भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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बुधवार, 4 जून 2014

भाकपा के प्रतिनिधिमंडल ने सआदत गंज का दौरा किया. सपा समर्थकों एवं पुलिस को ठहराया घटना के लिये जिम्मेदार

लखनऊ- ४ जून २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं उसके सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधियों ने बदायूं जनपद के कटरा सआदतगंज पहुँच कर पीड़ित परिवार से भेंट की, उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की तथा उस स्थल को भी देखा जिसमें दो किशोरियों के साथ बलात्कार के बाद उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था. भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डॉ. गिरीश के नेत्रत्व में वहां पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में भाकपा की राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य एवं हरियाणा प्रदेश के सचिव का. दरयाब सिंह कश्यप, पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य का. अजय सिंह, राज्य काउन्सिल के सदस्य एवं गाज़ियाबाद के जिला सचिव का. जितेन्द्र शर्मा, बरेली के जिला सचिव राजेश तिवारी, बदायूं के जिला सचिव रघुराज सिंह, उत्तर प्रदेश महिला फेडरेशन की काउन्सिल सदस्य प्रोफेसर निशा राठोड़, जिला संयोजक विमला, भारतीय खेत मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय सचिव का. विजेंद्र निर्मल, उत्तर प्रदेश किसान सभा के सचिव का. रामप्रताप त्रिपाठी, उपाध्यक्ष का. छीतरसिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर सदाशिव,बरेली से पार्टी के प्रत्याशी रहे का. मसर्रत वारसी, वरिष्ठ पार्टी नेता डी.डी. बेलवाल, शाहजहांपुर के वरिष्ठ नेता का. सुरेश कुमार, का. प्रेमपाल सिंह, प्रवीण नेगी, सुरेन्द्र सिंह, सुखलाल भारती, सुरेन्द्र सिंह, हरपाल यादव, राकेश सिंह, रामप्रकाश, मुन्नालाल, राकेश सिंह सहित लगभग ५० कार्यकर्ता शामिल थे जो आठ गाड़ियों के काफिले के साथ वहां पहुंचे थे. प्रतिनिधि मंडल को पीड़ित परिवार एवं उपस्थित महिलाओं ने बताया कि गाँव के दबंग लोग जो समाजवादी पार्टी के समर्थक हैं, अक्सर गाँव के कमजोर परिवारों की महिलाओं और किशोरियों से अशोभनीय व्यवहार करते हैं. उनके पशु कमजोर तबकों के किसानों के खेतों में चरते हैं और कोई उनसे मना करने की हिम्मत जुटाता है तो उसके साथ मारपीट करते हैं. एक गरीब महिला ने बताया कि उसके बेटे की पिछले वर्ष हत्या करदी गई और आज तक पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की. पुलिस हर मामले में और हमेशा इन दबंगों का ही साथ देती है और यह दमन चक्र सपा की सरकार आते ही और बढ़ जाता है. महिलाओं ने बताया कि गाँव में शौचालयों का बेहद अभाव है. शिक्षा के लिये कोई कालेज भी नहीं है. उनकी पीड़ा इस बात को लेकर भी झलकी कि अभी तो सभी लोग यहाँ आ- जा रहे हैं, जब कुछ दिनों बाद लोगों का आना- जाना बंद होजायेगा तो गाँव के ये दबंग तत्व फिर दबंगई करेंगे. प्रतिनिधिमंडल की ओर से डॉ. गिरीश ने उपस्थित लोगों से कहा कि हम लोग आपका दर्द बाँटने आये हैं सहानुभूति के दो शब्द कहने आये हैं तथा आपकी आवाज को आवाज देने का भरोसा दिलाने आये हैं. हमारे पास अन्य दलों की तरह देने को न धन है न झूठे बायदे. न ही हम औरों की तरह वोट की राजनीति करते हैं. हम पीड़ित परिवार की प्रशंसा करते हैं कि आज के युग में जब लोग एक एक पैसे के लिए सर्वस्व लुटाने को तैय्यार हैं इस परिवार ने सरकार की मदद को ठुकरा दिया अपराधियों को सजा दिलाने की दृढ़ता दिखाई. सभी लोगों ने भाकपा की इस भावना को सराहनीय बताया. भाकपा की यह स्पष्ट राय है कि सआदतगंज की इस घटना के लिए स्थानीय पुलिस पूरी तरह जिम्मेदार है. वह वहां अपराधियों को प्रश्रय देने में जुटी थी और पीड़ित परिवार को ही डरा धमका रही थी. राज्य सरकार कई दिनों तक अपराधियों के प्रति सहानुभूति का रवैय्या अख्तियार किये रही. ठीक उसी तरह जैसे सी.ओ. पुलिस जिया उल हक हत्याकांड में अपनाती रही थी. वह तब हरकत में आयी जब मामला काफी तूल पकड़ गया. भाकपा मांग करती है कि पीड़ित परिवार और गाँव के अन्य कमजोरों की जान माल और आबरू की सुरक्षा हेतु कड़े कदम उठाये जायें, वहां थाने और चौकियों पर कमजोर वर्गों से आने वाला स्टाफ तैनात किया जाये, तत्कालीन थानाध्यक्ष उसैहत सहित तमाम दोषी पुलिसजनों को सस्पेंड किया जाये, मृतक दोनों बहिनों के नाम पर वहां एक सरकारी बालिका विद्यालय खोला जाये, हर घर में शौचालय बनबाये जायें तथा अति पिछड़े इस क्षेत्र के विकास के लिए वहां सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योग लगाए जायें. डॉ. गिरीश ने कहा है कि आज उतर प्रदेश महिलाओं के लिये तो कसाईघर बन कर रह गया है. हर दिन प्रदेश भर में लगभग दर्जनभर महिलाओं के साथ दरिंदगी की ख़बरें मिल रहीं हैं. प्रदेश की कानून व्यवस्था समाप्त ही होगयी है. इसकी नैतिक जिम्मेदारी मुख्यमंत्री को अपने ऊपर लेनी चाहिये और सरकार को त्यागपत्र देदेना चाहिये. भाकपा ने महिलाओं की सुरक्षा के प्रश्न पर व्यापक आन्दोलन छेड़ने का निश्चय किया है. प्रदेश भर में जन जागरण छेड़ दिया है और १२ जून को भाकपा “महिलाओं की रक्षा करो” नारे के साथ सभी जिला मुख्यालयों पर धरने प्रदर्शनों का आयोजन करेगी. डॉ. गिरीश
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सोमवार, 2 जून 2014

महिलाओं की सुरक्षा की मांग को लेकर सड़कों पर उतरेगी भाकपा

लखनऊ 2 जून। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की एक बैठक आज यहां सम्पन्न हुई। बैठक में चुनाव परिणामों एवं चुनाव के बाद पैदा हुई राजनैतिक स्थिति पर गहन मंथन किया गया तथा उत्तर प्रदेश में महिलाओं की इज्जत और उनकी जिन्दगी पर हो रहे गहरे आक्रमणों पर चर्चा हुई। साथ ही उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था एवं बिजली कटौती से पैदा हुए संकट से भी विचार हुआ। भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश द्वारा इस सम्बंध में प्रस्तुत लिखित रिपोर्ट पर हुई चर्चा में 20 साथियों ने भाग लिया।
भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने इस बात पर गहरा रोष प्रकट किया कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं की जिन्दगी और इज्जत तार-तार हो रही है। प्रतिदिन लगभग दर्जन भर संगीन वारदातों की खबरें राज्य भर से प्राप्त हो रही हैं। पुलिस और प्रशासन में पैठ बनाये हुए असामाजिक और गुण्डा तत्व इन घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं और पुलिस प्रशासन ऐसे अपराधियों को प्रश्रय दे रहा है। राज्य सरकार भी कुछ कर नहीं पा रही। भाकपा ने तय किया कि महिलाओं की सुरक्षा के इस सवाल पर सघन आन्दोलन चलाया जाये। इस हेतु 12 जून को भाकपा महिलाओं को सुरक्षा दिये जाने के लिए सभी जिला केन्द्रों पर प्रदर्शन करेगी। साथ ही भाकपा का एक प्रतिनिधिमंडल राज्य सचिव डा. गिरीश के नेतृत्व में कल दिनांक 3 जून को बदायूं पहुंचेगा और पीड़ित परिवार के साथ दुःख बांटेगा।
भाकपा ने प्रदेश में कानून-व्यवस्था की भी नाजुक स्थिति पर नाराजगी जाहिर की है। प्रदेश में पैदा हुए अभूतपूर्व बिजली संकट पर भाकपा ने मांग की है कि केन्द्र और राज्य सरकारें इस संकट का निदान खोजें, परस्पर बयानबाजी से कोई हल निकलने वाला नहीं है। गन्ना किसानों के मिलों पर पड़े बकाये के भुगतान और गन्ने की अगली फसल के लिए उचित मूल्य निर्धारण के लिए भी भाकपा आन्दोलन की रूपरेखा बनाने जा रही है।
राज्य कार्यकारिणी ने इस बात का नोटिस लिया कि नई सरकार को सत्तारूढ़ हुए एक पखवाड़ा बीत रहा है परन्तु अभी तक महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निबटने की कोई सक्रियता केन्द्र सरकार ने नहीं दिखाई है। कथित अच्छे दिनों की शुरूआत रेल दुर्घटना में मरे लगभग 2 दर्जन लोगों से हुई और अब डीजल के दाम बढ़ा कर इस कड़ी को और आगे बढ़ाया गया है। लोगों को एकजुट करने के बजाय धारा 370 और कॉमन सिविल कोड जैसे विभाजनकारी एजेंडे चालू कर दिये गये हैं और सरकार महंगाई के बारे में चिन्तित दिखाई ही नहीं दे रही है। विदेशी बैंकों में जमा धन की एक सूची केन्द्र सरकार के पास पहले से ही है लेकिन वायदे के अनुसार उसको भारत में लाने का कार्य शुरू नहीं किया गया है। एक भारी भरकम जांच कमेटी बना कर लोगों को इस धन को अपनी सुविधा के अनुसार ठिकाने लगाने का वक्त दे दिया गया है। उद्योगपतियों और पूंजीपतियों पर बैंकों के एनपीए बकायों को वसूली करने का अभियान भी अभी शुरू नहीं किया गया है।
पार्टी की राज्य कौंसिल की बैठक 28-29 जून को लखनऊ में आयोजित करने का फैसला लिया गया है ताकि उसमें सभी बिन्दुओं की समीक्षा कर भविष्य की रणनीति तैयार की जा सके।


कार्यालय सचिव
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शनिवार, 31 मई 2014

महिलाओं की इज्जत और उनके जानमाल की रक्षा के लिये भाकपा निर्णायक संघर्ष छेड़ेगी

महिलाओं की इज्जत और जानमाल की सुरक्षा के लिये भाकपा छेड़ेगी निर्णायक संघर्ष लखनऊ- ३१ मई २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहाकि बदायूं जनपद में दो किशोरियों की दुराचार के बाद की गई हत्या की बारदातें विचलित करने वाली हैं. आज ही जनपद आजमगढ़ में किशोरी के साथ हुई सामूहिक दुराचार की घटना के प्रकाश में आने से यह स्पष्ट होगया हैकि प्रदेश में सरकार नाम की कोई हस्ती है ही नहीं. अराजकता और अत्याचार का नंगा नाच जारी है. यह अब बेहद असहनीय होगया है. भाकपा महिलाओं की आबरू और उनकी जानमाल की रक्षा के लिये जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक संघर्ष चलाएगी और यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं मिल जाता और वह निर्भयता से सडकों पर निकल सकें ऐसा वातावरण नहीं बन जाता. यहाँ संपन्न पार्टी के राज्य सचिव मंडल की बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहाकि पिछले लगभग एक माह में प्रदेश में महिलाओं के साथ दुराचार की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है. अभी कुछ ही दिन पहले बागपत जिले के छपरौली में छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ, मुजफ्फर नगर के ककरौली में भी नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, गाज़ियाबाद के मोदी नगर में किशोरी के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ तथा बिजनौर के धामपुर में भी दुराचार की घटनायें प्रकाश में आयी हैं. इटावा से जहाँ दुराचार और इसके बाद पीडिता के परिजनों के साथ मारपीट की घटनायें सामने आयी हैं वहीं सीतापुर में तो महिला के साथ कार में दुराचार के बाद उसे बाहर फैंक दिया गया. ऊपर से एक आई जी बचकाना बयान देरहे हैं कि उत्तर प्रदेश में दुराचार की बारदातें आबादी की तुलना में कम हैं. भाकपा की दृढ़ राय है कि इन घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी मुख्यमंत्री को स्वयं स्वीकार करनी चाहिये और पीड़ितों को न्याय दिलाने तथा सभी दोषियों को दण्डित किये जाने हेतु शीघ्र ठोस कदम उठाये जाने चाहिये. भाकपा राज्य सचिव मंडल ने पार्टी की बदायूं एवं आजमगढ़ जिला कमेटियों को पहले ही निर्देश देदिया हैकि वह घटना स्थल पहुँच कर पीड़ितों का दुःख बांटें और छान- बीन कर कल सुबह तक रिपोर्ट राज्य केंद्र को भेजें. कल यहाँ राज्य केंद्र पर होने वाली भाकपा की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में इस सम्वेदनशील मुद्दे पर अगली कार्यवाही पर निर्णय लिया जायेगा. राज्य सचिव मंडल ने प्रदेश में होरही अभूतपूर्व बिजली कटौती का भी नोटिस लिया और सरकार से मांग की कि वह समस्या का सार्थक समाधान खोजे, बहानेबाजी से कोई लाभ होने वाला नहीं. डॉ.गिरीश
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बुधवार, 21 मई 2014

एआईएसएफ के प्रसार हेतु विद्यार्थी कैडर बैठक

एआईएसएफ के उत्तर प्रदेश में प्रसार के लिए विद्यार्थियों की एक राज्य स्तरीय बैठक लखनऊ में भाकपा के राज्य कार्यालय पर 5 जून 2014 को पूर्वांहन 10.00 बजे से आहूत की गयी है। पार्टी के सभी साथियों,  तमाम जन संगठनों पर कार्यरत साथियों तथा एआईएसएफ के पूर्व कार्यकर्ताओं से अनुरोध है कि इस अत्यावश्यक बैठक को सफल बनाने के लिए अपने-अपने जिले/क्षेत्र से नेतृत्व कर सकने लायक विद्यार्थियों को बैठक में भाग लेने के लिए भेजने का कष्ट करें।
हमारा पूरा प्रयास है कि आसन्न अकादमिक सत्र में एआईएसएफ का संगठन उत्तर प्रदेश में एक स्वरूप ग्रहण कर सके और विद्यार्थियों के व्यापक तबकों को संगठन की ओर आकर्षित करने लायक संगठन तैयार हो सके। इस उद्देश्य को बिना आप सभी के सहयोग के पूरा कर सकना सम्भव नहीं है।
अस्तु आप सभी से अनुरोध है कि इस कार्य पर ध्यान देने का कष्ट करें और यथा सम्भव राज्य केन्द्र को सहयोग प्रदान करें।
- डा. गिरीश, राज्य सचिव, भाकपा
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बुधवार, 14 मई 2014

पश्चिम बंगाल में मतदान के दौरान हिंसा और धांधली के खिलाफ वामपंथ का विरोध प्रदर्शन.

लखनऊ- १४, मई. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं वामपंथी दलों ने पश्चिम बंगाल में आखिरी चरण के मतदान के दौरान तृणमूल कांग्रेस समर्थकों द्वारा बड़े पैमाने पर की गई हिंसा, धांधली और अराजकता के विरुध्द वामपंथी दलों के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर आज समूचे उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया. वामदलों ने इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के विरुध्द कड़ी कार्यवाही की मांग की तथा गडबडी वाले लगभग १००० बूथों पर पुनर्मतदान कराये जाने की मांग की. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने बताया कि यद्यपि आज प्रदेश भर में अवकाश था और सरकारी कार्यालय बंद थे, फिर भी प्रदेश में अधिकतर जिलों में भाकपा कार्यकर्ता सडकों पर उतरे और विरोध प्रदर्शन किये. निर्वाचन आयोग को सम्बोधित ज्ञापन जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को सौंपे गये. राजधानी लखनऊ में भाकपा एवं माकपा के कार्यकर्ताओं ने विधान भवन के सामने प्रदर्शन किया और इन घटनाओं के लिये जिम्मेदार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी का पुतला फूंका. प्रदर्शन का नेत्रत्व भाकपा के जिला सचिव मोहम्मद खालिक एवं माकपा के जिला सचिव छोटे लाल ने किया. बाद में मोहम्मद खालिक के नेत्रत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने सिटी मजिस्ट्रेट हरिप्रसाद शाही के कार्यालय में पहुंच कर निर्वाचन आयोग को संबोधित ज्ञापन प्राप्य कराया. इसी तरह के विरोध प्रदर्शन भाकपा की मथुरा, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, अलीगढ़, गाज़ियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, जे. पी. नगर, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहांपुर, कानपुर, फतेहपुर, जालौन, झाँसी, बाँदा, इलाहाबाद, फैजाबाद, सुल्तानपुर, बलरामपुर, कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर, मऊ, आजमगढ़, बस्ती, जौनपुर, प्रतापगढ़, राबर्ट्सगंज एवं चंदौली जिला कमेटियों ने भी आयोजित किये. भाकपा राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने अपने बयान में कहा कि आशा की जाती है कि निर्वाचन आयोग मामले को गंभीरता से लेगा और लोकतंत्र के हित में उन बूथों पर दोबारा मतदान के आदेश तत्काल देगा जहाँ हिंसा और हथियारों के बल पर लोगों को मतदान से रोका गया है और फर्जी मतदान किया गया है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा प्रायोजित हिंसा और धांधली की घटनाओं के मामलों में कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिये. डॉ. गिरीश
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रविवार, 11 मई 2014

सांप्रदायिक विष- वमन एवं प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम हैं मेरठ की घटनायें. राज्य सरकार कड़े कदम उठाए--भाकपा

लखनऊ- ११ मई, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल घटित हुई मेरठ की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है. भाकपा ने मांग की है कि इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाये. यहाँ जारी एक बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि पिछले दिनों मेरठ, मुजफ्फरनगर एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुये दंगों से संप्रदायों के बीच गहरी खाई पैदा होगई थी. इस बीच भाजपा एवं संघ परिवार ने अपने चुनाव अभियान में बड़े पैमाने पर विष- वमन किया और इस खाई को और भी चौड़ा करने का काम किया है. ऐसे गरमाए माहौल में संवेदनशील स्थानों पर कोई भी छोटी घटना भयावह रूप ले सकती है. मेरठ की घटना इसी वातावरण की देन प्रतीत होती हैं. डॉ. गिरीश ने कहाकि घटनास्थल के हालात बताते हैं कि एक विवादित स्थान पर होरहे निर्माण को लेकर पैदा हुई तनातनी को अगर स्थानीय पुलिस- प्रशासन ने सख्ती से हाथ के हाथ दबा दिया होता तो मामला इतना तूल नहीं पकड़ता. पुलिस- प्रशासन की इसी ढिलाई का फायदा उठाते हुये वहां सांप्रदायिक शक्तियाँ सक्रिय होगयीं और वहां खूनी संघर्ष होगया. मेरठ और आसपास के जिलों के तमाम भाजपा नेता वहां जुट गये थे. डॉ. गिरीश ने राज्य सरकार से मांग की है कि वे घटनाओं के जिम्मेदार सभी तत्वों को चिन्हित कर शीघ्र कानूनी कार्यवाही करे. उन्होंने चेतावनी दी है कि चुनाव परिणाम आने पर बौखलाये तत्व ऐसी और भी वारदातों को अंजाम दे सकते हैं अतएव राज्य सरकार को कड़ी चौकसी बरतनी चाहिये. साथ ही प्रदेश की जनता से भी अपील की कि वह सांप्रदायिक तत्वों के उकसाबे में न आये डॉ. गिरीश
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शनिवार, 10 मई 2014

सरमाये एवं मीडिया का नग्न नृत्य और असहाय चुनाव आयोग

लोक सभा चुनाव के अंतिम दौर का प्रचार आज सायं समाप्त हो जायेगा और इस अंक के पाठकों तक पहुंचने के पहले चुनाव परिणाम घोषित हो चुके होंगे और नई सरकार के गठन की कवायद चल रही होगी। लोक सभा चुनावों के चुनाव परिणामों के बारे में कोई भी टिप्पणी परिणाम आने के बाद ही की जा सकती है लेकिन इस चुनाव के दौरान जिस तरह सरमाये एवं मीडिया ने एक व्यक्ति विशेष को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अभियान चलाया और जिस तरह चुनावों के दौरान धर्म एवं जातियों में मतदाताओं के संकीर्ण ध्रुवीकरण के प्रयास हुए, वह दोनों निहायत चिन्ताजनक है। भारतीय संविधान की आत्मा जार-जार की जाती रही। इस पूरे चुनाव के दौरान मुद्दे गायब रहे, जनता के सरोकार गायब रहे और चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो गई। जिस विकास की बातें की गईं, उस तरह का विकास पूरे देश में जगह-जगह पिछले 23 सालों में देखने को मिलता रहा है। इस दौर में हर चीज बढ़ती रही है, सरमायेदारों का सरमाया बढ़ता चला गया है और गरीबों की गरीबी बढ़ती चली गई है। महंगाई, बेरोजगारी, दमन, उत्पीड़न, अपराध सब प्रगति के पथ पर बेरोकटोक आगे बढ़ते रहे हैं। नई आर्थिक नीतियों की शुरूआत में नीति नियंताओं और साम्राज्यवादी अर्थशास्त्रियों का दावा था कि सरमायेदारों का सरमाया बढ़ने से टपक-टपक कर पैसा आम जनता तक पहुंचने लगेगा और यह सिद्धान्त ‘ट्रिकल डाउन’ थ्योरी के रूप में जाना गया। 23 साल बीत गये हैं परन्तु ऐसा होता कहीं दिखाई नहीं दिया। ऊपर से नीचे टपकता धन कहीं दिखाई नहीं दिया। उलटे नीचे से उछल कर धन ऊपर वालों की तिजोरियों में जाता रहा।
तीव्र ध्रुवीकरण के लिए नेता अनाप-शनाप बोलते रहे। लम्बे समय तक चुनाव आयोग खामोश रहा। अमित शाह, तोगड़िया, गिरिराज सिंह और बाबा रामदेव सरीखे अन्यान्य के आपत्तिजनक बयानों को लेकर निर्वाचन आयोग पर उदारता बरतने के आरोप लगते रहे। फिर उसने कुछ को नोटिसें और कुछ के खिलाफ एफआईआर लिखाने के निर्देश दिये। शुरूआत में अमित शाह एवं आजम खां के उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करने पर पाबंदी लगा दी परन्तु बाद में अमित शाह के माफी मांगने के बाद उन पर लगाया गया प्रतिबंध वापस ले लिया गया। सवाल उठता है कि ऐसा क्यों किया गया? यदि एक अपराध किया जाता है तो दुनियां के किसी भी कानून में माफी मांग लेने से अपराध की तीव्रता कम नहीं हो जाती। चुनाव आयोग को बार-बार चैलेन्ज किया जाता रहा। कभी आजम खां ने तो कभी मोदी ने संवैधानिक संस्था पर दवाब बनाने के प्रयास किये। वाराणसी में बिना अनुमति मोदी ने रोड शो किया और ध्रुवीकरण के तमाम प्रयास किये। चुनाव आयोग निरपेक्ष भाव से देखता रहा। संवैधानिक संस्थाओं को सार्वजनिक रूप से चैलेन्ज करना लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है।
विज्ञापनों एवं पेड न्यूज की भरमार रही। इलेक्ट्रानिक मीडिया पूरी तरह और प्रिंट मीडिया का बहुत बड़ा हिस्सा बिका हुआ साफ दिखाई दिया। विज्ञापनों के अलावा खबरों तथा सर्वेक्षणों को इस प्रकार पेश किया गया कि जनता का अधिसंख्यक तबका मानने लगा है कि मीडिया बिका हुआ था। मीडिया की विश्वसनीयता पर अभूतपूर्व प्रश्नचिन्ह लग गया है।
चुनावों के दौरान कई स्थानों पर पैसे के बल पर मतदाताओं के खरीदने के नापाक प्रयास किये जाने के समाचार हैं। कई स्थानों पर बूथ कैपचरिंग की भी घटनायें हुई हैं। आश्चर्य का विषय है कि कई पोलिंग बूथों पर 100 प्रतिशत से अधिक मत पड़ने के समाचार मिले हैं। ऐसा कैसे सम्भव हुआ, इसका कोई उत्तर किसी के पास नहीं है।
सबसे अधिक चिन्ता का विषय यह है कि चुनावों के दौरान मीडिया में वामपंथ को कोई स्थान नहीं मिला। चुनाव सर्वक्षणों में वामपंथ को 20 सीटों के करीब सिमटा दिया गया। चुनाव परिणाम क्या होंगे, इस बारे में कयास लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह अंक पाठकों तक पहुंचते-पहुंचते चुनाव परिणाम घोषित हो चुके होंगे।
चुनाव परिणाम कुछ भी हों, देश पिछले 23 सालों से जिन आर्थिक नीतियों के रास्ते पर चल रहा है, उसमें बदलाव की कोई भी संभावना नहीं दिखाई दे रही है। अगर तीसरे मोर्चे की भी सरकार बन जाती है, तो उसमें अधिसंख्यक वहीं क्षेत्रीय राजनैतिक दल होंगे जो अपने-अपने राज्यों में जनविरोधी पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को अमल में लाते रहे हैं।
इन आर्थिक नीतियों में बदलाव के लिए चुनावों के बाद वामपंथ, विशेषकर भाकपा को अपनी रणनीति में सुधार की दिशा में निर्ममता के साथ आगे बढ़ना होगा। प्रखर जनांदोलनों के जरिये जनता को पंूजीवाद के खिलाफ लामबंद करने की दिशा में हमें आगे बढ़ना होगा।
इस चुनाव के दौरान चुनाव सुधारों की आवश्यकता बहुत ही प्रबलता के साथ महसूस की गई। इस दिशा में प्रखर जनांदोलन समय की मांग है। भाकपा को इसके लिए पहल करनी होगी।
- प्रदीप तिवारी
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आकाशवाणी से ९.५.१४ को प्रसारित डॉ.गिरीश का चुनाव प्रसारण.

देश के मतदाता भाइयो और बहिनों, 16वीं लोकसभा के लिए चुनाव अभियान अपने अंतिम दौर में है। देश की विभिन्न राजनैतिक पार्टियों एवं ताकतों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए आक्रामक अभियान चलाया हुआ है। हमारे देश के चुनावी इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब पूंजीपतिवर्ग खास कर कार्पाेरेट घराने सांप्रदायिक ताकतों के पक्ष में पूरी ताकत से अभियान चला रहे हैं और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये वे प्रचार माध्यमों का भरपूर स्तेमाल कर रहे हैं। कार्पाेरेट्स इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि अपना हित साधने के लिये जितना काम उन्होंने कांग्रेस से लिया है उससे कहीं ज्यादा काम वे भाजपा और उसके काल्पनिक प्रधानमंत्री से ले सकेंगे। कार्पाेरेट घराने यह भी जानते हैं कि यूपीए सरकार ने जब भी कार्पाेरेट्स के पक्ष में फैसला लिया तो विपक्ष में होने के बाबजूद भाजपा ने उसका साथ दिया। देश की जनता निश्चित ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से आजिज आ चुकी है। अभूतपूर्व महंगाई, हर क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और रोजगारों के छिनते चले जाने, निजीकरण के चलते शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के आमजनों के लिए दुर्लभ हो जाने, डीजल, पेट्रोल और गैस एवं जनहित में अन्य वस्तुओं पर दी जाने वाली सब्सिडीज को योजनाबद्ध तरीके से घटाते जाने तथा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को विभाजित और पंगु बना डालने जैसी उसकी कारगुजारियों ने जनता की मुसीबतों को बेहद बढ़ा दिया है। अतएव लोग कांग्रेस से बेहद नाराज हैं। आम जनता की इस नाराजगी को भुनाने के लिये ही भाजपा और संघ परिवार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वे देश की शीर्ष सत्ता पर आसीन हो कर अपने संरक्षक कार्पाेरेट घरानों के आर्थिक एवं व्यावसायिक एजेंडे तथा संघ परिवार के सांप्रदायिक एजेंडे को लागू करना चाहते हैं। परन्तु यहाँ सवाल यह है कि क्या बीजेपी वाकई कोई ऐसा वास्तविक बदलाव ला सकती है जैसा जनता चाहती है? सवाल यह भी है कि यूपीए सरकार ने जब संसद में जनविरोधी, किसान विरोधी और मजदूर विरोधी कई कानून पारित करने की कोशिश की तो क्या कभी भाजपा ने उसे रोकने की कोशिश की? सरकार ने जब जनता की मुसीबतें बढ़ाने वाले कई फैसले लिए अथवा कार्यवाहियां कीं तो क्या कभी भाजपा ने इनको रोकने की कोशिश की? क्या भाजपा की आर्थिक नीतियाँ और दृष्टिकोण कांग्रेस से किसी भी तरह अलग हैं? इन सभी का जबाब है - नहीं, नहीं, बिलकुल नहीं। स्पष्ट है कि भाजपा देश में सांप्रदायिक विभाजन कर अपने विनाशकारी आर्थिक एजेंडे को ही मुस्तैदी से लागू करेगी और जिन समस्यायों से जनता छुटकारा पाना चाहती है, भाजपा के पास उनके समाधान का कोई रास्ता नहीं है। देश के कई राज्यों में वामदलों से अलग कई दल हैं जो क्षेत्रीय पहचान अथवा सामाजिक न्याय के सवालों को उठाकर सत्ता में आते रहे हैं। परन्तु उनकी आर्थिक नीतियां भी कांग्रेस और भाजपा के समान हैं। राज्यों में सत्ता में आने पर ये पार्टियाँ भी आर्थिक नव उदारवाद की उन्हीं नीतियों को लागू करती हैं जिनसे खेती और कुटीर उद्योग बर्बाद होते हैं और महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कुपोषण जैसी समस्यायें पैदा होती हैं। सत्ता में भागीदारी के लिए ऐसे दल सांप्रदायिक भाजपा से भी जुड़ जाते हैं। देश के मौजूदा परिदृश्य को सत्ता शीर्ष पर केवल पार्टियों को बदल कर नहीं बदला जा सकता। इसको आर्थिक नव उदारवाद की नीतियों को पलट कर वैकल्पिक नीतियों को लागू कर ही बदला जा सकता है। और केवल वामपंथ ही ऐसी वैकल्पिक नीतियों को पेश करता रहा है और वामपंथ के पास ही हालात बदलने का बुनियादी रास्ता है। यह मुख्यतः वामपंथ ही है जो मजदूर वर्ग, किसानों, दस्तकारों, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों तथा पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण के शिकार सभी मेहनतकशों के हितों की रक्षा में लगातार संघर्ष करता रहा है। सदन में उसकी संख्या कुछ भी रही हो, जनता के पक्ष में नीतियां बनवाने में और संसद के बाहर संघर्षरत जनता की मांगों को बुलंद करने में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक अग्रणी ताकत के रूप में काम करती रही है। आज की परिस्थिति का तकाजा है कि देश की संप्रभुता, जनता की रोजी-रोटी, आवास, रोजगार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के अधिकार और धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को संसद के अंदर और बाहर मजबूत करने के लिए वामपंथ और जोरदार तथा लम्बा संघर्ष चलाये। इसके लिए जरूरी है कि १6वीं लोकसभा में वामपंथ का एक मजबूत ब्लाक पहुंचे। अतएव आप सभी से विनम्र निवेदन है कि लोकसभा चुनावों में जहां-जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार मैदान में हैं, वहां भाकपा के चुनाव निशान - ”बाल हंसिया“ के सामने वाला बटन दबा कर उन्हें भारी बहुमत से विजयी बनायें। धन्यवाद!
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निर्वाचन आयोग पर भाजपा के हमलों की भाकपा निंदा करती है.

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि अपनी अपेक्षित जीत से काफी दूर दिखाई देरही भाजपा इस कदर बौखला गई है कि अब वह संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करने पर उतर आयी है. हाल ही में उसने चुनाव आयोग को निशाना बनाया है. भाजपा और उसके प्रवक्ताओं ने चुनाव आयोग पर चहुँतरफा हमले बोल दिए हैं. भाकपा इसकी कड़े शब्दों में निंदा करती है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि भले ही भाजपा भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुये ही सत्ता और राजनीति में भागीदारी करती है, लेकिन वह संविधान और संवैधानिक संस्थाओं की विरोधी है. उसकी सांप्रदायिक राजनीति एवं उसके द्वारा बाबरी ढांचे का तोड़ा जाना आदि अनेक उदाहरण हैं जो इस तथ्य की पुष्टि करते हैं. अब निर्वाचन आयोग द्वारा वाराणसी में उसकी सभा को सुरक्षा कारणों से अनुमति न दिए जाने पर भाजपा बुरी तरह तिलमिला गई है और निर्वाचन आयोग पर तीखे हमले कर रही है. वह मतदाताओं को यह संदेश देना चाहती है कि चुनाव आयोग उसके साथ ज्यादती कर रहा है. इस तरह वह मतदाताओं की हमदर्दी बटोरना चाहती है. वह भूल गयी कि अमितशाह, तोगड़िया, गिरिराज सिंह और बाबा रामदेव के आपत्तिजनक बयानों को लेकर निर्वाचन आयोग पर भाजपा के प्रति कथित उदारता बरतने के आरोप लगते रहे हैं. भाकपा ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को बधाई दी है कि उन्होंने दोटूक शब्दों में भाजपा की धौंसपट्टी में न आने का ऐलान कर दिया. किसी भी संवैधानिक संस्था पर हमले को भाकपा बेहद आपत्तिजनक मानती है और भाजपा को चेतावनी देना चाहती है कि वह अपनी संविधान विरोधी कारगुजारियों से बाज आये वरना भाकपा संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा के लिए जनांदोलन चलायेगी और भाजपा को बेनकाब करेगी. डॉ. गिरीश
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Election Telecast of CPI on Doordarshn. (9.5.14.) By Dr.Girish.

प्रिय मतदाता भाइयों एवं बहनों, आप सभी लोक सभा के चुनावों की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और आप सभी को पिछले चुनावों की तुलना में ज्यादा विवेक और सूझ-बूझ के साथ मत का प्रयोग करना है क्योंकि देश के सामने जैसी चुनौतियाँ आज हैं, पहले कभी न थीं। जनता की जैसी हालत आज है, वैसी कभी न थी। पूंजीवादी नीतियों और सरकारों की कारगुजारियों के चलते आज महंगाई सातवें आसमान पर है। महंगाई ने आम और गरीब लोगों की मुसीबतें बेहद बढ़ा दी हैं। अनेक लोग आधे पेट सोने को मजबूर हैं। एक ओर मुट्ठी भर लोग अरबों-खरबों की सम्पत्ति के स्वामी हैं तो बहुमत लोग बेहद गरीब हैं। खुद सरकार ने स्वीकार किया है कि 78 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 20 रूपये से कम में गुजारा करते हैं। एक तिहाई बच्चे और 50 फीसदी मातायें कुपोषण की शिकार हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की जनविरोधी नीतियों के कारण देश के किसान कंगाल हो चुके हैं। कर्ज में डूबे किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं। मजदूरों और कर्मचारियों के न तो जीवन की सुरक्षा है न उनकी नौकरियों की। बढ़ती जा रही बेरोजगारी नौजवानों के लिए अभिशाप बन चुकी है। रिक्त होने वाले पदों पर नौकरियां नहीं दी जा रहीं हैं। शिक्षा का बजट लगातार कम हो रहा है। दोहरी शिक्षा प्रणाली और बेहद महंगी फ़ीस के कारण आम आदमी बच्चों को पढ़ा ही नहीं पा रहा है। केंद्र की सरकार इस बीच तमाम घपलों-घोटालों में जुटी रही। लाखों करोड़ के इन घोटालों में जनता के पसीने की कमाई सरकारी खजाने से निकल कर भ्रष्टाचारियों की तिजोरियों में पहुंच गयी। आम लोग विकास से वंचित रह गये। मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है। उसने भ्रष्टाचार जैसे सवालों पर संसद में कभी सार्थक बहस नहीं होने दी। इसके दो राष्ट्रीय अध्यक्षों पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे जिनमें से एक को न्यायालय से सजा तक मिली। कर्नाटक के इसके पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार की खबरें जगजाहिर हैं। इस दौर में हमारे प्राकृतिक संसाधनों की बेपनाह लूट चलती रही। इन भ्रष्टाचार और घोटालों के सभी मामलों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने मजबूत आवाज उठाई और कोयला आबंटन घोटाला तथा एक उद्योग समूह द्वारा निकाली जाने वाली गैस के दाम कई गुने किये जाने के घपले को तो भाकपा के नेताओं ने ही उजागर किया था। हालात यह हैं कि करोड़ों लोगों के पास रहने को घर नहीं है। शहरों की आबादी का बड़ा भाग झुग्गी-झोपड़ियों में रह रहा है। बड़ी संख्या में लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिलता। शहरों-कस्बों में उच्चस्तरीय प्रदूषण के चलते श्वांस लेना कठिन है। कुपोषण, प्रदूषण और दूषित जल से बीमारियों में इजाफा हो रहा है। ऊपर से इलाज इतने महंगे हो गये हैं कि आम आदमी बिना इलाज के तड़प-तड़प कर मर रहा है। यह सब पूंजीवादी नीतियों को निर्ममता से चलाने का दुष्परिणाम है। पिछले दो दशकों में यह व्यवस्था आर्थिक नवउदारवाद के आवरण में लपेट कर चलायी जाती रही है। इसके चलते देश की दौलत का बहुत बड़ा भाग पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की झोली में पहुँच चुका है जिसका बड़ा भाग विदेशी बैंकों में डाला जा चुका है। अभावों के महासागर में धकेल दी गई जनता में भारी असंतोष और गुस्सा है। केंद्र में सत्ता में होने के कारण कांग्रेस इन हालातों के लिए जिम्मेदार है। कांग्रेस से नाराज लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस के समान आर्थिक नीतियों पर ही चलने वाली भाजपा उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं ला सकती। वह और भी मुस्तैदी से गरीबों की लूट का एजेंडा चलाएगी। लोगों की इस नाराजगी को भुनाने के लिए भाजपा एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। कारपोरेटों की पूँजी और उनके द्वारा नियंत्रित मीडिया उसके प्रचार अभियान को धार देने में जुटे हैं। भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता में आने को छटपटा रही है तो कारपोरेट घराने उसे सत्ता में बैठा देने को आतुर हैं ताकि कारपोरेटों को मालामाल और आमजनों को कंगाल बनाने के एजेंडे को निर्ममता से लागू किया जा सके। वामपंथी दलों को तो इस कारपोरेटी मीडिया ने पूरी तरह किनारे कर रखा है। जनता को लुभाने को गुजरात के कथित विकास की लम्बी-चौड़ी बातें की जा रही हैं। आजादी के पहले ही गुजरात में पूँजी का विकास देश के अन्य भागों की तुलना में ज्यादा हो चुका था। गत दशक में तो वहां किसानों की जमीनें बेहद कम कीमत पर अधिग्रहण कर पूंजीपतियों को मुफ्त में सौंपी गयी हैं। यहाँ तक कि सीमाओं की रक्षा के उद्देश्य से कच्छ में बसाये गये सिक्ख किसानों को भी नहीं बक्शा गया और उनकी जमीनें अधिगृहीत कर बड़े उद्योग समूहों को दे दी गयीं। वहां कुपोषण, शिशु मृत्युदर और जननी मृत्युदर देश के अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है। मजदूरों को तो साधारण अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं। नये रोजगार सृजन में गुजरात पीछे है तथा वहां तरक्की की दर राष्ट्रीय दर से कम है। दशकों पहले हुये विकास को भी भाजपा अपने सत्ताकाल के विकास के रूप में प्रचारित कर रही है। देश में संसदीय प्रणाली लागू है जिसके अंतर्गत चुन कर आने वाले सांसदों का बहुमत प्रधानमंत्री का चुनाव करता है। लेकिन सत्ता पाने को व्याकुल भाजपा एवं संघ परिवार ने साम्प्रदायिक विभाजन को तीव्र कर वोट पाने की गरज से घनघोर सांप्रदायिक व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। यह संसदीय प्रणाली को बदल कर राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने की भाजपा की चिर-परिचित नीति को आगे बढाने का प्रयास भी है। सांप्रदायिक विभाजन को तीखा करने की गरज से भाजपा और संघ परिवार के नेता तमाम भड़काने वाली बयानबाजियां कर रहे हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की यह राय है कि हमारा महान देश अनेक धर्मों, संप्रदायों, भाषाओं और संस्कृतियों का संमिश्रण है। धर्मनिरपेक्षता हमारी राष्ट्रीय एकता का मुख्य आधार है। हम सभी धर्माबलंबियों को यह भरोसा दिलाने के पक्षधर हैं कि वे सुरक्षित हैं और उन्हें समान अवसर मिलेंगे। देश में सांप्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने हमेशा देश और देश की जनता के हित में अभूतपूर्व योगदान किया है। आजादी की लड़ाई में हम किसी से पीछे न थे। इतिहास गवाह है कि जमींदारी के उन्मूलन और व्यापक भूमि सुधार के लिए हमने निर्णायक आन्दोलन किये। बैंकों का राष्ट्रीयकरण कराने और राजाओं का प्रिवीपर्स समाप्त कराने में हमने ठोस भूमिका निभाई। सार्वजनिक क्षेत्र की मजबूती के लिए हमने मजबूत आवाज उठाई। हमारे समर्थन पर टिकी संप्रग-1 सरकार को मनरेगा, सूचना का अधिकार अधिनियम, आदिवासी अधिकार अधिनियम, घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम आदि पारित करने के लिए बाध्य किया। सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखने को हम हमेशा मैदान में डटे रहे। हाल में भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने महंगाई को नीचे लाने, भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने, सभी को खाद्य सुरक्षा दिलाने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यापक बनाने, किसानों को उनकी पैदावारों का समुचित मूल्य दिलाने, किसानों बुनकरों दस्तकारों और सभी जरूरतमन्दों को रूपये 3000/- प्रति माह पेंशन दिलाने, मजदूरों को उचित वेतन दिलाने, ठेकेदारी प्रथा समाप्त कराने, बेरोजगारों को रोजगार दिलाने, शिक्षा का बाजारीकरण रोके जाने, स्वास्थ्य सेवाओं को आमजन के लिए सुलभ बनाने आदि के लिए भी निरंतर आवाज उठाई है। महिलाओं, आदिवासियों, दलितों एवं अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण के लिए भी हम अनवरत संघर्ष करते रहे हैं। इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि देश और समाज के समक्ष मौजूद चुनौतियों से तभी निपटा जा सकता है जब आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों की जगह जनता के बुनियादी हितों को साधने वाली वैकल्पिक नीतियों को आगे बढाया जाये। और यह तभी संभव होगा जब संसद में एक मजबूत वामपंथी ब्लाक जीत कर आये। यह वामपंथी ब्लाक ही संसद से सडक तक इन मुद्दों पर संघर्ष करेगा। मतदाता भाइयो और बहिनों, मौजूदा निजाम को बदलो, इससे से भी बदतर निजाम को आने से रोको और वामपंथी जनवादी ताकतों के हाथ मजबूत करो। अतएव आपसे अनुरोध है कि जहां-जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं वहां उनके चुनाव निशान - “हंसिया बाली“ के सामने वाला बटन दबा कर उन्हें भारी बहुमत से विजयी बनायें। धन्यवाद!
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शनिवार, 26 अप्रैल 2014

बौखलाये भाजपाई और उनके समर्थकों की भड़कावेपूर्ण बयानबाजी की भाकपा ने कड़े शब्दों में निंदा की.

लखनऊ- २६ अप्रैल २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल लखनऊ में बाबा रामदेव द्वारा दलितों, दलित लड़कियों और महिलाओं के प्रति बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियां किये जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने बाबा रामदेव एवं भड़काऊ और आपत्तिजनक बयान देने वाले अन्य भाजपाइयों के विरुध्द कठोर कार्यवाही की मांग की है. भाकपा ने रामदेव से दलितों, दलित बालिकाओं और महिलाओं से फ़ौरन माफ़ी मांगने की मांग भी की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहाकि अभी तो सत्ता उनकी पहुँच से कोसों दूर है, लेकिन भाजपाई और उसके समर्थक अभी से बौखला गये हैं. इसलिए वे दलितों, दलित बालिकाओं, महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के प्रति अनर्गल और भड़कावेपूर्ण बयानबाजी पर उतर आये हैं. इस क्रम में पहले गिर्राज सिंह फिर प्रवीण तोगड़िया और अब बाबा रामदेव ने घिनौना बयान दिया है. उन्होंने कहाकि राहुल गाँधी और श्री मोदी की पत्नी के सन्दर्भ में बाबा रामदेव ने जो घ्रणित प्रलाप किया है उसे इस बयान में उद्धृत तक नहीं किया जासकता क्योंकि उससे उन सभी तबकों को चोट ही पहुंचेगी जिनके बारे में ये बयान दिए गये हैं. लेकिन ये सभी बयान बेहद आपत्तिजनक हैं और भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर सीधा आक्रमण हैं, जिसकी कि भाजपा दुहाई देते नहीं अघाती. लेकिन इन बयानों से दलितों, स्त्रियों, अल्पसंख्यकों तथा समाज के अन्य कमजोर तबकों के प्रति भाजपा के सोच की सच्चाई उजागर होजाती है. भाकपा बाबा रामदेव, प्रवीन तोगड़िया, गिर्राज सिंह एवं ऐसे बयान देने वाले अन्य सभी लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही किये जाने की मांग करती है. साथ ही सभी सभ्य एवं मर्यादित लोगों से अपील करती है कि वे इन बयानों के प्रति अपना विरोध जताएं. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव भाकपा, उत्तर प्रदेश
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शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

बलात्कार सम्बन्धी बयान: मुलायमसिंह माफ़ी मांगें. भाकपा की मांग.

लखनऊ- ११, अप्रेल २०१४—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने श्री मुलायम सिंह यादव के उस बयान की कड़े से कड़े शब्दों में भर्त्सना की है जिसमें उन्होंने बलात्कार जैसे जघन्यतम अपराध को लडकों की छोटी सी गलती करार दिया है और बलात्कारियों को फांसी की सजा का विरोध किया है. इतना ही नहीं सपा सुप्रीमो ने इस कानून को ही बदलने तक की धमकी दे डाली है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहाकि मुलायम सिंह जैसा व्यक्ति जो देश के सबसे बड़े सूबे, जहाँ बलात्कार भी सबसे ज्यादा होते हैं में शासन कर रहे दल के मुखिया हैं. ऐसे व्यक्ति द्वारा बलात्कारियों के पक्ष में दिए बयान से बलात्कारियों के हौसले और भी बढेंगे और महिलाओं की सुरक्षा और भी खतरे में पड़ जायेगी. भाकपा इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताती है और श्री यादव से स्पष्ट मांग करती है कि वे इस घिनोने बयान के लिए समाज खास कर महिलाओं से अविलम्ब माफी मांगें. भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि इस जघन्य अपराध के खिलाफ बने कानून को बदलने का सपना श्री यादव नहीं ही देखें तो अच्छा है. पहले तो वे कानून बदलने की हैसियत में ही नहीं आपायेंगे और ऐसा कदम उठायेंगे तो उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा. भाकपा स्वयं ऐसे किसी कदम का पुरजोर विरोध करेगी. डॉ. गिरीश
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गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

मोदी का ढोंग बेनकाब: सार्वजनिक जीवन में बने रहने का खोया नैतिक अधिकार. चुनाव लड़ने पर रोक लगाये आयोग.

लखनऊ- १० अप्रेल २०१४. अपने नामांकन पत्र में यशोदा बेन को पत्नी स्वीकार करने के बाद मोदी, उनके आका संघ परिवार एवं भाजपा का ढोंग पूरी तरह बेनकाब हो गया है. शुचिता, पवित्रता एवं भारतीय संस्कृति के अलमबरदार होने के दाबे करने वाले भाजपाई तो अब मुहं दिखाने के काबिल नहीं रहे. यशोदा बेन के जीवन को बरबाद करने वाले और इतनी बड़ी घटना को अब तक छिपा कर रखने वाले श्री मोदी को तो अब सार्वजनिक जीवन में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. भाकपा मोदी से सभी पदों से स्तीफा देने और उनके आका आर.एस.एस. से देश और देश की महिलाओं से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने की मांग करती है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहाकि देश के सर्वोच्च पद पर आँख गड़ाए बैठे श्री मोदी दो दिन पहले तक अपने आपको अकेला बताते रहे और दूसरों पर आपत्तिजनक और बेहद भद्दी टिप्पड़ियां करते रहे. लेकिन कल निर्वाचन आयोग के भय से उन्हें अपने नामांकन पत्र में अपनी पत्नी का नाम भरना पड़ा और उनके जीवन का बेहद कलुषित पन्ना उघड़ कर सामने आगया. इसके बाद तो उन्हें सार्वजनिक जीवन में रहने का कोई अधिकार नहीं है. इससे भी बढ़ी बात यह है कि श्री मोदी ने अब तक लड़े सभी चुनावों में इस तथ्य को छिपाया और कानून का उल्लंघन किया. निर्वाचन आयोग को उनका गुजरात विधान सभा का चुनाव तत्काल रद्द करना चाहिये तथा उनके कल भरे नामांकन को निरस्त कर उनके छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिये. डॉ. गिरीश.
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शनिवार, 5 अप्रैल 2014

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र

देश चौराहे पर खड़ा है। नव उदारवादी नीतियों पर बेशर्मी के साथ चलते जाने के कारण देश एक ऐसे संकट में पड़ गया है जो हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रहा है। देश की जनता भूख, सभी आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों, लगातार बढ़ती महंगाई और बढ़ती आर्थिक असमानता से त्रस्त है। पिछले दो दशकों के दौरान एक के बाद आने वाली दूसरी सरकार जिन नीतियों पर चलती रही हैं, वे कारपोरेटों के पक्ष में और जनता के हितों के सरासर विपरीत रही। इन नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है। राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों को बेशर्मी के साथ लूटा गया और शीर्षस्थ नौकरशाही की मिलीभगत से कारपोरेट घरानों और शासक राजनीतिक नेताओं के बीच इस लूट का बंटवारा हुआ, जिसके फलस्वरूप लाखों-करोड़ों रूपये के अभूतपूर्व बड़े घपले-घोटाले हुए। इस लूट और भ्रष्टाचार के पर्दाफाश के बावजूद शासक वर्ग आर्थिक विकास के उसी विनाशकारी रास्ते पर आगे बढ़ने पर आमादा है। अब यही लुटेरे, और कारपोरेट घराने देश में एक ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रहे हैं जो इनकी और अधिक खिदमत और ताबेदारी करे। इसके लिए वे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तबाह करने को भी तैयार हैं।
देश की जनता 16वीं लोकसभा के लिए ऐसे समय में मतदान करने जा रही है जब देश धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और आर्थिक सम्प्रभुता के गंभीर खतरे से दो-चार है।
दो दशक पहले देश गठबंधन सरकार के दौर में दाखिल हुआ और इन चुनावों के बाद भी एक अन्य गठबंधन सरकार ही बनने वाली है क्योंकि किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को बहुमत मिलने वाला नहीं है। चुनाव बाद के परिदृश्य में जबर्दस्त राजनीतिक मंथन एवं गहमा-गहमी होगी जिसके फलस्वरूप राजनीतिक ताकतों की फिर से कतारबंदी होगी। चुनाव से पहले और चुनाव के बाद दोनों ही परिदृश्यों में मुख्य मुद्दा लाजिमी तौर पर यह होगा कि देश किस रास्ते पर आगे चले - नवउदारवाद के विनाशकारी रास्ते पर चलना जारी रखे या एक ऐसे कार्यक्रम आधारित विकल्प पर आगे बढ़े जो वर्तमान विनाशकारी रास्ते को पलटे और ऐसे विकास का सूत्रपात करे जिससे विकास के लाभ सभी को बराबर मिलें और जो देश में बहुलवाद और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा करे और उसे और अधिक मजबूत करे।
कांग्रेस का चुनावी ग्राफ निश्चित तौर पर गिर रहा है क्योंकि संप्रग-2 सरकार स्वतंत्रता के बाद की सबसे अधिक भ्रष्ट और सबसे अधिक कुशासन की सरकार साबित हुई है। रोज-रोज सामने आने वाले बड़े-बड़े घपलों और घोटालों ने इसका हाल बिगाड़ दिया है। भ्रष्टाचार के कारण इसके लगभग आधा दर्जन मंत्रियों को सरकार से हटना पड़ा। एक मंत्री को तो 1.75 लाख करोड़ रूपये के घोटाले 2जी घोटाले में जेल भी जाना पड़ा। एक अन्य मंत्री को हटाना पड़ा क्योंकि उन्हें कोयला घोटाले के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में चल रही जांच रिपोर्ट में हस्तक्षेप करने का दोषी पाया गया जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय पर सीधे उंगली उठाई गई थी। कुछ मंत्रियों को अपने विभागों से इसलिए हटाया गया क्योंकि वे कारपोरेटों और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के इशारों पर चलने को तैयार नहीं थे।
अब यह और भी अधिक स्पष्ट हो गया है कि वित्त पूंजी और साम्राज्यवादी एजेंसियों का पक्ष लेने के कई मुद्दों पर शासक संप्रग-2 और मुख्य विपक्ष भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के बीच सीधी साठगांठ रही है। 15वीं लोकसभा में संसद के सभी सत्रों में न केवल कार्यवाहियों में रूकावटें एवं बाधाएं देखने में आयी बल्कि उसे इस बात का भी श्रेय जाता है कि उसमें पारित न हो सकने वाले बिलों की संख्या सबसे अधिक रही। उसमें अधिकतम कार्य दिवस बर्बाद हुए और साथ ही संसद के कार्य दिनों में भी भारी गिरावट आयी। वामपंथ ने जब भी उन बुनियादी, सामाजिक, आर्थिक समस्याओं को उठाना चाहा जिनसे जनता दो-चार है, दोनों पूंजीवादी राजनैतिक पार्टियों ने बुनियादी मुद्दों पर किसी सार्थक बहस को भितरघात करने के लिए परस्पर मिलीभगत कर ली। दूसरी तरफ, बैंकों एवं बीमा क्षेत्रों को निजी क्षेत्र, जिसमें बहुराष्ट्रीय निगम शामिल हैं, के हवाले करने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने आपस में साठगांठ की।
अपने मुनाफों को अधिकतम बढ़ाने की कोशिश में कारपोरेट घरानों ने उसे अपने इशारों पर नचाने के लिए सरकार में जोड़तोड़ करना जारी रखा, जिसका नतीजा आर्थिक संकट के और अधिक गहराने के रूप में सामने आया। 2008 के बाद से लगभग सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दोगुना हो गयी हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है जहां पर बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक है। देश की काम करने योग्य आबादी के लगभग 4 प्रतिशत हिस्से के पास कोई रोजगार नहीं है।
कारखाना बंदी और रोजगारों के आउटसोर्सिंग एवं ठेकाकरण के परिणामस्वरूप पहले से रोजगार में लगे हजारों-हजार लोगों से भी उनका रोजगार छीन गया है। अनेक सरकारी विभागों में ‘‘नई भर्ती नहीं की जाये’’ का आदेश लागू है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों को आउटसोर्सिंग के लिए मजबूर किया जा रहा है। रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे नीचे है। मजदूर वर्ग खतरे में है। ट्रेड यूनियन अधिकारों में लगातार कटौती की जा रही है। एक के बाद दूसरे क्षेत्रों को ट्रेड यूनियन अधिकारों से बाहर के क्षेत्र घोषित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट संप्रग-2 सरकार की एक अन्य खासियत है। उसने अपने हर बजट में बढ़ते वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली इकाईयों के शेयरों को निजी क्षेत्र के हवाले करने की योजना बनाई। उसने जानबूझकर, सोझ समझकर प्राकृतिक संसाधनों को निजी क्षेत्र के हवाले करने की इजाजत दी। संप्रग-2 सरकार के सबसे बड़े घोटाले, जिसमें मुकेश अंबानी की कंपनी द्वारा निकाली गयी गैस के लिए दोगुनी कीमत देना शामिल है, मुनाफों को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की लूट का सबसे बड़ा उदाहरण है।
नव उदारवाद की नीतियों पर चलने का एक अन्य नतीजा है बढ़ती आर्थिक असमानता। एक तरफ भारत में सबसे अधिक अरबपति हैं तो दूसरी तरफ गरीबी के रेखा से नीचे वालों की संख्या भी सबसे अधिक है। हमारे देश के 70 प्रतिशत से भी अधिक लोग 20 रूपये प्रति दिन भी खर्च करने में समर्थ नहीं हैं। इस सरकार को जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों में कटौती करने का भी श्रेय जाता है। आतंकवाद से लड़ने के नाम पर इसने अटल बिहारी बाजपेयी की पिछली भाजपा नीत राजग सरकार की उन नीतियों को जारी रखा है जिनमें ‘‘सभ्यता के टकराव’’ के उस अमरीकन सिद्धांत को अंगीकार कर लिया था जो मुस्लिम समुदाय को सभ्य जगत के लिए एक खतरे का नाम देता है। हजारों युवाओं को, अधिकांशतः शिक्षित युवाओं को गिरफ्तार किया गया और यहां तक कि एफआईआर दर्ज किये बिना जेल में रखा गया। जनता को उसके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने के लिए टाडा, एस्मा एवं पोटा की तर्ज पर काले कानून पारित किये गये हैं।
विदेश नीति अमरीकी साम्राज्यवाद की खिदमतगार-ताबेदार बनती जा रही है। अमरीकी दबाव में आकर राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाई जा रही है। रक्षा तैयारियों को मजबूत करने के नाम पर संकटग्रस्त अमरीकी अर्थव्यवस्था, विशेष तौर पर इसके सैन्य-औद्योगिक कॉम्पलेक्स को मदद करने के लिए अमरीका और इस्राइल से साजो-सामान खरीदा जा रहा है। यहां तक कि इस सरकार ने अमरीकी साम्राज्यवादियों के दबाव में आकर ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइप लाइन परियोजना को भी रद्द कर दिया। उसने हमारे राष्ट्रीय हितों को भी बलि चढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं राजनीतिक मंचों पर साम्राज्यवादियों के साथ साठगांठ की। विश्व व्यापार संगठन में अमरीकियों को खुश करने के लिए उसने ब्रिक्स देशों की सहमति के विरूद्ध काम किया। सीरिया और ईरान के परमाणु विकल्प जैसे नाजुक मुद्दों पर हमारी पोजीशन इस तरह के आत्मसमर्पण का एक स्पष्ट उदाहरण है।
कुल मिलाकर यह एक ऐसी सरकार साबित हुई है जो कारपोरेट पूंजी और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के हित साधती है।
परन्तु संप्रग-2 सरकार का अधिकतम दोहन करने के बाद कारपोरेट पूंजी और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी अब एक ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रही हैं जो उनकी खिदमत और ताबेदारी इस सरकार से भी अधिक करे। इसके लिए उन्होंने भाजपा के नरेन्द्र मोदी को चुन लिया है जिनके दामन पर 2002 के खून के दाग हैं और जो अपनी अधिनायकवादी सोच के लिए जाने जाते हैं। गुजरात में अपने एक दशक के मुख्यमंत्री काल में उन्होंने तीन पूर्व भाजपा मुख्यमंत्रियों को ठिकाने लगा दिया और उनके साथ उस नेता को भी हटा दिया जो बाजपेयी सरकार में गुजरात से अकेला मंत्री था। कारपोरेट घरानों द्वारा संचालित संचार माध्यमों ने नव-फासीवादी रूझान के इस व्यक्ति को उछालने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
परन्तु विकास के गुजरात मॉडल की सच्चाई का हर गुजरते दिन के साथ पर्दाफाश हो रहा है। उनकी सरकार केवल बड़े पंूजीपतियों के लिये ही है। उनके लिए उसने किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया और यह बेदखली इस हद तक हुई है कि अब गुजरात उन शीर्ष राज्यों में से है जहां कृषि योग्य जमीन सबसे अधिक कम हुई है। किसानों की जमीन को तथाकथित औद्योगीकरण के लिए अधिग्रहण कर लिया गया और बिल्डर माफिया के हवाले कर दिया गया। यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिन किसानों को कच्छ के सीमावर्ती इलाके में बसाया गया था उन्हें भी उस अदानी समूह के हितों की सेवा करने के लिए बेदखल किया जा रहा है जिसके पास उस जिले में पहले ही दो बन्दरगाह हैं। अदानी, टाटा, अम्बानी और एस्सार घरानों को ब्याज सब्सिडी दी गई है और खरबों रूपये 0.1 प्रतिशत की ब्याज दर पर दिये गये हैं जिनका वापस भुगतान 20 वर्ष या उससे भी बाद शुरू होगा। इसके फलस्वरूप गुजरात सरकार के खजाने में सामाजिक क्षेत्र के लिए कोई पैसा ही नहीं रह गया है। नरेन्द्र मोदी सरकार के एक दशक की खास निशानियां हैं बच्चों एवं महिलाओं का कुपोषण, शिक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का पूरी तरह से व्यवसायीकरण और बढ़ती बेरोजगारी।
मुस्लिम अल्पसंख्यकों को ऐसी तंग एवं गंदी बस्तियों में जहां केवल वे ही रहते हैं, रहने को जबरन भेजने के काम ने भी मोदीत्व का पर्दाफाश कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद मोदी सरकार ने केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित अल्पसंख्यक-उन्मुखी सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षणिक स्कीमों पर अमल करने से इन्कार कर दिया है। मुसलमान दंगे से पहले जहां रहते थे अपने उन मकानों में वापस जाने में असमर्थ हैं और अहमदाबाद में जूहूपुरा जैसी ऐसी गंदी बस्तियों में रह रहे हैं जहां केवल मुसलमान ही रहते हैं।
कारपोरेटों की इससे भी अधिक खिदमत और ताबेदारी करने वाली सरकार बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताने-बाने पर भी हमले किये जा रहे हैं। मतदाताओं के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को आगे बढ़ाने के लिए हर किस्म की तरकीब और चालाकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर इस खेल का एक सुस्पष्ट उदाहरण है।
आजादी के बाद, वामपंथ, विशेषकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का संसद के अंदर और बाहर जनता के लिए संघर्ष करने का एक शानदार रिकार्ड रहा है। सदन में उसकी संख्या कुछ भी रही हो, जनता के पक्ष में नीतियां बनवाने में और संसद के बाहर संघर्षरत जनता की मांगों को बुलंद करने में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक अग्रणी संसदीय ताकत के रूप में उभरी है। प्रोफेसर हीरेन मुखर्जी, भूपेश गुप्ता, इन्द्रजीत गुप्ता, गीता मुखर्जी एवं अन्य भाकपा नेताओं ने जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष और मेहनतकश जनता के संसदीय एवं इतर संसदीय संघर्षों को जोड़ने में उदाहरण कायम किये हैं।
आज की परिस्थिति का तकाजा है कि देश की सम्प्रभुता, जनता की रोजी-रोटी, आवास, शिक्षा एवं जन स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के लिए और धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था को संसद के अंदर एवं बाहर दोनों जगह मजबूत करने के लिए वामपंथ और अधिक जोरदार और लगातार एवं लम्बा संघर्ष चलाए। इसके लिए यह आवश्यक है कि 16वीं लोकसभा में वामपंथ का अपेक्षाकृत अधिक प्रतिनिधित्व हो। लोकसभा में एक मजबूत लेफ्ट ब्लॉक आये, यह समय का तकाजा है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी निम्न घोषणा पत्र पेश करती है जो वैकल्पिक सामाजिक-आर्थिक नीतियों का एक आधार बनेः

  • नवउदारीकरण को अपनाने के लिए उठाये गये कदमों की पूरी तरह समीक्षा और दुरूस्तगी के लिए समूचित कदम;
  • खुदरा व्यापार में एफडीआई नहीं। एफडीआई केवल उन्हीं क्षेत्रों में जहां यह उच्च टेक्नालोजी, रोजगार सृजन और परिसम्पत्ति निर्माण के लिए आवश्यक हो।
  • सार्वजनिक परिसम्पत्तियों की रक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करना और राज्य की भूमिका पर फिर से जोर, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का निजीकरण बंद करो, गैस, पेट्रोल एवं खनिज आदि प्राकृतिक संसाधनों को आगे निजी क्षेत्र के हवाले न करना;
  • प्रभावी कराधान (टैक्सेशन) कदम और वैध एवं तर्क संगत टैक्सों की वसूली को सुनिश्चित करना, आयकर छूट की सीमा को बढ़ाना और जो लोग टैक्स दे सकते हैं उनके लिए टैक्स में क्रमिक वृद्धि।
  • खनिज, तेल, गैस जैसे तमाम प्राकृतिक संसाधनों का राज्य ही एकमात्र स्वामी रहे; 
  • पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप नहीं, क्योंकि यह निजी क्षेत्र द्वारा इसके फायदों को हड़पने को वैध बना रहा है और घाटे को संस्थागत रूप दे रहा है; 
  • आवास, शिक्षा आदि के लिए कम ब्याज पर आसान ऋण। जो ऋण पहले लिये गये हैं रेपो रेट का उनके ईएमआई पर असर नहीं पड़ना चाहिए; 
  • जिन कारपोरेट बैंक ऋणों को बैंकों ने गैर निष्पादित परिसम्पत्ति (एनपीए) करार कर दिया है उनकी वसूली के लिए कठोरतम कानूनी कदम; डिफाल्टरों की परिसम्पत्ति जब्त की जाये;
  • विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाया जाये। काले धन के ट्रांसफर को रोकने के तंत्र को मजबूत बनाओ;
  • विकास के रास्ते को इस तरह पुनः निरूपित करो कि वह न्यायसंगत वितरण और सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास की दिशा मे ले जाये; 
  • सभी के लिए आवास, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा; महिला एवं बच्चों में कुपोषण को खत्म करने के लिए विशेष जोर;
  • मनरेगा स्कीम की तरह शहरों के बेरोजगारों के लिए काम का अधिकार सुनिश्चित करो;
  • बड़ी कम्पनियां के लिए ऑडिट के लिए कानून; और
  • कैग को एक संवैधानिक प्राधिकार बनाया जाये। 
  • लघु एवं मझोले उद्योग एवं कुटीर उद्योग
  • लघु एवं मझोले और कुटीर उद्योग, जो भूमंडलीय मंदी के कारण बर्बाद हो गये हैं, उनकी रक्षा;
  • इन क्षेत्रों को सब्सिडी युक्त ब्याज पर ऋणों का प्रावधान, खासकर उन उद्योगों को जो इनके उत्पादों के निर्यात पर निर्भर हैं;
  • इन क्षेत्रों द्वारा लिये गये ऋणों की वसूली पर स्थगन और इनके उत्पादों के लिए आरक्षण;
  • स्थानीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने में मदद के लिए उन्हें सब्सिडी;
  • हैण्डीक्राफ्ट और कुटीर उद्योगों में फिर से जान फूंकने के लिए विशेष पैकेज क्योंकि ये उद्योग रोजगार के अधिकतम अवसर प्रदान करते हैं।

चुनाव सुधारों के संबंध में

  • वर्तमान व्यवस्था में जिस उम्मीदवार को पड़ने वाले वोटों में से सबसे अधिक वोट मिलते हैं उसको निर्वाचित माना जाता है, इससे जिन लोगों या पार्टियों को 50 प्रतिशत से कम मत मिल जाते हैं वह भी जीत जाता है। इससे धन बल और बाहुबल को बढ़ावा मिलता है। इस व्यवस्था को बदला जाना चाहिए;
  • आंशिक सूची व्यवस्था के साथ समानुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था को लागू किया जाये; और 
  • जो लोग सशस्त्र बलों एवं विदेशी मिशनों में काम कर रहे हैं वह मताधिकार का प्रयोग कर सकें इसके लिए तंत्र।

विशिष्ट क्षेत्रीय एवं राज्य स्तर मुद्दों के संबंध में

  • पिछड़े राज्यों को स्पेशल स्टेट्स;
  • जिन क्षेत्रों में कथित वाम उग्रवाद चल रहा है वहां वार्ता और उन क्षेत्रों के विकास के लिए स्पेशल पैकेज के क्रियान्वयन के जरिये शांति बहाली के लिए विशेष प्रयास;
  • अंतर-राज्य श्रम प्रव्रजन कानून 1979 (इंटर-स्टेट माइग्रेशन ऑफ लेबर एक्ट 1979) और शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रव्रजन मजदूरों की रक्षा के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन;
  • असम एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में नृवंशीय (एथनीक) एवं साम्प्रदायिक भीतरघात को रोकने के लिए पैकेजों के जरिये विशेष प्रयास।
  • मणिपुर, कश्मीर एवं अन्य पूर्वाेत्तर क्षेत्रों से सशस्त्र बल विशेष शक्ति कानून (अफस्पा) को निरस्त किया जाये।

कृषि क्षेत्र 

  • सिंचाई, बीज और उर्वरकों जैसी सुविधाएं सभी किसानों को उचित एवं कुछ मामलों में सब्सिडीयुक्त मूल्य पर मिलें इसके लिए कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश में पर्याप्त वृद्धि;
  • कृषि एवं बुआई के लिए भूमि सुनिश्चित करने के लिए मूलगामी भूमि सुधार एवं भूमिहीनों को भूमि वितरण; 
  • निजी बीज कारपोरेशनों का पक्ष लेने वाले कदमों को बंद किया जाना चाहिए;
  • व्यापक एवं अनिवार्य फसल बीमा जिसके लिए प्रीमियम का भुगतान राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा किया जाये;
  • छोटे एवं सीमांत किसानों को ब्याज मुक्त ऋण;
  • कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य;
  • स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल;
  • किसानों, खेत मजदूरों और ग्रामीण दस्तकारों समेत सभी को 3000 रूपये मासिक पेंशन; और 
  • खेत मजदूरों के लिए केन्द्रीय कानून को पारित करना। राज्यों एवं केन्द्र में कृषि के लिए अलग बजट।

विदेश नीति

  • स्वतंत्र विदेश नीति पर चलो, अमेरिका जैसी साम्राज्यवादी ताकतों के सामने कोई आत्म-समर्पण नहीं;
  • अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा दो;
  • श्रीलंका के तमिलों के लिए एक राजनीतिक समाधान पर जोर दो और 2009 में श्रीलंका में युद्ध के अंतिम दौर में जो मानवाधिकार उल्लंघन और युद्ध अपराध हुए उनके सम्बंध में विश्वसनीय जांच;
  • क्षेत्रीय सहयोग के संवर्धन पर जोर। ब्रिक्स एवं शंघाई सहयोग संगठन जैसे ग्रुपिंग्स में और अधिक सक्रिय भूमिका; और 
  • गुट निरपेक्ष आंदोलन को सार्थक तरीके से मजबूत करना।

शिक्षा नीति

  • सरकार द्वारा प्राइमरी से सेकेंडरी स्तर तक निःशुल्क एवं सर्वसुलभ शिक्षा के लिए गारंटी दी जाए;
  • शिक्षा पर खर्च को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 10प्रतिशत किया जाय;
  • शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं, सभी को समान गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, समान स्कूल प्रणाली, मेडिकल शिक्षा समेत सभी पेशेवर शिक्षा संस्थानों में दाखिले के लिए और अधिक अवसर; 
  • प्राइमरी से उच्चतर शिक्षा के सरकारी शिक्षा संस्थानों में तमाम रिक्त पदों को भरकर सभी स्तर पर सरकारी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाना;
  • तर्कबुद्धिवाद ;रैशनलिज्मद्ध और वैज्ञानिक स्वभाव को प्रोत्साहित करने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव। संविधान विहित प्रावधानों के अनुसार धर्मनिरेक्षता की रक्षा;
  • छात्रों के लिए सभी लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी;
  • अगले 5 वर्षोंं में निरक्षरता का खात्मा करो।

रोजगार के और अधिक अवसर

  • बुनियादी अधिकार के रूप में काम के अधिकार की गांरटी; 
  • सभी बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता;
  • स्वरोजगार से जुड़े लोगों, दस्तकारों एवं विकलंागों के लिए विशेष बैंक क्रेडिट नीति को सुनिश्चित करो;
  • नौकरियों में भर्ती पर रोक और सरकारी विभागों एवं सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों में वर्तमान रोजगार में कटौती को समाप्त करो; और
  • पंूजी सघन विकास के बजाय रोजगार सघन विकास पर जोर दिया जाये।

खाद्य सुरक्षा

  • सभी परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो के अधिकतम भाव पर 35 किलो खाद्यान्न का प्रावधान;
  • सर्वसुलभ (यूनिवर्सल) सार्वजनिक वितरण प्रणाली स्थापित की जाये और उसे विस्तारित किया जाये;
  • आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी के विरूद्ध कठोरतम कानूनी कदम; और
  • किसी भी वस्तु में फॉरवर्ड ट्रेडिंग नहीं।

सामाजिक सुरक्षा

  • सर्वसुलभ (यूनिवर्सल) वृद्धावस्था पेंशन का ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में सभी के लिए विस्तार; और
  • पेंशन को रहन-सहन के खर्च के साथ लिंक करो।

स्वास्थ्य सेवा

  • स्वास्थ्य सेवा पर सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत खर्च सुनिश्चित करो;
  • स्वास्थ्य सेवा एक बुनियादी अधिकार बनाया जाना चाहिए।

भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना

  • जांच की स्वतंत्र शक्ति के साथ लोकपाल कानून को मजबूत करो; 
  • राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट को बंद करो क्योंकि बड़े घपलों और घोटालों की जड़ में यही चीज है;
  • सरकारी कामकाज के सभी स्तरों पर पूरी तरह पारदर्शिता;
  • सूचना के अधिकार कानून को कमजोर नहीं करना;
  • शिकायत निवारण कानून बनाओ; और
  • बाकी पड़े कानूनों को पारित करो, शिकायतकर्ताओं/ जानकारी देने वालों की रक्षा के संबंध में कानून को मजबूत करो।

न्यायिक सुधार

  • वहनीय खर्च पर सभी को समय पर न्याय मिले इसे सुनिश्चित करना;
  • न्यायिक व्यवस्था का विस्तार करो;
  • राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन करो; और
  • राजद्रोह धारा एवं अन्य क्रूर कानूनों को हटाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समुचित संशोधन लाओ;
  • जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता।

पुलिस सुधार

  • पुलिस बल में ऐसा सुधार जिससे वह उत्पीड़न के लिए राज्य के एक हथियार, जैसा कि आज वह है, के स्थान पर जनता की सेवा के लिए एक संस्था बने; और
  • पुलिस सुधार आयोग रिपोर्ट पर अमल करो।

महिलाओं के लिए 

  • लिंग समानता, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार;
  • महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र; हिंसा की पीड़ित महिलाओं के लिए फास्ट टैªक कोर्ट सुनिश्चित करो;
  • संसद एवं विधान सभाओं मंे महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए कानून, स्थानीय निकायों मंे 50 प्रतिशत आरक्षण;
  • लिंग स्तर की पारदर्शिता एवं जवाबदेही;
  • समलैंगिकों, उभयलैंगिकों एवं लिंग परिवर्तितों को समान अधिकार सुनिश्चित करो।

मजदूर वर्ग के लिए

  • कठिन संघर्षों के बाद प्राप्त ट्रेड यूनियन अधिकारों की रक्षा;
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में ट्रेड यूनियन कानून लागू करो;
  • उचित न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा कदमों को लागू करना;
  • ठेके पर काम कराने, आउटसोर्सिग और कैजुअल मजदूरी को समाप्त करना;
  • आंगनवाडी, आशा मिड-डे-मील और घरेलू वर्करों समेत असंगठित मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा;
  • पहले की सुनिश्चित, गारंटीशुदा पेंशन योजना की बहाली;
  • हाथ से शौच-सफाई के काम (मैनुअल स्केवेंजिग) को खत्म करो;
  • बाल-मजदूरी एवं बंधुआ मजदूरी के चलन को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधानों पर सख्ती से अमल।

अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए

  • एससी /एसटी सब-प्लान के लिए केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर कानून;
  • उत्पीड़न के विरूद्ध कानूनों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उनमें संशोधन किया जाए;
  • वन सम्पदा पर वनवासियों को अधिकार देने वाले कानूनों को समग्रता से लागू किया जाए;
  • निजी क्षेत्र एवं पीपीपी संस्थानों समेत सभी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग के हित मंे आरक्षण नीति पर उचित अमल को सुनिश्चित करो;
  • रोजगार के सभी प्रवर्गों में एससी/एसटी के लिए आरक्षित पदों को पूरी तरह भरने को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र बनाया जाए;
  • जनजाति आबादी वाले सभी क्षेत्रों को संविधान की 5वीं अनुसूची ;पेसाद्ध के अन्तर्गत लाया जाए;
  • आदिवासियों के लिए पांचवीं और छठी अनुसूची अधिकारों की रक्षा करना;
  • आदिवासी स्वायत्ता की रक्षा एवं संवर्धन के लिए बने कानूनों में समुचित संशोधन;
  • वन भूमि से आदिवासियों की बेदखली पर प्रतिबंध।

मछली उद्योग एवं मछुआरा समुदाय

  • मछली उद्योग और मछली पालन से जुड़े मजदूरों समेत मछुआरा समुदाय से संबंधित मुद्दों को डील करने के लिए अलग मंत्रालय बनाओ;
  • मछुआरा समुदाय को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का स्टेट्स देने के संबंध में विचार करो;
  • भारतीय मछुआरा समुदाय के अधिकारों की रक्षा करो; समुद्र में जाकर मछली पकड़ने वाले लोगों और मछुआरा समुदाय को विदेशी ताकतों के हमले से बचाओ। 

धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए

  • सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह और ईमानदारी से लागू करना, दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को सुविधाएं देने के संदर्भ मंे धार्मिक आधार पर भेद-भाव खत्म करना; 
  • एससी/एसटी सब प्लान की तर्ज पर केन्द्र और राज्य दोनों स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए एक सब प्लान का प्रावधान करना;
  • साम्प्रदायिक हिंसा पर नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाए जाए और दंगा पीड़ितों का उचित पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए;
  • अल्पसंख्यक आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाए;
  • सभी मकबूजा वक्फ भूमि और संपत्ति को वापिस करो, वक्फ की आय को अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सुधार में इस्तेमाल किया जाए;
  • अल्पसंख्यकों के लिए 15 सूत्रीय प्रधानमंत्री कार्यक्रम समेत सभी सरकारी स्कीमों को समग्रता से लागू करना; 
  • उर्दू समेत मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से लेकर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा सुनिश्ेिचत की जाए; और
  • धार्मिक आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए भर्ती के सभी रास्तों के मैकेनिज्म को ठीक करो।

आंतकवाद के संबंध में

  • आंतकवाद के संबंध में नीति में संशोधन करो, ‘सभ्यता के टकराव‘ के सिद्धांत पर आधारित अवधारणा को त्याग दो; 
  • एफआईआर और चार्जशीट बगैर सालों से हिरासत में लिए गए युवकों को रिहा करो;
  • न्यायालय द्वारा सभी रिहा किए गए आंतक के अभियुक्तों का सरकारी रोजगार और पर्याप्त वित्तीय मुआवजे के साथ पुनर्वास करो; 
  • मासूम नौजवानों को फंसाने वाले और फर्जी मुठभेड़ करने वाले अधिकारियों को सजा दो; और
  • गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) कानून (यूएपीए) समेत सभी काले कानूनों को रद्द करो।

केन्द्र-राज्य संबंध

  • संघवाद को मजबूत करो;
  • राजस्व एवं वित्तीय संसाधनों के उचित हिस्सा बंटाने को नये सिरे से तय करो और सुनिश्चित करो।

शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए

  • शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए रोजगार और आजीविका के लिए विशेष कानून; और
  • विकलांग अधिकार कानून को लागू करो।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए

  • आयकर दाताओं को छोड़कर अन्य सभी को वृद्धावस्था पेंशन; और
  • देश के सभी 622 जिलों में प्रत्येक में कम से कम एक वृृद्धावस्था आवास (ओल्ड होम) सरकार द्वारा चलाया जाए।

युवकों के संबंध में

  • एक व्यापक युवा नीति बनाओ;
  • निर्णय लेने वाले सभी निकायों में युवकों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करो; और
  • युवाओं के सभी तबकों तक खेल-कूद की समान पहुंच को सुनिश्चित कराने के लिए खेल एवं क्रीड़ा नीति बनाओ। स्कूलों एवं शिक्षा संस्थानों मंे खेल-कूद एवं क्रीड़ा के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा बनाओ।

बाल अधिकारों के संबंध में

  • गुणवत्तापूर्ण डे- केयर सेवा;
  • पैदा होने से लेकर छः साल तक की उम्र के बच्चे को देखभाल और शिक्षा का अधिकार;
  • कार्यस्थलों पर शिशु सदनों का प्रावधान करो;
  • कुपोषण का अंत करो;
  • बच्चों के गिरते हुए लैंगिक अनुपात को रोको; और
  • सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत बच्चों की देखभाल में खर्च किया जाए।

संचार माध्यमों के संबंध में

  • इलेक्ट्रोनिक और प्रिन्ट मीडिया दोनों पर कॉरपोरेट घरानों द्वारा कब्जा करने की कोशिशों को रोको;
  • पत्रकारों के लिए वेज बोर्डों द्वारा की गयी सिफारिशों पर दृढ़ता से पूरी तरह अमल कर और पत्रकारों की नियुक्ति में अनुबंध व्यवस्था (कॉन्ट्रेक्ट सिस्टम) को खत्म कर पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहाल किया जाए;
  • प्रसार भारती को वास्तविक रूप में जन प्रसारण सेवा बनाने के लिए और अधिक संसाधन मुहैय्या कराए जाएं। 

संस्कृति के संबंध में

  • बहुलवादी राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा करो;
  • एकरूपवादी (मोनोलिथिक) व्यवस्था को थोपने की कोशिशों को नाकाम करो;
  • संस्कृति की सभी धाराओं के साथ सरकार एक जैसा बर्ताव करें;
  • सभी भाषाओं को बढ़ावा देना;
  • आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं के साथ राष्ट्रीय भाषा के रूप में व्यवहार किया जाए;
  • आदिवासी और क्षेत्र-विशिष्ट संस्कृतियों को बढ़ावा देना; और
  • आदिवासी लिपियों और बोलियांे को विकसित करना।

पर्यावरण नीति

  • पर्यावरण के संरक्षण के लिए एक व्यापक नीति तैयार करो;
  • पर्यावरण की जरूरतों और विकास के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण;
  • पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली खतरनाक टेक्नोलॉजी पर प्रतिबंध लगाओ;
  • प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सार्वजनिक परिवहन और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन व्यवस्था का विकास करना।

जल-संसाधनों का संरक्षण 

  • जल-संसाधनों को व्यवसायिक उद्देश्य के लिए लीज पर न दिया जाये;
  • सभी को साफ पीने का पानी सुनिश्चित करो;
  • भूमिगत जल संसाधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाओ; और
  • वर्षा जल संचयन के साथ-साथ परंपरागत झीलों, तालाबों और अन्य जल संसाधनों का संरक्षण करना।

विज्ञान और टेक्नोलॉजी के संबंध में

  • ज्ञान और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक विज्ञान और टेक्नोलॉजी नीति;
  • प्रतिभा पलायन पर नियंत्रण करो;
  • शोध और विकास के लिए अधिक फंड ;
  • राष्ट्रीय हितों के संरक्षण के लिए वर्तमान पेटेंट कानून में संशोधन करो; और
  • परमाणु दायित्व कानून को कमजोर न किया जाय।

मतदाताओं से अपील
कारपोरेट पंूजी केन्द्र में एक कमजोर, अपनी खिदमतगार और दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी सरकार बनाने की कोशिश कर रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य वामपंथी पार्टियां विकास का फायदा आबादी की सभी तबकों तक पहुंचाने के लिए जो सामाजिक-आर्थिक नीतियां अपनाई जायेगी उनके संबंध में निरंतर एवं सुसंगत तरीके से एक सुस्पष्ट समझ बनाने के लिए कोशिश करती रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जिसका एक बेहतर जीवन के लिए संसद के अंदर और बाहर जनता के संघर्षोंं को जोड़कर चलाने का एक गौरवपूर्ण रिकॉर्ड रहा है, मतदाताओं से अपील करती है कि वे देश के विभिन्न हिस्सों मंे उसके उम्मीदवारों को वोट दें।
आपका वोटः 

  • नव उदारवादी एवं जन विरोधी आर्थिक नीतियों को बदलेगा;
  • वर्तमान भ्रष्ट सरकार को सत्ता से हटायेगा;
  • सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता पर कब्जा करने से रोकेगा; और
  • एक जनतापक्षीय विकल्प के लिए पथ-प्रशस्त करेगा।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दें।
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शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

उत्तर प्रदेश में आठ लोकसभा क्षेत्रों में भाकपा ने प्रत्याशी उतारे.

लखनऊ- ४ मार्च, २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आजमगढ़ जनपद की लालगंज(अनु.) लोकसभा क्षेत्र से भी प्रत्याशी घोषित किया है. कामरेड हरी प्रसाद सोनकर वहां भाकपा के प्रत्याशी होंगे. उपर्युक्त जानकारी देते हुये भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने बताया कि अब भाकपा प्रदेश में आठ लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. जिन अन्य क्षेत्रों से भाकपा ने प्रत्याशी उतारे हैं वे हैं- बरेली से मसर्रत वारसी उर्फ़ पप्पू भाई, खीरी से विपनेश शुक्ल, बाँदा से राम चन्द्र यादव सरस, गोंडा से ओमप्रकाश, घोसी से अतुल कुमार अनजान, मछली शहर(अनु.) से सुभाष गौतम तथा राबर्ट्सगंज(अनु.) से अशोक कुमार कनोजिया एडवोकेट. भाकपा कार्यालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार भाकपा राज्य सचिव डॉ. गिरीश एवं सहसचिव अरविंद राज स्वरूप कल दिनांक- ५ अप्रैल से पूर्वांचल के चुनावी दौरे पर जारहे हैं. वे ५ अप्रैल को लालगंज(सु.) लोक सभा क्षेत्र के अंतर्गत दुर्गा भाभी बालिका विद्यालय कन्दरा में सुबह ११ बजे एक कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करेंगे तथा ६ अप्रैल को राबर्ट्सगंज(सु.) क्षेत्र के अंतर्गत रेनुकूट में कार्यकर्ता सम्मेलन को सम्बोधित करेंगे. डॉ. गिरीश,राज्य सचिव भाकपा, उत्तर प्रदेश.
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गुरुवार, 27 मार्च 2014

राज्य सरकार ने नहीं निभाया राजधर्म--भाकपा

लखनऊ- २७, मार्च, २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा कि मुजफ्फरनगर के दंगों पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की सरकार इन दंगों के फ़ैलने देने की गुनहगार है और उसे अब इन दंगों की नैतिक जिम्मेदारी कबूल कर लेनी चाहिये. लेकिन इस फैसले की आड़ में भाजपा द्वारा अपने को निर्दोष साबित करने की कोशिशों को भी भाकपा कतई बर्दाश्त नहीं करेगी और दंगों में उसकी संलिप्तता का भी पर्दाफाश करेगी. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भाकपा की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाकपा के राज्य सचिव डॉ.गिरीश ने कहा कि वे स्वयं और उनकी पार्टी शुरू से ही कहती आरही है कि मुजफ्फरनगर दंगों में राज्य सरकार अपने राजनैतिक स्वार्थों को पूरा करने में जुटी रही और उसने दंगों को रोकने और फैलने से रोकने के लिये समुचित प्रयास नहीं किये. राज्य सरकार अपने कर्तव्य निर्वहन की दोषी है. अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसे कटघरे में खड़ा कर देने के बाद राज्य सरकार को इसकी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर लेनी चाहिये. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि इस फैसले की आड़ में भाजपा अपने को पाक दामन साबित करने में जुट गयी है. उसकी इस कोशिश का भाकपा पर्दाफाश करेगी. इस हेतु शीघ्र ही एक “खुलासा पत्र” जारी किया जायेगा. डॉ. गिरीश ने राज्य सरकार से मांग की कि वह इस फैसले को अमली जमा पहनाये और दंगे के दोषी वे चाहे किसी भी सम्प्रदाय अथवा पार्टी से सम्बंधित हों को तत्काल गिरफ्तार करे, सभी पीड़ितों को समान मुआबजा दे तथा वहां से पलायित लोगों को उनके गांवों में बसाने को ठोस कदम तत्काल उठाये. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव भाकपा , उत्तर प्रदेश
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मंगलवार, 18 मार्च 2014

मोदी के खिलाफ साझा प्रत्याशी उतारें वाम- जनवादी दल: भाकपा

लखनऊ- १८ मार्च २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि वाराणसी से मोदी को भाजपा ने प्रत्याशी घोषित कर यह जताता दिया है कि दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक और बरबादी का उनका एजेंडा अब उत्तर प्रदेश से देश पर छाजाने की राह तलाश रहा है. यह वाराणसी और उत्तर प्रदेश की जनता के लिये भी एक चुनौती है. भाकपा की दृढ़ राय है कि इस चुनौती को वाराणसी एवं उत्तर प्रदेश की जनता को स्वीकार करना चाहिये और मोदी को खाली हाथों यहाँ से विदा करना चाहिये. उत्तर प्रदेश हिंदुस्तान का दिल है और वाराणसी उसका दिमाग. उत्तर प्रदेश और वाराणसी के मतदाता देश की बरबादी का रास्ता कदापि नहीं खोल सकते. सभी जानते हैं कि भूल से भी देश की बागडोर मोदी के हाथों में पहुँच गयी तो वे बरबादी का ऐसा भीषण तांडव छेड़ेंगे कि उससे उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भी झुलस जायेगा . यह देश, इसका बुध्दिजीवी तबका एवं जागरूक मतदाता ऐसा कभी सम्भव नहीं होने देगा. डॉ. गिरीश ने कहा कि यदि वामपंथी धर्मनिरपेक्ष एवं लोक तांत्रिक ताकतें वाराणसी से मोदी के खिलाफ एक साझा उम्मीदवार उतारें तो भाजपा और संघ परिवार के घ्रणित मंसूबों को वहीं दफनाया जा सकता है. अतएव भाकपा काग्रेस, बसपा, सपा, आप एवं अन्य राजनैतिक दलों से अपील करती है कि वहां एक साझा प्रत्याशी उतारने को शीघ्र ठोस कदम उठायें. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव.
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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

भाकपा ने बनाई चुनावी अभियान चलाने की रणनीति.

लखनऊ- १४, मार्च २०१२- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य काउन्सिल की दो दिवसीय बैठक आज यहाँ सम्पन्न होगयी. बैठक में भाकपा द्वारा लड़ी जारही ८ लोक सभा सीटों पर चुनाव की तैय्यारियों पर चर्चा की गई, इस हेतु जनता से चुनाव फंड एकत्रित करने का निर्णय लिया गया तथा इन सीटों पर शीघ्र से शीघ्र कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया. साथ ही वामदलों के साथ अधिक से अधिक सहमति बनाने को सघन प्रयास करने का निर्णय भी लिया गया. बैठक में देश और प्रदेश के मौजूदा हालात पर चर्चा करते हुये पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि देश इस समय अभूतपूर्व राजनैतिक एवं आर्थिक संकटों से जूझ रहा है. केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अपनायी जा रही नीतियों से आम जनता बेहद कठिनाइयों का सामना के रही है. जनता कमरतोड़ महंगाई, शासन- प्रशासन में दीमक की तरह घुस चुके भ्रष्टाचार, निरंतर बढ़ रही महंगाई, महंगे इलाज और महंगी पढ़ाई की मार से जूझ रही है. सत्ता में बैठे पूंजीवादी दलों से जनता आजिज आगयी है और वह उसका विकल्प चाहती है. जनता के गहरे आक्रोश को भांपते हुये ये पार्टियाँ उसको गुमराह करने को हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं. कांग्रेस अपनी उपलब्धियों का झूठा ढिंढोरा पीट रही है. भाजपा फिर से अपने चिर परिचित सांप्रदायिक औजारों को पैना कर रही है. उसने मुजफ्फर नगर और उसके अगल-बगल के जिलों को साम्प्रदायिकता की प्रयोगशाला बनाया और सैकड़ों लोगों की हत्याएं वहां कराई गयीं. वे नारा देरहे हैं- उत्तर प्रदेश गुजरात बनेगा. वे गुजरात के विकास के फर्जी आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं. डॉ. गिरीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पिछले दो सालों में प्रदेश का राजनैतिक ढांचा पूरी तरह चरमरा गया और आम आदमी का जीवन दूभर होगया. यहाँ तक कि राज्य सरकार सांप्रदायिक वारदातों को रोकने के बजाय वोट की राजनीति करते नजर आयी. सूबे का मुख्य विपखी दल बसपा है जो कभी भी जनता के सवालों पर आवाज नहीं उठाता. वे वोट के लिए केवल और केवल जातीय समीकरण साधने में लगे रहते हैं. प्रदेश की जनता अपने जीवन से जुड़े कठिन सवालों का हल चाहती है लेकिन ये सारे दल मुद्दों से दूर भाग रहे हैं. उन्हाने कहाकि वह केवल वामपंथ है जो जनता के ज्वलंत सवालों महंगाई भ्रष्टाचार बेरोजगारी महंगी शिखा महंगे इलाज और किसान कामगारों की जिन्दगी में रोशनी लाने वाले सवालों पर निरंतर आवाज उठा रहा है और सांप्रदायिक और विभाजनकारी अन्य ताकतों को कड़ी चुनौती देता रहा है. हम इन्ही सवालों को लेकर चुनाव अभियान चलाएंगे.हम जनता से अपील करेंगे कि वह मुद्दों पर आधारित राजनीति को बल प्रदान करे और वामपंथी दलों को आगे बढ़ाये. उन्होंने भाकपा कार्यकर्ताओं और नेताओं से अपील की कि वे भाकपा प्रत्याशियों की सफलता के लिए पूरी ताकत से जुट जायें. बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि भाकपा को अपना चुनावी अभियान जनता के सहयोग से चलाना है माफिया दलाल और शोषकों के धन से नहीं. इसके लिए जनता के बीच जाकर चुनाव फंड एकत्रित करने का निर्णय भी लिया गया. बैठक में बुन्देलखण्ड पश्चिमी उत्तर प्रदेश मध्य उत्तर प्रदेश एवं पूर्वांचल में ओलों एवं वारिश से फसलों के हुये भारी नुकसान पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी. एक प्रस्ताव पास कर राज्य सरकार और केंद्र सरकार से मांग की गयी कि वह फसलों की हानि की शत-प्रतिशत भरपाई तत्काल करे. निर्वाचन आयोग से भी मांग की गयी कि वह केंद्र और राज्य सरकार को किसानों को तत्काल आर्थिक पैकेज उपलब्ध कराने का निर्देश जारी करे. बैठक की अध्यक्षता अशोक मिश्र ने की. बैठक को पूर्व विधायक इम्तियाज़ अहमद, एटक के प्रांतीय अध्यक्ष एवं सचिव अर्विन्दराज स्वरूप व सदरुद्दीन राना, महिला फेडरेशन की महासचिव आशा मिश्रा आदि ने भी सम्बोधित किया. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव
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रविवार, 9 मार्च 2014

भाकपा उत्तर प्रदेश में लोक सभा की आठ सीटों पर लड़ेगी चुनाव.

लखनऊ/ नई दिल्ली- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश में लोक सभा की आठ सीटों पर चुनाव लड़ेगी. आज नई दिल्ली में सम्पन्न भाकपा की केन्द्रीय कार्यकारिणी एवं राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भाकपा की राज्य कार्यकारिणी द्वारा चयनित सीटों की सूची पर अंतिम मुहर लगादी. इस सूची में दो प्रत्याशी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, जब कि तीन अनुसूचित वर्ग से सम्बंधित हैं. पार्टी ने दो सुरक्षित सीटों के अलाबा गोंडा की सामान्य सीट से भी अनुसूचित प्रत्याशी उतरा है. भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने बताया कि भाकपा जिन सीटों पर चुनाव लड़ेगी वे और उन पर लड़ने वाले प्रत्याशी इस प्रकार हैं— घोसी- अतुल कुमार अंजान, बाँदा- रामचंद्र सरस, मछलीशहर(अनु.)- सुभाष चन्द्र गौतम, बरेली- मसर्रत वारसी उर्फ़ पप्पू भाई, राबर्ट्सगंज(अनु.)- अशोक कुमार कनोजिया, मुजफ्फर नगर- नूर अली, गोंडा- ओमप्रकाश, लखीमपुर खीरी- विपनेश शुक्ला . डॉ. गिरीश ने बताया कि भाकपा ने अपनी चुनावी तैयारियों को गति प्रदान करने हेतु भाकपा की उत्तर प्रदेश राज्य कार्यकारणी और काउन्सिल की आपात्कालीन बैठक १३ एवं १४ मार्च को लखनऊ में आहूत की है. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव.
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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

पेट्रोलियम मंत्रालय के भ्रष्टाचार को उजागर करने में भाकपा की भूमिका और मीडिया.

आखिर एक लम्बी जद्दोजहद के बाद ओएनजीसी(विदेश)के प्रमुख श्री सर्राफ को ओएनजीसी के सीएमडी पद पर नियुक्ति मिल ही गयी. कई माह पूर्व चयनबोर्ड ने इस महत्त्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने सारे कायदे कानूनों को ताक पर रख कर आज सेवा निवृत्त होने जारहे श्री वासुदेव को एक साल के लिये सेवा विस्तार देने की संस्तुति की थी. इससे ओएनजीसी का हित चाहने वालों में खलबली मच गयी थी, क्योंकि इस कार्यवाही में स्पष्टतः भ्रष्टाचार की गंध आरही थी. ठीक उसी तरह जैसे कि के.जी.बेसिन से निकाली जाने वाली गैस की कीमतों को ४.८ प्रति यूनिट से बड़ा कर ८.४ डालर प्रति यूनिट कर वीरप्पा ने रिलाइंस समूह के मुखिया श्री मुकेश अम्बानी को और भी मालामाल करने का रास्ता साफ कर दिया. ओएनजीसी सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण उद्योग है जिसकी गिनती नवरत्न उद्योगों में होती है. यदि इसके मुखिया की नियुक्ति भ्रष्ट तौर तरीकों से हो तो इसमें भारी भ्रष्टाचार की भारी सम्भावनायें पैदा हो जाती हैं. चूंकि गत माह भारी उद्योग मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल भेल के प्रमुख को सेवा विस्तार दिलाने में कामयाब हो गये थे, अतएव सार्वजनिक क्षेत्र के शुभ चिंतकों में यही कहानी ओएनजीसी में दोहराए जाने को लेकर काफी चिंता व्याप्त थी. लेकिन इन दोनों ही मामलों पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत सारी पार्टियाँ चुप्पी सादे रहीं. यहाँ तक कि ‘आप’ भी खामोश बनी रही. मामले को गंभीरता से लेते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे न केवल उजागर किया अपितु इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाया. भाकपा सांसद का. गुरुदास दासगुप्त ने मामलों को संसद में तो उठाया ही एक के बाद एक कई पत्र लिख कर प्रधानमन्त्री से हस्तक्षेप की मांग की. गैस घोटाले पर उन्होंने एक पुस्तिका भी प्रकाशित की और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होनी है. इन पंक्तियों के लेखक ने भी पेट्रोलियम मंत्रालय के इन घपलों की प्रभावी जांच की मांग की. लेकिन भाकपा के इन प्रयासों को कुछ समाचार पत्रों एवं न्यूज चेनल्स ने ही महत्त्व दिया. उन्हें बधाई. लेकिन शेष मीडिया ख़ामोशी अख्तियार किये रहा. लेकिन जब श्री केजरीवाल ने अपनी सरकार को शहीद करने के पहले कुछ मुद्दे खड़े करना जरूरी समझा तो उन्होंने के.जी. गैस मामले को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो में एफ़ाइअर दर्ज करा दी. सभी जानते हैं कि एसीबी इस मामले की जाँच करने का अधिकारी नहीं था. लेकिन सारा मीडिया उन्हें हीरो बनाने में जुट गया. मगर कई ने कहा कि यह मुद्दे तो भाकपा नेता ने उठाये थे. अब जब कि भारी शोर शराबे के चलते और सीवीसी द्वारा वासुदेव को सेवा विस्तार देने की संस्तुति न करने पर सरकार को श्री सर्राफ को नियुक्तिपत्र देना पड़ा तो मीडिया के कुछ हिस्से इन मुद्दों को भाकपा के हाथ से छीनने में जुट गये. भाजपा के एक अंध समर्थक अख़बार ने लिखा कि इस मामले को वामपंथी दलों और भाजपा ने उठाया था जबकि भाजपा के किसी नेता ने मामले पर आज तक मुहं नहीं खोला. कुछ ही दिनों से लखनऊ और आगरा से प्रकाशित हो रहे एक टटपूंजिया अख़बार के सम्पादकीय प्रष्ट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि गैस घोटाला केजरीवाल ने खोला. इस लेख के विद्वान् लेखक भूल गये या उन्होंने जानबूझ कर यह छिपाया कि इस मामले पर भाकपा पिछले ९ माह से अनवरत लड़ाई लड़ रही थी. सम्पादक महोदय ने भी निष्पक्षता जताने का कोई प्रयास नहीं किया. अब मीडिया ही इस स्थिति पर चर्चा करे तो अच्छा है कि वह कितना निष्पक्ष है. डॉ.गिरीश
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ओला और बारिश से हुई फसल हानि का पर्याप्त मुआबजा न दिया तो भाकपा आन्दोलन करेगी.

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने हाल के दिनों में समूचे उत्तर प्रदेश में हुई बेमौसम बारिश एवं प्रदेश के कई भागों में हुई ओलावृष्टि से किसानों की फसल की बरबादी की एवज में हानि का सौफीसद मुआबजा देने की मांग राज्य सरकार से की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि पिछले दो माहों में प्रदेश में लगातार बारिश होती रही है, और दो दिन पहले झाँसी एवं ललितपुर जनपदों में भारी पैमाने पर ओलावृष्टि हुई है. प्रदेश के अन्य कई जिलों में भी इस माह अलग- अलग समय पर ओलावृष्टि हुई है. इससे झाँसी एवं ललितपुर में तो समूची फसल ही नष्ट होचुकी है और अन्य जिलों में भी फसल का काफी नुकसान हुआ है. पूरे प्रदेश में आलू, तिलहन. दलहन, हरी मटर और दूसरी फसलों को भारी क्षति पहुंची है और किसान बेहद संकट में आगये हैं. पीड़ित किसानों ने आज ललितपुर जिले में झाँसी- सागर राष्ट्रीय मार्ग पर जाम लगा दिया. अन्य जगहों पर भी किसान आन्दोलन की राह पकड़ रहे हैं. डॉ. गिरीश ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर इस समूची स्थिति से अवगत कराया है और मांग की है कि इस फसल हानि का शत- प्रतिशत मुआबजा किसानों को फौरन दिलाया जाये. उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्राकृतिक आपदा से पीड़ित किसानों को यथाशीघ्र राहत प्रदान नहीं की गयी तो भाकपा भी किसानों के साथ मिल कर आन्दोलन करने को बाध्य होगी. भाकपा ने अपनी समस्त जिला समितियों को निर्देश दिया है कि वे किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके हित की आवाज उठायें.
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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

केजरीवाल के वामपंथ न दक्षिणपंथ उवाच की सच्चाई.

आपात्काल के दिनों में स्व.श्री संजय गाँधी ने नारा दिया था- न वामपंथ न दक्षिणपंथ. तब हम वामपंथियों ने दो टूक कहा था कि जो वामपंथी नहीं है वह दक्षिणपंथी ही है. संजय गाँधी की इस लाइन का सार्वजनिक रूप से विरोध करने पर इन पंक्तियों के लेखक समेत कईयों को तत्कालीन शासन ने आपात्काल विरोधी घोषित कर दिया था, अतएव हमें भूमिगत होना पड़ा था. ऐसे ही नायाब विचार अब आम आदमी पार्टी(आप) के नेता अरविन्द केजरीवाल ने व्यक्त किये हैं. दिल्ली में कन्फेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज(सीआइआइ) की बैठक में केजरीवाल ने कहा कि वे न तो पूंजीवाद के खिलाफ हैं न निजीकरण के. कारोबार में सरकार का कोई काम नहीं है. ......यह सब निजी क्षेत्र के लिये छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्होंने इंस्पेक्टर राज एवं लाइसेंस राज के खिलाफ होने की घोषणा भी की. इससे पहले वे यह भी कह चुके हैं कि हम न तो पूंजीवादी हैं न समाजवादी या वामपंथी. हम तो बस आम आदमी हैं और किसी खास विचारधारा से जुड़े हुए नहीं हैं. अपनी समस्याएं हल करने के लिए चाहे दक्षिण हो या वाम, हम किसी भी विचारधारा से विचार उधार ले सकते हैं. केजरीवाल और उनके समर्थकों को यह बताया जाना जरूरी है कि पूंजीवाद का अस्तित्व और विकास आम आदमी के शोषण पर टिका है. आम आदमी का विकास और उत्थान समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है. और समाजवादी व्यवस्था का आधार सार्वजनिक क्षेत्र है निजीकरण नहीं. फिर पूंजीवाद और निजीकरण की वकालत करके केजरीवाल किस आम आदमी की बात कर रहे हैं? वैसे तो वे आम आदमी की परिभाषा भी गढ़ चुके हैं- “ग्रेटर कैलाश(दिल्ली के धनाढ्य लोगों की आबादी) से लेकर झुग्गी- झोंपड़ियों तक जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है वह आम आदमी है”. वे शेर और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाना चाहते हैं. यह पूंजीवाद का ही कानून है. केजरीवाल का यह कथन कि सरकार का कारोबार में कोई काम नहीं और तमाम कारोबार निजी क्षेत्र के लिये छोड़ दिया जाना चाहिए,उनके उस नवउदारवादी द्रष्टिकोण का ही परिचायक है जिसकी वकालत हूबहू इन्हीं तर्कों के साथ कांग्रेस और भाजपा दशकों से करती आरही हैं. इस नजरिये का तो सीधा अर्थ है कि सभी आर्थिक गतिविधियाँ और उनके सभी क्षेत्र बाजार से संचालित होने चाहिये. यहाँ तक कि बिजली पानी की आपूर्ति और सार्वजनिक परिवहन जैसी बुनियादी सेवायें भी. केजरीवाल ने कहा है कि इस बात की जरूरत है कि सरकार ऐसी अच्छी नियामक व्यवस्था कायम करे कि कारोबार और उद्यम खेल के नियमों के हिसाब से चलें. यह उनकी एक अच्छी कपोल-कल्पना है. अब तक के अनुभव तो यही बताते हैं कि कारोबारी और उद्यमी सरकारों की सदाशयता हासिल कर अपने मुनाफे और पूँजी का आकार बढ़ाते हैं और केजरीवाल जैसे दार्शनिक उनके फायदे के लिये वैचारिक प्रष्ठभूमि बनाने में जुटे रहते है. वैसे भी यह नव-उदारीकरण के मॉडल का ही हिस्सा है, जिसके तहत बड़ी पूँजी के हितों को आगे बढ़ाया जाता है. केजरीवाल ने दिल्ली की बिजली और पानी के निजीकरण के अपने विरोध को भी भुला दिया है. आखिर क्यों? केजरीवाल ने यह भी कहा कि वह केवल दरबारी पूंजीवाद के खिलाफ हैं, पूंजीवाद के खिलाफ नहीं.उन्होंने दिल्ली में अंबानी सन्चालित बिजली आपूर्ति कम्पनियों के खिलाफ और रिलायंस गैस मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर अपनी लड़ाई को दरबारी पूंजीवाद के खिलाफ बताया. वे इस बात पर अनजान बने हुये हैं कि बड़े पैमाने पर दरबारी पूंजीवाद का पनपना नव-उदारवादी व्यवस्था की ही देन है, जो प्राक्रतिक संसाधनों की लूट को आसान बनाती है और पूरी तरह बड़े पूंजीपतियों के लिए मुनाफा बटोरने का रास्ता बनाती है. यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि केजरीवाल को एन आर आई, निर्यातकों तथा उद्योग घरानों से जो चंदा मिलता है वह यह जान कर ही मिलता है कि वे वामपंथी नहीं हैं. वे ही लोग वामपंथियों को फूटी आंखों नहीं देखना नहीं चाहते. अतएव आप भले ही न वामपंथ न दक्षिणपंथ कह कर अपने को तटस्थ और भोला साबित करने की कोशिश करे अब तक के उसके बयान एवं कारगुजारियां उसे पूंजीवाद और आज के नव-उदारवाद के हितैषी के रूप में ही पेश करती हैं. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव भाकपा, उत्तर प्रदेश
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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

राहुल गाँधी के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में भाकपा ने आन्दोलन का बिगुल फूंका.

मुसाफिरखाना(अमेठी)- गरीब और आम आदमी की ज्वलंत समस्यायों, कानून व्यवस्था की बिगडी हालात और भाकपा नेता का० शारदा पाण्डेय के विरुध्द कोतवाली मुसाफिरखाना में दलालों के दबाब में दर्ज किये गये फर्जी मुकदमे के विरुध्द भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय खेत मजदूर यूनियन, अ० भा० किसान सभा, अ० भा० नौजवान सभा एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के लगभग २५० कार्यकर्ताओं ने मुसाफिरखाना तहसील के प्रांगण में धरना दिया एवं एक आमसभा की. सभा के मुख्यवक्ता भाकपा के राज्य सचिव डॉ० गिरीश थे. सभा को सम्बोधित करते हुये डॉ० गिरीश ने कहाकि आज केंद्र की सरकार द्वारा चलाई जारही नीतियों से जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार आये दिन डीजल पेट्रोल एवं रसोई गैस के दाम बढ़ाती रहती है. इस कारण और सरकार के दुसरे कदमों के कारण महंगाई आसमान छू रही है. आम जनता का जीवन दूभर होगया है. इस सरके के नौ वर्ष के शासनकाल में घपलों-घोटालों और भ्रष्टाचार की तो मानो बाढ़ सी आगयी है. बेरोजगारी बढ़ी है और शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है,जिसके बेहद महंगा होजाने के कारण आमजन शिक्षा से वंचित रह जारहे हैं. सरकार की जनविरोधी नीतियों और कारगुजारियों के चलते जनता में भारी आक्रोश है जिसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में निश्चय ही भुगतना होगा, जनता के इस गुस्से को भाजपा अपने पक्ष में भुना कर सत्ता पर कब्जा करने की हर कोशिश में जुटी है. उसने देश और दुनियां के पूंजीपतियों, उद्योगपतियों एवं कार्पोरेट घरानों के सबसे चहेते नरेंद्र मोदी को चुनावों से पहले ही प्रधानमन्त्री पद का प्रत्याशी बना दिया है जबकि हमारे यहाँ संसदीय जनतंत्र है जिसमें चुनाव के बाद सांसदों के बहुमत द्वारा चुना गया व्यक्ति ही प्रधानमन्त्री बनता है. वे मोदी को चाय बेचनेवाले के रूप में प्रचारित कर रहे हैं ताकि गरीबों को बहकाया जासके और इस बात पर पर्दा डाला जासके कि मोदी की रैलियों और भाजपा के प्रचार अभियान में बहाया जारहा अरबों रुपया आखिर कहां से आरहा है. डॉ० गिरीश ने कहाकि सवाल यह नहीं है कि कोई चाय बेचता रहा है या चावल. सवाल यह है कि उसकी नीतियां चाय बेचने वाले जैसे गरीबों के पक्ष में खड़ी हैं या गरीबों को लूटने वाले धनपतियों के पक्ष में. ये मोदी नामक तत्व तो पूरी तरह धनपतियों का रक्षक है. डॉ० गिरीश ने कहाकि वैसे भी भाजपा की आर्थिक नीतियों और कांग्रेस की नीतियों में कोई फर्क नहीं हैं. भाजपा नाम की मुर्गी के पेट से भी वही अंडा निकलेगा जो आज कांग्रेस के पेट से बाहर आरहा है. यह पार्टी भी महंगाई, भ्रष्टाचार बढ़ाने एवं सांप्रदायिकता फेलाने के लिये सुविख्यात है. यह जो सत्ता पर कब्जा करने के मंसूबे बांध रही है वो धुल-धूसरित होकर रहेंगे. डॉ० गिरीश ने कहाकि आम जनता भ्रष्टाचार से बुरी तरह त्रस्त है और उसे पूरी तरह समाप्त करना चाहती है. वह कांग्रेस, भाजपा एवं दूसरी पूंजीवादी पार्टियों से भी बुरी तरह परेशान है और एक जन हितेषी राजनैतिक विकल्प की तलाश में है. अपनी इसी ख्वाहिश के चलते जनता ने दिल्ली विधानसभा के चुनावों में आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया. लेकिन सरकार बनाने के बाद वे न तो अपने चुनावी वायदे पूरे कर पाये न ही सत्ता में बने रह पाये. अब उद्योगपतियों की बैठक में जाकर उन्होंने यह भी ख डाला कि न तो वह पूंजीपतियों के खिलाफ हैं न ही निजीकरण के. उन्होंने अपना यह मन्तव्य भी उजागर कर दिया की वह सरकार के द्वारा उद्योग चलाये जाने के पक्ष में नहीं है. यह वही विचार है जिसे कांग्रेस और भाजपा अपनी विनाशकारी नई आर्थिक नीतियों को जायज ठहराने के लिये प्रकट करती रही हैं. उन्होंने स्पष्ट कियाकि कोई या तो पूँजीवाद का पैरोकार हो सकता है अथवा गरीबों का. कोई पूँजीवाद का समर्थक हो सकता है या समाजवाद का. आज यह स्पष्ट होगया है कि केजरीवाल और उनकी मंडली पूंजीवाद के पक्ष में खड़ी है और उन्हीं की पैरोकार है. भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि आज ऊतर प्रदेश की सरकार भी हर मोर्चे पर विफल होचुकी है. कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है. किसान-कामगार तवाह होरहे हैं. वे आर्थिक बदहाली के चलते आत्महत्यायें कर रहे हैं. मुजफ्फरनगर शामली एवं मेरठ के दंगों सहित १४० दंगे सपा के शासनकाल में होचुके हैं जिन्हें रोकने में सरकार पूरी तरह नाकमयाब रही है. प्रदेश की सत्ता मफियायों, दलालों और दबंगों के हाथों में कैद है. ऐसे ही लोगों के कहने पर भाकपा के जुझारू नेता का० शारदा पाण्डेय के खिलाफ फर्जी मुकदमे लिखे जारहे हैं और उनको गरीबों का साथ छोड़ने अथवा जान से हाथ धोने की धमकियां दी जारही है. डॉ० गिरीश ने चेतावनी देते हुए कहाकि यदि का० शारदा पांडे के खिलाफ कुछ भी हुआ तो उत्तर प्रदेश सरकार की चूलें हिला दी जायेंगी. भाकपा सुल्तानपुर के जिला सचिव का० शारदा पाण्डेय ने कहाकि आजादी के ६५ साल बाद भी किसान मजदूर गरीब मेहनतकश आवश्यक सुविधाओं से वंचित हैं. भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य, मजदूर को उसका सही हक मनरेगा के तहत काम, अत्यंत गरीबों को बीपीएल के तहत मिलने वाला अनाज, राशनकार्ड नहीं मिल रहा. नौजवानों को रोजगार और गरीबों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखा जारहा है. भाकपा आज ही नहीं अपने जन्म से ही इन सवालों पर संघर्ष करती रही है और करती रहेगी आज भाकपा को और मजबूती प्रदान करने की जरूरत है. सभा के बाद एक ९ सूत्रीय ज्ञापन जो मुख्यमंत्री को सम्बोधित था उपजिलाधिकारी को सौंपा गया. सभा को देव पाल सिंह एडवोकेट, जियालाल कोरी, रामदेव कोरी, रामप्यारे पांडे, रोशनलाल प्रधान, श्यामदेवी, नीलम, मीणा देवी, राम्सुधारे पासी, रामतीर्थ पासी, छितईराम पासी, बीडी रही, राकेश पासी, श्रीपाल पासी, एवं लल्लन पाल आदि ने सम्बोधित किया.
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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

पेट्रोलियम मंत्रालय के घोटालों की प्रभावी जाँच की मांग.

लखनऊ—१३, फरबरी- २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डॉ०गिरीश ने कहाकि के.जी. बेसिन में अम्बानी की कम्पनी रिलाइंस इण्डिया लिमिटेड के लिये गैस की कीमतें दो गुनी करने के मामले एवं चुनाव वर्ष में तेल एवं प्राक्रतिक गैस आयोग(ONGC) के मौजूदा चेयरमैन को सारे नियमों को ताक पर रख कर एक साल के लिये पुनर्नियुक्ति दिलाने के प्रयासों से यह साबित हो गया है कि पेट्रोलियम मंत्रालय भारी भ्रष्टाचार में डूबा है. डॉ० गिरीश ने इस मंत्रालय के साढ़े चार साल के क्रिया कलापों की प्रभावी, विश्वासप्रद एवं उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है. उन्होंने कहाकि दोनों ही सवाल अत्यधिक लोक महत्व के हैं और दोनों में लोकधन के अपव्यय एवं भारी भ्रष्टाचार की तमाम सम्भावनायें नजर आरही हैं अतएव भाकपा के वरिष्ठ सांसद एवं ए.आई.टी.यू.सी. के महासचिव का० गुरुदास दासगुप्त ने पिछले आठ माहों में इन मामलों को बार-बार उजागर किया. उन्होंने गैस के मुद्दे को लोक सभा में उठाया, कई बार प्रधान मंत्री को चिट्ठियां लिखीं, पूरे मसले पर एक पुस्तिका प्रकाशित की तथा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होना वांच्छित है. इसी तरह जब पेट्रोलियम मंत्री ने सारे कायदे कानूनों और स्थापित परम्पराओं को दरकिनार कर ओ.एन.जी.सी.के मौजूदा चेयरमैन के कार्यकाल को एक वर्ष आगे बढ़ाने और नियमानुसार गठित पैनल द्वारा नयी नियुक्ति के लिए की गई संसुति को निष्प्रभावी करने की कोशिश की तो का० गुरुदास ने इस मामले को भी पूरी शिद्दत से उठाया और एक नहीं दो-दो बार इस सम्बन्ध में भी प्रधानमंत्री को चिट्ठियां लिखीं. अब दिल्ली की सरकार द्वारा गैस मामले पर ऍफ़.आई.आर. दर्ज करा देने से मीडिया ने भी खासी कवरेज दी है और जनता पेट्रोलियम मंत्रालय के भीतर क्या कुछ चल रहा है, जानना चाहती है. डॉ० गिरीश ने कहाकि वैसे तो कांग्रेस अथवा भाजपा दोनों के ही शासनकाल में अधिकतर पेट्रोलियम मंत्री अम्बानी की पसंद के आधार पर ही बनते रहे हैं, लेकिन इस बार हस्तक्षेप कुछ अधिक ही है. अतएव जनता के सामने सच्चाई आनी ही चाहिये.
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बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

LATHI-CHARGE ON STUDENTS CONDEMNED

The Central Secretariat of the Communist Party of India has issued following statement to the press:

The Secretariat of the Communist Party of India severely condemns the lathi-charge and use of water cannons on the peaceful demonstration of All India Students Federation today afternoon at the Parliament Street. The students were organizing demonstration on the call of AISF, for proper steps to implement Right to Education, Free education from K.G. to P.G; against privatization and commercialization of Education, against foreign universities, scraping of Lyngdo Committee report and democratize elections to students unions etc.

Thousands of students gathered near the Parliament Street and wanted to submit a memorandum to Education Minister. They were prevented. Police tried to disperse them by using water cannons and later resorted to brutal Lati-Charge. Even girl students were not spared. AISF President Syed Vali Ullah Khadri and many other students were severely injured and admitted in different hospitals. CPI demands action on Police Officers responsible for lathi-charge should be suspended and action should be initiated.


(S.S.BHUSARI)

Office Secretary
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