- सम्मलेन दोहराता है कि वर्तमान भूमंडलीय मंदी पूंजीवाद का अन्तर्निहित संकट है जो उसकी इतिहासिक सीमाओं तथा उसे आमूल उखार फेंकने की जरूरत को प्रदर्शित करता है। वह उत्पादन के सामाजिक स्वरुप और निजी पूंजीवादी संचय के बीच पूंजीवाद के मुख्य अंतर्विरोध के तीव्र होते जाने की स्थिति को भी प्रदर्शित करता है। संकट के केन्द्र में निहित पूंजी तथा श्रम के इस अनसुलझे अंतर्विरोध को छिपाने का प्रयास पूंजी के राजनीतिक प्रतिनिधि करते हैं। अन्तराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं - अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापर संगठन आदि के साथ इस संकट को सुलझाने के प्रयास कर रही साम्राज्यवादी शक्तिओं के मध्य प्रतिद्वंद्विता को यह संकट और तीव्र कर रहा है और संकट को सुलझाने के उनके प्रयास पूंजीवादी शोषण को और गहरा कर रहे हैं। साम्राज्यवाद विश्व पैमाने पर आक्रामक रूप से सैनिक एवं राजनितिक 'समाधान' लागू कर रहा है। नाटो एक नई आक्रामक रणनीति को आगे बढ़ा रहा है। राजनीतिक व्यवस्था अधिकाधिक प्रतिक्रियावादी होती जा रही है और लोकतांत्रिक एवं नागरिक स्वतंत्रताओं, ट्रेड यूनियन अधिकारों आदि में कटौती कर रही है। यह संकट पूंजीवाद के तहत ढांचागत भ्रष्टाचार को और अधिक बढ़ा रहा है जो संस्थागत रूप ले चुका है।
- सम्मलेन इस बात की पुनः अभिपुष्टी करता है की संभवतः 1929 की महामंदी के बाद सबसे अधिक गंभीर एवं सर्वव्यापक वर्त्तमान संकट ने किसी भी क्षेत्र को अछूता नही छोड़ा है। लाखो फक्ट्रियां बंद हो गई है, कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएँ गंभीर संकट में है जो विश्वव्यापी स्तर पर करोड़ों किसानो तथा खेत मजदूरों की मुसीबतों एवं गरीबी को बढ़ा रहा है। करोडो लोग बेरोजगार और बेघर हो गए हैं। बेरोजगारी अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गई है और अधिकारिक रूप से 5 करोड़ के अंक को पार कर गई है। पूरे विश्व में असमानता बढ़ रही है। अमीर और अधिक अमीर हो रहे है एवं गरीब और अधिक गरीब। मानवजाति का छठवां हिस्सा भूखा है। नौजवान, महिलाऐं एवं अप्रवासी इसके प्रथम शिकार है।
इस संकट पर काबू पाने के लिए सम्बंधित पूंजीवादी सरकारों के प्रयास अपने वर्ग चरित्र के अनुरूप इन बुनियादी सरोकारों का समाधान निकलने में विफल रहे है। पूंजीवाद के सभी नव-उदारवाद समर्थक तथा सामाजिक लोकतान्त्रिक प्रबंधक जो अभी तक राज्य की निंदा करते रहे हैं, अब अपने को बचाने के लिए राज्य का उपयोग कर रहे हैं और इस प्रकार वे एक बुनियादी तथ्य को रेखांकित कर रहे हैं की पूंजीवादी राज्यों ने हमेशा सुपर मुनाफे से सभी साधनों की रक्षा की और उनका विस्तार किया। जबकि बचाव एवं बेलाउट पैकेज की लागत जनता की कीमत पर हैं। वहीं कुछ भर लोगों को ही उसका लाभ मिला है। जो बेलाउट पॅकेज घोषित किए गए हैं, वे मुनाफा कमाने वाले संसाधनों को पहले बचने और फिर उनका विस्तार करने के लिए हैं। अब बैंक तथा वित्तीय कारपोरेट पुनः अपने कारोबार में लग गए हैं एवं मुनाफा बटोरने लगे हैं। बढ़ती बेरोजगारी एवं वास्तिक वेतन में भरी कटौती मेहनतकश जनता के ऊपर भरी बोझ बन गए हैं, इसके विपरीत कारपोरेटों को विशाल बेलाउट पैकेज उपहार स्वरुप दिए जा रहे हैं।
- सम्मलेन यह महसूस करता है की यह संकट कुछ व्यक्तियों की लोभ लिप्सा या कारगर नियामक कार्यविधि के आभाव पर आधारित विचलन नहीं है। अधिक से अधिक मुनाफा बढ़ाने की पूंजीवादी ललक ने भुमंदालिकरण के इन दशकों के भीतर आर्थिक असमानताओं को बढाया है। इसका स्वाभाविक परिणाम है विश्व की आबादी के विशाल बहुमत की क्रय शक्ति में भारी गिरावट। इस तरह बर्तमान संकट पूंजीवाद का एक संकट है। इसने एक बार फिर इस मार्क्सवादी विश्लेषण की पुष्टि कर दी है की पूंजीवादी व्यवस्था अपने जन्म से ही सर्वाधिक रूप से संकटग्रस्त है। पूंजी अपने मुनाफे की ललक में (देशो की) सीमायें लांघती है, हर चीज एवं की भी चीज को रौद देती है। इस प्रक्रिया में वह मजदूर वर्ग तथा मेहनतकश जनता के अन्य तबकों का शोषण बढ़ा देती है और जनता पर भरी कठिनाइयाँ थोप देती है। वास्तव में पूँजीवाद शाम की अतिरिक्त फौज चाहता है। पूंजीवादी बर्बरता से मुक्ति पूंजीवाद के विकल्प - समाजवाद की स्थापना के द्वारा ही हो सकती है। इसके लिए साम्राज्यवाद विरोधी, इजारेदारी विरोधी संघर्ष को सशक्त बनाने की जरूरत है। इस तरह एक विकल्प के लिए हमारा संघर्ष पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष है। एक विकल्प के लिए हमारा संघर्ष इक इसी व्यवस्था के लिए संघर्ष है जहाँ जनता द्वारा जनता का और अश्तर के द्वारा राष्ट्र का शोषण नहीं हो। यह एक अन्य विश्व, एक न्यायोचित विश्व, एक समाजवादी विश्व के लिए संघर्ष है।
- सम्मलेन इस तथ्य से परिचित है की मेहनतकश जनता पर अधीर बोझ डाल कर, पूंजीवादी विकास के माध्यम एवं छोटे स्तर के देशों - जिन्हें सामान्यतः विकासशील देश कहा जाता है, के बाजारों में घुसपैठ करके एवं अपना प्रभुत्व कायम करके प्रभावशाली साम्राज्यवादी शक्तियां इस संकट से बहार निकलने का प्रयास करेंगी। इस तरह वे सर्वप्रथम व्यापर वार्ता के डब्लू टी ओ दोहा चक्र के जरिये जो इन देशों के जन-गण की कीमत पर असमान आर्थिक समझौते को प्रतिबिंबित करते हैं, खासकर कृषि मानक एवं गैर कृषि बाज़ार सुविधा (नामा) के मामले में, इसे हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं।
दूसरा, पर्यावरण के विनाश के लिए जिम्मेदार पूंजीवाद जलवायु परिवर्तन, जिसका निर्माण पूंजीवाद ने ही किया, से भूमंडल की रक्षा करने का सारा बोझा मेहनतकश जनता एवं मजदूर वर्ग पर डालने का प्रयास कर रहा है। पूंजीवाद के जलवायु परिवर्तन के नाम पर पुनर्संरचना के प्रस्ताव का पर्यावरण की रक्षा से कुछ भी लेना-देना नहीं है। कार्पोरेट प्रेरित "हरित विकास" एवं " हरित अर्थव्यवस्था" का इस्तेमाल नए राज्य नियंत्रित एकाधिकारवादी नियम थोपने के लिए किया जा रहा है, जो अधिकतम मुनाफा हासिल करने एवं जनता पर नई कठिनाइयों को थोपने का समर्थन करता है। इस तरह पूंजीवाद के तहत अधिकतम मुनाफा पर्यावरण सुरक्षा तथा जनता के अधिकारों से प्रतिकूल एवं असंगत है।
- सम्मलेन यह नोट करता है की मजदूर वर्ग तथा आम जनता के लिए इस पूंजीवादी संकट से बहार निकलने का एकमात्र रास्ता पूंजी के शासन के खिलाफ संघर्ष को तेज करना ही है। मजदूर वर्ग का यह अनुभव है कि जब वह अपनी ताकत को एकजुट करता है एवं इन प्रयासों का प्रतिरोध करता है तो वह अपने अधिकारों की रक्षा करने में सफल हो सकता है। उद्योगों में धरना, फक्टारियों पर कब्ज़ा और ऐसी ही जुझारू मजदूर वर्ग की कार्यवाइयों ने शासक वर्गों को मजदूरों की मांगों पर विचार करने के लिए मजबूर किया है। लोकप्रिय जन लामबंदी एवं मजदूर वर्ग की कार्यवाहिओं के वर्तमान थियेटर - लैटिन अमरीका ने यह दिखा दिया है कि कैसे संघर्ष के जरिये अधिकारों की रक्षा की जा सकती है। और उसे जीता जा सकता है। संकट के इस समय में एक बार फिर मजदूर वर्ग असंतोष से सुलग रहा है। अनेक देशों ने सुधार की मांग करते हुए व्यापक मजदूर वर्ग कर्वहियाँ देखी है और वे देख रहे है। समस्यायों के केवल तात्कालिक उन्मूलन के लिए बल्कि दुर्दशा एवं मुसीबतों के दीर्घकालिक समाधान के लिए मजदूर वर्ग की इन कार्यवाहिओं को मुसीबतजदा जनता को व्यापक रूप से लामबंद करके और अहिक मज़बूत किया जाना है।
सोवियत संघ के पतन तथा इस संकट के पहले सहसा तेजी (बूम) से प्रफुल्लित होकर साम्राज्यवाद ने मजदूर वर्ग एवं जनता के अधिकारों पर अभूतपूर्व हमला किया। इसके साथ ही न केवल किसी एक देश में बल्कि विश्व के पैमाने पर एवं अन्तर-राज्य फोरमों (इ यूं, ओ एस सी इ, कौंसिल ऑफ़ यूरोप) पर उन्माद पूर्ण कम्युनिस्ट विरोधी प्रचार अभियान चलाया गया। बहरहाल, जितना भी अधिक वे प्रयास करें, आधुनिक सभ्यता के स्वरुप को परिभाषित करने में समाजवाद की उपलब्धिओं एवं योगदान को कदापि मिटाया नही जा सकता है। इन अनवरत हमलों की स्थिति में हमारा संघर्ष हमारे द्वारा पहले हासिल किए गए अधिकारों की रक्षा का संघर्ष रहा है। आज की स्थिति का तकाजा है की हम न केवल अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बल्कि नए अधिकार हासिल करने के लिए हमला शुरू करें। न केवल कुछ अधिकार हासिल करने के लिए बल्कि सम्पूर्ण पूजीवादी दुर्ग को ध्वस्त करने के लिए, राजनितिक विकल्प - समाजवाद के लिए।
- इन परिस्थितियों में कम्युनिस्ट और वर्कर्स पार्टियाँ पूर्ण स्थाई रोजगार, सबों के लिए पूर्णतः मुफ्त स्वस्थ्य, शिक्षा, समाज-कल्याण के लिए, लैंगिक असमानता तथा नस्लवाद के खिलाफ, युवा, महिलाओं, प्रवासी मजदूरों तथा जातीय एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यको समेत मेह्नात्कास आबादी के सभी तबको के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष में जनता के व्यापकतम तबको को एकजुट तथा लामबंद करने के लिए सम्मलेन सक्रिय कार्य का संकल्प लेता है।
- सम्मलेन कम्युनिस्ट एवं वर्कर पार्टियों से अपील करता है की वे अपने देशो में इस कर्तव्य को अपने हाथों में लें और पूंजीवादी त्यावस्था के खिलाफ और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए व्यापक संघर्ष शुरू करें। हालाँकि पूंजीवादी व्यवस्था अपने जन्म से ही संकटग्रस्त है लेकिन वह स्वतः समाप्त नहीं होगी। कम्युनिस्ट नेतृत्व में जवाबी हमले के आभाव में प्रतिक्रियावादी ताकतों के उभरने का खतरा हो सकता है। शासक वर्ग अपनी यथास्थिति को बचने के लिए कम्युनिस्ट एवं वर्कर्स पार्टियों के विकास को रोकने के लिए व्यापक हमला करते हैं। सोशल डेमोक्रसी पूंजीवाद के वास्तविक चरित्र के बारे में भ्रम फैलाना जरी रखता है और "पूंजीवाद के मानवीकरण", "नियमन", "भुमंदालिया शासन व्यवस्था" आदि जैसे नारे देता है। यह वास्तव में वर्ग संघर्ष को नकारते हुए और जन विरोधी नीतिओं को आगे बढ़ाते हुए पूंजी की रणनीति का समर्थक ही है। किसी भी तरह का सुधार पूंजीवाद के तहत शोषण को ख़तम नहीं कर सकता है। पूंजीवाद को उखाड़ फेंकना है। मजदूर वर्ग के नेतृत्व में विचारधारात्मक एवं राजनैतिक संघर्षों को तेज किया जाना समय का तकाजा है। "साम्राज्यवादी" भूमंडलीकरण का कोई विकल्प नही है" जैसे तमाम सिद्धांता प्रकाशित किए जा रहे हैं। उनका प्रतिकार करते हुए हमारा जवाब है "समाजवाद विकल्प है"।
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