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शुक्रवार, 13 मई 2016
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र आंदोलन और भाकपा/ ए.आई.एस.एफ,
अपनी एकजुटता और संघर्ष के बल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक बढी जंग जीत ली है. करीब हफ्ते भर तक चले इस आंदोलन के द्वारा छात्र अपनी मांगों को मनबाने में पूरी तरह कामयाब रहे हैं. उन्होने मानव संसाधन मंत्रालय को अपने तानाशाहीपूर्ण कदमों को वापस लेने को बाध्य किया है. मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के शिक्षण संस्थाओं में हस्तक्षेप न करने के दाबों की इस आंदोलन ने कलई खोल कर रख दी है. संदेश साफ है कि छात्र भगवा ब्रिगेड के शिक्षा विरोधी और छात्र विरोधी कामों को सहेंगे नहीं. वे लडेंगे भी और जीतेंगे भी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ छात्रों- नौजवानों के हर बुनियादी संघर्षों में उनके साथ खडे हुये हैं और साथ खडे रहने को संकल्पबध्द हैं. वे मन वाणी और कर्म से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं के साथ खडे रहे.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ के एक राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने गत 8 मई को इलाहाबाद पहुंच कर वहां अपनी समस्याओं के लिये छात्र संघ भवन में अनशन कर रहे छात्र- छात्राओं से भेंट की और उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता का इजहार किया. भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश के नेत्रत्व में पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में पार्टी के राज्य सहसचिव का. अरविंदराज स्वरुप एवं एआईएसएफ उत्तर प्रदेश के संयुक्त सचिव मयंक चक्रवर्ती भी शामिल थे. इलाहाबाद में पार्टी के जिला सह सचिव का. नसीम अंसारी, वरिष्ठ नेता का. गिरिधर गोपाल त्रिपाठी एडवोकेट, एटक लीडर का. मुस्तकीम एवं एआईएसएफ के अमितांशु गौर भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल होगये.
केंद्रीय एवं राज्य की प्रशासनिक सेवाओं के लिये मानव संसाधन मुहैया कराने के लिये प्रसिध्द इस विश्वविद्यालय का छात्रसंघ भी उतना ही प्रसिध्द रहा है और इसके पदों पर चुने गये तमाम लोग राजनीतिक, सामाजिक और अन्य कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन कई दशकों से पूंजीवादी दलों द्वारा पोषित राजनीति में आई गिरावट का ग्रहण शिक्षण संस्थाओं को भी लगा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शैक्षिक स्तर और उसका छात्रसंघ भी उससे प्रभावित हुआ. लेकिन इस बार वहाँ के छात्र- छात्राओं ने पहली बार एक छात्रा ऋचा सिंह को विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना जो वहां चुने गये पदाधिकारियों में एक मात्र गैर भाजपा पदाधिकारी थीं. उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि तमाम दबावों और घेराबंदियों के बावजूद उन्होने भयंकर सांप्रदायिक एवं हिंदू कट्टरपंथी गोरखपुर के भाजपा सांसद श्री आदित्यनाथ को विश्वविद्यालय परिसर में आने से रोक दिया था. उसके बाद से ही वह संघ परिवार के निशाने पर थीं और केंद्र सरकार और स्थानीय भाजपाइयों के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें तरह तरह से परेशान कर रहा था. भाकपा और एआईएसएफ ने इस समूची जद्दोजहद में हमेशा उनका मनोबल बढाया.
पिछले दिनों विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र संगठनों ने ऋचा सिंह के नेत्रत्व में कुलपति श्री रतनलाल हाँगलू को एक सात सूत्रीय ज्ञापन संयुक्त रुप से सौंपा था जिसमें उन्होने कहा था कि विश्वविद्यालय के ग्रामीण अंचल के छात्रों की बहुलता को देखते हुये परास्नातक सहित सभी प्रवेश परीक्षाओं में 'आफ लाइन' का विकल्प भी दिया जाये, पिछले दिनों जिन 17 छात्रों का निलंबन किया गया है उसे वापस लिया जाये, आनलाइन आवेदनों में वेवसाइट की गडबडी के कारण छात्रों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड रहा है, उसे तत्काल सुधारा जाये. प्रवेश परीक्षाओं का बढा हुआ शुल्क जो कि पिछले से लगभग दोगुना है वापस किया जाये, डबल एम.ए. करने हेतु 80 प्रतिशत अंक की अपरिहार्यता और अव्यवहारिकता को वापस लिया जाये, प्रवेश हेतु जमा होने वाला चालान एस. बी.आई. के माध्यम से भी जमा करने का विकल्प हो. ज्ञापन में यह भी कहा गया कि प्रवेश परीक्षाओं का टेंडर पारदर्शी तरीके से न होना प्रवेश प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खडे करता है. मात्र टी.सी.एस के आवेदन के बाद उसका टेंडर देना अनुचित है.
आंदोलनकारी छात्र- छात्रायें जब इन मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिसर में पुलिस को बुलबा भेजा. तमाम छात्रो को पीटा गया और वे लहू लुहान होगये, उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर गिरफ्तार किया गया. पर रिहाई के बाद वे यूनियन हाल में अध्यक्ष ऋचा सिंह के नेत्रत्व में आमरण अनशन पर बैठ गये. वे कुलपति कार्यालय के समक्ष अनशन करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उन्हें वहां बैठने से रोक दिया. भाकपा और एआईएसएफ ने अलग अलग बयान जारी कर इस पुलिसिया कार्यवाही की निंदा की और छात्रों की मांगों का समर्थन किया. आंदोलन का नेत्रत्व कर रही ऋचा सिंह को फोन कर छात्रों का मनोबल भी बढाया गया.
छात्र छात्राओं पड रहे चहुंतरफा दबाव और उनके स्वास्थ्य में आरही गिरावट के समाचार भाकपा और एआईएसएफ के राज्य केंद्र को मिल रहे थे अतएव पार्टी नेत्रत्व ने वहाँ पहुंच कर छात्रों के इस आंदोलन को सक्रिय समर्थन प्रदान करने का फैसला लिया. प्रतिनिधिमंडल जिस दिन वहां पहुंचा, आमरण अनशन का छठवां दिन था. चूंकि वहां पहुंचने का समाचार समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था तो सभी आंदोलनकारी छात्र इस प्रतिनिधिमंडल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे.
प्रतिनिधिमंडल ने ऋचा सिंह से बात की और उनका साहस बढाया. वहीं पता लगा कि पूर्व की रात को पुलिस ने अनशनकारियों को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी लेकिन छात्रों ने अपने को यूनियन हाल में बंद कर लिया. यू.पी. सरकार के पुलिस और प्रशासन का यह रवैया समझ से परे था.
ऋचा सिंह ने छात्रो के बीच ले जाकर प्रतिनिधिमंडल से विचार व्यक्त करने का आग्रह किया.
उपस्थित छात्र समुदाय को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आफलाइन विकल्प के अभाव में ग्रामीण और गरीब तबके के छात्र शिक्षा से वंचित रह जायेंगे इसलिये आम छात्रों के हित में आफलाइन का विकल्प भी खुला रहना चाहिये. उन्होने छात्रों की न्यायोचित मांगों के प्रति केंद्र सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन की हठवादिता और छात्रों पर पुलिस/प्रशासन द्वारा किये जारहे बल प्रयोग की कडे शब्दों में निंदा की और छात्रों के इस न्याययुध्द में हर संभव मदद का भरोसा उन्हें दिलाया. उन्होने घोषणा की कि लखनऊ लौटने पर भाकपा महामहिम राज्यपाल से भेंट कर छात्रों को न्याय दिलाने की मांग करेगी.
छात्रों ने बढी ही गर्मजोशी से प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया.
यद्यपि वहां अन्य कई प्रतिनिधिमंडल भी आये हुये थे पर भाकपा और एआईएसएफ के प्रतिनिधिमंडल के वहां पहुंचने से भाजपा और सपा के खीमों में काफी हलचल दिखाई दी. अगले दिन मीडिया ने भी प्रतिनिधिमंडल की खबरों को प्रमुखता से छापा. सत्ताधारियो का सिंहासन हिला और 48 घंटे के भीतर ही छात्रों की प्रमुख मांगों को मान लिया गया और अनशन समाप्त करा दिया गया. समझौते के अनुसार अब विश्वविद्यालय में प्रवेश में आफ लाइन का विकल्प खोला गया है, डबल एम.ए. के प्रवेश में अब 80 के बजाय 60 प्रतिशत अंक ही आवश्यक होंगे तथा छात्रों के निलंबन की कार्यवाही पर पुनर्विचार किया जायेगा.
इस सफलता के बाद ऋचा सिंह और कई छात्रों ने भाकपा नेत्रत्व को न केवल इसकी सूचना दी अपितु उनके प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित की. भाकपा नेत्रत्व ने भी उन्हे बधाई दी.
एआईएसएफ इलाहाबाद के एक प्रतिनिधिमंडल ने सन्योजक अजीत सिंह के नेत्रत्व में ऋचा सिंह एवं अन्य आंदोलनकारी छात्रों से छात्रसंघ भवन में जाकर इस सफलता के लिये उन्हें पुरजोर तरीके से बधाई दी. प्रतिनिधिमंडल में अमितांशु गौर, मो.खालिद, सर्वेश मिश्रा, गौरीशंकर, विमर्श एवं संकर्ष भी शामिल थे. ऋचा सिंह ने सहयोग और समर्थन के लिये धन्यवाद दिया और कृतज्ञता ज्ञापित की.
यह छात्रों के संघर्षों का ही नतीजा है कि मानव संसाधन मंत्रालय को घुटने टेकने पडे हैं. केंद्र सरकार के पलटी मारने से कल तक उसके यस मैन बने कुलपति हाँगलू आहत महसूस कर रहे हैं. उन्होने स्मृति ईरानी और भाजपा पर विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप का आरोप जडा है. यह तो जग जाहिर ही था, पर पहली बार किसी कुलपति ने भी इस सच पर से पर्दा उठाया है. यह भी उल्लेखनीय है कि जो विद्यार्थी परिषद ऋचा सिंह के खून का प्यासा बना हुआ था, छात्रों के दबाव में और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये उसे भी सबके साथ अनशन पर बैठना पडा.
डा. गिरीश
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