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शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

मुलायम की पीड़ा



4 फरवरी को मुलायम सिंह ने लखनऊ में अपनी पीड़ा पत्रकारों को बताते हुए जो कुछ कहा वह अगले दिन के समाचार-पत्रांे में छपा। नवभारत टाईम्स ने उन्हें उद्घृत करते हुए जो छापा है, उसे हम यथावत नीचे दे रहे हैं:

”एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री मायावती को चेतावनी दी कि उनकी सरकार निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और लोकसभा में एसपी के मुख्य सचेतक शैलेंद्र सिंह सहित अन्य लोगों पर फर्जी मुकदमे वापस लें क्योंकि एसपी की सरकार बनने पर उनको भी ऐसे ही दिन देखने पड़ सकते हैं। ..................... उन्होंने कहा कि बीएसपी सरकार विद्वेषपूर्ण ढंग से केवल एसपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को लक्ष्य बनाकर उत्पीड़न की कार्रवाई कर रही है, जबकि बीजेपी, कांग्रेस, आरएलडी और वामपंथी दलों के लोग जेल नहीं भेजे जाते।“ उन्होंने प्रेस वार्ता में बहुत जोर देकर वामपंथी दलों को न केवल भाजपा और कांग्रेस के बरक्स खड़ा कर दिया बल्कि यह आभास देने का प्रयास भी किया जैसे भाकपा सहित सभी वामपंथी बसपा के पाले में खड़े हों, मायावती के राज में उनके गलत कामों के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष न कर रहे हों। मुलायम को नहीं भूलना चाहिए कि वामपंथी दलों में माफिया और गुण्ड़ों के हाथ नेतागीरी की कमान नहीं सौंपी जाती। जनता अच्छी तरह हकीकत जानती है। आसन्न विधान सभा चुनावों में भी पराजय के भय से उपजी हताशा के कारण बेचारे मुलायम यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्हें अपनी पीड़ा को बयान करने के लिए किन शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।

एक बात और। प्रेस वार्ता में एक पत्रकार ने सवाल कर दिया कि गुंडों को टिकट देने में मुलायम सिंह और मायावती की राय एक जैसी है, जबकि निर्वाचन आयोग की राय थी कि जिसके खिलाफ आरोप-पत्र हो जाये, उन्हें चुनावों में न खड़ा किया जाये। इस पर मुलायम सिंह भड़क गये। बोले: ”दिमाग खराब हो गया है। क्या वह देखने में हमसे अच्छी है?“ फिर सवाल हो गया, ”बात देखने सुनने की नहीं गुंडों को टिकट देने की हो रही है?“ किसी बात का मुलायम सिंह जवाब देने की स्थिति में नहीं थे। बौखलाते चले गये और यह कहते हुए कि ”सत्ता में नहीं हूं तो इसका मतलब यह नहीं है कि जो चाहे कह दे“ उठ कर पैर फटकते हुए चले गये। नेता विरोधी दल और उनके भाई शिव पाल सिंह यादव सहित सपा के अन्य नेता भी उनके पीछे चले गये।
- प्रदीप तिवारी

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