फ़ॉलोअर
शनिवार, 21 अप्रैल 2018
at 1:31 pm | 0 comments |
भाजपा को सत्ता से बेदखल करने को लामबंद होरही हैं देश की प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियां
देश की तीन प्रमुख कम्युनिस्ट
पार्टियां अन्य वामपंथी जनवादी दलों को साथ लेकर केंद्र की घोर जनविरोधी, छलिया,
सांप्रदायिक और फासीवादी रुझानों से परिपूर्ण भाजपा की केन्द्र सरकार को 2019 में
सत्ता सिंहासन से अपदस्थ करने की रणनीति को अंजाम देने में जुटी हैं. भारतीय कम्युनिस्ट
आन्दोलन में विभाजन के बाद यह पहला अवसर है जब देश की तीन कम्युनिस्ट पार्टियां-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) तथा भाकपा-
माले ( लिबरेशन ) एक सामान्य राजनैतिक रणनीति बनाने के बेहद करीब हैं.
देश की सबसे पुरानी
कम्युनिस्ट पार्टी- भाकपा ने लगभग 10 माह पूर्व ही अपनी इस परिकल्पना को प्रस्तुत
कर दिया था कि भाजपा द्वारा जनता, हमारे सामाजिक ताने बाने, लोकतंत्र और संविधान
पर किये जारहे हमलों का जबाव देने के लिये एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक और वामपंथी
शक्तियों प्लेटफार्म तैयार किया जाये. 25 से 29 अप्रैल तक केरल के शहर कोल्लम में
होने जारहे भाकपा के 23 वें महाधिवेशन में इसी रणनीति को अंतिम रूप दिया जाना है.
शब्दों का हेर फेर होसकता
है लेकिन माकपा के हैदराबाद में चल रहे 22 वें महाधिवेशन में कल पारित राजनैतिक
प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया गया है कि हमारी मुख्य लड़ाई भाजपा/ आरएसएस से है
और इसे परास्त करने को जनता के व्यापकतम हिस्सों को लामबंद किया जाना चाहिये. गत
माह संपन्न भाकपा- माले के महाधिवेशन में पारित प्रस्ताव में भाजपा को मुख्य
चुनौती मानते हुये इसे सत्ता से हठाने को वामपंथी लोकतांत्रिक शक्तियों को बड़े
पैमाने पर गोलबंद करने की जरूरत पर बल दिया गया.
निश्चय ही देश की
लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष ताकतों को लामबंद करने में कम्युनिस्ट पार्टियों की
साझा रणनीति एक आधार का काम करेगी. वामपंथ में बन रही इस व्यापक रणनीतिक एकता के
वस्तुगत और अपरिहार्य कारण भी हैं.
देश आजादी के बाद के सबसे
जटिल संकट से गुजर रहा है. देश और अधिकतर राज्यों की सत्ता ऐसे समूह के हाथों में
केन्द्रित है जो संपूर्णतः देश के मेहनतकशों के हितों पर डाका डाल कर पूंजीपतियों
की तिजौरियां भरने को प्रतिबध्द है. देश की आबादी का लगभग 70 प्रतिशत भाग आज भी
ग्रामों में रहता है. यह ग्रामीण भारत खेती और खेती से जुड़े लघु उद्यमों पर आश्रित
है. आज यह ग्रामीण समुदाय आर्थिक रूप से सबसे अधिक असुरक्षित और विपन्न है. कारण-
खेती बेहद घाटे का सौदा बन चुकी है. पूंजीवादी अर्थतंत्र खेती के बल पर टिका हुआ
है पर खेती किसान की लागत और उसके परिश्रम को निगल रहा है. खेती बदहाल है तो उससे
जुड़े लघु और कुटीर उद्योग भी वरबाद हैं.
खेती और उसकी बदहाली के कई
कारण हैं. कृषि उत्पादों की कीमतें तय करने का अधिकार किसान के पास नहीं है. कुछेक
खाद्यान्नों की कीमतें सरकार तय करती है तो फल सब्जी और कई अन्य की कीमतें मंडी
में मांग- आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं. यह लागत, जमीन के किराये और किसान के परिश्रम
की तुलना में काफी कम होती हैं. इसके अलाबा खेती में काम आने वाली हर वस्तु की
कीमत मुनाफे पर आधारित बाजार निर्धारित करता है. इससे खेत्ती का लागत मूल्य बढ़
जाता है. प्राकृतिक आपदाओं की मार भी किसानों के ऊपर ही पड़ती है.
इन्हीं वजहों से किसान
निरंतर घाटे के चलते कर्जदार होता जारहा है. बैंक ऋण हासिल करने में आने वाली
कठिनाइयां उसे सूदखोरों से कर्ज लेने को बाध्य करती हैं. यही वजह है कि कर्ज में
डूबे पीड़ित किसानों द्वारा आत्महत्यायें करने का दौर थमने का नाम नहीं लेरहा.
भाजपा और मोदी ने गत लोकसभा चुनावों के दौरान किसानों की आमदनी दोगुना करने का
वायदा किया था. अन्य वायदों की तरह यह भी जुमला साबित हुआ. ग्रामीण श्रमिकों की
जीवनरेखा- मनरेगा को भी सीमित कर दिया गया है.
