फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
at 6:55 pm | 0 comments | सत्य नारायण ठाकुर
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों से मांगी - स्थिति रपट निर्माण मजदूर नियमन कानून का अनुपालन संतोषप्रद नहीं
18 जनवरी 2010 को सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों के मुख्य सचिवों के नाम सन्निर्माण कामगार (रोजगार नियमन एवं सेवा शर्त) कानून 1996 के कार्यान्वयन की अद्यतन स्थिति रपट (ेजंजने तमचवतज) मांगी है। यह स्थिति रपट 12 सप्ताहों के अंदर अर्थात 17 अप्रैल 2010 तक राज्य सरकारों को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल करनी है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में केन्द्र सरकार को भी सलाह दी है कि वह इस कानून के प्रावधानोें के कार्यान्वयन की समस्याओं पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की संभावना पर विचार करे। यह सर्वविदित है कि राज्य सरकारों द्वारा इस कानून के अन्तर्गत भारी रकम कल्याण सेस के रूप में नियोजकों से वसूल की जाती है, किन्तु संबंधित लाभार्थी कामगारों को अत्यल्प रकम ही मुहैया करायी जाती है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे तुरन्त निम्नांकित ग्यारह उपायों पर कदम उठाकर अब और अधिक बिना किसी देर किये कानून का कार्यान्वयन सुनिश्चित करें। ट्रेड यूनियनों और संबंधित पक्षों के हित में उन सभी ग्यारह उपायों को, जो राज्य सरकारों को करने हैं, ज्यों का त्यों नीचे हम यहां उद्घृत कर रहे हैं।1 - तीन महीने के अन्दर प्रत्येक राज्य में कल्याण बोर्ड का गठन पूरावक्ती स्टाफ के साथ करना है।2 - कल्याण बोर्ड की बैठके कम से कम दो महीने में एक बार करनी हैं और बोर्ड के नियमानुसार तमाम उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना है।3 - निर्माण मजदूरों के निबंधन और कानून में उपलब्ध लाभों के बारे में लोगों को बताया जाना चाहिए। रेडियों, दूरदर्शन और मीडिया के सहारे कामगारों को बताना चाहिए कि कानून में क्या लाभ उपलब्ध हैं।4 - प्रत्येक राज्य सरकार निबंधन पदाधिकारी बहाल करे और प्रत्येक जिला पर कामगारों के निबंधक आवेदन पत्र प्राप्त करने के लिए कार्यालय खोलना चाहिए और आवेदन पत्रों की प्राप्ति के प्रमाणक निर्गत करना चाहिए।5 - निबंधित टेªड यूनियनों कानून, सेवा प्राधिकार और गैर सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे कामगारों को निबंधन आवेदन पत्र दाखिल करने और उन्हें लाभ दिलाने की प्रक्रिया में सहायता करें।6 - सभी सरकारी ठेकों के कामगारों का निबंधन अनिवार्य बनाया जाना चाहिए और कामगारों को लाभ दिलाना चाहिए।7 - कल्याण सेस कानून के मुताबिक कल्याण सेस का संग्रह नियमित रूप से अनवरत करना चाहिए।8 - निबंधित कामगारों को निबंधन की तारीख से 6 महीने के अन्दर लाभ प्रदान करने का सिलसिला शुरू करना चाहिए और इसके लिए नियमावली में समुचित प्रावधान शामिल करना चाहिए।9 - कानून के कार्यान्वयन का जिम्मेदार कल्याण बोर्ड के मेम्बर सेक्रेटरी और श्रम सचिव को बनाया जाना चाहिए। प्रत्येक राज्य के श्रम सचिव का दायित्व निर्धारित करना चाहिए कि वह राज्य में विशेष अभियान चला कर कानून का कार्यान्वयन करे।10 - महालेखापरीक्षक एवं नियंत्रक (सीएजी) को कानून के कार्यान्वयन की सम्पूर्ण प्रक्रिया और कोष के इस्तेमाल का परीक्षण करना चाहिए।11 - कानूनी प्राविधानों के अन्तर्गत प्रत्येक बोर्ड को राज्य सरकार के समक्ष सम्यक कार्य प्रतिवेदन सुपुर्द करना चाहिए।बोर्ड का त्रिपक्षीय होना जरूरीगुजरात सरकार ने एक सदस्यीय बोर्ड बनाया है और यहां कल्याण सेस का पैसा कल्याण कोष के अलग खाता में जमा नहीं करके सामान्य सरकारी ट्रेजरी में जमा किया जाता है। उत्तर प्रदेश भी इसे नक्शे कदम पर चलता नजर आता है। यह बिलकुल गैर कानूनी है। नियमित कोष संग्रह, नियोजक और कामगारों का निबंधन तथा लाभों को मुहैया कराने के लिए अनेक राज्यों में पूरावक्ती स्टाफ नहीं नियत किये गये हैं। दिल्ली बोर्ड का अलग दफ्तर नहीं है। इसका पूरावक्ती स्टाफ नहीं है। इसमें ट्रेड यूनियनों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। इसलिए भवन निर्माण कामगार कानून की धारा 18 के अंतर्गत प्रत्येक राज्य में त्रिपक्षीय बोर्ड का गठन सुनिश्चित करना चाहिए, जिसमें नियोजक, कामगार और सरकारी प्रतिनिधि अवश्य शामिल किये जायें। इस काम को कराने में सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश बहुत उपयोगी है क्योंकि इस आदेश में स्पष्ट निर्देश हैं कि राज्य बोर्ड का गठन त्रिपक्षीय होना चाहिए और बोर्ड का अलग स्टाफ और दफ्तर होना चाहिए ताकि वह अपने दायित्वों का पूरा निर्वाह्न कर सके।बोर्ड की बैठकें नियमित नहीं की जाती हैं। कभी-कभी ही बैठक होती है और दायित्वों का कार्य संपादन नहीं किया जाता। कम से कम दो महीने में एक मर्तबा बैठक अनिवार्य होनी चाहिए। बोर्ड के कार्यों, कामगारों के निबंधन, इसके लाभों के बारे में व्यापक प्रचार के उपाय करने चाहिए। निर्माण मजदूर कानूनी लाभों की उपयोगिता के ज्ञान से वंचित हैं। कामगारों को जानकारी देने के लिए सभी प्रकार के प्रचार-प्रसार के उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए कुछ खर्च का प्रावधान भी होना चाहिए।ऐसा देखा गया है कि कहीं-कहीं बोर्ड का गठन तो हुआ है, किन्तु कामगारों के निबंधन पदाधिकारी एवं अन्य स्टाफ बहाल नहीं किये गये हैं। परिणामस्वरूप नियोजकों और कामगारों का निबंधन नहीं होता है। ट्रेड यूनियनों के लिए उचित है कि वह अधिकाधिक कामगारों का निबंधन करायें। ऐसा करने में इसका भी ख्याल रखना चाहिए कि गैर निर्माण-कामगार का निबंधन नहीं हो। ऐसा होने में बोर्ड के कोष पर बुरा असर पड़ेगा। बोर्ड घाटे में जायेगा और वाजिब कामगारों को लाभ कम मिलेंगे या नहीं मिलेंगे। हमें जिम्मेदारी के साथ ऐसा काम करना चाहिए कि कल्याण बोर्ड आदर्श के रूप में काम करें जो अन्यों के लिए उदाहरण बनें।यूनियन प्रमाणीकरणनिर्माण मजदूरों के निबंधन प्रक्रिया में ट्रेड यूनियनों का प्रमाणीकरण स्वीकार किया जाना चाहिए। केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश एवं पांडीचेरी के अनुभव बताते हैं कि यहां किस प्रकार ट्रेड यूनियनों द्वारा निर्माण मजदूरों का निबंधन सफलतापूर्वक किया जा सका। इस बात पर बल दिया जाना चाहिए कि राज्यों की नियमावली में ट्रेड यूनियनों का प्रमाणीकरण निर्माण मजदूरों की निबंधन प्रक्रिया में स्वीकार किया जाये। सर्वोच्च न्यायालय का ताजा आदेश ट्रेड यूनियन का यह अधिकार मंजूर करता है। राज्यों की नियमावली में ऐसे प्राविधानों को शामिल करने की मांग करनी चाहिए।हमारे यूनियनों के लिए यह कर्तव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के उपर्युक्त आदेश के आलोक मंे निर्माण मजदूरों के हक में राज्य सरकारों द्वारा कानून के क्रियान्वयन के लिए समुचित कदम उठाने के लिए वे आंदोलनात्मक दवाब बनायें। कम से कम सरकारी ठेकों में कार्यरत मजदूरों के निबंधन को तुरन्त अनिवार्य बनाया जा सकता है। राज्यों की नियमावली में ऐसा प्राविधान किया जाना चाहिए कि गैर निबंधित कामगारों से काम कराये जाने की स्थिति में नियोजकों पर भारी जुर्माना किया जाये। विशेष अभियान चलाकर कामगारों का निबंधन करके कार्यस्थल पर ही परिचय पत्र का वितरण किया जा सकता है।समय सीमा का निर्धारणबोर्ड बनने के बाद भी कामगारों के निबंधन नहीं किये जाने और सुविधायें नहीं प्रदान किये जाने के तथ्यों के आलोक में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि बोर्ड बनने के बाद एक निश्चित समय-सीमा के अंदर कामगारों का निबंधन पूरा किया जाना चाहिए तथा कामगारों के आवेदन पत्रों का निष्पादन एक निर्धारित सीमा के अंदर सम्पन्न करना चाहिए। ऐसी समय सीमा के निर्धारण का प्रावधान राज्यों की नियमावली में किया जाना चाहिए।कई राज्यों में कल्याण कोष का संग्रह कम हुआ है। यूनियनों द्वारा इसके बारे में दबाव बनाना चाहिए कि नियोजकों का निबंधन समय सीमा के अंदर किया जाये और सेस का आकलन तथा वसूली प्रक्रिया कारगर तरीके से तुरन्त प्रारम्भ की जाये। सेस का आकलन योजना के अनुमानक (इस्टीमेट) के आधार पर परियोजना की स्वीकृति के समय ही किया जा सकता है।कार्यालय और पूरावक्ती स्टाफराज्य कल्याण बोर्ड का मेम्बर सेक्रेटरी पूरावक्ती पदाधिकारी होना चाहिए और उसका अलग कार्यालय होना चाहिए जिसमें पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नियुक्त किये जाने चाहिए। दिल्ली जैसे अनेक राज्यों में बोर्ड बनने के सात वर्षों बाद भी निबंधन का काम पूरा नहीं किया गया और लाभार्थियों को लाभ नहीं पहुंचाया जा सका। इसका कारण यह बताया जाता है कि बोर्ड के काम के लिए कार्यालय और कर्मचारियों की सुविधा नहीं है। ऐसे राज्यों के लिए सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश निदेशात्मक है। यूनियनों को इसके लिए दबाव बनाना चाहिए।सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि बोर्ड का लेखा अंकेक्षण लेखा महापरीक्षक और नियंत्रक (सीएजी) द्वारा होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि सीएजी लेखा परीक्षण के साथ-साथ बोर्ड के अन्य क्रियाकलापों का भी निरीक्षण करेगा। इसलिए हमारे यूनियनों को तथ्यों को उजागर करने में सक्रिय रहना चाहिए।अंतर्राज्यीय गमनागमननिर्माण उद्योग और उसी प्रकार निर्माण श्रमिक भी अनिवार्य रूप से स्थानांतरणीय हैं। भवन निर्माण और परियोजना कार्य पूरा होने पर बिल्डर्स/कंपनियां/नियोजक अन्य स्थानों में काम करने जाते हैं और उनके साथ श्रमिक भी स्थानांतरित होते हैं। ऐसे स्थानांतरण राज्य के अन्दर भी होता है और राज्य सीमा के बाहर भी। एक राज्य में काम समेट कर अन्य राज्यों में काम के लिए बाहर भी लोग जाते हैं। इसलिये जरूरी है कि एक राज्य में कामगारों का निबंधन और परिचय पत्र अन्य राज्यों में भी स्वीकार्य हो। कामगारों के अन्तर्राज्यीय गमनागमन को सुगम करने के लिये राज्य बोर्ड द्वारा जारी किया गया परिचय पत्र को अन्तर्राज्यीय मान्यता और अन्य राज्यों में इसकी स्वीकार्यता बनाना जरूरी है। ऐसा करना जरूरी है क्योंकि निर्माण उद्योग स्वयं अपने स्वभाव से स्थानांतरणीय है। अनेक बहुराज्यीय निर्माता कंपनियां हैं, जो अनेक राज्यों में एक साथ काम करती हैं, ठीक उसी तरह जैसा औद्योगिक व्यापार कारोबार में बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक साथ अनेक राष्ट्रों में कार्यरत हैं।उदाहरण के लिये मान लीजिये कि बिहार बोर्ड में निबंधित एक श्रमिक मुंबई जाकर कुछ वर्ष काम करता है और उसके बच्चे बिहार के स्कूल में पढ़ते हैं तो उन बच्चों को शिक्षा सहायता का भुगतान बिहार बोर्ड द्वारा किया जाना चाहिये। वह कामगार रिटायर होकर फिर वापस बिहार आता है तो उसका मासिक पेंशन बिहार बोर्ड द्वारा किया जाना चाहिये। उसके पेंशन एवं सहायता राशि के खर्च का समायोजन महाराष्ट्र बोर्ड के साथ किया जा सकता है। ऐसा किया जाना सर्वथा उचित है, क्योंकि महाराष्ट्र बोर्ड ने उस परियोजना/निर्माता से कल्याण सेस की धनराशि वसूल की है, जिसके नियोजन में उस बिहारवासी कामगार ने काम किया। इस तरह का अंतर्राज्यीय प्रबंध का प्रावधान नियमावलियों में किया जाना चाहिये।निर्माण उद्योग और निर्माण श्रमिकों के इसी अन्तर्राज्यीय कार्य परिचालन के मद्देनजर एटक की सदा से मांग रही है कि ऐसे कामगारों को शीर्षस्थ राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा परिचयपत्र जारी किया जाये, जो कामगार भविष्यनिधि योजना में दाखिले और सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं की भुगतान प्रक्रिया को सुगम करें।हर दरवाजे तक पहुंचेंकृषि के बाद निर्माण उद्योग देश का सबसे बड़ा उद्योग है। यह सबसे बड़ा रोजगार दिलाने वाला श्रम प्रधान कारोबार है। अन्य उद्योगों के मुकाबले इसमें अधिकतम निवेश भी है। फिर भी इसमें कार्यरत मजदूरों की वर्गचेतना का स्तर न्यून है। इसका कारण श्रमिकों की कृषि जनित ग्रामीण पृष्ठभूमि है। विसम स्तरीय निर्माण मजदूर यद्यपि अनुभव से कार्यों में कुशल होते हैं, किंतु नियमित शिक्षा प्रमाणपत्र के अभाव में वे अकुशल या अर्द्धकुशल माने जाते हैं। वे गांवों में रहते हैं, शहरों की झुग्गी-झोपड़ियों में वास करते हैं और सड़क किनारे खुले आकाश में सर्दी-गर्मी की असहय पीड़ा सहते हैं। वे यूनियन कार्यालय में नहीं आते क्योंकि वे इसके लिये समय नहीं निकाल पाते। इसलिए ट्रेड यूनियनों को गांवों की झुग्गी-झोपड़ियों में निर्माण श्रमिकों के शरणस्थलियों में पहुंचने की योजना बनानी चाहिये। हमें नारा देना चाहिये - ”श्रमिक शरणस्थलियों में यूनियन, झुग्गी-झोपड़ियों में यूनियन, कार्यस्थलों पर यूनियन“। यूनियन बनाने के लिए हर दरवाजे पहुंचे।नयी कार्यशैलीनिर्माण मजदूरों को संगठित करने की नयी शैली विकसित की जानी चाहिये। निर्माण उद्योग में सब जगह ट्रेड यूनियन बनाने का पारंपरिक तरीका कारगर नहीं होता है। इसका सीधा कारण है कि निर्माण उद्योग का कार्य एक स्थान विशेष पर केन्द्रित नहीं है।निर्माण मजदूरों को संगठित करने की शैली अलग-अलग राज्यों की भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न हो सकती है। कोई एक बना बनाया फार्मूला सब जगह काम नहीं करता है। हमें कार्यस्थल पर मौजूदा परिस्थितियों के अनुकूल व्यावहारिक अनुभव से काम लेना होगा। जब हम कार्यक्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो वहां मौजूदा हालात हमारा मार्गदर्शन करेंगे।यहां हम बताना आवश्यक समझते हैं कि अनेक स्थानों में हमारे कामरेडों ने श्रमिकों के रहने के वासस्थानों से ट्रेड यूनियन प्रारंभ सफलतापूर्वक किया। मजदूरों के कार्यस्थल आमतौर पर बदलते रहते हैं। उनके नियोजक भी बदलते हैं। मजदूर अनेक स्थलों पर कार्य करते हैं, लेकिन उनके रहने का स्थान बहुधा एक ही होता है।मजदूर केवल कार्यस्थल पर ही परेशानी का सामना नहीं करते, बल्कि वे रहने के स्थान पर झुग्गी-झोपड़ियों में कहीं ज्यादा मुसीबत झेलते हैं। आमतौर पर मजदूर सड़कों के किनारे रहते हैं। उन्हें पुलिस, म्युनिसिपल अधिकारी, मुकामी गुंडों और अपराधियों के उत्पात झेलने पड़ते हैं। यद्यपि निर्माण मजदूरों के रहने के क्वार्टर के लिये ठेकेदार/नियोजक कानूनी तौर पर जिम्मेदार होता है, किंतु ऐसी व्यवस्था हर जगह नहीं होती।मजदूरों के राशन कार्ड नहीं होते हैं। उनके बच्चों के लिए स्कूल नहीं होते। पीने का पानी, सफाई, शौचालय, चिकित्सा और सामान्य नागरिक सुविधाओं का अभाव होता है। वे अपने मूल निवास से दूर परदेश में रहते हैं। उनकी अपनी सांस्कृतिक परम्पराएं होती है। स्थानीय लोगों के साथ सांस्कृतिक सम्मिश्रण की उनकी समस्याएं होती हैं। क्या हम इन समस्याओं के प्रति आंखे मूंद सकते हैं? नहीं, हम ऐसा नहीं कर सकते। निर्माण मजदूरों को संगठित करने के सिलसिले में हमें निश्चय ही इन मुद्दों को हाथ में लेना होगा।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The question of food security is being hotly discussed among wide circles of people. A series of national and international conferences, sem...
-
HUNDRED YEARS OF INTERNATIONAL WOMEN'S DAY (8TH MARCH) A.B. Bardhan Eighth March, 2010 marks the centenary of the International Women...
-
Something akin to that has indeed occurred in the last few days. Sensex figure has plunged precipitately shedding more than a couple of ...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
अयोध्या- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है , समाधान अभी बाकी है सर्वोच्च न्यायालय की विशिष्ट पीठ द्वारा राम जन्मभूमि- बाबरी मस्...
-
( 5 फरबरी 2019 को जिला मुख्यालयों पर होने वाले आंदोलन के पर्चे का प्रारूप ) झूठी नाकारा और झांसेबाज़ सरकार को जगाने को 5 फरबरी 2019 को...
-
(कामरेड अर्धेन्दु भूषण बर्धन) हाल के दिनों में भारत में माओवादी काफी चर्चा में रहें हैं। लालगढ़ और झारखंड की सीमा से लगे पश्चिमी बंगाल के मिद...
-
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मण्डल ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा बल SSF के गठन को जनतंत्र ...
-
लखनऊ- 13 अगस्त- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कमेटी ने गोरखपुर की ह्रदय विदारक घटना जिसमें कि अब तक 60 से अधिक बच्चों...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें