फ़ॉलोअर
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
at 3:07 pm | 0 comments | प्रदीप तिवारी
कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन में बढ़ती महंगाई, रोता आम आदमी और भरोसा दिलाते प्रधानमंत्री
दो साल से ज्यादा हो गये जब वाम मोर्चा ने संप्रग-1 सरकार से समर्थन वापस लेते समय जो कारण गिनाये थे उनमें एक मुद्दा महंगाई का भी था। आजादी के बाद के इतिहास में महंगाई बढ़ने की अभूतपूर्व गति बरकरार है। कृषि मंत्री शरद पवार जब भी मुंह खोलते हैं, महंगाई और बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष इत्मीनान से बंसी बजा रहे हैं कि आने वाले तीन महीनों में महंगाई पर काबू पा लिया जायेगा लेकिन महंगाई बढ़ती जा रही है, आम आदमी रो रहा है और प्रधानमंत्री मार्च 2011 तक महंगाई पर काबू पाने का भरोसा दिला रहे हैं परन्तु कर ऐसा कुछ रहे नहीं हैं जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके।
कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक आम आदमी की चर्चा की है। वे मानते हैं कि ”आम आदमी“ वह है जिसका उनकी व्यवस्था से कोई सम्पर्क नहीं है। शायद यही कारण है कि उसके दर्द को भूमंडलीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की यह व्यवस्था समझने को तैयार नहीं है। इस आम आदमी का रेखाचित्र बनाते हुए एक काव्यात्मक अंदाज में कांग्रेस के युवराज ने कहा - ”वह गरीब हो या अमीर, शिक्षित हो या अशिक्षित, हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, अगर वह इस व्यवस्था से नहीं जुड़ा है तो वह ‘आम आदमी’ है। ..... यह आम आदमी नियमगिरि का वह आदिवासी बालक है, जिसे अपनी जमीन से बिना किसी कानून के बेदखल कर दिया जाता है। यह आम आदमी झांसी का वह दलित बालक है जिसे अपनी कक्षा में दलित होने के कारण सबसे पीछे बिठाया जाता है। वह बंगलुरू का वह युवा प्रोफेशनल है, जिसके बच्चे को ऊंची कैपिटेशन फीस न दे पाने के कारण अच्छे स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाया। वह शिलांग के विश्वविद्यालय का टॉपर है, जिसे इसलिए काम नहीं मिल सका, क्योंकि वह सही लोगों को नहीं जानता। वह अलीगढ़ का वह किसान है जिसे अपनी जमीन का उचित मुआवजा नहीं मिला है। वह हैदराबाद का बिजनेसमैन है जिसके अपने सम्पर्क नहीं हैं। यह ऐसा नौकरशाह है, जिसका भविष्य समझौता न करने की वजह से जोखिम में है। यह वह मेट्रो वर्कर है जिसने अपने खून-पसीने से उसे बनाया है, लेकिन जिसका उसे कोई श्रेय नहीं मिलता है। ...... वह जी-जान से इस देश को रोज बनाता है फिर भी हमारी व्यवस्था उसे हर कदम पर कुचलती है।“ आम आदमी को कुचलने का धमंड कांग्रेस में कूट-कूट कर भरा हुआ है।
इस रेखाचित्र में महंगाई और भ्रष्टाचार का मारा वह आम आदमी कहीं राहुल गांधी को नहीं दिखाई देता जिसके दुःख दर्दों के लिए उनकी तीन पीढ़ियां जिम्मेदार हैं। वे तीन पीढ़ियां जिन्होंने इस देश पर लम्बे समय तक शासन किया है। उनकी दादी इंदिरा गांधी के युग में इस आदमी के नाम का अखण्ड जाप कांग्रेस और सरकार रात-दिन करती रहती थी परन्तु उसके लिए करती कुछ नहीं थीं। उससे केवल वोट लेती थी। इस रेखाचित्र से कई सवाल उठते हैं, लेकिन एक सवाल को उठाना जरूरी है - आखिर कौन है जिम्मेदार जिसके कारण नियमगिरि का आदिवासी बालक अपनी जमीन से बेदखल होता है, दलित बालक को सबसे पीछे बैठना पड़ता है, पूरे देश के गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की संतानें शिक्षा से वंचित रह जा रही हैं, टॉपरों को रोजगार नहीं मिलता आदि आदि। क्या जिम्मेदार वे सरकारें नहीं जो केन्द्र में या राज्यों में कांग्रेस चला रही है? क्या जिम्मेदार वे नीतियां नहीं जिन्हें उनकी पार्टी ने इस देश में चलाना शुरू किया था? राहुल गांधी इस आम आदमी को एक बार फिर बेवकूफ बना कर वोट बटोरने की राजनीति खेल रहे हैं।
कांग्रेस के इसी अधिवेशन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि मार्च 2011 तक महंगाई दर गिर कर 5.5 प्रतिशत हो जायेगी। इसे पढ़ कर या सुनकर अजीब सी अनुभूति होती है। उनकी सरकार के अनुसार तो महंगाई दर गिर कर नवम्बर में 7.48 प्रतिशत आ गयी है लेकिन आज प्याज 70 रूपये किलो बिक रहा है। पेट्रोल के भाव पिछले पांच महीनों में पांच बार कीमतें बढ़ाकर 60 रूपये प्रति लीटर सरकार ने पहुंचा ही दिये हैं। डीजल, किरोसिन और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाने की तैयारी है। खाद्यान्न व्यापार में विदेशी पूंजी को अनुमति दी जा रही है, सट्टेबाजी कराई जा रही है और आयात-निर्यात का खेल चल रहा है। आम आदमी भूखों मरता है तो मरे। 87 करोड़ जनता 20 रूपये प्रतिदिन से कम आमदनी पर जीवित है, महंगाई के बावजूद गरीबी की इस रेखा में कोई परिवर्तन नहीं आया है। मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में कोई अन्तर नहीं आया है। उस आम आदमी की कोई पीड़ा उनके चेहरे पर नहीं झलकती।
कांग्रेस के इसी अधिवेशन में प्रस्तुत एक आर्थिक प्रस्ताव कहता है कि विकासशील देश में कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि उनकी आपूर्ति और मांग के मध्य असंतुलन होता है। कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि कई सेवाओं और वस्तुओं के निर्माताओं को ज्यादा कीमत दिये जाने की जरूरत होती है। कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उनकी कीमतें ऊपर चली जाती हैं। इस प्रस्ताव में भी कहीं दर्द नहीं झलकता उस आम आदमी का। यानी सब कुछ किसी न किसी कारक का सहज परिणाम है क्योंकि मुक्त अर्थव्यवस्था में सब कुछ सरमाया करता है, सरकारें कुछ नहीं। सरकारें तो केवल घोटाले, घपले और भ्रष्टाचार के लिए बनाई जाती हैं जिनसे आम आदमी का कोई सम्पर्क नहीं है। शायद वह समय आ गया है जब यह सवाल भी खड़ा किया जाये कि सरकारों की फिर जरूरत क्या है?
कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन ने आम आदमी को एक बार फिर ललकारा है कि तेरा कोई वजूद नहीं, तेरा कोई महत्व नहीं, तेरी कोई जरूरत नहीं, तेरी कोई अस्मिता नहीं।
आम आदमी का खून अगर अब भी इस ललकार से नहीं खौलता तो शायद वह पानी ही है खून नहीं!
