आवाज़ उठेजी, गूंजेगी।
इन नन्हे हाथों में बन परचम
आजादी खुलकर झूमेगी।।
ये हाथ खींचकर लायेंगे,
तारीक वक़्त में सूरज को।
ये हाथ उड़ा ले जायेंगे,
उस परीदेश में तितली को।।
ये हाथ करेंगे अब हिसाब,
उन दबी सिसकती फसलों का।
ये हाथ लिखेंगे मुस्तकबिल,
अब आने वाली नस्लों का।।
ये हाथ बनायेंगे अपनी,
शफ्फाफ़ सुनहरी दुनिया को।
वो दुनिया जसमें जंग नहीं,
औरत बच्चों पर जुल्म नहीं,
वो दुनिया जो बस अपनी हो,
बस इतनी की मैं हंस तो सकूं
और हंसने से मिरे,
तुम्हें डर ना लगे।।
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