और वोट के अखाड़ेबाजों ने सामाजिक न्याय की अवधारणा को पहले आरक्षण के दायरे में समेटने का प्रयास किया। ऐतिहासक परिप्रेक्ष्य में विभिन्न वजहों से सामाजिक सान्स्क्रतिक और आर्थिक क्षेत्रों में पिछड़ चुके लोगों के लिये आरक्षण एक संवैधानिक उपचार है, मगर वह सामाजिक न्याय की जगह नहीं ले सकता।

पूंजीवादी राजनीति के खिलाड़ियों ने सामाजिक न्याय को सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर जातीय गोलबंदी  में बदल दिया है। कांग्रेस शुरू से ही लुक छिप कर यह खेल खेलती रही और निर्वाचन क्षेत्रों में बहुसंख्य जातियों से जुड़े उम्मीदवार उतारती रही। सुविधाजनक तरीके से कांग्रेस को मैदान से हटाने का पहला प्रयोग राम मनोहर लोहिया ने किया और पिछड़े पावें सौ में साठ का नारा दिया। वहीं चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर अजगर- (अहीर, जाट, गूजर और राजपूत) का जातीय गठबंधन खड़ा कर सत्ता हासिल की तो माननीय कांशीराम जी ने एक कदम और आगे बढ़ कर जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी साझेदारी, का नारा देकर जातीय गोलबंदी का नया प्रयोग किया। दक्षिणी राज्यों में कुछ भिन्न तरीकों से ये प्रयोग होते रहे हैं।

ऐसे ही कुछ प्रयोगों से सत्तारूढ़ हुयी क्षेत्रीय पार्टियों को केवल सांप्रदायिक विभाजन के बल पर सत्ता से हटाने में विफल रही भारतीय जनता पार्टी ने उपर्युक्त सभी प्रयोगों का काकटेल बना डाला और उसको नाम दिया- सोशल इंजीनियरिंग। चुनाव क्षेत्रों में अधिक वोट बैंक वाली जातियों को टिकिट देकर अपने आधार वोट बैंक के सहारे जीत हासिल कर सत्ता हड़पने का प्रयोग ही भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग है। क्षेत्रीय पार्टियां भी अपने अपने तरीकों से यह प्रयोग करती रही हैं। सोशल इंजीनियरिंग के इस प्रयोग ने सामाजिक न्याय के उद्देश्य को बहुत पीछे धकेल दिया है।

वास्तव में सामाजिक न्याय मानव समाज के विकास की वह मंजिल है जिसमें पर्याप्त और संतुलित भोजन, जरूरी आवश्यकताओं से युक्त स्वच्छ और हवादार आवास, प्राथमिक से लेकर विशिष्ट उपचार की सस्ती और सुलभ चिकित्साप्रणाली, सभी को समान और शुल्क रहित संपूर्ण शिक्षा, सुलभ और व्यापक परिवहन, जान और सम्मान की रक्षक शासन प्रणाली एवं न्याय प्रणाली तक प्रत्येक  नागरिक की पहुंच हो। इन सबको हासिल करने को संरक्षित और समुचित आय देने वाला रोजगार जरूरी है, अतएव सभी को रोजगार सामाजिक न्याय की पूर्व शर्त है।

लेकिन आज सबकुछ इसके ठीक उलट होरहा है। रोजगार के अवसर और रोजगार दोनों ही घट रहे हैं। सरकार की नीतियाँ मुट्ठी भर कार्पोरेटों को लाभ पहुंचाने वाली और शेष को कंगाल बनाने वाली हैं। इससे गरीबों और अमीरों के बीच की खाई निरंतर गहरी होरही है। तमाम अध्ययन इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। गत बजट के समय फरबरी माह में आये प्राइस सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 2015- 16 की तुलना में 2020- 21 में सबसे गरीब 20 फीसदी आबादी की आमदनी 50 फीसदी तक गिर गयी, जबकि इसी दौरान सबसे धनाढ्य 20 फीसदी आबादी की आमदनी में 30 फीसदी का इजाफा हुआ। यह अनेक आंकड़ों में से एक आंकड़ा है। और ऐसे तमाम घटनाक्रम सामाजिक न्याय के लक्ष्य को हासिल करने में बड़ी बाधा हैं।

गरीबों को मुफ्त राशन, किसान सम्मान निधि या ऐसे अन्य प्रोत्साहन पैकेज सामाजिक न्याय का पर्याय नहीं हो सकते। अपितु उनको सरकार द्वारा बार बार आगे बढ़ाया जाना गरीबी और तंगहाली के न केवल बने रहने अपितु उनके पैर पसारने के प्रमाण हैं। दूसरी ओर ये शासक दलों के लिये सत्ता प्राप्ति के हथकंडे भी हैं।

सामाजिक न्याय की भांति ही सामाजिक समरसता(भाईचारे) की अवधारणा को रौंदा जाता रहा है। आपसी एकता और भाईचारा ही वह मंत्र है जिसकी बुनियाद पर भविष्य की तरक्की के स्तंभ खड़े होते हैं। लेकिन अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति को परवान चढ़ाने को उनके भारतीय पिट्ठूओं ने हिन्दू- मुस्लिम विभाजन गहरा करने को हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के साम्राज्यवादविरोधी आंदोलन और कम्युनिस्टों के साम्राज्यवादविरोधी और मेहनतकशों का राज कायम करने के ध्येय की राह में रोड़े अटकाना था।  आजाद भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाए जाने की इनकी मांग की प्रतिक्रियास्वरूप अलग मुस्लिम राष्ट्र की मुस्लिम लीग की मांग ने अंततः विभाजन को जन्म दिया। यह विभाजन हिन्दू कट्टरपंथियों के लिए आजाद भारत में अपनी विभाजनकारी कारगुजारियों को आगे बढ़ाने का सुगठित आधार बना।

संघी कट्टरपंथियों द्वारा की गयी गांधीजी की हत्या ने कुछ समय के लिए संप्रदायवादियों के रथ के पहिये थाम दिये थे। लेकिन बाद में उनके द्वारा उठाए गए अनेकानेक मुद्दों से सांप्रदायिक विभाजन तीव्र हुआ और देश अनेकों हिंसक सांप्रदायिक दंगों से रूबरू हुआ। गत शताब्दी के आखिरी तीन दशकों में अयोध्या, मथुरा, काशी, कश्मीर और कामन सिविल कोड जैसे मुद्दों ने सामाजिक विभाजन का जो तूफान खड़ा किया उससे भाजपा न केवल तमाम राज्यों और केन्द्र की सत्ता तक पहुंची अपितु वह दुनियाँ की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने लगी। अब यह विभाजनकारी एजेंडा शासन- सत्ता के जरिये  भी आगे बढ़ाया जारहा है। आज संप्रदायवाद फ़ासिज़्म की दूसरी मंजिल पाने को अंगड़ाई ले रहा है।

सांप्रदायिकता सामाजिक विभाजन का औज़ार तो है ही यह शोषक शक्तियों के खिलाफ शोषितों की एकता को खंडित करती है। कारपोरेट्स और पूंजीपतियों द्वारा मजदूर- किसानों के वर्गीय संघर्षों को बाँट कर उन्हें कमजोर करने का का काम करती है। आमजन की चेतना से महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अत्याचार आदि को हठा कर उसके स्थान पर खतरनाक उद्देश्यों वाली हिन्दुत्व, इस्लामिक अथवा धर्म की आड़ में पनपने वाली अन्य चेतनाओं को बैठाती है। सर्वधर्म समभाव के भाव को कमजोर कर एक धर्म के अनुयायियों में दूसरे धर्म के अनुयायियों के प्रति नफरत के बीज बोती है। एक धर्म के अनुयाइयों को दूसरे धर्म के अनुयाइयों से श्रेष्ठ साबित कर वह कथित श्रेष्ठवर्ग को अश्रेष्ठ पर दमन और शासन करने को उकसाती है। अंततः सर्वहारा के उदार मूल्यों वाले अंतर्राष्ट्रीयतावाद को अपदस्थ कर बहुमत समुदाय के संकीर्ण राष्ट्रवाद को पनपाती है।

विभाजन की यह राजनीति जरूरी नहीं कि हमेशा बड़े मुद्दों पर ही परवान चढ़े। छोटे मोटे मुद्दे उठा कर इसकी निरंतरता को बरकरार रखा जाता है। हाल के दिनों में ऐसे कई प्रयोग हुये हैं। तीन तलाक, लव जेहाद और हिजाब विवाद उसी श्रेणी में आते हैं। अभी बहुत दिन नहीं हुये जब कर्नाटक के उडुपी जिले में आयोजित सालाना कौप मरीगुड़ी उत्सव में गैर हिन्दू वैंडरों को मंदिर परिसर के आसपास कारोबार न करने देने की मांग उठी थी जो अब कई जिलों तक फैल गयी है। इसी बीच केरल से खबर आयी कि कन्नूर जिले के कुछ मंदिरों के प्रबंधतन्त्र ने विख्यात पूराक्कली- मराथुकली कलाकार विनोद पणिकर की मन्दिर समारोहों में कला- प्रस्तुति पर कथित तौर पर रोक लगा दी है। बताया जाता है कि पणिकर के बेटे ने मुस्लिम लड़की से शादी की है, इसीलिए उन पर यह रोक लगाई गयी है। उत्तर प्रदेश में तो जीवित अथवा म्रत पशुधन को व्यापारिक उद्देश्यों से ले जारहे मुस्लिम व्यापारियों को आए दिन हिंसक हमलों का शिकार बनना पड़ता है। गत वर्षों में इसी तरह की उन्मादी भीड़ के हमलों में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की न्रशंस हत्या हो चुकी है।

