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सोमवार, 12 अप्रैल 2010

प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. का राज्य सम्मेलन सम्पन्न

वाराणसी 23 फरवरी। नज़ीर बनारसी शताब्दी समारोह का आयोजन बनारस में 20, 21 फरवरी 2010 को किया गया। यह आयोजन महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मानविकी एवं प्रगतिशील लेखक संघ, वाराणसी इकाई के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। गांधी अध्ययन पीठ के सभागार में पहले दिन 20 फरवरी 2010 को ‘भारतीय समाज में सह अस्तित्व की चुनौतियां’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं शाम को मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। दूसरे दिन इसी जगह प्रगतिशील लेखक संघ का 9वां राज्य सम्मेलन भी हुआ।समारोह का उद्घाटन प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने किया। नामवर जी ने गंगो जमुनी तहजीब के मशहूर शायर नज़ीर बनारसी को शिद्दत से याद करते हुए उनके रचनाकर्म और आम आवाम से उनके गहरे रिश्ते पर रोशनी डाली। उन्होंने नज़ीर अकबराबादी से लेकर नज़ीर बनारसी तक की काव्य-यात्रा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि समाज में सह अस्तित्व के बिना साहित्य संभव नहीं है। कबीर इसी सह अस्तित्व की बात करते हैं। नजीर बनारसी का संस्मरण सुनाते हुए उनकी शायरी और नज्मों पर अपनी खास राय जाहिर करते हुए नामवर सिंह ने कहा कि नज़ीर की शायरी में बनारस समाया हुआ है और बनारस हिन्दुस्तानी तहजीब का एक बड़ा मुकाम है, इसलिए उन्हें बार-बार पढ़ने को जी करता है। उन्होंने कहा कि नज़ीर साहब हमारी तहजीब और विरासत के अलमबरदार थे। इस खास समय में उन्हें याद करना दरअसल हमारी जरूरत भी है।उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डा. कमला प्रसाद ने कहा कि नज़ीर बनारसी जैसे बड़े शायर प्रेरणा के श्रोत हैं। हम अपने इन साहित्यकारों के द्वारा ही जनता के उन सारे सवालों और मुश्किलों का हल ढूँढ सकते हैं जिनसे वह आये दिन जूझ रही है। उन्होंने कहा कि आम आदमी की जिन्दगी और उसका सामाजिक, सांस्कृतिक सरोकार जिस रास्ते से होकर गुजरता है- अगर वह सरोकार व संघर्ष किसी रचनाकार में मौजूद है तो उसे ही जनता अपना मानती है। इस संदर्भ में नज़ीर बनारसी आवामी शायर थे और आवाम के दिल में उनके लिए खास जगह हैं।इस अवसर पर ‘नज़ीर बनारसी की प्रतिनिधि शायरी’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया। यह पुस्तक पेपरबैक्स में राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गयी है जिसका सम्पादन श्री मूलचन्द सोनकर ने किया है। पुस्तक लोकार्पण के समय प्रो. नामवर सिंह व प्रो. कमला प्रसाद के साथ प्रलेस के राष्ट्रीय अतिरिक्त महासचिव प्रो. अली जावेद, नजीर बनारसी के ज्येष्ठ पुत्र श्री मो. जहीर और कथाकार काशीनाथ सिंह व श्री शकील सिद्दीकी मंच पर आसीन थे। इसी दौरान प्रलेस वाराणसी इकाई की ओर प्रकाशित नज़ीर बनारसी पर केन्द्रित स्मारिका का भी विमोचन हुआ। उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में स्वागत प्रो. चौथी राम यादव तथा धन्यवाद ज्ञापन काशी विद्यापीठ, मानविकी संकाय के प्रमुख प्रो. अजीज हैदर ने किया। इस सत्र का संचालन डा. संजय श्रीवास्तव ने किया।