फ़ॉलोअर
शनिवार, 22 मई 2010
at 9:19 pm | 0 comments | देवाशीष प्रसून
बंधुआ मजदूरी का बदलता चेहरा
बंधुआ मजदूरों का जिक्र करने पर सरकार का सीधा और साफ जवाब होगा कि अब देश में मजदूरों को बंधुआ नहीं बनाया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें दोनों इस बात पर साथ-साथ दिखाई पड़ती हैं। केंद्र व राज्य सरकरों के श्रम मंत्रालय की जारी रपटों से इस बात की हमें जानकारी भी मिलती है कि देश में न तो अब बंधुआ मजदूर हैं और न बनाए जा रहे हैं। देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन का कानून 1975 से लागू है। इस कानून के लागू होने के बाद से सरकारों ने अपने प्रयासों के जरिए बंधुआ मजदूरी की व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंका है। यह दावा हर सरकार बढ़-चढ़ कर करती है। लेकिन हकीकत ठीक इसके उलट है।बीते दिनों, बीस राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के कई शहरों में हुए एक सर्वेक्षण ने देश में बंधुआ मजदूरी के मामले मंे सरकारी दावों की कलई खोल कर रख दी है। असंगठित क्षेत्रों के कामगारों के लिए बनाई गई राष्ट्रीय अभियान समिति के अगुवाई में मजदूरों के लिए काम कर रहे कई मजदूर संगठनों व गैर-सरकारी संगठनों के इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से पता चलता है कि देश मेंबंधुआ मजदूरी खत्म नहीं हुई है। भले ही इसक स्वरूप नई जरूरतों के हिसाब से बदल गया है, लेकिन असंगठित क्षेत्रों में हो रहा ज्यादातर श्रम, किसी न किसी रूप में, बंधुआ मजदूरी का ही एक रूप है। यह तथ्य भी सामने आया है कि आज देश के ज्यादातर इलाकों में बंुधआ मजदूरी की परंपरा के फिर से जड़ पकड़ने की बड़ी वजह पलायन और विस्थापन है।किसी मजदूर को अपना गांव घर छोड़ कर दूसरी जगह मेहनत करने इसलिए जाना पड़ता है, क्योंकि अपने इलाके में उसे दो वक्त की रोटी भी ठीक ढंग से नहीं मिल पाती है। कहीं सूखा, कहीं बाढ़ या फिर किसी के पास खेती के लिए नाकाफी जमीन मजदूरी का एक बड़ा कारण बनते हैं। ऐसे में, वे जो बस ख्ेातिहर मजदूर हैं, दोहरी मार झेलते हैं। एक तो अपने इलाकों में खेती के बदतर स्थिति के कारण मजूरी बहुत कम पाते हैं और फिर दबंगों व सामंतों की धौंस अलग सहते हैं। बेहतरी की उम्मीद में ही वे पलायन करने को मजबूर होते हैं।बंधुआ मजदूरी का नया स्वरूप जो सामने आया है, उसमें मजदूरों का सबसे बड़ा हिस्सा ऐसे मजदूरों का ही है।ख्ेाती, ईंट-भेट्टा, निर्माण-उद्योग और खदानों जैसे कई व्यवसायों में अपना खून-पसीना एक करने वाले मजदूरों को बड़े ही सुनियोजित तरीके से बंधुआ बनाया जाता है। मजदूरों को नियुक्त करवाने वाले दलाल शुरूआत में ही थोड़े से रुपए बतौर पेशगी देकर लोगों को कानूनन अपन कर्जदार बना देता है। रुपयों के चक्कर में पड़ कर मजदूर अपने नियोक्ता या इन दलालों काबंधुआ बन कर रह जाता है।अधिकतर मामलों में, ये दलालसंबंधित उद्योगों की नजर में मजदूरों के ठेकेदार होते हैं। इन ठेकेदारों सेप्रबंधन अपनी जरूरत के मुताबिक मजदूरों की आपूर्ति करने को कहता है और मजदूरों के श्रम का भुगतान भी ये ठेकेदार ही करते हैं। बाद में ये ठेकेदार या दलाल, आप इन्हें जो भी संज्ञा दें, मजदूरों के भुगतान में हर तरह की बेईमानी करते हैं। नियोक्ता और श्रमिक के बीच दलालों की यह महत्वपूर्ण उपस्थिति मजदूरों के शोषण को और गंभीर बना देती है। दलाल मजदूरों का हक मारने में किसी तरह से गुरेज नहीं करते, उन्हें न्यूनतम दिहाड़ी देना तो दूर की बात हैं। मजदूरों का मारा गया हक ही इन दलालों के लिए मुनाफा है। ऐसी स्थिति में मजदूरों के प्रति किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी, जैसे कि रहने और आराम करने के जगह की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाएं, बीमा, खाने के लिए भोजन और पीने के लिए पानी को सुलभ बनाना और दुर्घटनाओं के स्थिति में उपचार जैसी बातों से अमूमन नियोक्ता अपने आप को विमुख कर लेता है। नियोक्ता इन सब के लिए ठेकेदारों को जिम्मेदार बताता है तो ठेकेदार नियोक्ता को और ऐसे में मजदूर बेचारे बड़े बदतर स्थिति में इसी तरह खटते रहते हैं।महानगरों में काम करने वाली घरेलू नौकरानियों का ही उदाहरण लें। गरीबी और भूख के साथ-साथ विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित हो रहे छत्तीसगढ़ और झाड़खंड के आदिवासी रोजी-रोटी के लिए इधर- उधर भटकते रहते हैं। ऐसे में आदिवासी लड़कियों को श्रम-दलाल महानगर ले आते हैं। उन्हें प्रशिक्षित करके दूसरों के घरों में घरेलू काम करने के लिए भेजा जाता है। इन घरों में ऐसी लड़कियों की स्थिति बंधुआ मजदूरों से ज्यादा नहीं होती। अठारह से बीस घंटे रोज मेहनत के बाद भी नियोक्ता का इनके साथ सलूक आमतौर पर गैरइंसानी ही होता है। इन के यौन शोषण की आशंका तो बनी ही रहती है। इतने प्रतिकूल परिस्थिति में भी इनके बंधुआ बने रहने का मुख्य कारण आजीविका के लिए विकल्पहीन होने के साथ-साथ नियोक्ता के चाहरदीवारी के बाहर की दुनिया से अनभिज्ञता भी है। मजबूरन अत्याचार सहते रहने के बाद भी घरेलू नौकरानियां अपेन नियोक्ता के घर में कैद रह कर चुपचाप खटती रहती है, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है।श्रमिकों पर होने वाला शोषण यहां रुकता नहीं है। ईंट-भेट्टे पर काम करने वाले मजदूरों में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष और बच्चे भी काम करते हैं। इन्हें भी काम दिलाने वाले दलाल गांवों- जंगलों से कुछ रुपयों के बदले बहला फुसला कर काम करवाने के लिए लाते हैं। ईंट भेट्टे का काम एक मौसमी काम है। पूरे मौसम इन श्रमिकों के साथबंधुआ के तरह ही व्यवहार किया जाता है और इन्हें न्यूनतम दिहाड़ी देने का चलन है ही नहीं। और तो और, अध्ययन के मुताबिक महिलाओं को लेकर यौन-हिंसा ईंट भेट्टे में होने वाली आम घटना है। ईंट-भेट्टें में काम करने वाले मजदूरों की खस्ताहाल स्थिति पूरे देश में एक जैसी है।हद तो तब हो जाती है, तब मजदूरों पर होता यह अन्याय एक तरफ सरकारों को सूझता नहीं, दूसरी ओर, खुलेआम सरकार अपने कुछ योजनाओं के जरिए बंधुआ मजदूरी को प्रश्रय भी देती है। बतौर उदाहरण लें तो बंधुआ मजदूरी का एक स्वरूप तमिलनाडु में सरकार के प्रोत्साहन पर चल रहा है। बंधुआ मजदूरी का यह भयंकर कुचक्र सुमंगली थित्तम नाम की योजना के तहत चलाया जाता है। इस योजना को मंगल्या थित्तम, कैंप कूली योजना या सुबमंगलया थित्तम के नामों से जाना जाता है। इसके तहत सत्रह साल या कम उम्र की किशोरियों के साथ यह करार किया जाता है कि वह अगले तीन साल के लिए किसी कताई मिल में काम करेंगी और करार की अवधि खत्म होने पर उन्हें एकमुश्त तीस हजार रुपए दिए जाएंगे, जिसे वे अपनी शादी में खर्च कर सकती हैं। तमिलनाडु के नौ सौ तेरह कपास मिलों में सैंतीस हजार किशोरियां इस योजना के तहत बंधुआ पाई गई हैं। इनके बंधुआ होने का कारण यह है कि करार के अवधि के दौरान अगर कोई लड़की उसके नियोक्ता कपास मिल के साथ काम न करना चाहे और मुक्त होना चाहे तो उसकी पूरी कमाई को मिल प्रबंधन हड़प कर लेता है। साथ ही, कैंपों में रहने को विवश की गई इन लड़कियों के साथ बड़ा ही अमानवीय व्यवहार होता है। इन्हें बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग रखा जाता है, किसी से मिलने-जुलने की इंजाजत तक नहीं होती है। एक दिन में अठारह घंटों का कठोर परिश्रम करवाया जाता है। हफ्ते में बस एक बार चंद घंटे के लिए बाजार से जरुरी खरीदारी करने की छूट मिलती है। इनके लिए न तो कोई बोनस है, न ही किसी तरह की बीमा योजना और न ही किसी तरह की स्वास्थ्य सुविधा। दंरिदगी की हद तो तब है, जब इन अल्पव्यस्कों को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता है। हाल ही में एक खबर छपी थी कि शंाति नाम की लड़की को ढाई साल मिल में काम के बाद भी बदले में एक कौड़ी नहीं मिली। उलटे, मिल के मशीनों ने उसे अपाहिज बना दिया और प्रबंधन का यह बहाना था कि दुर्घटना के बाद शांति के इलाज में उसकी पूरी कमाई खर्च हो गई।बंधुआ मजदूरी के चक्कर में फंसने वाले ज्यादातर लोग या तो आदिवासी होते हैं या दलित। आदिवासियों काबंधुआ बनने का कारण उनके पारंपरिक आजीविका से उन्हें महरूम करना है। तमिलनाडु की एक जनजाति है इरुला। ये लोग पारंपरिक रूप से सपेरे रहे हैं, लेकिन सांप पकड़ने पर कानूननप्रतिबंध लगने के बाद से कर्ज के बोझ तले दबे इस जनजाति के लोगों को बंधुआ की तरह काम करने के लिए अभिशप्त होना पड़ा। चावल मिलों, ईंट-भट्टें और खदानों में काम करने वाली इस जनजाति पर हर तरह के अत्याचार किए जाते हैं। तंग आकर जब रेड हिल्स के चावल मिलों में बंधुआ मजदूरी करने वाले लगभग दस हजार लोगों ने अपना विरोध दर्ज किया तो उन्हें मुक्त कराने के बजाए एक सक्षम सरकारी अधिकारी ने उन्हें नियोक्ता से कह कर कर्ज की मात्रा कम करवाने के आश्वासन के साथ वापस काम पर जाने को कहा। सरकारी मशीनरी की ऐसी भूमिका मिल मालिकों और अधिकारियों की सांठ-गांठ का प्रमाण है। बंधुआ मजदूरी के पूरे मामले में एक बहुत बड़ा कारण आजीविका के लिए अन्य विकल्पों और अवसरों काउपलब्ध नहीं होना है। साथ ही, अब तक जो हालात दिखे हैं, उनके आधार पर सरकारी लालफीताशाही पर किसी तरह का भरोसा करना ठीक नहीं है। बंधुआ मजदूरी का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण स्थायी नौकरी के बदले दलालों के मध्यस्था में मजदूरों के श्रम का शोषण करने की रणनीति अंतर्निहित है। ऐसे में संसद और विधानसभा में बैठ कर उन्मूलन के कानून बनाने के अलावा सरकार को इसके पनपने और फलने-फूलने के कारणों पर भी चोट करना पड़ेगा।
- देवाशीष प्रसून
- देवाशीष प्रसून
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The question of food security is being hotly discussed among wide circles of people. A series of national and international conferences, sem...
-
HUNDRED YEARS OF INTERNATIONAL WOMEN'S DAY (8TH MARCH) A.B. Bardhan Eighth March, 2010 marks the centenary of the International Women...
-
Something akin to that has indeed occurred in the last few days. Sensex figure has plunged precipitately shedding more than a couple of ...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
अयोध्या- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है , समाधान अभी बाकी है सर्वोच्च न्यायालय की विशिष्ट पीठ द्वारा राम जन्मभूमि- बाबरी मस्...
-
( 5 फरबरी 2019 को जिला मुख्यालयों पर होने वाले आंदोलन के पर्चे का प्रारूप ) झूठी नाकारा और झांसेबाज़ सरकार को जगाने को 5 फरबरी 2019 को...
-
(कामरेड अर्धेन्दु भूषण बर्धन) हाल के दिनों में भारत में माओवादी काफी चर्चा में रहें हैं। लालगढ़ और झारखंड की सीमा से लगे पश्चिमी बंगाल के मिद...
-
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मण्डल ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा बल SSF के गठन को जनतंत्र ...
-
लखनऊ- 13 अगस्त- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कमेटी ने गोरखपुर की ह्रदय विदारक घटना जिसमें कि अब तक 60 से अधिक बच्चों...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें