भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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Communist Party of India, U.P. State Council

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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती,
गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का,
ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का ।

चाहता तो था कि रुक लूँ पार्श्व में क्षण-भर तुम्हारे
किन्तु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाँहे पसारे,
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवंचन कापुरुषता
मुँह दिखाने योग्य रक्खेगी ना मुझको स्वार्थपरता ।
इसलिए ही आज युग की देहली को लाँघ कर मैं-
पथ नया अपना रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

ज्ञात है कब तक टिकेगी यह घड़ी भी संक्रमण की
और जीवन में अमर है भूख तन की, भूख मन की
विश्व-व्यापक-वेदना केवल कहानी ही नहीं है
एक जलता सत्य केवल आँख का पानी नहीं है ।

शान्ति कैसी, छा रही वातावरण में जब उदासी
तृप्ति कैसी, रो रही सारी धरा ही आज प्यासी
ध्यान तक विश्राम का पथ पर महान अनर्थ होगा
ऋण न युग का दे सका तो जन्म लेना व्यर्थ होगा ।
इसलिए ही आज युग की आग अपने राग में भर-
गीत नूतन गा रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

सोचता हूँ आदिकवि क्या दे गये हैं हमें थाती
क्रौञ्चिनी की वेदना से फट गई थी हाय छाती
जबकि पक्षी की व्यथा से आदिकवि का व्यथित अन्तर
प्रेरणा कैसे न दे कवि को मनुज कंकाल जर्जर ।

अन्य मानव और कवि में है बड़ा कोई ना अन्तर
मात्र मुखरित कर सके, मन की व्यथा, अनुभूति के स्वर
वेदना असहाय हृदयों में उमड़ती जो निरन्तर
कवि न यदि कह दे उसे तो व्यर्थ वाणी का मिला वर
इसलिए ही मूक हृदयों में घुमड़ती विवशता को-
मैं सुनाता जा रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

आज शोषक-शोषितों में हो गया जग का विभाजन
अस्थियों की नींव पर अकड़ा खड़ा प्रासाद का तन
धातु के कुछ ठीकरों पर मानवी-संज्ञा-विसर्जन
मोल कंकड़-पत्थरों के बिक रहा है मनुज-जीवन ।

एक ही बीती कहानी जो युगों से कह रहे हैं
वज्र की छाती बनाए, सह रहे हैं, रह रहे हैं
अस्थि-मज्जा से जगत के सुख-सदन गढ़ते रहे जो
तीक्ष्णतर असिधार पर हँसते हुए बढ़ते रहे जो
अश्रु से उन धूलि-धूसर शूल जर्जर क्षत पगों को-
मैं भिगोता जा रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

आज जो मैं इस तरह आवेश में हूँ अनमना हूँ
यह न समझो मैं किसी के रक्त का प्यासा बना हूँ
सत्य कहता हूँ पराए पैर का काँटा कसकता
भूल से चींटी कहीं दब जाय तो भी हाय करता

पर जिन्होंने स्वार्थवश जीवन विषाक्त बना दिया है
कोटि-कोटि बुभुक्षितों का कौर तलक छिना लिया है
'लाभ शुभ' लिख कर ज़माने का हृदय चूसा जिन्होंने
और कल बंगालवाली लाश पर थूका जिन्होंने ।

बिलखते शिशु की व्यथा पर दृष्टि तक जिनने न फेरी
यदि क्षमा कर दूँ उन्हें धिक्कार माँ की कोख मेरी
चाहता हूँ ध्वंस कर देना विषमता की कहानी
हो सुलभ सबको जगत में वस्त्र, भोजन, अन्न, पानी ।
नव भवन निर्माणहित मैं जर्जरित प्राचीनता का-
गढ़ ढ़हाता जा रहा हूँ ।

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

- शिवमंगल सिंह सुमन
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“नए बिहार के निर्माण” के नारे के साथ विधान सभा चुनावों में उतरेगी भाकपा

पटना, 9 जुलाई, 2010: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, कृषि और औद्योगिक पिछड़ापन, बाढ़-सुखाड़, महंगाई, खाद्य सुरक्षा, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, पानी और बिजली संकट आदि समस्याओं का समाधान तथा भूमिहीनों को कम से कम एक एकड़ जमीन, भूमिहीन बेघरों को कम से कम 10 डिसमिल आवासीय भूमि तथा मकान, जनवितरण प्रणाली के माध्यम से सभी परिवारों को निर्धारित उचित मूल्य पर आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति तथा सभी नागरिको को भर पेट भोजन की व्यवस्था करने के लिए एक नए बिहार के निर्माण के आह्वान के साथ विधान सभा चुनाव में उतरेगी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का बिहार राज्य परिषद की सम्पन्न दो दिवसीय बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में उपरोक्त बातें कहीं गयी हैं। बैठक में जारी प्रेस विज्ञप्ति में बैठक के फैसले की जानकारी देते हुए पार्टी की राज्य सचिवमंडल के सदस्य मो. जव्वार आलम ने कहा कि बिहार में अगामी विधानसभा चुनाव में वामदलों के साथ एकता बनाकर पार्टी चुनाव लड़ने का प्रयास करेगी। इस दिशा में वामदलों के साथ बातचीत शुरू हो चुकी है। बैठक में स्वीकृत राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि बिहार में आर्थिक विकास के बारे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उल्टा प्रचार कर रहे हैं। यहां कृषि, उद्योग, बिजली आदि जो किसी भी राज्य के आर्थिक विकास के मेरूदंड होते हैं अत्यन्त दयनीय स्थिति में हैं। ऊपर से यू.पी.ए. के केन्द्र सरकार की नवउदारवादी नीतियों एवं जनविरोधी कार्रवाईयों के कारण महंगाई, बेराजगारी, कुपोषण आदि समस्याओं से बिहार की जनता परेशान है। राजद-लोजपा भी इन समस्याओं के समाधान के प्रति न तो ईमानदार है और न ही सक्षम। ऐसी परिस्थिति में बिहार में एक बेहतर राजनीतिक विकल्प की आवश्यकता है। प्रस्ताव में कहा गया है कि राज्य में कोई भी बेहतर विकल्प वामपंथ के सहयोग के बिना नहीं बन सकता।
श्री आलम ने कहा कि बिहार की राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बनती जा रही है जिसमें किसी एक दल या दलों के किसी एक गठबंधन द्वारा सरकार बनाने की संभावना क्षीण दिखायी पड़ रही है। चुनाव बाद ही सरकार बनाने के वास्ते कोई नया राजनीतिक समीकरण उभर सकता है जिसमें वामपंथ की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसलिए प्रस्ताव में राज्य की जनता से यह आह्वान किया गया है कि आगामी चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित अन्य वामदलों की शक्ति को बढ़ावे।
श्री आलम ने बतलाया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी चुनावी तैयारी शुरू कर दी हैं। राज्य में पार्टी द्वारा लड़ी जानेवाली सीटों की पहचान की जा रही है। प्रत्येक सीट के लिए उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। युवाओं, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों एवं अन्य कमजोर वर्गों से अधिक से अधिक संख्या में पार्टी उम्मीदवार बनाने के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार किया जा रहा है। इसके साथ ही पार्टी के कुछ वरिष्ठ एवं दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने पर भी विचार किया जा रहा है। उम्मीदवार चयन का काम शीघ्र ही पूरा कर लिया जायेगा।
श्री आलम ने वहां की आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महंगाई, खाद्य सुरक्षा, बेरोजगारी, भूमिसुधार, कृषि-औद्योगिक पिछड़ापन, बाढ़-सुखाड़, बिजली, पानी संकट, प्रशासनिक भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी प्रयास करेगी कि आगामी चुनाव राज्य की जनता की जिन्दगी से जुड़े सवालों को लेकर लड़ा जाय, न कि जाति एवं साम्प्रदायिक गोलबंदी के आधार पर।
बैठक में पार्टी के महासचिव, ए.बी. बर्धन, उप महासचिव सुधाकर रेड्डी, राष्ट्रीय सचिव गुरूदास दासगुप्ता, सांसद एवं केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य गया सिंह भी उपस्थित थे। श्री ए.बी. बर्धन ने पार्टी ईकाइयों, नेताओं और कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वामपंथ के सामने खड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए पहले से कहीं ज्यादा एकताबद्ध और सक्रिय होने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि संसद या विधान सभाओं में वामपंथ की शक्ति को बढ़ाना आज एक राजनीतिक आवश्यकता बन गया है। क्योंकि कमजोर वामपंथ का लाभ उठाते हुए केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार स्वच्छन्द होकर जनविरोधी आर्थिक नीतियां चला रही है और जनहित की इसे कोई चिन्ता नहीं रह गयी है।
बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके हड़ताल पर रहे कालेज शिक्षकों एवं शिक्षाकेत्तर कर्मचारियों की मांगों का समर्थन करते हुए सरकार से अपील की गयी है कि हड़ताली नेताओं से शीघ्र बातचीत करके कोई सम्मानजनक समझौता किया जाय ताकि उनकी हड़ताल जल्द समाप्त हो सके और कालेजों में पठन-पाठन एवं शिक्षण का काम हो सके। हड़ताल के कारण छात्रों की पढ़ाई तो ठप है ही नामांकन का काम भी वंचित हो गया है।
बैठक के आरम्भ में कानू सान्याल, गिरजा प्रसाद कोईराला, भैरोसिंह शेखावत, आचार्य राममूर्ति, सुधा श्रीवास्ताव, दिग्विजय सिंह सहित पार्टी के अन्य दिवंगत नेताओं और कार्यकर्ताओं की मृत्यु पर भी शोक व्यक्त किया गया।
पार्टी की राज्य परिषद के बैठक की अध्यक्षता पार्टी के वरिष्ठ नेता शत्रुघन प्रसाद सिंह ने की।
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1960 की केन्द्रीय कर्मचारी हड़ताल

संगठन, संस्था, समाज और देश के इतिहास में कुछ जाज्वल्यमान कालखण्ड होते हैं, जिन पर उन्हें नाज होता है। उनकी गौरव गाथाएं होती हैं। समस्त केन्द्रीय कर्मचारी जब अपने संयुक्त संघर्षशील आंदोलन का सिंहावलोकन करते हैं तो देखते हैं, कि 1944 की हड़ताल से पहला वेतन आयोग जन्मा और 1957 के हड़ताल के नोटिस के कारण दूसरे वेतन आयोग का गठन हुआ। उसी आयोग की कर्मचारीविरोधी अनुशंसाओं और केन्द्र सरकार के अड़ियल रूख के कारण 12 जुलाई 1960 से 5 दिवसीय अनिश्चितकालीन हड़ताल प्रारंभ हुई, जिसका स्वर्ण जयंती वर्ष पूरे वर्ष देश में मनाया जा रहा है।
उस हड़ताल को केन्द्रीय गृहमंत्री पं. गोविन्दवल्लभ पंत ने सिविल विद्रोह कहा था। यह भी कहा था कि यदि यह सफल होती, तो आज हम यहां (संसद में) नहीं होते। तत्कालीन एटक के जनरल सेक्रेटरी और सांसद कामरेड एस.ए. डांगे ने उसे पांच दिवसीय शालीन हड़ताल (5 डेज ग्लोरियस स्ट्राइक) कहा था। यह भी तर्क दिया था कि जब मुनाफे बढ़े गये हैं, उत्पादन बढ़ गया है, हर तरह विकास हो रहा है, परन्तु कर्मचारी का वेतन घट गया है। अतः हड़ताल उचित, सामयिक और जायज है।
इस हड़ताल से चार दिन पहले अनिवार्य सेवा अध्यादेश लागू कर दिया गया था। रेलवे, डाक-तार, सिविल एविऐशन, सेक्यूरिटी प्रेस, टकसाल आदि को अनिवार्य सेवाएं घोषित कर दिया गया। हड़ताल को अवैध करार दिया गया। यह धमकी दी गयी, जो हड़ताल में शामिल होगा, उसे एक साल का सश्रम कारावास और 1000 रुपए जुर्माना किया जायेगा। कई अखबार और आकाशवाणी बौखला गये थे। राष्ट्रीय स्तर पर अशोक मेहता, एस.एम. जोशी, फिरोज गांधी, आर.के. खांडिलकर आदि ने मध्यस्थता करने के कई प्रयास किये। केन्द्र सरकार ने किसी की नहीं सुनी और कर्मचारी हड़ताल पर जाने को बाध्य हो गये। नेहरू जी ने भी आकाशवाणी से अपील की। एटक, एचएमएस, यूटीयूसी ने हड़ताल का समर्थन किया। जबकि इंटक ने घोर विरोध किया।
संयुक्त संघर्ष समिति (जेसीए) की मांग थी -
(1) महंगाई भत्ते का आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भुगतान हो।
(2) 15वें श्रम सम्मेलन के अनुसार न्यूनतम वेतन 125 रुपये हो, जबकि सरकार ने 80 रुपये माना था
(3) सभी विभागों में कर्मचारी हितों के लिये स्टैंडिंग बोर्ड बनाये जायें,
(4) प्राप्त सुविधाओं व अधिकारों मे कोई कटौती नहीं हो,
(5) एक उद्योग में एक यूनियन हो,
(6) रेल 4(अ) और 4 (ब) को निरस्त किया जाये (जो बाद में कोर्ट ने किया)
11 जुलाई, 1960 को रात्रि शून्यकाल से हड़ताल शुरू हुई, जो रात्रिकालीन ड्यूटी पर थे, वे बाहर आ गए। हड़ताल विरोधी सघन प्रचार और पुलिसिया आतंक के बावजूद देश भर में हड़ताल के अद्भुत नजारे दिखाई दिये। गुजरात के दाहोद में हड़तालियों पर गोलियां चली और पांच रेलवे कर्मचारी शहीद हुए। 22 लाख केन्द्रीय कर्मचारियों में से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5 लाख ने हड़ताल में शिरकत की। उनमें से 94,525 डाक तार कर्मचारी थे। 17,700 गिरफ्तारियों में से 6500 डाक तार वाले थे। 27,700 निलंबित में से 13000 पी एंड टी कर्मचारी थे। अधिकतर गिरफ्तार कर्मचारियों को तुरन्त बर्खास्त किया गया। जेल में आदेश दिए गए। हजारों को आरोप पत्र और स्थानांतरण जारी किये गये। उन्हीं प्रताड़नाओं की तीखी आंच से यह स्वर्णिम जयन्ती वर्ष जन्मा है।
अविभाजित मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ क्षेत्र में जमकर हड़ताल हुए। जेलें भरी गयी। इन्दौर, भोपाल, रीवा में हड़ताल हुई। जबलपुर में जे.पी. पाण्डे जी को डाकघर में गिरफ्तार किया। रीवां और भिलाई में 11.00 बजे सजायें सुनाकर जेल भेज दिया था। बिलासपुर करगी रोड के पोस्ट मास्टर व्ही.जी. खानखोजे को हथकड़ियां पहनाकर सड़क पर पैदल अदालत ले गए। बीएस सिंह, सत्तू शर्मा, खानखोजे, सुन्दरलाल शर्मा, एच.एस. परिहार, महावीर सिंह, मासोदरकर, आर.के. अग्रवाल निलम्बित किए गए। एक समाचार पत्र नेे एक कार्टून छापा था कि अशोक मेहता सम्राट अशोक की भांति कलिंग की रणभूमि में हताहतों को देखकर अत्यंत दुखी खड़े हैं।
22 जुलाई, 1960 को सभी संगठनों और फेडरेशन की मान्यताएं छीन ली गयीं। जबरदस्त दमन हुआ। एस.एम. जोश्ी सांसद संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष थे और एस. मधुसूदन महासिचव। ओ.पी. गुप्ता ने टेलीकॉम पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर चित्र छापा था, उसे शीर्षक दिया था एनएफपीटीआई लायलोन (अंजनयलू इल चेंस)। आंकड़े, जो भी कहें, मगर सारा सरकारी तंत्र ठप्प था। इसी के परिणामस्वरूप 1961 में महंगाई भत्ता और संयुक्त सलाहकार परिषद (जेसीएम) का गठन हुआ। नागपुर से डाक तार विभाग का मुख्यालय भोपाल आया। सबसे बड़ी उपलब्धि ये थी, कि 1960 का एक भी हड़ताली कर्मचारी सेवाओं से बाहर नहीं रहा। देर-सबेर सभी वापस आ गये।
- गोविन्द सिंह असिवाल
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