उद्घाटन सत्र के बाद ‘साझा संस्कृति की विरासत:कबीर से नज़ीर तक’ पहला सत्र शुरू हुआ, जिसकी अध्यक्षता प्रो. कमला प्रसाद, प्रो. अली अहमद फातमी और प्रो. अली जावेद ने की। इस सत्र में श्री शकील सिद्दीकी, प्रो. शाहीना रिजवी, प्रो. राजेन्द्र कुमार, श्री राकेश, श्री शशि भूषण स्वाधीन, श्री विजय निशांत, श्री राजेन्द्र राजन ने अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र का संचालन डा. श्रीप्रकाश शुक्ल तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री शिवकुमार पराग ने किया।दोपहर बाद दूसरे सत्र “बहुसंस्कृतिवाद का भारतीय परिप्रेक्ष्य” की अध्यक्षता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. दीपक मलिक ने की। इस सत्र में विदेश से आये हुए वक्ताओं की विशिष्ट उपस्थिति रही जिससे बहुसंस्कृतिवाद पर काफी गंभीर चर्चा हुई। राहुल सांकृत्यायन पर महत्वपूर्ण कार्य के लिए विख्यात स्वीडेन की प्रो. मारिया जुफेन, फिनलैण्ड से आये आलोचक प्रो. काउहेनन, जर्मनी से आये मार्क्सवादी साहित्यकार प्रवासी भारतीय उज्जवल भट्टाचार्य, वीरेन्द्र यादव, डा. रघुवंश मणि, आलोचक कुमार विनोद, सैयद रजा हुसैन रिजवी ने अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन डा. संजय कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. गोरखनाथ ने किया।दिन भर की इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के बाद शाम को नजीर बनारसी की याद में एक मुशायरा व कवि सम्मेलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता मशहूर अवामी शायर जनाब शफीक बनारसी ने की। इसमें प्रो. अजीज हैदर, प्रो. वशिष्ठ अनूप, डा. कुमार विनोद, डा. निजामुद्दीन, कौशिक रवीन्द्र उपाध्याय, समर गाजीपुरी, बशर बनारसी, वासिक नासिकी, हसन जाफरी, सईद निजामी, अजीज लोहतवी, मोमिन लोहतवी, निजाम बनारसी, रामजी नयन, शंकर बनारसी, सलीम राजा, डा. यू.सी.वर्मा, तौफीक लोहतवी, मूलचन्द सोनकर, जवाहर लाल कौल, रामदास अकेला, परमानन्द श्रीवास्तव, सलाम बनारसी, नरोत्तम शिल्पी, विपिन कुमार सहित तमाम कवियों, शायरों ने अपनी रचनायें सुनाई। संचालन अल कबीर ने और धन्यवाद ज्ञापन जय प्रकाश धूमकेतु ने किया।गांधी अध्ययन पीठ के सभागार में दूसरे दिन प्रगतिशील लेखक संघ, उत्तर प्रदेश का 9वां राज्य सम्मेलन वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में शुरू हुआ। विचार सत्र ‘जनपक्षधरता के दायरे में साहित्य की उपस्थिति’ विषय पर बतौर मुख्य वक्ता प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं आलोचक नामवर सिंह ने कहा कि साहित्य में सही मायने में लोकतंत्र होता है। उन्होंने कहा कि आज विचारधाराओं के अंत की बात कही जा रही है जबकि देखें तो साहित्य में वैचारिक प्रतिबद्धता रही है। सगुण है तो निर्गुण, उसमें भी सगुण है तो रामभक्ति, कृष्णभक्ति और कहीं नहीं है तो रीतिकाल में चले जाइये। उन्होंने अपने संदर्भ को उठाते हुए कहा कि लोहिया तो मार्क्सवाद विरोधी थे लेकिन उनके समाजवादी संगठन की गोष्ठियों में मैं जाता था क्योंकि लोहिया की पुस्तकों पर चर्चा किसी भी लेखक पर हो रही चर्चा होती थी और मुझे उस लेखक से मतलब था। उन्होंने कहा कि विचारधाराओं की तुलना में जीवन निरन्तर चलता रहता है। उन्होंने महान कवि गेटे का संदर्भ देते हुए कहा कि ”थियरी इज ग्रे एण्ड ट्री आफ लाइफ इज आलवेज ग्रीन“ यानी विचारधारा की तुलना में जीवन हमेशा हरा-भरा और जीवन्त होता है। इसलिए साहित्य में ऐसी ही चीजों को बाकायदे आना चाहिए।प्रो. नामवर सिंह ने प्रगतिशील आन्दोलन की सविस्तार चर्चा करते हुए साहित्य और जनपक्षधरता के मुद्दे को बाकायदा विश्लेषित किया। उन्होंने कहा कि लिखने का काम जितना जिम्मेदारी भरा होता है उतना ही सोचने का प्रसंग भी, इसलिए हमें परिकल्पना और लेखन को संतुलित करने के लिए जनता के बारे में ठीक से राय बनानी चाहिए।अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि आज के दौर में पाठकों के समक्ष कविता की भाषा को लेकर समझ का संकट उत्पन्न हो गया है। वहीं वैश्वीकरण से पनपी अपसंस्कृति व मानवीय संवेदना में ह्रास साहित्य को जनता से दूर कर रहा है। ऐसे में साहित्य को जनता के साथ जोड़कर चलना होगा। साथ ही रचनाओं में जन सामान्य की भाषा का प्रयोग करना होगा। इससे साहित्य का जनपक्ष उभर कर सामने आयेगा। उन्होंने कहा कि जन सामान्य की भाषा को रचना के साथ प्रयोग में लाना चाहिए और आकदमिक व्यवहार को लेकर तकनीकी कठिनाई से हमें बचना चाहिए।दिल्ली विश्वविद्यालय से आये डा. अली जावेद ने कहा कि हिन्दी उर्दू का मसला बराबर गम्भीर होता जा रहा है। हिन्दी में जो कुछ लिखा जा रहा है उसमें मुसलमान लेखक कितने हैं? इतना ही नहीं कथापात्रों में मुस्लिम चरित्र बराबर नहीं दिख रहे हैं, क्या यही हमारे समाज की तस्वीर है? इसलिए साहित्य की जनपक्षधरता पर विचार करते समय इस मसले पर भी हम गौर करें।जर्मनी से आये प्रसिद्ध मार्क्सवादी साहित्यकार उज्जवल भट्टाचार्य ने कहा कि हम जब रचना कर्म कर रहे होते हैं तब भी यह विचार कर लेना चाहिए कि हमारा पाठक उस पर क्या रूख अपना सकता है, इसलिए आत्ममुग्धता से बचिए और बड़ा बनने के लिए लिखने का सपना देखना छोड़ दीजिए। उन्होंने कहा कि बड़ी और महत्वपूर्ण रचनायें यूं ही हो जाती हैं किन्तु अवचेतन में हमारे जनता होगी तभी हमारा रचा हुआ कर्म जनता के लिए होगा।इस सत्र के प्रारम्भ में गोरखपुर से आये वरिष्ठ आलोचक जगदीश नारायण श्रीवास्तव ने विषय केन्द्रित आलेख का वाचन किया। इसके बाद राजेन्द्र राजन (बेगूसराय), सैयद रजा हुसैन रिजवी (जमशेदपुर), शशि भूषण स्वाधीन (हैदराबाद), पुन्नी सिंह (ग्वालियर), राकेश (वर्धा), शकील सिद्दीकी, वीरेन्द्र यादव, शहजाद रिजवी, भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश, डा. एम.पी.