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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011
In a first, Left Front to contest 100 seats in UP
शनिवार, 22 अक्तूबर 2011
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लोकपाल मुद्दे पर बर्द्धनकी भूख हडताल
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विधान सभा में पुनः प्रतिनिधित्व पाने के लिए वामपंथी दलों ने कमर कसी
भाकपा ने जारी की प्रत्याशियों की पहली सूची
लखनऊ 22 अक्टूबर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी वामपंथी दलों के साथ मिलकर अगले विधान सभा चुनावों में पुनः प्रतिनिधित्व पाने के दृढ़ इरादे के साथ इस बार चुनाव मैदान में उतर रही है। भाकपा ने सूबे के प्रमुख दलों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने और किसान-मजदूरों और आम जनता के प्रति उनके छलावेपूर्ण व्यवहार के चलते उनसे गठबंधन या तालमेल न करने का निश्चय कर लिया है। लेकिन कई वामपंथी ग्रुपों और धर्मनिरपेक्ष व जनवादी छोटी पार्टियों के साथ कार्यक्रम के आधार पर एवम् आन्दोलनों के जरिये एकता का इरादा जाहिर किया है।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आन्दोलनों के जरिये प्रदेश की जनता को सन्देश दिया जायेगा कि भाकपा लगातार सड़कों पर उतरकर आम जनता के हित में संघर्ष करती है और यदि भाकपा के प्रत्याशियों को जनता विजयी बनायेगी तो विधान सभा के भीतर भी उनके ज्वलन्त सवालों पर संघर्ष चलाया जायेगा।
भाकपा राज्य सचिव ने आज राज्य कार्यकारिणी द्वारा संस्तुत 2012 के विधान सभा चुनाव हेतु अपनी पार्टी के प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की है।
(डा. गिरीश)
राज्य सचिव
मो. सं. 9412173664, 7379697069
विधान सभा चुनाव 2012 के लिए भाकपा प्रत्याशियों की पहली सूची
क्रम जनपद विधान सभा क्षेत्र प्रत्याशी
1 - गाजीपुर जंगीपुर राजेन्द्र यादव
2 - वाराणसी पिंड्रा श्याम लाल सिंह
3 - वाराणसी वाराणसी दक्षिण निजामुद्दीन
4 - मऊ मऊ इम्तियाज अहमद
5 - मऊ मोहम्मदाबाद (सुरक्षित) राम बचन मास्टर
6 - मऊ मधुबन गंगा राय
7 - बलिया बलिया मोहम्मद यूसूफ शेख
8 - बलिया रसड़ा सत्य प्रकाश सिंह, एडवोकेट
9 - देवरिया रामपुर कारखाना आनन्द चौरसिया
10- चंदौली मुगलसराय सुखदेव मिश्र
11 - जौनपुर मुंगरा बादशाहपुर सुभाष पटेल
12 - इलाहाबाद फाफामऊ सूरज प्रसाद द्विवेदी
13 - प्रतापगढ़ विश्वनाथगंज राम बरन सिंह यादव
14 - कानपुर नगर बिल्हौर (सुरक्षित) विजय दिवाकर
15 - रमाबाईनगर रनियां अकबरपुर राम शेखर वर्मा
16 - औरैय्या दिबियापुर अतर सिंह कुशवाहा
17 - चित्रकूट मानिकपुर संतोष कुमार उर्मिलिया
18 - ललितपुर महरौनी (सुरक्षित) बाबू लाल अहिरवार
19 - आगरा फतेहाबाद रन सिंह सिकरवार
20 - मथुरा छाता चौधरी कुलभानु कुमार
21 - एटा जलेसर (सुरक्षित) राजबीर चक
22 - मैनपुरी भोगांव हाकिम सिंह यादव, एडवोकेट
23 - गौतमबुद्धनगर जेवर नत्थी राम शर्मा
24 - बुलन्दशहर स्याना अजय सिंह
25 - मुजफ्फरनगर मीरांपुर नूर अली
26 - बदायूं बदायूं लोक पाल सिंह, एडवोकेट
27 - बरेली बरेली शहर तारकेश्वर चतुर्वेदी
28 - पीलीभीत पूरनपुर (सुरक्षित) हरिहर प्रसाद दिनकर
29 - लखीमपुर कस्ता (सुरक्षित) जय लाल
30 - बहराईच नानपारा सिद्धनाथ श्रीवास्तव, एडवोकेट
शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011
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भाकपा का राष्ट्रव्यापी उपवास उत्तर प्रदेश में सफल
उपर्युक्त जानकारी देते हुए भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि इस उपवास कार्यक्रम में पार्टी कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त अन्य संभ्रान्त नागरिकों ने भी भाग लिया। जगह-जगह राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन स्थानीय अधिकारियों को सौंपे जाने की सूचनायें लगातार राज्य कार्यालय को प्राप्त हो रहीं हैं।
डा. गिरीश ने बताया कि प्रतापगढ़ में भाकपा के कार्यकर्ता अनशन करने हेतु जिला कलेक्ट्री पहुंचे तो उन्हें बेवजह गिरफ्तार कर लिया गया। यह कार्यक्रम राष्ट्रव्यापी था, शांतिपूर्ण था और समाचार माध्यमों में इसका प्रचार भी हुआ था। फिर भी प्रतापगढ़ जिला प्रशासन ने हठवादी रवैया अपनाते हुए उन्हें गिरफ्तार कर कोतवाली में बन्द कर दिया। इस पर स्वयं डा. गिरीश ने दूरभाष पर प्रतापगढ़ के जिलाधिकारी से वार्ता की और भाकपा कार्यकर्ताओं की बेवजह गिरफ्तारी पर नाराजगी जताई जिस पर प्रशासन ने उन्हें रिहा कर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा वयोवृद्ध कम्युनिस्ट कामरेड मुंशी धर्मदेव लाल का निधन
कामरेड धर्मदेव लाल आजादी के आन्दोलन के प्रसिद्ध कुड़वा मानिकपुर कांड के योद्धाओं में से एक थे जिसमें कि का. सुभाष मुखर्जी शहीद हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुये ही वे कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने लगे थे और 1947 में भाकपा के सदस्य बन गये थे।
उनके निधन का समाचार मिलने पर भाकपा राज्य कार्यालय पर पार्टी ध्वज को उनके सम्मान में झुका दिया गया। एक शोक सभा आयोजित की गयी जिसमें भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि ऐसे जुझारू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के निधन से देश, समाज और पार्टी को गहरी क्षति पहुंची है। लेकिन उनके सपनों के समाज - समाजवादी समाज के निर्माण का संघर्ष जारी रहेगा। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मौन रख कर शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की गयी। उधर बलिया में भी उनके निधन का समाचार सुन कर तमाम राजनीतिविद्, पत्रकार और प्रशासन के अधिकारी उनके आवास पर जमा हो गये।
बुधवार, 19 अक्तूबर 2011
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केंद्र में अगली सरकार तीसरे मोर्चे की : एबी बर्धन
कुरुक्षेत्र, 18 अक्तूबर (हप्र)। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इडिया (सीपीआई) के महासचिव एबी बर्धन ने दावा किया है कि आने वाले चुनाव में कांग्रेस केन्द्र में सत्ता में नहीं आएगी और भाजपा भी पीछे रह जाएगी, सत्ता में तीसरा विकल्प आ सकता है, जिसमें सभी वामपंथी पार्टियां शामिल होगी। वह आज यहां भारतीय खेत मजदूर यूनियन के 12वें राष्ट्रीय महाअधिवेशन में पूरे देश से आए प्रतिनिधियों को संबोधित करने के लिए यहां आए हुए थे।
उन्होंने कहा कि आने वाले चुनावों के लिए जल्द ही तीसरा मोर्चा बनाया जाएगा। इस मोर्चे में सभी वांमपंथी पार्टियां भी शामिल होंगी। उन्होंने कांग्रेस तथा भाजपा दोनों को बुरा-भला कहते हुए कहा कि दोनों ही दलों के नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं और दोनों ही दलों की नवउदारवादी नीतियां भ्रष्टाचार तथा महंगाई को बढ़ावा दे रही हैं। उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार तथा महंगाई के विरोध में सी.पी.आई द्वारा देशभर में 21 अक्तूबर को भूख हड़ताल रखी जाएगी। इसके बाद 8 नवम्बर को जेल भरो, रेल रोको तथा रास्ता रोको आन्दोलन किया जाएगा और गिरफ्तारियां दी जाएंगी।
पत्रकारों द्वारा अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के विरोध में चलाई जा रही मुहिम के बारे में पूछने पर उन्होंने मुहिम को अच्छा बताते हुए कहा कि उनको भ्रष्टाचार के मुद्ïदे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का श्रेय जाता है लेकिन कानून बनाने से ही भ्रष्टाचार मिटने वाला नहीं है। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सरकार को अपनी नीतियां बदलनी होंगी।
पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों की सरकार न बनने के प्रश्न पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस बार वह सरकार कुछ त्रुटियों के कारण गई है। उन्होंने कहा कि वे दो पार्टी सिस्टम के पूरी तरह से खिलाफ हैं।
उन्होंने पूछने पर यह भी कहा कि जब कभी भी सत्ता में तीसरा विकल्प आया तो उनकी आपस में युनिटी नहीं बनी। परिणामस्वरूप सरकारें चली गई। उन्होंने कहा कि तीसरा विकल्प के लिए लम्बी लड़ाई लडऩी होगी और यह नहीं कहा जा सकता कि यह लड़ाई कब कामयाब होगी।
at 10:36 am | 0 comments | अनशन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, लोकपाल
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने किया 21 अक्टूबर को आम अनशन का अह्वान
मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011
वामपंथी दलों का संयुक्त प्रदेश स्तरीय अनशन
यह अनशन प्रदेश की जनता की ज्वलंत समस्याओं - कमरतोड़ मंहगाई, भ्रष्टाचार, उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण, शिक्षा के बाजारीकरण, बेरोजगारी, जर्जर हो चुकी कानून व्यवस्था के खिलाफ तथा एक मजबूत लोकपाल कानून शीघ्र से शीघ्र बनाये जाने को लेकर किया गया जिसमें वाम दलों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। अनशन का नेतृत्व भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश, माकपा के राज्य सचिव डा. एस. पी. कश्यप, फारवर्ड ब्लाक के प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर तथा आरएसपी के प्रदेश सचिव संतोष गुप्ता ने किया।
अनशनकारियों को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकार पर आरोप लगाये कि दोनों ही सरकारें महंगाई बढ़ाने का घृणित कार्य कर रही हैं जिससे आम जनता बेहद कठिनाइयां झेल रही है। यही हाल भ्रष्टाचार का है। केन्द्र और राज्य सरकार के दर्जनों मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। सरकारी दफ्तरों में जनता के छोटे-छोटे कामों के लिये भारी रिश्वत ली जा रही है। ऊपरी स्तर पर तो हजारों करोड़ का गोलमाल हो रहा है।
किसान रबी की फसल की तैयारी में हैं लेकिन उन्हें खाद के लिये भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। महंगी बिजली, महंगे डीजल, महंगे बीज, खाद और कीटनाशकों ने उनकी कठिनाईयां बेहद बढ़ा दी हैं। ऊपर से उनकी जमीनों को हड़पने का खुला खेल चल रहा है।
प्रदेश के लाखों लाख नौजवान बेरोजगारी से त्रस्त हैं। रोजगार के लिए उन्हें दर-दर भटकना पड़ रहा है। शिक्षा तो और भी महंगी बना दी गयी है। सामान्य व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहा। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था से लोग आजिज आ चुके हैं। अपराध-अत्याचार सभी बढ़ रहे हैैं। शासन-प्रशासन इन्हें काबू में करने में इच्छा शक्ति नहीं रखता।
केन्द्र की कांग्रेस मजबूत लोकपाल कानून बनाने के काम को लगातार टाल रही हैं वह भ्रष्टाचार के बलबूते ही सत्ता में आना एवं बने रहना चाहती है। यही हाल भाजपा का है जिसके तमाम नेता जेल जा रहे हैं और बाकी भ्रष्टाचार के खिलाफ यात्रा निकालने का नाटक कर रहे हैं। प्रदेश के एक मुख्य विपक्षी दल सपा का नाटक भी जनता बड़े ध्यान से देख रही है। उत्तर प्रदेश की जनता इन चारों दलों की राजनीति को ठुकरा देना चाहती है। जातिवाद, साम्प्रदायिकता और पूंजीवाद के हथकंडों को जनता भली-भांति समझ चुकी है और इनसे निजात पाना चाहती है। ऐसे में आमजन वामपंथी दलों की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। वामपंथी दल ही हैं जो आम जनता की कसौटी पर खरे उतरते हैं और इस राजनैतिक शून्य को भर सकते हैं। उत्तर प्रदेश में वाम दल इस स्थिति को समझ रहे हैं। अतएव वे जन सवालों पर संयुक्त आन्दोलन तेज करके जनता को अपने इर्द-गिर्द गोलबंद कर रहे हैं। आज का अनशन इस आन्दोलन की शुरूआत है।
वक्ताओं ने आज के दिन को प्रदेश की वाम राजनीति का ऐतिहासिक दिन बताते हुए प्रदेश की अन्य धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक ताकतों का आह्वान किया कि वे प्रदेश की जनता के बेहतर भविष्य के लिए एक विराट मोर्चे के गठन के लिए आगे आयें और जनता के सवालों पर संयुक्त संघर्ष आयोजित करें।
चारों वाम दलों ने घोषणा की कि अब वे जमीनी स्तर पर उपर्युक्त सवालों पर संघर्ष चलायेंगे। जिला, तहसील, ब्लाक स्तरों पर धरने-प्रदर्शन किये जायेंगे। दर्जनों रैलियां की जायेंगी तथा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ हस्तक्षेपकारी कार्यवाही की जायेगी।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने अनशन पर बैठे भाकपा के साथियों का आह्वान किया कि वे भाकपा के राष्ट्रीय आह्वान पर 21 अक्टूबर को प्रदेश भर में भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ तथा प्रभावी लोकपाल कानून के लिए जगह-जगह पर सामूहिक अनशन आयोजित करें।
अनशन को अपना समर्थन देने आये एनसीपी नेता प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि वाम मोर्चा ही विकल्प बन सकता है जिसकी ओर जनता बड़ी आशा भरी दृष्टि से देख रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की वाम मोर्चा शीघ्र ही जनता के सामने एक विकल्प पेश करने में सफल होगा।
अनशनकारियों को सम्बोधित करने वाले अन्य प्रमुख वक्ता थे - भाकपा के अशोक मिश्र, इम्तियाज अहमद, अरविन्द राज स्वरूप, आशा मिश्रा, सुरेश त्रिपाठी, सदरूद्दीन राना; माकपा के प्रेम नाथ राय, वेद प्रकाश, छोटे लाल और मधु गर्ग; फारवर्ड ब्लाक के शिव नारायण सिंह चौहान, नौजवान सभा के राज्य सचिव नीरज यादव तथा आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन की राज्य संयोजिका कु. निधि चौहान आदि।
संघर्षों के रास्ते पर फैलता वामपंथ का उजियारा
लेकिन 2 अक्टूबर 2011 को इंदौर प्रेस क्लब के राजेन्द्र माथुर सभागृह में ठसाठस लोग जिस नेता की याद में आयोजित सभा में इकट्ठे थे वह न कभी सत्ता में रहा और न ही बरसों से राजनीति में सक्रिय था। फिर भी न केवल हॉल में क्षमता से ज़्यादा लोग मौजूद थे बल्कि बाहर लगी स्क्रीन पर भी लोगों की भीड़ जमा थी। और यह सब तब था जब कार्यक्रम स्थल की क्षमता देखते हुए ज़्यादा लोगों को बुलाने की कोषिषों को धीमा करना पड़ा था।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की इंदौर ज़िला परिषद द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में इकट्ठे हुए विभिन्न तबक़ों के लोगों के दिलों में कॉमरेड होमी दाजी का नाम सिर्फ़ इसलिए नहीं था कि वे दो बार विधायक रहे और एक बार सांसद। बल्कि इसलिए कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होंने चुनावी राजनीति का इस्तेमाल जनता के हक़ में किया और इस पूँजीवादी लोकतंत्र के भीतर, अधिक संसाधन न होते हुए भी जनता का विष्वास कैसे अर्जित किया जाता है, यह करके दिखाया। उन्होंने मज़दूर वर्ग की राजनीति को इतना प्रभावी बनाया कि मेहनतकषों को ये ताक़त महसूस हुई कि ‘‘ये सेठ व्यापारी रजवाड़े, दस लाख तो हम दस लाख करोड़।’’ उनमें ये हिम्मत पैदा हुई कि वे ही हैं जो दुनिया बनाते और बदलते हैं। आज भले ही नयी आर्थिक नीतियों को लागू कर संगठित उद्योगों को सिलसिलेवार ख़त्म किये जाने से मज़दूर तबक़े की रीढ़ पर ज़बर्दस्त चोट पहुँची हो लेकिन वह अपनी ताक़त के दिनों को भूला नहीं है। बताते हैं कि होमी दाजी जब स्वस्थ और सक्रिय थे तो लोग उन्हें पूँजीपतियों के ख़िलाफ़ ‘जनता का शेर’ कहते थे।
यही नहीं, होमी दाजी के संक्षिप्त राजनीतिक दौर ने बाद की राजनीति व राजनीतिज्ञों पर भी ऐसा असर छोड़ा जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। इसीलिए विरोधी राजनीतिक दलों के लोग भी दाजी का नाम सम्मान से लेते हैं और सिर्फ़ एक बार सांसद रहने के बावजूद आज भी संसद में उनका नाम विषिष्ट कार्यों के लिए लगा हुआ है। दो अक्टूबर के कार्यक्रम में भी श्रोताओं में मज़दूरों के बीच ही सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक एवं अन्य राजनेता भी बैठे थे जिन्होंने दो घंटे के कार्यक्रम में सिर्फ़ श्रोता की हैसियत से षिरकत की। न वे मंचासीन हुए और न ही उनके लिए अलग कुर्सियों की व्यवस्था की गई थी।
