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सोमवार, 31 मई 2010
at 9:53 am | 0 comments | कोल्ली नागेश्वर राव
बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा कृषि में दखल
सरकार ने घोषणा की है कि संसद के वर्तमान सत्र में बायोटेक्नोलोजी नियंत्रण आथोरिटी बिल (बीआरएआई-ब्राई) 2009 पेश किया जायेगा। इसमें संदेह नहीं है कि हर क्षेत्र और खासकर कृषि और बायो टेक्नोलोजी में वैधानिक नियंत्रण प्राधिकरण होना चाहिए। इस प्राधिकरण का काम राष्ट्रीय हित में और खासकर कृषि, पर्यावरण और जनहित के कार्यों से जुड़ा होना चाहिए। इंटरनेट पर उपलब्ध केन्द्रीय सरकार के द्वारा तैयार किये गए बिल से ऐसा लगता है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग, फसल आदि के निगरानी का काम विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को सौंप दिया गया है। ऐसा लगता है कि इस बिल को बायो टेक्लोलोजी विभाग ने तैयार किया है। बिल प्रयोग के उपयोग2000 में मोनसांटों बहुराष्ट्रीय कम्पनी के द्वारा बिना किसीप्राधिकरण के इजाजत के बीटीआई बीज के भारत में प्रयोग का हमारे पास अनुभव है। जब आंध्र प्रदेश में किसान संगठनों ने बीटीआई के गैरकानूनी ढंग से प्रयोग के विरूद्ध संघर्ष किया तो आंध्र प्रदेश की विधानसभा ने इसके प्रयोग पर रोक लगाने का प्रस्ताव किया क्योंकि इसे किसी भी प्राधिकरण या प्रशासन से इस प्रयोग की इजाजत नहीं थी। राज्य सरकार के इस फैलसे के बाद कम्पनी ने 2002 में जीईएसी से खेत में प्रयोग के लिए इजाजत ली।जीईएसी ने बिना किसी प्रयोग या जांच के इस के वाणिज्यीय तौर पर उत्पादन की इजाजत दे दी। इससे पता चलता है कि बीटीडी और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग देश के पर्यावरण कानून तथा जनता और किसानों को सुरक्षा के प्रति कितना सजग है। बायोटेक्नोलोजी मूल रूप से पर्यावरण और वन मंत्रालय तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रति जागरूक है। इसलिए यह कार्य इन दो में से किसी एक मंत्रालय और खासकर पर्यावरण और वन मंत्रालय को सौंपा जाना चाहिए।एक दूसरा पहलू है कि यह राज्य की विषय है और राज्य सरकार को कृषि की निगरानी करने का अधिकार है। लेकिन वर्तमान बिल राज्य सरकारों को अक्षम बना देगा क्योंकि “राज्य बायोटेक्नालोजी नियंत्रक सलाहकार समितियों” के रूप में उसे सिर्फ सलाह देने का अधिकार दिया गया है। राज्य सरकारों को कोई भी फैसला लेने का अधिकार नहीं रह जाता है।कुछ लोग यह विश्वास करते है कि बीआरएआई - 2009 एनबीआरए - 2008 के बिल का विकसित रूप है। लेकिन बीआरएई-2009 देश के अन्दर के किसानों के पक्ष में कम और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पक्ष में ज्यादा है। ऐसा लगता है कि बिल का पूरा जोर हमारे देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था और किसानों के खिलाफ है और मोनसांटो जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पक्ष में है। ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियां जीएम और बीटी फसलों का विकास करती है।मोनसांटो अन्य कम्पनियों का रुखमोनसांटो कम्पनी बीटी-1 बीज को किसानों के हाथों 1880 रु। प्रति पैकेट बेचकर उनका शोषण करना चाहती है। बीटी-1 बीज के 450 ग्राम के पैकेट की लगात मूल्य 600 रु. है। अखिल भारतीय किसान सभा का नेतृत्व और उपाध्यक्ष कोल्ली नागेश्वर राव के साथ-साथ आंध्र प्रदेश की सरकार मोनसांटो की मनमानी के खिलाफ संघर्षों और अदालती कार्रवई के द्वारा लड़ रही है। लेकिन इसके बावजूद यह कम्पनी कानूनी और गैरकानूनी माध्यमों से कीमत की दर बढ़ाने में लगी हुई है। जब अखिल भारतीय किसान राज्य सरकार को प्रभावित करने में असफल रही तो इसनेे केन्द्र सरकार तक अपनी पहुंच लगाई।