- प्रदीप तिवारी
कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक आम आदमी की चर्चा की है। वे मानते हैं कि ”आम आदमी“ वह है जिसका उनकी व्यवस्था से कोई सम्पर्क नहीं है। शायद यही कारण है कि उसके दर्द को भूमंडलीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की यह व्यवस्था समझने को तैयार नहीं है। इस आम आदमी का रेखाचित्र बनाते हुए एक काव्यात्मक अंदाज में कांग्रेस के युवराज ने कहा - ”वह गरीब हो या अमीर, शिक्षित हो या अशिक्षित, हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, अगर वह इस व्यवस्था से नहीं जुड़ा है तो वह ‘आम आदमी’ है। ..... यह आम आदमी नियमगिरि का वह आदिवासी बालक है, जिसे अपनी जमीन से बिना किसी कानून के बेदखल कर दिया जाता है। यह आम आदमी झांसी का वह दलित बालक है जिसे अपनी कक्षा में दलित होने के कारण सबसे पीछे बिठाया जाता है। वह बंगलुरू का वह युवा प्रोफेशनल है, जिसके बच्चे को ऊंची कैपिटेशन फीस न दे पाने के कारण अच्छे स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाया। वह शिलांग के विश्वविद्यालय का टॉपर है, जिसे इसलिए काम नहीं मिल सका, क्योंकि वह सही लोगों को नहीं जानता। वह अलीगढ़ का वह किसान है जिसे अपनी जमीन का उचित मुआवजा नहीं मिला है। वह हैदराबाद का बिजनेसमैन है जिसके अपने सम्पर्क नहीं हैं। यह ऐसा नौकरशाह है, जिसका भविष्य समझौता न करने की वजह से जोखिम में है। यह वह मेट्रो वर्कर है जिसने अपने खून-पसीने से उसे बनाया है, लेकिन जिसका उसे कोई श्रेय नहीं मिलता है। ...... वह जी-जान से इस देश को रोज बनाता है फिर भी हमारी व्यवस्था उसे हर कदम पर कुचलती है।“ आम आदमी को कुचलने का धमंड कांग्रेस में कूट-कूट कर भरा हुआ है।
इस रेखाचित्र में महंगाई और भ्रष्टाचार का मारा वह आम आदमी कहीं राहुल गांधी को नहीं दिखाई देता जिसके दुःख दर्दों के लिए उनकी तीन पीढ़ियां जिम्मेदार हैं। वे तीन पीढ़ियां जिन्होंने इस देश पर लम्बे समय तक शासन किया है। उनकी दादी इंदिरा गांधी के युग में इस आदमी के नाम का अखण्ड जाप कांग्रेस और सरकार रात-दिन करती रहती थी परन्तु उसके लिए करती कुछ नहीं थीं। उससे केवल वोट लेती थी। इस रेखाचित्र से कई सवाल उठते हैं, लेकिन एक सवाल को उठाना जरूरी है - आखिर कौन है जिम्मेदार जिसके कारण नियमगिरि का आदिवासी बालक अपनी जमीन से बेदखल होता है, दलित बालक को सबसे पीछे बैठना पड़ता है, पूरे देश के गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की संतानें शिक्षा से वंचित रह जा रही हैं, टॉपरों को रोजगार नहीं मिलता आदि आदि। क्या जिम्मेदार वे सरकारें नहीं जो केन्द्र में या राज्यों में कांग्रेस चला रही है? क्या जिम्मेदार वे नीतियां नहीं जिन्हें उनकी पार्टी ने इस देश में चलाना शुरू किया था? राहुल गांधी इस आम आदमी को एक बार फिर बेवकूफ बना कर वोट बटोरने की राजनीति खेल रहे हैं।
कांग्रेस के इसी अधिवेशन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि मार्च 2011 तक महंगाई दर गिर कर 5.5 प्रतिशत हो जायेगी। इसे पढ़ कर या सुनकर अजीब सी अनुभूति होती है। उनकी सरकार के अनुसार तो महंगाई दर गिर कर नवम्बर में 7.48 प्रतिशत आ गयी है लेकिन आज प्याज 70 रूपये किलो बिक रहा है। पेट्रोल के भाव पिछले पांच महीनों में पांच बार कीमतें बढ़ाकर 60 रूपये प्रति लीटर सरकार ने पहुंचा ही दिये हैं। डीजल, किरोसिन और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाने की तैयारी है। खाद्यान्न व्यापार में विदेशी पूंजी को अनुमति दी जा रही है, सट्टेबाजी कराई जा रही है और आयात-निर्यात का खेल चल रहा है। आम आदमी भूखों मरता है तो मरे। 87 करोड़ जनता 20 रूपये प्रतिदिन से कम आमदनी पर जीवित है, महंगाई के बावजूद गरीबी की इस रेखा में कोई परिवर्तन नहीं आया है। मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में कोई अन्तर नहीं आया है। उस आम आदमी की कोई पीड़ा उनके चेहरे पर नहीं झलकती।
कांग्रेस के इसी अधिवेशन में प्रस्तुत एक आर्थिक प्रस्ताव कहता है कि विकासशील देश में कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि उनकी आपूर्ति और मांग के मध्य असंतुलन होता है। कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि कई सेवाओं और वस्तुओं के निर्माताओं को ज्यादा कीमत दिये जाने की जरूरत होती है। कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उनकी कीमतें ऊपर चली जाती हैं। इस प्रस्ताव में भी कहीं दर्द नहीं झलकता उस आम आदमी का। यानी सब कुछ किसी न किसी कारक का सहज परिणाम है क्योंकि मुक्त अर्थव्यवस्था में सब कुछ सरमाया करता है, सरकारें कुछ नहीं। सरकारें तो केवल घोटाले, घपले और भ्रष्टाचार के लिए बनाई जाती हैं जिनसे आम आदमी का कोई सम्पर्क नहीं है। शायद वह समय आ गया है जब यह सवाल भी खड़ा किया जाये कि सरकारों की फिर जरूरत क्या है?
कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन ने आम आदमी को एक बार फिर ललकारा है कि तेरा कोई वजूद नहीं, तेरा कोई महत्व नहीं, तेरी कोई जरूरत नहीं, तेरी कोई अस्मिता नहीं।
आम आदमी का खून अगर अब भी इस ललकार से नहीं खौलता तो शायद वह पानी ही है खून नहीं!
- प्रदीप तिवारी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...5 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
सहारनपुर की स्थिति को शीघ्र काबू में करे राज्य सरकार: भाकपा लखनऊ- 10 मई 2017, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया है क...
-
लखनऊ 12 सितम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य मंत्रिपरिषद की ओर से जारी प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सह सचिव अरविन्द राज स्वरूप न...
-
भारतीय खेत मजदूर यूनियन की केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक 23 एवं 24 अगस्त 2010 को नई दिल्ली में यूनियन के अध्यक्ष अजय चक्रवर्ती पूर्व स...
-
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने राज्य सरकार से मांग कि है कि वह सूखाग्रस्त इलाकों में राहत के कदम फ़ौरन उठायें. भाकपा ने ललितपुर जनपद को भ...
-
कामेरड अजय घोष द्वारा पार्टी संविधान में परिवर्तन के लिए अमृतसर में विशेष पार्टी महाधिवेशन बुलाया था जिसमें पार्टी ने घोषित किया था- ‘‘कम्य...
-
लखनऊ 28 मार्च। राज्य सरकार द्वारा राज्य के बड़े जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली की स्थापना की घोषणा पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना व...
-
लखनऊ- १३, जुलाई २०१४. आसमान लांघ रही महंगाई, जमाखोरी और रिकार्डतोड़ अपराधों के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दिनांक- १४ जुलाई को प्रदेश भर ...
-
देश की छाती दरकते देखता हूँ! थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को, पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ! सत्य के जारज सुतों को, लंदनी गौरांग...
-
इक्कीसवाँ सम्मेलन ए0आई0एस0एफ0 का इक्कीसवाँ सम्मेलन त्रिची, तमिलनाडु में 28-31 जनवर 1983 को हुआ। मार्च 1983 को दिल्ली में 7वाँ ...
-
कर्जमाफी: एक बार फिर ठगे गये किसान – भाकपा लखनऊ- 4 अप्रेल 2017, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के कि...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें