भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष और बाबा रामदेव


बाबा रामदेव एक कुशल योग गुरू है। विभिन्न स्थानों पर आयोजित उनके योग कैम्पों में हमेशा अच्छी खासी उपस्थिति रहती है। टीवी चैनल उन्हें देश के लाखों दर्शकों का नियमित रूप से टेलीकास्ट करते हैं। इससे उनके शिष्यों-अनुयायियों और योग अभ्यास करने वालों की संख्या बहुत बड़ी हो गयी है।

पर वह अपने देश के लोगों में योग को लोकप्रिय बनाने वाले बाबा ही नहीं हैं। वह एक चतुर बिजनेस मैन भी हैं। उन्होंने योग का अभूतपूर्व व्यवसायीकरण कर लिया है। उनके कैम्पों में हिस्सा लेने वाले लोगों को भी बड़ी रकम देनी पड़ती है जो इस पर निर्भर है कि वे कौन सी लाइन में बैठते हैं। कहा जा सकता है कि इस समूची प्रक्रिया मंे व्यवसायीकरण में कुछ भी गलत नहीं। आखिर सारे बंदोबस्त का खर्च निकालना होता है।

बाबा हर एक “आसन” और “प्राणायाम” और उससे होने वाले फायदों पर भाषण करते हैं, सीख देते हैं, इस मौके को, जैसा वह ठीक समझते हैं उस तरह के, राजनैतिक प्रवचन देने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं यह सच है कि उनके प्रवचनों की विषय वस्तु में भ्रष्टाचार, कालेधन को बाहर निकालने जैसे मुद्दे भी होते हैं।

चतुर-चालाक बाबा ने योग के शिक्षण को वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, कम्पनियों एवं ट्रस्टों के एक सिलसिले को कायम करने-चलाने, विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बेचने, सरकारी पैसे से फूड पार्क चलाने जैसी बातों से जोड़ दिया है। बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों के तत्वावधान में सचमुच एक व्यापारिक साम्राज्य कायम हो गया हैं

अब रिपोर्टें हैं कि इस तरह की कम्पनियां और वाणिज्यिक संस्थाओं की संख्या 200 से कम नहीं है। प्रश्न पूछा जा सकता हैः क्या सरकार को उनका पता अब रामलीला मैदान की घटना के बाद चला है? या यदि सरकार पहले उनके बारे में जानती थी तो इस तमाम अरसे में चुप क्यों रही? ये प्रासंगिक मुद्दे हैं जिससे ऐसे मुद्दों पर सरकार की मिलीभगत का और जब मौका पड़े तो कार्रवाई करने के उसके दोगलेपन का इशारा मिलता है। बाबा की इस जबर्दस्त आमदनी ने उन्हें पांच सितारा संस्कृति विकसित करने, निजी जेट खरीदने एवं किराये पर लेने और यहां तक कि आराम एवं विश्राम के लिए स्काटलैंड के समुद्रतट के पास एक टापू खरीदने की सामर्थ्य प्रदान कर दी है। संभवतः आज की दुनिया में इन तमाम बातों की भी इजाजत है।

जनता के बड़े तबकों से उन्हें जो रेस्पोंस मिलता है उसे देखकर बाबा ने राजनीति के मैदान में कूदने का फैसला किया। कुछ समय तक वह अपनी स्वयं की एक पार्टी बनाने पर सोचते रहे। पर उनके नजदीक के लोगों ने उन्हें सलाह दी कि पहले ही ऐसी राजनैतिक पार्टियां और रूझान हैं जो उन्हें साथ लेकर चलने के लिए सहर्ष उत्सुक होंगी, देश में आज जो तूफानी राजनैतिक वातावरण बना हुआ है उसमें स्वयं की पार्टी बनाने के मुकाबले वह अधिक फायदे की बात होगी। हमने देखा कि जब उन्होंने अपने आंदोलन की घोषणा की तो संघ परिवार किस कदर तेजी के साथ उनके मंच पर चढ़ गया।

भ्रष्टाचार आज एक ज्वलंत मुद्दा है। यूपीए सरकार के एक के बाद दूसरे भ्रष्टाचारों का जो सिलसिला सामने आया है जनता में उससे जबर्दस्त आक्रोश है। कम्युनिस्ट और वामपंथ इन मुद्दों का निरंतर संसद के अंदर और बहार उठाते रहे हैं और उन पर आंदोलन करते रहे हैं। यह नोट किया जाना चाहिए कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता गुरूदास दासगुप्त ने 2008 में कालेधन के मुद्दे को लोकसभा में विचार-विमर्श के लिए उठाया था और मांग की थी इसे वापस लाया जाये। उस समय श्री लालकृष्ण आडवाणी चुप्पी साधे रहे। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले और अन्य कई घोटालों में इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और उसमें मंत्रियों एवं कुछ राजनेताओं की संलिप्तता ने देश के आम आदमी को स्तब्ध कर दिया है। अन्ना हजारे के अनशन के फलस्वरूप स्वतःस्फूर्त तरीके से व्यापक लहर पैदा हो गयी जिससे मांग उठी कि घोटालेबाजों के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई की जाये और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने, जांच करने, भ्रष्टाचारियों को सजा देने और उनकी परिसम्पत्तियों को जब्त करने के लिए एक प्रभावी जन लोकपाल बिल पारित किया जाना चाहिये ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके।

भ्रष्टाचारपूर्ण सौदों का एक सबसे बुरा असर देश के अंदर एक सामानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में चलने वाले काले धन के प्रचुर सृजन के रूप में सामने आता है जबकि उसका बड़ा हिस्सा उन विदेशी बैंकों में जमा हो जाता है जो टैक्स हेवन (टेक्स चोरी के पैसे को आश्रय देने वाले) देशों में काम करते हैं। स्वाभाविक ही है कि मांग उठी है कि इस काले धन को वापस लाया जाये और राष्ट्र की अपनी परिसम्पत्ति के रूप मंे उसे जब्त किया जाये। कालेधन के अपराधियों के नामों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए और उन्हें सख्त सजा दी जानी चाहिए।

इस तरह के बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार की जड़ में हैं नव उदारवादी आर्थिक नीतियां। पूंजीवादी सरकार इस तरह की नीतियों पर चलने के लिए जिम्मेवार है। वह कालेधन के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई करने की इच्छुक नहीं। पर बढ़ते जन आक्रोश ने इस अनिच्छुक सरकार को इस तरह के लोकपाल बिल को ड्राफ्ट करने के लिए सहमत होनेे पर मजबूर कर दिया। पर बिल की अनेक धाराओं के बारे में रूकावटें खड़ी की जा रही है। इस पर हम बाद में विचार कर सकते हैं।

इसी बीच बाबा रामदेव अपने अनुयायियों को साथ लेकर मैदान में कूद पड़े। आंदोलन को हाइजैक करने का मुकाबला चल रहा है। उन्होंने अपने हजारों अनुयायियों को साथ लेकर रामलीला मैदान में भूख हड़ताल और सत्याग्रह शुरू कर दिया। अन्ना हजारे के अनशन को मिले जनता के स्वतः स्फूर्त रेस्पोंस से पहले ही बुरी तरह हिली हुई, बदहवास यूपीए सरकार ने बाबा को मनाने की बड़ी तेजी से कोशिश की। जब वह राजधानी पहुंचे तो चार प्रमुख मंत्री उनकी अगवानी के लिए दौड़े-दौड़े दिल्ली हवाई अड्डे पहुंचे। हवाई अड्डे पर उनके साथ उन्होंने ढाई घंटे बातचीत की। उसके बाद अगला पूरा दिन सरकार और रामदेव के बीच घंटों लम्बी वार्ताओं के कई दौर से गुजरा। पूरा दिन इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम रामदेव और सरकार के बीच कभी सौदेबाजी चल रही है तो कभी टूट गयी है की खबरे परोसते रहे और अनशन और सत्याग्रह के शुरू होने और जारी रहने के बारे में प्रश्न उठते रहे। सार्वजनिक तौर पर घोषणा की गयी कि बाबा द्वारा उठायी गयी मांगों पर लगभग सहमति बन गयी है। जैसा कि बाद मंे पता चला बाबा रामदेव के सहायक ने उनकी तरफ से एक पत्र दिया था कि वह पहले दिन (अर्थात 4 जून) को दोपहर बाद अनशन समाप्त कर देंगे। पुलिस कार्रवाई का औचित्य सामाप्त कर देंगे। पुलिस कार्रवाई का औचित्य बताते हुए सरकार ने आरोप लगाया कि बाबा अपनी बात से मुकर गये और उन्होंने आंदोलन को जारी रखा। अतः दोनों के बीच राजनैतिक “मैच फिक्सिंग” की जो कोशिश हो रही थी और जिस खेल में अन्य खिलाड़ी भी शामिल थे, वह दोनों लिए उलटी पड़ गयी।

उसके बाद रात के अंधेरे में काला कारनामा हुआ। हजारों पुरूषों एवं महिलाओं पर, जो कैम्प में सो रहे थे, एक नृशंस पुलिस कार्रवाई की गयी। आंसू गैस के गोले छोड़े गये और जो लोग कैम्प में थे उन्हें सभी को वहां से हटाने के लिए लाठीचार्ज का आदेश दिया गया। बीसियों लोग जख्मी हो गये और दो लोगों को गंभीर चोटें आयी जिनमें एक महिला है। इस समय वह अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रही है। रामदेव ने बच निकलने की कोशिश की पर पुलिस द्वारा पकड़ लिये गये और हवाई जहाज से देहरादून भेज दिये गये।

अवांछित एवं नृशंस पुलिस कार्रवाई से लोगों में आक्रोश पैदा हुआ, भले ही वे रामदेव की असंगतता के बारे मंे कुछ भी विचार रखते हो। सरकार जो कुछ भी कहती है या करती है उसे किसी तरह न्यायोचित नहीं माना जा सकता। क्या सरकार जनता के आंदोलन से इस तरह से सलूक करेगी? हमारी पार्टी ने और अन्य पार्टियों ने भी पुलिस कार्रवाई की तीव्र भर्त्सना की है। सर्वोच्च न्यायालय और मानवाधिकार आयोग ने भी मौलिक अधिकाररों की घोर अवहेलना का सही ही स्वतःसंज्ञान लिया है और समूची परिस्थिति से सरकार के हेंडलिंग पर आपत्ति की है।

रामदेव बाबा और सरकार दोनों ने कालेधन और भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन को एक त्रासद घटना में बदल दिया है। तथापि सरकार की कार्रवाई ने इन मुद्दों पर संघर्ष चलाने की जरूरत को रेखांकित कर दिया है। इन मुद्दों पर वामपंथ और वे तमाम लोकतांत्रिक ताकतें ही एक सिद्धांतनिष्ठ और सुसंगत संघर्ष चला सकती हैं जो इन मुद्दों पर सच्चे अर्थ में चिंतित हैं।

जलियांवाला बाग से तुलना करना या आजादी की दूसरी लड़ाई जैसी बातें करना उन पहले की बातों को हल्का करना है। लम्बी चौड़ी हांकने या अतिशयोक्तिपूर्ण बातें करने से, जैसा कि कुछ लोग कर रहे हैं, संघर्ष आगे नहीं जाता।

- ए.बी. बर्धन

1 comments:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

क्योंकि जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनका ध्येय केवल ध्यान जरूरी बात से हटाना था इस्सलिये सोच समझ कर गफलत कर रहे थे.यह हमारा काम है हम उनका पर्दाफाश करें.

एक टिप्पणी भेजें

Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य