अब केन्द्र सरकार को प्रभावित कर यह कपास के बीज को आवश्यक वस्तु कानून में शामिल करने में सफल हो गया है। ध्यान रहे इसी केन्द्र सरकार ने दो वर्ष पहले कपास के बीज को इस कानून से अलग कर दिया था। इससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामने केन्द्र सरकार की लाचारी साबित होती है।भारत सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य डा. पीएम भार्गव ने कहा कि बिल का मूल उद्देश्य खाद्य सुरक्षा समेत पर्यावरण सुरक्षा कानून को खत्म करना है। फिर भी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यह उनके कार्य को अपने हाथ में कैसे लेगा और उसका निष्पादन और बेहतर तरीके से कैसे करेगा। इसमें जनता के द्वारा हस्तक्षेप का भी कोई प्रावधान नहीं है।टीआरआईपीएम (ट्रिप्स) समझौतमा मालिकाना अधिकार के गलत इस्तेमाल के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। ट्रिप्स समझौते की धारा 7,8 और 40 सुरक्षा की बात करता है। पेटेंट कानून के अंतर्गत भी अनिवार्य लाइसेंस का प्रावधान है और पेटेंट की गई खोजों को जनता को वाजिब कीमत पर उपलब्ध कराने का भी प्रावधान है। पेटेंट करने वालों के द्वार अधिकारों के गलत इस्तेमाल पर रोक का प्रावधान होना चाहिए जिससे आम जनता को पेटेंट किये गए खोजों को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जा सके।इस संदर्भ में बीआरएआई (ब्राई) 2009 बिल के बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पक्षी धाराओं में संशोधन किया जाना चाहिए जिससे कि किसानों, पर्यावरण और देश की सुरक्षा की जा सके। इसके लिए निम्नलिखित संशोधनों को बिल में उपयुक्त स्थान पर जोड़ा जाना चाहिएःअध्याय 5 में:21 (1) प्राधिकरण के पास कम से कम तीन नियंत्रण संकाय होंगे, जो इस प्रकार हैंः(1) कृषि, वन और मत्स्य पालन को देखने और कानून के प्रावधानों के अनुसार नियंत्रण की जिम्मेदारी और शेड्यूल के खण्उ-1 में वर्णित सूक्ष्म जीवों और उत्पाद के अंतर्गत नियम और कानून के लिए एक संकाय का गठन;(2) जन स्वास्थ्य और पशु स्वास्थ्य के नियमन और (3) शेड्यूल-1 खण्ड-3 में वर्णित और उत्पादन के अंतर्गत बने नियम और कानून के प्रावधानों के अनुसार नियंत्रण के लिए एक संकाय का गठन।इन धाराओं का संशोधन करने के लिए सलाह दी जाती है कि आयात, उत्पादन या किसी और अन्य उद्देश्यों के लिए कार्यान्वयन को विज्ञान आधारित मूल्यांकन के लिए जोखिम के मूल्यांकन को प्रस्तावित तीन खण्डों जोखिम के मूल्यांकन, इकाई और उत्पाद नियमन समिति पर नहीं छोड़ा जा सकता है। जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पर्यवेक्षकों ने बार-बार कहा है, स्वतंत्रता जांच और जांच की सुविधा की जरूरत है। इसलिए जोखिम के मूल्यांकन में फसल/उत्पाद विकसित करने वालों के द्वारा जमा किया गया बायो सुरक्षा फाइल का मूल्यांकन शामिल होना चाहिए। इसके अलावा अनिवार्य रूप से स्वतंत्र सार्वजनिक जांच के साथ-साथ परिणाम की स्वतंत्र जांच को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। किसी भ प्रस्तावित प्रशासन के पास जांच की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।अध्याय 1361. इस कानून की जरूरतों तथा निर्देशों के संबंध में अगर कोई व्यक्ति सूचना देता है या दस्तावेज प्रस्तुत करता है जिसे गलत या भ्रामक होने का उसे ज्ञान है, तो उसे 3 महीने तक की सजा और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। 61 (1) अगर कोई व्यक्ति या उसके बदले कोई अन्य व्यक्ति प्रयोगशाला में भाग 33 के नियमों के विरूद्ध शेड्यूल-1 के खण्ड 2 में वर्णित या सूक्ष्म जीवों का परीक्षण करता है तो उसे 5 से 10 वर्षो के कारावास के साथ 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। ऊपर के उपनियमों में संशोधन के लिए निम्नलिखित सलाह दी जा रही हैःअपराध और जुर्माना के संबंध में अध्याय 13यह स्पष्ट नहीं है कि गलत या भ्रामक सूचना से संबंधित खण्ड 61 उस व्यक्ति पर कैसे लागू होगा जो जानबूझकर गलत या भ्रामक सूचना देता है। अगर यह विशेष रूप से राष्ट्रीय बायोसुरक्ष प्राधिकरण के लिए नहीं है तो इसको जनता को परेशान करने वाला कानून समझा जाएगा। उसी प्रकार खण्ड-63 पूर्ण रूप से आपत्तिजनक है और इस विनाशकारी तकनीक के कार्यान्वन से चिंतित नागरिक समाज के समूहों को परेशान करने के लिए है। इस उपभाग में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति जीएमओ उत्पादों के विषय में बिना किसी सबूत या वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर जनता को भ्रमित करता है तो वह जुर्माना या कारावास का हकदार हो सकता है।हकीकत में इस प्रस्तावित कानून में जिम्मेदारी का पक्ष बहुत कमजोर है। सर्वप्रथम कम्पनियों, विश्वविद्यालयों, सोसाइटी, ट्रस्ट, सरकारी विभाग आदि में भेद नहीं होना चाहिए। सभी पर दण्ड का प्रावधान समान होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि कानून को शिकायत दूर करने या मुआवजा देने और समाधान निकालने या सफाई करने के मामले में द्रुतगामी होना चाहिए। इस कानून में ऐसा प्रावधान भी होना चाहिए जो उत्पाद के विकास की पूरी प्रक्रिया के हर स्तर पर लिंक करने या मिलावट आदि के लिए विकसित करने वाले को पूर्ण रूप से जिम्मेदार बनाता हो। इसके अलावा एक वर्ष का कारावास और 2 लाख रुपये का जुर्माना कोई सजा नहीं है। इसे और कठिन बनाया जाना चाहिए।अध्याय 6शेड्यूल-1 में वर्णित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों का आयात से संबंधित व्यवस्थाः कस्टम कानून 1962 या किसी और कानून के द्वारा आयात पर रोक लगे वस्तुओं के संबंध में कानून के खण्ड 26 के अंतर्गत आएगा और शेड्यूल-1 के उपभोग 1,2 और 3 में वर्णित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के संबंध में लागू होगा। उन वस्तुओं के आयात के लिए अध्याय... के तहत प्रशासन और कस्टम कानून 1962 के अंतर्गत अधिकार प्राप्तअधिकारियों से उस समय लागू किसी अन्य कानूनी इजाजत की जरूरत होगी। उप वर्णित सूक्ष्म जीवों और उत्पाद पर कर लगाने के लिए कस्टम के कमिश्नर तथा अन्य अधिकारियों को भी वही अधिकार प्राप्त होगा। इनमें संशोधन लाने की सलाह दी जाती है।अध्याय 10 सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के आयात से संबंधितप्रावधानों के लिए है। यहां हानि किये जाने वाले सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के डब्बों को रोकने के अलावा यह व्यवस्था होनी चाहिए कि आयातकर्ता आयात के समय घोषणा करे कि आयातित होने वाले सामान में कोई जीएमओ या हानिकारक उत्पाद नहीं है।यह नियम भारत आ रहे सभी आयात के लिए होना चाहिए।अध्याय 4इस कानून के उद्देश्यांें के लिए प्रशासक कानून द्वार प्रमाणित प्रयोगशालाओं, शोध संस्थानों आदि को सूचित कर सकते हैं।बायोटेक्नोलोजी के आधुनिक विकास और प्रयोगशालाओं में उपलब्ध नए उपकरणों और सुविधाओं के मद्देनजर प्रशासक अगर उचित समझे तो गैर प्रमाणित संस्थाओं को भी इसकी सूचना दे सकते हैं।उपनियम में संशोधन की सलाहअध्याय 10 में प्रयोगशालाओं को सूचित करने के संबंध में यह उचित नहीं है कि ‘बायोटेक्नोलोजी के आधुनिकता विकास के कारण’ गैरप्रमाणित संस्थाओं को भी सूचित किया जाय। आधुनिक तकनीक के विकास के ऐसे समय इंतजार करने की जरूरत है।शेड्यूल-1 के खण्ड-2 में वर्णित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों का उत्पादन, बिक्री और वितरण। इसके बाद निम्नलिखित को जोड़ा जाना चाहिएः “अगर अधिकतम खुदरा मूल्य समर्थन को देखते हुए निश्चित किया गया है।”व्याख्या: प्रशासन को चाहिए कि वे छोटी और मध्यम आकार की कम्पनियों को आदेश दे कि वे बायोटेक्नोलोजी की जानकारी किसानों तक पहुंचाये। किसान तकनीक से लाभ प्राप्त करने वाले है। प्रस्तावित बिल में स्वागतयोग्यः कार्यालय के कार्य स्थगन होने पर ट्रिब्यूनल और प्रशासन में विभिन्न पदों के लिए नियुक्ति पर कम से कम 2 वर्षों के लिए रोक। यह एक स्वागतयोग्य कदम है।
- कोल्ली नागेश्वर राव
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