यद्यपि गत शताब्दी के
सातवें दशक से ही मन्दी और उद्योग बन्दी शुरू होगयी थी लेकिन 1991 में शुरू हुये
आर्थिक नवउदारवाद के दौर में मंदी और उद्योग बंदी की यह रफ़्तार और तेज होगयी. मोदी
सरकार के कतिपय कदमों जिनमें नोटबन्दी और जीएसटी का लागू किया जाना प्रमुख हैं, ने
हालातों को और संगीन बना दिया है. फलतः हमारी अर्थव्यवस्था में चहुँतरफा गिरावट
स्पष्ट दिखाई दे रही है. डालर के मुकाबले रूपये की कीमत गिर कर निम्नतम स्तर पर
पहुंच गयी है. आयात बढ़ा है और निर्यात घटा है. सकल घरेलू उत्पाद ( जीएसटी ) की दर
हो या औद्योगिक उत्पादन की दर, हरएक में लगातार क्षरण होरहा है.
अतएव बेरोजगारी में बेतहाशा
वृध्दि हुयी है. मोदीजी ने दो करोड़ नौजवानों को हर वर्ष रोजगार देने का वायदा किया
था पर उन्हें रोजगार देने के बजाय सिर्फ मुद्रा, स्टार्टअप, स्किल इंडिया और
डिजिटल इंडिया आदि नारों से बहलाने की कोशिश की जारही है. पूंजीपतियों जिनके कतिपय
हिस्से आज कारपोरेट घराने बन चुके हैं, को लाभ पहुंचाने को जनता की गाड़े पसीने की
कमाई से स्थापित हुये व स्वदेशी बुध्दिमत्ता और परिश्रम से विकसित हुये सार्वजनिक
उद्यमों को उनके हाथों बेचा जारहा है. बैंकों में जमा आम जनता के धन को धनिक वर्ग
को दिलाया जारहा है जिसे वे वापस करने के बजाय बट्टे खाते में डलवा रहे हैं या फिर
बैंकों से भारी रकमें लेकर विदेशों को भाग रहे हैं. बैंकों से लगातार होरही इन
अवैध निकासियों का भार सामान्य निवेशकों पर डाला जारहा है. जितने घपले घोटाले
संप्रग सरकार के दो कार्यकालों में हुये थे उससे कहीं ज्यादा राजग/ भाजपा के चार
सालों में होचुके हैं.
अब पेट्रोल और डीजल की
कीमतों ने ऐतिहासिक ऊंचाई छू ली है. जिससे पहले से आसमान छूरही महंगाई को और भी
पंख लगने वाले हैं. पेटोलियम पदार्थों के सस्ते होते हुए भी उपभोक्ताओं को महंगे दामों
पर बेचने वाली सरकार अब बढ़ती कीमतों का भार अपने सर पर लेने को तैयार है न उसको
जीएसटी के अंतर्गत लाने को तैयार है.
सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली
को वरबाद करने की प्रक्रिया दशकों से जारी थी लेकिन मोदी राज में वह और तेज हुयी
है. शिक्षा का बजट निम्नतम स्तर पर ला दिया गया है. अब चुनींदा और प्रतिष्ठित
विश्वविद्यालयों को निजीकरण की दिशा में धकेला जारहा है. नीति यह है कि इसे इतना
महंगा बना दिया जाये कि समाज के सामान्य हिस्से इससे वंचित होजायें और वे लुटेरी
और शोषक पूंजीवादी व्यवस्था की भट्टी में जलने वाले सस्ते ईंधन के तौर पर स्तेमाल
होते रहें. इस उद्देश्य से श्रम कानूनों को भी कमजोर बनाया जारहा है. शिक्षा को
धर्मान्धता, पाखण्ड, पोंगापंथ और सांप्रदायिकता फ़ैलाने का औजार बनाने को इसके
पाठ्यक्रमों में प्रतिगामी बदलाव किये जारहे हैं. इतिहास, कला और संस्कृति की
व्याख्या संघ के द्रष्टिकोण से की जारही है.
स्वास्थ्य सेवायें भी सरकार
के निशाने पर हैं और वे भी बेहद महंगी और आम आदमी की पहुंच से बाहर होती चली जारही
हैं. सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पंगु बना कर गरीबों के मुहँ का निवाला छीना जारहा
है. हर तरह की सब्सिडी को खत्म किया जारहा है.
आतंकवाद को समाप्त करने और
सीमापार के दुश्मनों का खात्मा करने के मोदी और भाजपा के दावों का खोखलापन इसीसे
से जाहिर होजाता है कि गत चार सालों में पूर्व के भारत- पाक युध्दों से भी अधिक
संख्या में हमारे सैनिक और अन्य सुरक्षा बलों के जवान शहीद होचुके हैं.
मोदी, भाजपा और आरएसएस की
तिकड़ी और कारपोरेट हितों की पोषक इस सरकार के प्रति जनता का मोहभंग तेजी से बढ़ रहा
है. हाल में कई राज्यों में हुये उपचुनावों, निकाय और अन्य चुनावों के परिणामों ने
भाजपा के पैरों तले से जमीन के खिसकने का संकेत दे दिया है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर
और फूलपुर की लोकसभा सीटें जिन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री जीते थे, पर भाजपा की करारी हार ने साबित कर
दिया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की पराजय का रास्ता तैयार होरहा है.
उनका दावा कि “मोदी का कोई विकल्प नहीं”, उत्तर प्रदेश में ही दम तोड़ रहा है.
लेकिन संपूर्ण सत्ता का
स्वाद चख चुकी भाजपा और उसका रिंग मास्टर आरएसएस इसे इतनी आसानी से छोड़ने वाला
नहीं. बेनकाबी जितनी तेजी से बढ़ रही है उसको नकाब पहनाने के प्रयास भी उतनी ही
तेजी से बढ़ रहे हैं. अतएव हर वह हथकंडा जो जनता को गुमराह और विभाजित कर सके
अपनाया जारहा है. सभी जानते हैं कि मंदिर- मस्जिद विवाद सर्वोच्च न्यायालय के
विचाराधीन है और उसका फैसला आने पर ही हल हो सकता है. फिर भी मंदिर निर्माण के लिये
लगातार तीखे बोल बोले जारहे हैं. कथित लव जिहाद, गोरक्षा और तीन तलाक जैसे मुद्दों
की आड़ में अल्पसंख्यकों और दलितों को निशाना बनाया जारहा है. दंगे कराये जारहे हैं
और दंगों तथा हत्याओं में संलिप्त संघी
अपराधियों को आरोपों से मुक्त किया जारहा है. आरक्षण के सवाल पर भी भाजपा समाज को
बांटने का काम कर रही है. विभाजनकारी यह एजेंडा दिन व दिन धारदार बनाया जाना है.
संविधान और न्यायिक प्रणाली तक को बदलने का प्रयास जारी है.
कारपोरेट हितों की पोषक और
फासिस्टी रुझानों से सराबोर इस सरकार को सत्ताच्युत करना आज हर लोकतंत्रवादी ताकत
का सबसे प्रमुख लक्ष्य बन गया है. कम्युनिस्ट पार्टियां महसूस करती हैं कि जनविरोधी,
लोकतंत्र और संविधान विरोधी इस सरकार को अपदस्थ करने को एक व्यापक और व्यावहारिक
रणनीति बनाई जाये. सभी लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी ताकतों का एक
प्लेटफार्म तैयार कर संघर्षों को नयी उंचाइयों तक लेजाया जाये. बरवादी की जड़
आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों का एक आर्थिक- सामजिक विकल्प पेश किया जाए.
सांप्रदायिकता, धर्मान्धता और रूढ़िवादिता के खिलाफ वैचारिक मुहीम चलाई जाये. तीनों
कम्युनिस्ट पार्टियों के राजनैतिक दस्तावेजों में इन तथ्यों को शिद्दत के साथ
रेखांकित किया गया है. भारत के वामपंथी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष आन्दोलन के
लिये यह एक नयी शुरुआत है.
डा. गिरीश
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...5 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
उत्तर प्रदेश के कोने कोने में फूंकी गयीं काले क्रषी क़ानूनों की प्रतियां आपातकाल सरीखे हालातों के बावजूद प्रदेश में निरंतर बढ़ रहा है किसा...
-
Manifesto of the Communist Party Karl Marx and Fredrick Engels Prefaces to various language editions 1872 German Edition 1882 Russian Edit...
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल के सचिव डा0 गिरीश ने 17 से 21 सितंबर तक काठमांडू में संपन...
-
भाकपा की राज्य कौंसिल बैठक शुरू भाकपा राष्ट्रीय सचिव शमीम फैजी ने जारी किया आन्दोलन का पोस्टर लखनऊ 18 अप्रैल। भारतीय कम्युनिस्ट पार्...
-
उठ जाग ओ भूखे बंदी, अब खींचो लाल तलवार कब तक सहोगे भाई, जालिम अत्याचार तुम्हारे रक्त से रंजित क्रंदन, अब दश दिश लाया रंग ये सौ बरस के बंधन, ...
-
चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो चलो लहूलुहान पांव ले के भी चले चलो चलो कि आज साथ-साथ चलने की जरूरतें चलो कि ख़त्म हो न जाएं जिन्द...
-
MANIFESTO OF PROGRESSIVE WRITERS ASSOCIATION ADOPTED IN THE FOUNDATION CONFERENCE 1936 Radical changes are taking place in India...
-
हरिशंकर परसाई की कहानियों में पात्र-वैविध्य की बात हम कर चुके हैं, इस वैविध्य का बहुत बड़ा कारण परिस्थितियां, उनसे जूझते चरित्र का निर्मित हो...
-
(विगत 26 अप्रेल 2013 को कॉमरेड अनिल राजिमवाले का व्याख्यान रायगढ़ इप्टा और प्रलेस के संयुक्त आयोजन में हुआ था। इसके बाद 27 तथा...
-
Communist Party of India (CPI) parliamentary group leader and CPI National Council secretary Gurudas Das Gupta has said that the UPA-...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें