भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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Communist Party of India, U.P. State Council

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शनिवार, 12 दिसंबर 2009

भाकपा द्वारा पार्टी संगठन पर कार्यशाला का सफल आयोजन

लखनऊ: राज्य संगठन विभाग की अनुशंसा पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य कार्यालय पर 11 अक्टूबर को पार्टी संगठन पर एक कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। कार्यशाला दो सत्रों में सम्पन्न हुई। कार्यशाला में राज्य कार्यकारिणी के अधिसंख्यक सदस्य तथा अधिकतर जिलों के सचिव शामिल हुए।
कार्यशाला के प्रथम सत्र में विषय था ”पार्टी संगठन“ जिस पर व्याख्यान देने आये थे भाकपा के राष्ट्रीय सचिव तथा पूर्व सांसद का. सी.के. चन्द्रप्पन।
का. चन्द्रप्पन ने एक लम्बे अंतराल के बाद उत्तर प्रदेश में आने और काफी पुराने साथियों से मुलाकात पर अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि पार्टी के हैदराबाद महाधिवेशन ने एक बार फिर हिन्दी भाषी प्रदेशों में पार्टी संगठन को मजबूत करने का संकल्प दोहराया था। का. चन्द्रप्पन ने कहा कि जब हम हिन्दी भाषी प्रदेशों में पार्टी संगठन की बात करते हैं तो हमारे लिए उत्तर प्रदेश का विशेष महत्व होता है जिसके अपने कारण है। पहला, तो उत्तर प्रदेश लोकसभा की कुल ताकत का सातवां हिस्सा यानी 80 सांसद चुनता है। अगर यहां पार्टी नहीं है, तो यह एक कमजोरी है जिससे पार्टी को सरोकार है। दूसरा कारण उत्तर प्रदेश की पाटी्र का गौरवशाली इतिहास और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को विस्तार देने में यहां के नेताओं का योगदान है।
का.चन्द्रप्पन ने कहा कि इस कार्यशाला में राजनैतिक परिस्थितियों पर बोला नहीं जा सकता है। आप सबने पिछले लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के प्रस्ताव और समीक्षा रिपोर्ट पढ़ी होगी। पार्टी ने जन संगठनों को संगठित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि आप सब सांगठनिक एवम् राजनैतिक लक्ष्यों को अपने कार्यों से जोड़े। बिना राजनीति के आप सुसंगत संगठन का निर्माण नहीं कर सकते। कम्युनिस्ट आन्दोलन के शुरूआती दौर में कामरेड लेनिन ने सिद्धान्त को व्यवहार से मिलाया। पार्टी को समाज बदलने का हथियार बनाने हेतु उन्होंने पार्टी को पेशेवर क्रान्तिकारियों का संगठन बनाने पर जोर दिया ताकि क्रान्ति की जा सके। इसके मलतब हमें समझने चाहिए। उन्होने माक्र्स की इस उक्ति को भी इस सन्दर्भ में उद्घृत किया कि समाज की अपनी व्याख्यायें करने वाले दार्शनिक इतिहास में पाए जाते हैं, कम्युनिस्टों को और व्याख्यायें करने के बजाय समाज को बदलना होगा।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि अब हम भारतीय सन्दर्भ में आते हैं। हमें भारत में विद्यमान परिस्थितियो के आधार पर काम करना होगा। अब तक हमें बड़ी कामयाबियां अगर मिली हैं तो असफलताएं भी मिली हैं। हमें दोनेां से अपनी दिशा तय करनी होगी। एक कम्युनिस्ट को देशभक्त, क्रान्तिकारी और ईमानदार होना होता है और उसको धर्मनिरपेक्षता और जनतंत्र की रक्षा करते हुए समाजवाद को प्राप्त करने की कोशिश करनी होती है। समाजवाद को प्राप्त करने के कई चरण होते हैं।
का. चन्द्रप्पन ने कहा विशाल इजारेदारी एवम् साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ वामपंथी एवम् जनवादी, साम्राज्याद विरोधी एवम् देशभक्त शक्तियों केे एक साझा मंच को अमली जामा पहनाने का काम कामरेड पी.सी. जोशी ने किया। वे उत्तर प्रदेश से थे। पार्टी जब छोटी सी थी, 2000 कम्युनिस्ट पूरे देश में रहे होंगे, वे पार्टी के महासचिव बने। उनकी कार्यशैली परिवर्तनकारी थी, पार्टी में चारों तरफ से दोस्तों को लाने की थी। उनके समय में तमाम बुद्धिजीवी पार्टी में आये और तमाम पार्टी के हमदर्द बनें।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि सांसद होने के वक्त एक बार हवाई जहाज में एक सहयात्री ने मुझे ”न्यू एज“ पढ़ते देख कहा कि इसका स्तर गिर गया है। वे व्यक्ति थे - एटाॅमिक एनर्जी कमीशन के उपाध्यक्ष सतीश धवन। उन्होंने बताया कि कभी वे बम्बई के क्रास रोड पार्टी दफ्तर पर पार्टी का अखबार ”पीपुल्स फ्रन्ट“ बेचते थे। तत्कालीन शिक्षा मंत्री नुरूल हसन ने भी बताया कि वे भी कभी कम्युनिस्ट थे। ”इंदिरा इन इंडिया“ कहने वाले डी.के. बरूआ भी कम्युनिस्ट थे और उन्होंने बताया था कि बनारस में का. राजेश्वर राव को उन्होंने पार्टी सदस्य बनाया था। यह दिखाता है कि उस काल में पार्टी का असर बुद्धिजीवियों पर कितना था।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि सन् 1936 में इसी लखनऊ में एआईएसएफ बनीं थी। उस सम्मेलन का उद्घाटन जवाहर लाल नेहरू ने किया था और अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। सम्मेलन को महात्मा गांधी ने बधाई सन्देश भेजा था। इसी दौर में किसान सभा भी यहीं लखनऊ में बनीं। इसी दौर में इसी लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ बना। मुंशी प्रेमचन्द्र भी उत्तर प्रदेश के थे। कार्यशैली वृहद जन संगठनों के निर्माण की थी। एटक पहले ही बन चुकी थी। इप्टा भी बना। बलराज साहनी पार्टी के कार्यकर्ता बनें। पार्टी स्वयं सेवक के कपड़े पहन कर बम्बई में पार्टी की रक्षा की। एक बार नरगिस को बुलाया गया तो उन्होंने शिकायत की कि पार्टी उन्हें बुलाती नहीं है। उस दौर में बुद्धिजीवी, लेखक, कलाकार, किसान, विद्यार्थी आदि तमाम तबकों को संगठित किया गया। फिर कुछ घटनाक्रम हुए। बहुत सी बातें हैं, जिन्हें कह नहीं सकता। 1948 में पार्टी पर पाबंदी लगा दी गयी। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया गया।
1950 में पार्टी ने दो-ढाई सालों से चली आ रही पार्टी नीतियों में बदलाव किया। इसे कामरेड अजय घोष ने शुरू किया। वैसे तो वे बंगाली थे परन्तु वे भी उत्तर प्रदेश के थे। कानुपर के रहने वाले थे। उनकी रणनैतिक समझ एवम् कार्यों से 1957 में केरल में पार्टी सत्ता में आयी। कांग्रेस ने धारा 356 लगाकर पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया। राष्ट्रव्यापी अभियान पार्टी ने चलाया। उत्तर प्रदेश की पार्टी का विशेष योगदान रहा। शारदा मित्रा एवम् बनारस में पी.के. वासुदेवन के साथ मिल कर एआईवाॅयएफ का निर्माण किया गया। उसमें उत्तर प्रदेश का सराहनीय योगदान रहा। पूरी पार्टी को उत्तर प्रदेश के इन योगदानों का गौरव है।
उन्होंने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि वे भी अपने इस गौरवशाली इतिहास पर गर्व करें और उसी जज्बे को एक बार फिर पैदा करें।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि उत्तर प्रदेश की पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी पार्टी ब्रांचों का सजीव एवम् सक्रिय न होना है। ब्रांचें सीधे जनता से जुड़ी होती हैं। वही जनता को संगठित करती हैं, वही जनता को संघर्षों मे उतारती हैं। राष्ट्रीय केन्द्र, राज्य केन्द्र और जिला केन्द्र निगरानी का कार्य करते हैं। जनता से वे सीधे सम्पर्क में नहीं होते। जनता से उनका सम्पर्क ब्रांचों के माध्यम से ही कायम होता हैं। का. चन्द्रप्पन ने कहा कि नेतृत्व को ब्रान्चों से जुड़ना होगा।
का. चन्द्रप्पन ने सवाल किया कि पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ाया जा सकता है? उन्होंने कहा कि किताबों को लिखने और भाषण देने से जनाधार नहीं बढ़ाया जा सकता। उन्होंने कहा कि नेतृत्व को जमीन से जुड़ना होगा। गांव में जिला कौंसिल की बैठक करें। खेत मजदूरों, विद्यार्थियों, नौजवानों, किसानों, महिलाओं को संगठित करें। उन्हें जन संगठनों से जोड़ें। पार्टी के हर सदस्य के लिए जन संगठन निर्धारित करें। पार्टी की ब्रांचों को इस तरह अगर सक्रिय और सजीव करने में सफल हो जायें तो पार्टी जीवन्त और ऊर्जावान हो जायेगी।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि पार्टी का काम मशीनी ढंग से नहीं चलाया जा सकता। क्षेत्रीय और जमीनी समस्याओं को समझना होगा और उन्हें उठाना होगा। ब्रांचों को गांव की सड़क, नहरें, ताल-तलैया, सेहत, रोजगार के सवाल उठाना होगा। उनका नेता बनना पड़ेगा। तभी लोग जानेंगे कि अमुक व्यक्ति और कम्युनिस्ट पार्टी उनके लिए काम कर रहे हैं। पंचायतों में घुसना होगा। इन समस्याओं को वहां भी उठाना होगा।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि पार्टी का जनाधार बढ़ाने का काम महत्वपूर्ण है और इसके लिए जरूरी है कि ब्रांचों का विवेकपूर्ण एवं अनुशासित तरीके से काम करना। ब्रांच मंत्री दक्षतापूर्ण व्यक्तित्व का होना चाहिए। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए - बैठक की कार्यवाही लिखने का, प्रार्थनापत्र लिखने का, पत्र लिखने का। उन्हें अपने इलाके का नेता बनाया जाये। उनकी छवि को जनता के मध्य बनाना होगा। सुनिश्चित करना होगा कि ब्रांचों की बैठक बार-बार हो, महीने में कम से कम एक बार जरूर। पार्टी को बढ़ाने के लिए जरूरी है - जन संगठन और ब्रांचों को बनाना।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि भाकपा दूसरी पार्टियों से अलग है। कांग्रेस और भाजपा भी अपने को जनतांत्रिक होने का दावा करते हैं। उनके यहां कोई भी कुछ भी कह सकता है। लेनिन ने कहा था कि पार्टी ”एक नए प्रकार की पार्टी है।“ पार्टी जनवादी केन्द्रियता पर कार्य करती है। पार्टी में यह जनवाद है कि आप कुछ भी विचार कर सकते हैं लेकिन पार्टी कमेटी अगर कोई फैसला ले लेती है तो वह पार्टी का फैसला है। यदि मैं अल्पमत में हूं तो बहुमत का निर्णय मुझे मानना ही होगा। इस तौर-तरीके से ही पार्टी और अधिक मजबूत और एकजुट होती है। आप अपने काम में पार्टी के फैसलों का लागू करें। हमारें यहां जन संगठन हैं, पार्टी कमेटियां हैं और सबसे ऊपर पार्टी महाधिवेशन होते हैं। यह किसी दूसरी पार्टी में नहीं होता। कह दिया जाता है कि अंतिम फैसला सोनिया गांधी पर छोड़ दिया गया। हम पार्टी महाधिवेशन में ही अन्तिम फैसला करते हैं।
जन संगठन स्वतंत्र हैं। इनमें जनता के विशाल तबके आते हैं। जनता के हित में काम करते हैं लेकिन हमारे काम करने के क्या तरीके हैं? मैं किसान सभा का अध्यक्ष हूं और अतुल महामंत्री। हम कम्युनिस्ट हैं। हम एक क्रान्तिकारी पार्टी के अनुशासित सदस्य हैं। हम स्वतंत्र नहीं हैं। हमें पार्टी के फैसले पर चलना ही होगा। किसान, टेªड यूनियन, विद्यार्थी, नौजवान, खेत मजदूर विभाग राज्य कार्यकारिणी बनाती है। वहां हम विचार करते हैं कि हम जन संगठनों पर कैसे काम करेंगे। यदि समस्या हो तो राज्य कार्यकारिणी विचार करेगी। पार्टी के राज्य सचिव उस पर विचार करवायेंगे। पार्टी के निर्णयों को विभिन्न प्रकार के जन संगठनों में समझदारी पूर्ण ढंग से रखे जाने चाहिए। यही तरीका कार्य एवम् व्यवहार में उतारा जाये। उत्तर प्रदेश में विभाग गठित किए गए हैं। उनको सक्रिय किया जाये। उन्हें संचालित किया जाये। अगर विभाग संचालित होते हैं तो टकराव पैदा नहीं होगा।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि अगर किसान सभा का राष्ट्रीय अधिवेशन होता है तो पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी यह तय करेगी कि चन्द्रप्पन या अतुल रहेंगे अथवा नहीं। यह पार्टी तय करती है कि आप कहां और क्या कार्य करेंगे।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि अधिक से अधिक चुनाव लड़े जायें। चुनाव में पार्टी झंडा और निशान जाने की बात सही है लेकिन बिना बुनियादी ढांचे के इन्हें जनता के मध्य ले जाया नहीं जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि पार्टी के बुनियादी ढांचे को मजबूत करें। पार्टी की ब्रांचों को सजीव करें। हर पार्टी सदस्य को पार्टी का काम करना सिखायें। लोकसभा में आम तौर पर 14-15 लाख वोटर होते हैं। बूथों पर केवल एक एजेन्ट काम नहीं कर सकता। उसकी सहायता करने वाले भी चाहिए। उनके पास हर वोटर का शजरा होना चाहिए। यदि कोई हमदर्द परिवार वोट डालने नहीं गया तो कार्यकर्ताओं को वहां जाना चाहिए। कम-से-कम 10 साथी बाहर काम करने वाले होने चाहिए। केरल में 50 से 100 साथी एक बूथ पर काम कर करते हैं, तब जाकर वोट निकाल पाते हैं।
लोक-सभा और विधान सभा की सभी सीटें लड़ना आपके लिए अभी सम्भव नहीं है। पंचायतों पर ध्यान दीजिए। आपके यहां चुनाव होने वाले हैं। तैयारी में जुट जाइए। नेताओं की छवि आम जनता में बनाइए। लामबंदी कीजिए। उन्हें चुनाव में उतारिए। कुछ हजार पंचायतों चिन्हित करें और उनमें कुछ सौ जीत लीजिए। अपने कामों से पार्टी की छवि को विस्तार दीजिए। नगर निकायों के चुनाव आसान नहीं फिर भी अधिक से अधिक लड़े।
का. चन्द्रप्पन ने कहा कि बड़े शहरों में हम कमजोर हो गये हैं। कभी बम्बई गढ़ हुआ करता था। चेन्नई, बंगलौर, लखनऊ, कानपुर, इन्दौर आज कमजोर पड़ गये हैं। शहरीकरण बढ़ता जा रहा था। शहरों में काम करना आसान नहीं। असामाजिक तत्व बढ़ते जा रहे हैं। दत्ता सामन्त की गुन्डों ने हत्या कर दी। शहरी केन्द्र और बड़े होंगे। हमें मध्यवर्ग के मध्य पैठ बनानी होगी। शहरों में काम करना होगा।
का. चन्द्रप्पन ने पार्टी शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए अपनी बात समाप्त की।
दूसरे सत्र में पार्टी संगठन में काम करने के तौर-तरीकों पर चर्चा राज्य सचिव का. (डा.) गिरीश ने की। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पार्टी संगठन में व्याप्त तमाम समस्याओं और कमजोरियों पर चर्चा करते हुए उन्हें दूर करने का आह्वान किया। उन्होंने लेवी तथा फण्ड वसूली न किए जाने तथा उसका अभिलेख न रखे जाने पर विशेष चिन्ता प्रकट की।
कार्यशाला का समापन अध्यक्ष का. विजय कुमार के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यशाला में का. चन्द्रप्पन के अंग्रेजी व्याख्यान का अनुवाद का. अरविन्द राज स्वरूप ने किया। कार्यशाला को भाकपा के राष्ट्रीय सचिव का. अतुल कुमार अंजान ने भी सम्बोधित किया।

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