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गुरुवार, 20 मई 2010

”सम्मान“ के नाम पर हत्या करने वालों को सजा

हरियाणा की एक जिला सेशन अदालत ने कथित ‘सामाजिक सम्मान’ के नाम पर (आनर किलिंग) हत्या करने वाले 6 लोगों को कठोर सजा सुनायी है। 6 में से 5 को फांसी की सजा और एक को उम्र कैद की सजा सुनायी गयी है। हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में जाति पंचायत एवं ग्राम पंचायतों शादी और ऐसे ही मुद्दों पर फैसला सुनाने का अधिकार ले रखा है तथा फैसला नहीं मनाने वालों को जान तक से मारने की सजा सुनाती है।दर्दनाक घटनाऐसा ही एक मामला मनोज और बावली की शादी का था। “खाप पंचायत” ने जाति के बाहर शादी करने के लिए उनकी शादी को अवैध ठहराया था। पंचायत के फैसले के बाद दोनों ने सुरक्षा की गुहार करते हुए अदालत में अर्जी दी। अदालत में अर्जी देकर दोनों करनाल अपने घर लौट रहे थे तो जून 2007 में गांव वालों ने दोनों को बस से जबरन घसीट कर उतार लिया और हत्या कर दी। दोनों के शव नहर में पाये गये, दोनों के हाथ पैर बांध दिये गये थे। सेशन जज ने लड़की के भाई सुरेश, चचेरा भाई गौरव एवं सतीश तथा चाचा बासुराम और राजेन्द्र को फांसी की सजा सुनायी जबकि खाप पंचायत प्रधान गंगाराम को उम्र कैद की सजा सुनायी। बस के चालक पर अपहरण का आरोप लगाते हुए उसे सात साल की सजा सुनायी गयी। लड़के की मां ने अदालत की लड़ाई लड़ी। वह अदालत के फैसले से खुश नहीं है क्योंकि खाप पंचायत के अनेक दोषियों को छोड़ दिया गया। उन्हें षडयंत्र रचने के लिए सजा दी जानी थी।‘तहलका’ पत्रिका के अनुसार गांव की ये समानांतर अदालतें जाति के बहार शादी करने वालों को या तो निर्वासित जीवन बिताने के लिए बाध्य करते हैं या जान से मार डालते हैं। महीने में ऐसी करीब 12 हत्याएं होती हैं। इन जाति पंचायतों पर भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने का आरोप है जिसके कारण हरियाणा में लिंग अनुपात काफी कम हो गया हैंकठोर रूढ़िवादिताइस तरह कट्टरपंथी जाति को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेामल करते हैं। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान या उससे पहले भी जब न्यायिक प्रणाली का ढंाचा खड़ा नहीं हुआ था, इस प्रकार की जाति पंचायत की शुरूआत हुई होगी। तब न्यायपालिका संपत्ति के विवादों और आपराधिक मामले पर विचार किया करती थी। संभवतः मुगल एवं ब्रिटिश शासकों ने जातिगत मामलों में हस्तक्षेप करना मुनासिब नहीं समझा होगा। इस प्रकार जाति पंचायत परंपरागत रूप में शक्तिशाली हो गयी होगी। जाति पंचायत अंतर्रजाति शादी पर रोक लगाती है। यह एक ही गोत्र में शादी पर भी प्रतिबंध लगाती है। यदि कोई एक ही गोत्र में या अंतर्रजाति विवाह करता है तो जाति पंचायत की बैठक होती है जो शादी को तोड़ने का फैसला सुनाती है। यदि दंपत्ति और उसके परिवार वाले फैसला मानने से इंकार करते हैं तो उन्हें जाति से बाहर कर दिया जाता है और इसकी आधिकारिक घोषणा की जाती है। इसके बाद उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाता है तथा उस परिवार के साथ कोई सामाजिक रिश्ता नहीं होता है। धोबी, नाई, दुकानदार कोई उनसे नाता नहीं रखता। शादी या किसी सामजिक समारोह का निमंत्रण उन्हें नहीं दिया जाता। हाल के वर्षों में इस मख्ययुगीन सामंती अदालत ने जाति पंचायत की मर्जी के खिलाफ शादी करने वालों पर हमला करना तथा उनकी हत्या करना जैसा घृणित काम करना शुरू कर दिया है। जाति पंचायत एक ही साथ अभियोजन, जज तथा फैलसे के लागू करने की भूमिका निभाती है।
- डा. बी.वी. विजयलक्ष्मी

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