भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

रविवार, 7 अगस्त 2011

ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत च युद्धं करोति


हालांकि अमरीका में ओबामा प्रशासन ने विपक्षी दल के साथ मिलकर ऋण लिये जाने की सीमा को बढ़ा कर अमरीकी खजाने को ब्याज भुगतान में नादेहन्द होने से बचा लिया परन्तु अमरीकी शेयर बाजारों के 5 अगस्त को बन्द होने के बाद स्टैंडर्ड एंड पुअर्स रेटिंग एजेंसी ने अमरीका की रेटिंग को ‘ट्रिपल ए’ से घटा कर ‘डबल ए प्लस’ कर दिया। रेटिंग को घटाते समय स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने कहा है कि अमरीका का नीतिनिर्धारण अब कम टिकाऊ, कम प्रभावी और कम पूर्वानुमेय (प्रिडिक्टेबल) हो गया है। इसके पहले ही चीन की क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘डागॉग’ तथा अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी ‘मूडी’ अमरीका की क्रेडिट रेटिंग को घटा चुके हैं। अमरीका की साख को इस प्रकार की चुनौती 1917 के बाद पहली बार मिली है।

हालांकि बराक ओबामा ने रेटिंग तय करने की प्रक्रिया पर ही सवालिया निशान लगा दिया है परन्तु यह सवालिया निशान तब क्यों नहीं लगाया गया जब इसी प्रक्रिया के तहत अमरीका को ट्रिपल ए रेटिंग मिली थी जिसके सहारे वह दुनियां भर के तमाम देशों से ऋण लेकर अमरीकी पूंजीपतियों को सहायता प्रदान कर रहा था और दुनियां के तमाम देशों के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए सैनिक अभियान चला रहा था।

अनीश्वरवादी प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक चार्वाक के दर्शन को तत्कालीन राजव्यवस्था के सिपहसालार दार्शनिकों ने विकृत करते हुए जिन कल्पित उक्तियों को चार्वाक के विचार बता कर बहुत तेजी से भारतीय जनमानस के दिमागों में बैठाने की कोशिश की थी उनमें से एक प्रसिद्ध उक्ति थी - ‘ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत’। चार्वाक की न होते हुए भी जिन उक्तियों को जनमानस के मध्य फैलाया गया, उसका प्रमुख उद्देश्य था चार्वाक और उनके अनुयाईयों की छवि को धूमिल करना। इस उक्ति के पीछे का मंतव्य था कि चार्वाक उद्यमितता को समाप्त कर ऋण लेकर ऐश करने की शिक्षा देते हैं। पहले विश्वयुद्ध के समय से ही अमरीकी प्रशासन ने इस उक्ति को अंगीकार ही नहीं बल्कि इसका विस्तार कर दिया था - ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत च युद्धं करोति। पता नहीं क्यों दुनिया भर की सरकारें अमरीकी सरकार के पास ट्रिलियन अमरीकी डालरों को ऋण एवं बांड निवेश के जरिये सौंपे हुए हैं और उसके बावजूद भी उसके वर्चस्व को स्वीकार करने के लिए व्याकुल रहती हैं? इन कर्जों के सहारे ही अमरीकी अर्थव्यवस्था फलती फूलती ही नहीं रही है बल्कि दूसरे देशों पर प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की जंग भी लड़ती रही है।

रविवार 7 अगस्त के भारतीय अखबारों ने अति प्रमुखता के साथ इस समाचार को छापते हुए तमाम काल्पनिक संकटों का जिक्र किया है। सही है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी हमेशा की तरह इस अवसर को भी मुनाफा वसूली के लिए प्रयोग करेगी जिससे दुनिया भर के शेयर बाजारों में निवेशकों का लुटना तय है। संभव है कि शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिले। हो सकता है कि सोने की दाम पहले बढ़ाये जायें और दुनिया के निवेशक जब उसमें निवेश करने लगें तो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी वहां भी मुनाफा वसूली कर सोने के भावों को भी औकात दिखा दे। हो सकता है कि अमरीकी डालर का अवमूल्यन भी आने वाले वक्त में हो जिससे तमाम देशों के पास अमरीकी डालरों के विदेशी मुद्रा भंडार की कीमत कम हो जाये। हो सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी जिंसो के वायदा बाजार यानी सट्टा बाजार में भी उठा-पटक करे। जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी को पूरे भूमंडल में स्वच्छंदता से तेज गति से भ्रमण करने का मौका मुहैया कराया गया है, उसमें बार-बार ऐसा होना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह भी संभव है कि भारतीय जनमानस के पैसे पर शिक्षा प्राप्त कर अमरीकी पूंजीवाद की चाकरी कर रहे तमाम भारतीय बेरोजगार होकर अपने देश लौटने को विवश हों और यहां आकर वे यहां के बेरोजगारी के संकट को और तीव्र और गहरा कर दें।

इस घटना ने एक बार फिर पूंजीवाद के अंतर्निहित संकटों को उभार कर यह साबित कर दिया है कि पूंजीवाद का अंतिम विकल्प मार्क्सवाद के जरिये ही प्राप्त किया जा सकता है। इन संकटों का जिक्र पूंजीवाद के पैदा होते ही मार्क्स ने कर लिया था और उनका जिक्र अपनी तमाम रचनाओं में किया है। तमाम लातिन अमरीकी तथा एशियाई देश अगर चाहें तो इन परिस्थितियों का उपयोग कर भूमंडल पर अमरीका के वर्चस्व को समाप्त कर सकते हैं। वे केवल अमरीका के पास रखे अपने पैसे का भुगतान जितनी जल्दी संभव हो वापस लेने का निर्णय लें क्योंकि कर्ज के सहारे चल रही अमरीकी अर्थव्यवस्था और अमरीकी पूंजीवाद से निजात पाने का इस समय एक अच्छा मौका है। ऋणों के सहारे किसी अर्थव्यवस्था को दीर्घावधि तक नहीं चलाया जा सकता।

- प्रदीप तिवारी

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य