इस बीच झटका मीट और नवरात्र के दिनों में मीट का कारोबार रोकने के मसले अल्पसंख्यकों के विभाजन की राजनीति को हवा देने और अल्पसंख्यकों के व्यापार पर चोट करने की गरज से संघ परिवार द्वारा उठाए जा रहे हैं। लेकिन यह कट्टरता दूसरी ओर भी दिखाई देती है। रमजान के दिनों में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) परिसर के आसपास के बाज़ारों के दिन में खुलने पर रोक लगा दी जाती है। इससे अल्पसंख्यकों- बहुसंख्यकों का व्यापार तो प्रभावित होता ही है, गैर रोजेदार दिन में दाने दाने को तरस जाते हैं। यदि यह अलीगढ़ में होता है तो अन्य कई जगह होता ही होगा।

दरअसल, हमारे सामाजिक जीवन में विद्वेष की राजनीति की घुसपैठ लगातार बढ़ती जारही है और इसके कारण कई तरह की विसंगतियां देखने को मिल रही हैं। अब तक तो उत्तर भारतीय राज्यों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण या जातीय गोलबंदी के कारण अनेक समस्याएं पैदा होती रही हैं और यह उनके पिछड़ेपन की बड़ी वजह भी हैं। लेकिन संघ की वैचारिक विस्तार की कारगुजारियों के चलते इस तरह की प्रव्रत्तियाँ अब केरल जैसे राज्य में भी बढ़ने लगी हैं, जहां तरक्कीपसंद ताक़तें पर्याप्त दमदार हैं।

इसमें दो राय नहीं कि दक्षिण के राज्यों में उत्तर के मुक़ाबले सामाजिक समावेशीकरण कहीं बेहतर हुआ है और इन्हें उसका फायदा भी खूब मिला है। यह भी एक सुस्थापित तथ्य है कि कलहप्रिय समाज कभी तरक्की नहीं कर सकता। अतएव राज्य और केन्द्र सरकारों का दायित्व यह है कि वे सामाजिक तानेबाने को बिगाड़ने की कोशिशों से सख्ती से निपटें। परन्तु ठीक इसके विपरीत होरहा है। आज तो भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकारें और समूचा संघ परिवार स्वयं ही सामाजिक तानेबाने को तहस नहस करने में जुटा है। जनजाग्रति और जनता के जीवन से जुड़े सवालों पर आंदोलन ही इसकी काट हो सकते हैं।

भारत के सामने गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पेयजल और पर्यावरण के मोर्चे पर पहले से गंभीर चुनौतियां मौजूद हैं। महामारी ने उन्हें और विकराल बना दिया है। जिनसे निपटना राज्यतंत्र की प्राथमिकता होनी चाहिये और राजनैतिक दलों की भी।   

अतएव सांप्रदायिकता का निषेध समरसता है- आपसी भाईचारा है। इसे हासिल करके ही हम देश और जनता को प्रगति के रास्ते पर ले जा सकते हैं। समरसता के वातावरण में ही सामाजिक न्याय का संघर्ष आगे बढ़ सकता है। और समाजवाद के लक्ष्य को तभी हासिल किया जा सकता है जब समरसता और सामाजिक न्याय का रथ आगे बड़े। श्रमिकों, किसानों और मेहनतकशों के अन्य हिस्सों द्वारा किए जा रहे सतत संघर्ष इस लक्ष्य तक पहुँचने में मददगार हो सकते हैं।

डा॰ भीमराव अंबेडकर और महापंडित राहुल सांक्रत्यायन दोनों ही महापुरुषों ने अपने अपने ढंग से सामाजिक न्याय और समरसता की जरूरत पर बल दिया है। अतएव उनके कार्यों, विचारों एवं योगदान की अलग से चर्चा की जानी चाहिए।  

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश    

  

 

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