सिंह (जलेस वाराणसी), डा. मूल चन्द गौतम, डा. नईम, डा. रघुवंश मणि, नरेन्द्र पुण्डरीक, शिशुपाल, सरोज पाण्डेय, लालसा लाल तरंग ने अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र का संचालन डा. आशीष त्रिपाठी एवं आभार ज्ञापन जय प्रकाश धूमकेतु ने किया।इस दौरान राज्य के विभिन्न हिस्सों से आये महत्वपूर्ण साहित्यकारों पंकज गौतम, राम चन्द्र सरस, डा. संतोष भदौरिया, रमाकान्त तिवारी, आनन्द स्वरूप श्रीवास्तव, राजेन्द्र यादव, सुरेन्द्र नायक, उत्तम चन्द, डा. संजय राय, डा. उपेन्द्र श्रीवास्तव, उद्भव मिश्र, डा. चन्द्रभान सिंह यादव, डा. आनन्द तिवारी, डा. सुनील विक्रम सिंह, डा. के.एल.सोनकर, आर.पी.सोनकर, डा. धीरेन्द्र पटेल, बाल कृष्ण राही, गजाधर शर्मा ‘गंगेश’ आदि ने सम्मेलन में सक्रिय हिस्सेदारी की।राज्य सम्मेलन में दोपहर बाद प्रलेस के प्रान्तीय अध्यक्ष कथाकार काशी नाथ सिंह, प्रो. अली जावेद तथा राकेश की अध्यक्षता में सांगठनिक सत्र आरम्भ हुआ। सत्र में प्रलेस के प्रांतीय महासचिव डा. जय प्रकाश धूमकेतु ने अपने कार्यकाल की विस्तृत लिखित रिपोर्ट पेश की। सम्मेलन में अगले सत्र के लिए डा. जय प्रकाश धुमकेतु को कार्यकारी अध्यक्ष एवं डा. संजय श्रीवास्तव को महासचिव निर्वाचित किया गया। इसके अतिरिक्त निम्न कार्यकारिणी चुनी गयी।संरक्षक मंडल: अमर कान्त, डा. परमानन्द श्रीवास्तव, डा. अकील रिजवी, डा. शारिब रूदौलवी, कामता नाथ, डा. काशी नाथ सिंह, नरेश सक्सेना, प्रो. चौथी राम यादव, डा. पी.एन.सिंह, आबिद सुहैल।अध्यक्ष मंडल: वीरेन्द्र यादव, प्रो. अली अहमद फातमी, अजीत पुष्कल, डा. मूल चन्द गौतम, डा. जय प्रकाश धूमकेतु।उपाध्यक्ष मंडल: प्रो. शाहिना रिजवी, मूल चन्द सोनकर, जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’, डा. गया सिंह, डा. उपेन्द्र श्रीवास्तव।सचिव मंडल: शकील सिद्दीकी, डा. रघुवंश मणि, नरेन्द्र पुण्डरीक, शिव कुमार पराग, डा. श्री प्रकाश शुक्ल, डा. तसद्दुक हुसैन, डा. संजय श्रीवास्तव।कार्यकारिणी सदस्य: डा. जितेन्द्र रघुवंशी, राकेश, डा. अनिता गोपेश, डा. मदीउर्रहमान, डा. संजय कुमार, प्रो. राज कुमार, डा. आशीष त्रिपाठी, सिया राम यादव, जगदीश नारायण श्रीवास्तव, स्वप्निल, डा. दया दीक्षित, राजेन्द्र यादव, लालसा लाल तरंग, डा. राम अवध यादव, डा. रमेश कुमार मौर्य, आनन्द स्वरूप श्रीवास्तव, डा. सरोज पाण्डेय, शिशुपाल, डा. राम प्रकाश कुशवाहा, गजाधर शर्मा ‘गंगेश’, शहजाद रिजवी, डा. नईम, उत्तम चन्द, डा. संजय राय, आर.डी.आनन्द, डा. राजेश मल्ल, डा. आर.पी.सोनकर, डा. चन्द्र भान सिंह यादव।आयोजन में मु. खालिद द्वारा नजीर अकबराबादी, नजीर बनारसी, वामिक जौनपुरी, प्रेम चन्द, महमूद दरवेस, फैज अहमद फैज, फिराक गोरखपुरी, धूमिल, अकबर इलाहाबादी, नाजिम हिकमत, नजरूल इस्लाम, केदार नाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह एवं मुक्तिबोध पर बनाये गये कविता पोस्टर विशेष रूप से आकर्षण का केन्द्र रहे। आयोजन स्थल पर राज कमल पकाशन की ओर से पुस्तक विक्रय पटल भी लगाया गया था।(प्रस्तुति: डा. संजय श्रीवास्तव)

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