मंच पर जो थे, उन्हें अगर होमी दाजी देख पाते तो ख़ुष हो जाते। अमरजीत कौर जो एटक में कॉमरेड दाजी की युवा साथी थीं जब दाजी एटक के राष्ट्रीय महासचिव थे; कॉमरेड पेरिन दाजी जो ज़िंदगी के साठ वर्ष दाजी के साथ रहीं और घर से लेकर राजनीति तक दाजी का साथ देती रहीं; महेंद्र कुमार शेजवार जो फल का ठेला लगाते हैं और दाजी को रोज़ घर आकर दो केले देकर जाते थे जिससे दाजी को दवा लेनी होती थी; और श्रीमती मसीना हीरालाल जिन्हें दाजी ने कभी नहीं देखा लेकिन जिनके पति हीरालाल को दाजी प्यार से राजाबाबू कहते थे। हीरालाल की जूते-चप्पल सुधारने व पॉलिष करने की गुमटी दाजी के ऑफ़िस के सामने ही थी। पिछले दिनों हीरालाल का भी निधन हो गया था। एक कम्युनिस्ट का ख़्वाब आख़िरकार उन्हें इज़्ज़त भरी ज़िंदगी और हक़ दिलाना ही तो होता है जो मेहनत करते हैं।
और ये मंच क्यों सजा था? क्योंकि 2009 में जब होमी दाजी नहीं रहे तो उनकी जीवनसंगिनी पेरिन ने हीरालाल के कहने पर दाजी की ज़िंदगी के बारे में एक किताब लिखनी शुरू की थी जिसका विमोचन था 2 अक्टूबर को। कॉमरेड पेरिन दाजी से अनेक बड़े-बड़े नेता, अधिकारी और कॉमरेड्स कहा करते थे कि दाजी के जीवन पर आप लिखो लेकिन वे उन बातों को कभी गंभीरता से नहीं लेती थीं। एक दिन हीरालाल ने उनसे कहा कि बाबूजी, यानी दाजी की ज़िंदगी और उनके विचारों के बारे में लोगों को जानना चाहिए कि उनका दिल कैसे ग़रीबों के लिए प्यार और इज़्ज़त से भरा हुआ था। हीरालाल की बातों से द्रवित पेरिन दाजी ने ठाना कि भले ही उन्हें अच्छी साहित्यिक भाषा न आती हो लेकिन वे हीरालाल जैसे लोगों के लिए दाजी के बारे में लिखेंगी। और इस तरह 82 वर्ष की आयु में पेरिन दाजी ने अपने भीतर की लेखिका को प्रकट किया। जब किताब पूरी की तो हीरालाल को बताने गईं। पता चला कि वह भी नहीं रहा। तो उसका घर ढँूढ़कर उसकी पत्नी से कहा कि हीरालाल को समर्पित इस किताब का विमोचन तुम्हें ही करना है। और ग़रीबी, उम्र व ज़िल्लत के बोझ से दोहरी हो गईं दलित हीरालाल की बेवा श्रीमती मसीना को इस पूरे सभ्य समाज के सामने पूरी इज़्ज़त के साथ मंच पर अपने बराबर बिठाया।
इप्टा इंदौर की सारिका श्रीवास्तव, पूजा त्रिवेदी, सुलभा लागू व रुचिता श्रीवास्तव ने ‘‘सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाषाद हैं, दिल पे रखकर हाथ ये कहिये देष क्या आज़ाद है’?’ और ‘‘रुके न जा,े झुके न जो, दबे न जो मिटे न जो, हम वो इंक़लाब हैं जु़ल्म का जवाब हैं’’ जनगीतों के साथ सभा का स्वागत कर श्रोताओं को एक वाम माहौल में ष्शामिल कर लिया। विमोचित किताब ‘‘यादों की रोषनी में’’ पर साहित्यकार-कवि श्री ब्रजेष कानूनगो ने अपनी पाठकीय टिप्पणी देते हुए कहा कि ये केवल भावुकतापूर्ण यादों की किताब भर नहीं है बल्कि इसकी भाषा, शैली आदि तत्व इसे साहित्य की भी एक उत्कृष्ट कृति बनाते हैं। ये किताब आम लोगों के साथ-साथ साहित्य के पाठकों और नये रचनाकारों के लिए भी ज़रूरी है। इसका संपादन कर विनीत तिवारी ने एक अच्छी किताब और एक अच्छी लेखिका हिंदी साहित्य को दिया हैं।
विमोचन के पूर्व ही किताब के एक अंष की एकल नाट्य प्रस्तुति डॉ. यामिनी ने दी जिसका निर्देषन विनीत तिवारी ने ही किया था। उस संक्षिप्त किन्तु शानदार ब्रेटियन प्रस्तुति ने दर्षकों को पूरी किताब पढ़ने की तीव्र उत्सुकता से भर दिया। इसके उपरांत कॉमरेड पेरिन दाजी ने कहा कि फल के ठेलेवाले हीरा लाल के केलों के पैसे तो वे चुका सकती हैं लेकिन उस प्यार का कोई मूल्य नहीं जो इन जैसे लाखों मेहनतकष लोगों ने दाजी को दिया और जिसकी वजह से अनेक तकलीफ़ों के बावजूद दाजी को आख़िरी साँस तक ज़िंदगी से प्यार रहा। उनके संक्षिप्त किंतु भावुक संबोधन से सभी उपस्थितों की आँखों में आँसू भर आये।
यूँ तो भारत में वामपंथ की विभिन्न धाराएँ मौजूद हैं लेकिन ये भी सच है कि कॉमरेड दाजी जैसे लोग सभी धाराओं में इसलिए आदर से याद पाते हैं क्योंकि उन्होंने हर क्षण और सिद्धांत का इस्तेमाल वंचित वर्ग के भले के लिए ही किया। कॉमरेड होमी दाजी तब वामपंथ के प्रखर प्रतिनिधि थे जब भारत में वामपंथ, चरमपंथ और संसदीय लोकतंत्र के बीच अपनी जगह तलाष कर रहा था। उस वक़्त सक्रिय कॉमरेड्स की जमात ने ये सिखाया कि संसदीय लोकतंत्र अपनाने के बावजूद वामपंथ को धारदार और संघर्षषील कैसे बनाये रखा जा सकता है।
यही सोचकर कॉमरेड दाजी की याद में आयोजित इस कार्यक्रम में ‘‘मौजूदा जनसंघर्ष और वामपंथ की भूमिका’’ विषय पर एटक और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की जुझारू राष्ट्रीय सचिव अमरजीत कौर का व्याख्यान भी साथ रखा गया था। उनका विस्तृत परिचय दिया एटक के ज़िला सचिव रुद्रपाल यादव ने। कॉमरेड दाजी की व्यावहारिक राजनीति पर पकड़ और अपने मार्क्सवादी सिद्धांतों पर अविचल अडिग बने रहने की खूबी की याद करते हुए कॉमरेड अमरजीत ने देषभर के जनसंघर्षों का एक व्यापक कैनवास प्रस्तुत किया। ज़मीनी और ज़मीन की लड़ाइयों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने पॉस्को, नारायणपुर, उड़ीसा, महाराष्ट्र आदि के भीतर चल रहे संघर्षों और अगली कतारों में लड़ रहे वामपंथियों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि नेहरू के ज़माने में खड़े किए गए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने की मनमोहन सिंह सरकार की साज़िषों के ख़िलाफ़ भी वामपंथियों ने ही मोर्चा संभाला चाहे वह बाल्को का मसला रहा हो या नाल्को का। छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम के सरकारी आतंक का जवाब देने में, महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु संयंत्र लगाकर मछुआरों और किसानों की ज़मीनों को हड़पने के ख़िलाफ़ हो रहे संघर्ष में, झारखण्ड, उड़ीसा से लेकर असम, मणिपुर, त्रिपुरा आदि जगहों पर जनता के संघर्षों में वामपंथी ही अपनी जान हथेली पर रख कर लड़ रहे हैं।
देषभर में किसानों की आत्महत्याओं ने किसानी संकट को उजागर किया है। सरकार खेती को कॉर्पोरेट के लिए मुनाफ़ा कमाने की ज़मीन बनाना चाहती है। उसे परवाह नहीं कि किसान मरें या जियें। यहाँ भी वामपंथी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ डटे हैं। उन्होंने कहा कि आजकल भ्रष्टाचार की बहुत चर्चा हो रही है और अण्णा हजारे के आंदोलन का भी मीडिया ने खूब प्रचार किया है। लेकिन भ्रष्टाचार तो इस पूँजीवादी व्यवस्था का एक ज़रूरी उत्पाद है। अण्णा के आंदोलन को यही पूँजीवादी मीडिया इसलिए जगह देता है क्योंकि यह आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन की बात नहीं करता। वह कार्पोरेट के भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ नहीं बोलता। कॉर्पोरेट मीडिया भी इन आंदोलनों को इसीलिए समर्थन दे रहा है क्योंकि इनसे व्यवस्था को कोई ख़तरा नहीं महसूस होता। इससे काफ़ी भ्रम भी फैला है। हमें ऐसे आंदोलनों और जनसंघर्षों के बीच के अंतर को समझना चाहिए।
उन्होंने कहा कि असली लड़ाई अमीरी और ग़रीबी की खाई को पाटने की, भूमिसुधार करने की, श्रम क़ानूनों के उल्लंघन को रोकने की है। आज हालत यह है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं व षिक्षकों को न्यूनतम से भी कम वेतन में काम करना पड़ रहा है। हमें किसानों, गरीबों, वंचितों व बेरोजगारों के हक में अपना संघर्ष जारी रखने की ज़रूरत है। होमी दाजी को याद करने का मतलब भी यही है कि हम इस संघर्ष को आगे बढ़ाएँ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता भाकपा जिला परिषद के सदस्य व प्रगतिषील लेखक संघ की इंदौर इकाई के उपाध्यक्ष एस. के. दुबे और भाकपा जिला परिषद के सदस्य एडवोकेट ओमप्रकाष खटके ने की। कार्यक्रम का संयोजन व संचालन किया प्रगतिषील लेखक संघ के राज्य महासचिव विनीत तिवारी ने। कॉमरेड पेरिन दाजी की किताब के संपादक भी वही हैं। यह किताब भारतीय महिला फ़ेडरेषन की केन्द्रीय इकाई व प्रगतिषील लेखक संघ की इन्दौर इकाई द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाषित की गई है। कविता पोस्टरों व होमी दाजी के चित्रों की प्रदर्षनी भी इस मौके पर इप्टा इंदौर के सचिव श्री अषोक दुबे ने लगायी थी जो काले-सफ़ेद चित्रों के साथ अतीत के एक चमकदार दौर की याद दिला रही थी और उस दौर को वर्तमान में हासिल करने के लिए उकसा रही थी। कार्यक्रम के दौरान और कार्यक्रम के बाद लगते ‘‘कॉमरेड होमी दाजी को लाल सलाम’’ के जोषीले नारे बुजुर्ग कॉमरेडों की आँखों में उम्मीद की एक चमक पैदा कर रही थीं।
सोमवार, 17 अक्तूबर 2011
at 6:32 pm | 0 comments | कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, भाकपा, भ्रष्टाचार, मजबूत लोकपाल, महंगाई, वामपंथी दल
वामपंथी दलों का प्रदेश स्तरीय एक दिवसीय अनशन हेतु अपील
वामपंथी दल आम जनता से अपील करते हैं कि वे इस अभियान में शामिल होकर अपनी एकजुटता दिखाएं तथा मीडिया कर्मियों से इस कार्यक्रम को कवर करने की अपील करते हैं।
शनिवार, 15 अक्तूबर 2011
at 3:59 pm | 0 comments | भाकपा, सत्य नारायण ठाकुर
भाकपा की 21वीं कांग्रेस का महत्व
”वामपंथ को स्वयं अपने नेतृत्व में राजनीतिक विकल्प पेश करना होगा, जिसका आधार होगा वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम और सम्प्रदाय निरपेक्ष लोकतंत्र के लिये प्रतिबद्धता, क्योंकि भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर भी, आर्थिक नव उदारवाद का समर्थन करती है।“
यहांॅ उपर्युक्त उद्धरण की चार बातें ध्यातव्य हैं -
क. नवउदारवादी आर्थिक नीति की समर्थक पार्टियों की पहचान,
ख. सम्प्रदाय निरपेक्ष लोकतंत्र की रक्षा,
ग. वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम का निर्माण, और
घ. वैकल्पिक राजनीति का वामपंथी नेतृत्व
भारत के स्वातंत्रयोत्तर- कालीन युग में गैर कांग्रेस वाद और गैर संप्रदायवाद के आधार पर राजनीतिक धु्रवीकरण होता जा रहा है। प्रकटतः इसके व्यावहारिक परिणाम ने देश में द्विदलीय शासन प्रणाली का दस्तक दी है। इससे आर्थिक कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक धु्रवीकरण का प्रश्न पृष्ठिभूमि में ओझल हुआ है। यही कारण है कि केन्द्र में कमजोर सरकारों के अस्तित्व के बावजूद नवउदारवादी आर्थिक नीति का घोड़ा बेरोकटोक सरपट दौंड़ता गया है। इस परिस्थिति में वामपंथ के नेतृत्व में वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक विकल्प तैयार करने का प्रस्ताव वर्तमान अनिश्चित वातावरण में भरोसा पैदा करने वाला महत्वपूर्ण दिशा सूचक निर्णय है। इसका आवश्य ही सर्वत्र स्वागत किया जायेगा।
बिहार के लिए पार्टी कांग्रेस आयोजित करने का यह तीसरा मौका है। पहला मौका 1968 में आठवीं कांग्रेस आयोजित करने का मिला था। इसे पटना के ऐतिहासिक मैदान में संपन्न किया गया। उस महाधिवेशन के समय बिहार में प्रथम गैर कांग्रेसी संविद सरकार थी, जिसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। कांग्रेस कुशासन के अंत में पूरे राज्य में जन उत्साह का माहौल था। इस महाधिवेशन में शामिल प्रतिनिधियों के बारे में प्रमाण समिति ने अपने प्रतिवेदन में दर्ज किया कि वे सभी के सभी जेल जीवन बिताये संघर्षों के तपे-तपाये नेता थे। इस
महाधिवेशन की विशेषता थी कि इसमें शामिल एक भी प्रतिनिधि ऐसा नहीं था, जिन्होंने अपने जीवन का एक भाग ब्रिटिश राज में अथवा आजाद भारत में जेल की सलाखों में नहीं बिताया हो। यह संपूर्ण पार्टी द्वारा चलाये गये जनसंघर्षों का इजहार था और साथ ही पार्टी कांग्रेस में उपस्थित प्रतिनिधियों की वर्ग निष्ठा और उनके जुझारूपन का प्रमाण भी।
दूसरा मौका, 1987 में महाधिवेशन आयोजन का था। यह भी पटना में संपन्न हुआ। इस महाधिवेशन में चतुरानन मिश्रा द्वारा प्रस्तुत महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वालों के हितों की रक्षा करने का आह्वान किया गया।
पार्टी कांग्रेस आयोजित करने का यह तीसरा अवसर बिहार की अपेक्षाकृत विपरीत परिस्थिति में मिला है। राज्य में भाजपा-जदयू की सरकार है। पार्टी को विगत विधान सभा में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। बंगाल और केरल के चुनाव परिणामों ने भी असर डाला है। बिहार के साथियों ने पार्टी कांग्रेस आयोजन को एक चुनौती के रूप में लिया है। पार्टी कांग्रेस आयोजन साथियों का प्रथम कर्तव्य बन गया है। इस टास्क को पूरा करने में साथी मुस्तौदी से लग गये हैं। सभी स्तर की कमेटियां कोष संग्रह में लग गयी हैं। साथियों में विश्वास है कि बिहार की गौरवशाली परंपरा के अनुरूप पार्टी कांग्रेस का आयोजन अवश्य ही कामयाब होगा।
निःसंदेह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 21वीं कांग्रेस सफल होगी और इसके फैसले भारतीय राजनीति में वर्ग आधारित वामपंथी धु्रवीकरण को प्रारंभ करेंगे।
- सत्य नारायण ठाकुर
भाकपा ने अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ को श्रद्धांजलि देने आये चार केन्द्रीय नेताओं का उड़ाया मजाक
भाकपा कोषाध्यक्ष प्रदीप तिवारी ने आज यहां जारी एक प्रेस बयान में कहा है प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने के पूर्व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अगस्त 2006 में बाकायदा एक प्रस्ताव पारित कर संप्रग-1 सरकार से अमौसी हवाई अड्डे का नाम बेगम हजरत महल हवाई अड्डा रखने तथा अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ की स्मृति में खैराबाद अथवा सीतापुर में एक विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थान की स्थापना करने एवं उनकी प्रतिमा को खैराबाद रेलवे स्टेशन पर लगाने की मांग की थी। अल्लामा द्वारा प्रथम स्वाधीनता संग्राम का जो आंखों देखा हाल लिखा गया था, उसे हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित करने की भी मांग भाकपा ने की थी क्योंकि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का वह सबसे ज्यादा अधिकारिक दस्तावेज है। चूंकि भाकपा उस समय संप्रग-1 सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी, भाकपा महासचिव ए. बी. बर्धन ने एक पत्र लिख कर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से भाकपा की इस मांग को पूरा करने का अनुरोध किया था परन्तु कांग्रेस के इन नेताओं ने अवध के इन बुजुर्गों के प्रति असम्मान जाहिर करते हुए भाकपा की मांग को ठुकरा दिया था। उसके थोड़े दिनों के बाद ही होने जा रहे विधान सभा चुनावों में जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए लखनऊ हवाई अड्डे का नाम चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डा रख दिया था।
प्रदीप तिवारी ने कहा है कि अब आसन्न विधान सभा चुनावों में मुसलमानों को अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस आज की यह कवायद कर रही है और कांग्रेस के इन नेताओं को अल्लामा के जीवन, उनके सोच और उनके कामों के बारे में कुछ भी पता नहीं है।
अल्लामा फज़ले हक ”खैराबादी“ के प्रति भाकपा की श्रद्धा को दोहराते हुए प्रदीप तिवारी ने कहा है कि प्रथम स्वाधीनता संग्राम का फतवा जारी करने वाले अल्लामा शिक्षा के प्रति इतने समर्पित थे कि अंडमान जेल के तत्कालीन अधीक्षक के अनुरोध पर उन्होंने उनका उस्ताद बनना भी स्वीकार कर लिया था। प्रदीप तिवारी ने कहा कि यह अल्लामा की ही देन थी अंडमान जेल के बंदियों के पुत्र-पुत्रियों के नामों से उनके मज़हब और जाति का पता लगना बन्द हो गया था।
भाकपा कोषाध्यक्ष प्रदीप तिवारी ने भाकपा ने उन पुरानी मांगों को फिर दोहराते हुए प्रेस से अनुरोध किया है कि वे इस कार्यक्रम में आये कांग्रेस के नेताओं से इन बातों पर सवाल करें।
शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011
वामपंथी दलों के नेताओं द्वारा पत्रकार वार्ता में लखनऊ में जारी प्रेस नोट
”कमरतोड़ मंहगाई, भ्रष्टाचार, उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण, शिक्षा के बाजारीकरण, बेरोजगारी एवं जर्जर हो चुकी कानून-व्यवस्था के खिलाफ तथा मजबूत लोकपाल कानून बनवाने के लिए वामपंथी दलों ने उत्तर प्रदेश में एक व्यापक और लगातार जनान्दोलन की रूपरेखा बनाई है। इसके तहत 18 अक्टूबर को प्रातः 10.00 बजे चारों वाम दलों द्वारा एक दिवसीय सामूहिक अनशन लखनऊ के झूले लाल पार्क में किया जायेगा। आन्दोलन के अगले चरण की घोषणा अनशन स्थल से की जायेगी।
उपर्युक्त घोषणा करते हुए चारों वाम दलों के नेताओं ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रहीं आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों के चलते महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। आटा, दाल, चीनी, रसोई गैस, सब्जी, मसाले, फल तथा दवाओं के दाम इस कदर बढ़ गये हैं कि आम आदमी इससे कराह उठा है। मूल्यवृद्धि का एक प्रमुख कारण बार-बार बढ़ाई जा रही पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें हैं जिन पर उत्तर प्रदेश की सरकार अगर अपने टैक्स कम कर दे तो जनता को कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन जनता की फिक्र न केन्द्र सरकार को है और न ही राज्य सरकार को।
केन्द्र सरकार आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। हजारों-हजार करोड़ के घोटाले सामने आ चुके हैं। संप्रग अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री स्वयं घोटालेबाजों का बचाव कर रहे हैं। अब नये खुलासे से पूरी कैबिनेट कटघरे में है और यदि सही जांच और उस पर अमल हो जाये तो इस सरकार के अधिकतर मंत्री जेल के सींखचों के पीछे होंगे। मुख्य विपक्षी दल भाजपा, जिसे अमरीकी साम्राज्यवाद और कार्पोरेट मीडिया विकल्प के तौर पर पेश कर रहा है, के देश में तमाम नेता और कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लेकिन भाजपा बड़ी बेशर्मी के साथ अपने को भ्रष्टाचारमुक्त बताने को तमाम तरह के नाटक कर रही है।
उत्तर प्रदेश में घपले-घोटालों के चलते कई मंत्रीगण सत्ता से हाथ धो बैठे हैं और कई अन्य अभी घोटालों की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पहले मंत्री, विधायकों एवं अफसरों से धन वसूली करवाती हैं और जब उनके भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हो जाता है तो अपनी छवि बनाने को उनको हटाने का नाटक करती हैं। शासन-प्रशासन में ऊपर से नीचे तक फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के चलते जनता तबाह और बर्बाद हो रही है।
केन्द्र और प्रदेश दोनों की सरकारें किसानों को हर तरह से बर्बाद करने पर अमादा हैं। उनकी उपजाऊ जमीनों का बड़े पैमाने पर अधिग्रहण जारी है। किसान जगह-जगह इसका विरोध कर रहे हैं। उन्हें लाठी-गोली का शिकार बनाया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को आजादी के 64 साल बाद भी बदला नहीं गया। इसके अलावा किसानों की जरूरत की हर चीज की कीमतें बढ़ाई जा रही हैं जबकि उनके उत्पादों की सही कीमत उन्हें मिल नहीं रही। भूमि अधिग्रहण से विस्थापित मजदूरों और दस्तकारों को भी रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। पूर्व सरकार के जंगलराज से निजात पाने को ही जनता ने इस सरकार को चुना था लेकिन आज इस सरकार के कार्यकाल में हत्या, लूट, बलात्कार की घटनाओं ने सारी सीमायें तोड़ दी हैं। दलित और महिला मुख्यमंत्री के शासनकाल में सबसे ज्यादा उत्पीड़न का शिकार दलित और महिलायें हो रहे हैं। शासक दल के विधायक, मंत्री तथा अन्य ओहदेदार जो अपराधिक और सामंती पृष्ठभूमि से आते हैं, इन अपराधों को सरेआम अंजाम दे रहे हैं। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग की नीति इस परिस्थिति के लिये जिम्मेदार हैं।
सरकार निजी क्षेत्र में शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे रही है। पढ़ाई इस कदर महंगी हो गयी है कि गरीब और आम आदमी बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज ले रहा है या जमीन-जेवर-जायदाद बेच रहा है। बेरोजगारी के चलते तमाम नौजवान हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। सरकारी विभागों में तमाम रिक्तियां हैं जो भरी नहीं जा रहीं। मनरेगा और विकास योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार है। छात्र-नौजवानों में हर तरह की लूट और शोषण के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है।
वामपंथी दल सभी वामपंथी एवं जनवादी ताकतों, आम जनता, छात्रों, नौजवानों एवं बुद्धिजीवियों से अपील करते हैं कि वे इस सामूहिक अनशन के भागीदार बनें और वाम दलों के आन्दोलन को मजबूती प्रदान करें।
राज्य सचिव, भाकपा
राज्य सचिव, माकपा
प्रदेश अध्यक्ष, एआईएफबी
राज्य सचिव, आरएसपी
गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011
at 6:27 pm | 0 comments |
वामपंथी दलों का एक दिवसीय अनशन लखनऊ में 18 अक्टूबर सुबह 10 बजे से
तथा
मजबूत लोकपाल कानून बनवाने के लिए
वामपंथी दलों का एक दिवसीय अनशन लखनऊ में
केन्द्र सरकार आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। हजारों-हजार करोड़ के घोटाले सामने आ चुके हैं। संप्रग अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री स्वयं घोटालेबाजों का बचाव कर रहे हैं। अब नये खुलासे से पूरी कैबिनेट कटघरे में है और यदि सही जांच और उस पर अमल हो जाये तो इस सरकार के अधिकतर मंत्री जेल के सींखचों के पीछे होंगे। मुख्य विपक्षी दल भाजपा, जिसे अमरीकी साम्राज्यवाद और कार्पोरेट मीडिया विकल्प के तौर पर पेष कर रहा है, के देष में तमाम नेता और कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लेकिन भाजपा बड़ी बेषर्मी के साथ अपने को भ्रष्टाचारमुक्त बताने को तमाम तरह के नाटक कर रही है।
उत्तर प्रदेश में घपले-घोटालों के चलते कई मंत्रीगण सत्ता से हाथ धो बैठे हैं और कई अन्य अभी घोटालों की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पहले मंत्री, विधायकों एवं अफसरों से धन वसूली करवाती हैं और जब उनके भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हो जाता है तो अपनी छवि बनाने को उनको हटाने का नाटक करती हैं। शासन-प्रशासन में ऊपर से नीचे तक फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के चलते जनता तबाह और बर्बाद हो रही है।
केन्द्र और प्रदेश दोनों की सरकारें किसानों को हर तरह से बर्बाद करने पर अमादा हैं। उनकी उपजाऊ जमीनों का बड़े पैमाने पर अधिग्रहण जारी है। किसान जगह-जगह इसका विरोध कर रहे हैं। उन्हें लाठी-गोली का शिकार बनाया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को आजादी के 64 साल बाद भी बदला नहीं गया। इसके अलावा किसानों की जरूरत की हर चीज की कीमतें बढ़ाई जा रही हैं जबकि उनके उत्पादों की सही कीमत उन्हें मिल नहीं रही। भूमि अधिग्रहण से विस्थापित मजदूरों और दस्तकारों को भी रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। पूर्व सरकार के जंगलराज से निजात पाने को ही जनता ने इस सरकार को चुना था लेकिन आज इस सरकार के कार्यकाल में हत्या, लूट, बलात्कार की घटनाओं ने सारी सीमायें तोड़ दी हैं। दलित और महिला मुख्यमंत्री के शासनकाल में सबसे ज्यादा उत्पीड़न का शिकार दलित और महिलायें हो रहे हैं। शासक दल के विधायक, मंत्री तथा अन्य ओहदेदार जो अपराधिक और सामंती पृष्ठभूमि से आते हैं, इन अपराधों को सरे आम अंजाम दे रहे हैं। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग की नीति इस परिस्थिति के लिये जिम्मेदार हैं।
सरकार निजी क्षेत्र में शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे रही है। पढ़ाई इस कदर महंगी हो गयी है कि गरीब और आम आदमी बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज ले रहा है या जमीन-जेवर-जायदाद बेच रहा है। बेरोजगारी के चलते तमाम नौजवान हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। सरकारी विभागों में तमाम रिक्तियां हैं जो भरी नहीं जा रहीं। मनरेगा और विकास योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार है। छात्र-नौजवानों में हर तरह की लूट और शोषण के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है।
वामपंथी दलों ने उत्तर प्रदेश में इन प्रमुख सवालों पर एक व्यापक और लगातार जन आन्दोलन की रूप रेखा बनाई है। इसके तहत 18 अक्टूबर को प्रातः 10 बजे से चारों वामदलों द्वारा एक दिवसीय सामूहिक अनशन लखनऊ के झूले लाल पार्क में किया जायेगा। आन्दोलन के अगले चरण की घोषणा अनशन स्थल पर ही कर दी जायेगी।
वामपंथी दल सभी वामपंथी एवं जनवादी ताकतों, आम जनता, छात्रों, नौजवानों एवं बुद्धिजीवियों से अपील करते है कि वे इस सामूहिक अनशन के भागीदार बनें। आशा है आप सभी का सहयोग हमें अवश्य प्राप्त होगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मा.)
आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी
की
उत्तर प्रदेश राज्य कमेटियां
मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011
सीतापुर को मंडल बनाने की मांग के साथ भाकपा का जिला सम्मेलन सम्पन्न
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्य से आये पर्यवेक्षक प्रदीप तिवारी ने कहा कि आन्दोलन के अस्तित्व को बरकरार रखने और विचारधारा का झंडा थामे रहने का दौर अब खतम हो गया है। अरब एवं दक्षिण अफ्रीकी देशों के नागरिक विद्रोहों तथा दक्षिण अमरीकी महाद्वीप में वामपंथी सरकारों के गठन की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में भी माहौल अब हमारे अनुकूल बन रहा है और जनता में वामपंथ की आकर्षण पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन परिवर्तनों से उत्तर प्रदेश भी अछूता नहीं है। उन्होंने कहा कि अब आगे बढ़ने का वक्त है और नौजवानों तथा छात्रों को संगठित किये बगैर और उन्हें मार्क्सवाद की शिक्षा दिये बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। वक्त का तकाजा है कि हम नई कम्युनिस्ट पौध लगाना शुरू कर आगे बढ़ने की प्रक्रिया को अब आगे बढ़ायें।
सीतापुर के भाकपा के इतिहास का उल्लेख करते हुए प्रदीप तिवारी ने कहा कि जिले में भाकपा की सदस्यता बहुत ज्यादा कभी नहीं रही परन्तु एक लम्बे दौर तक जिले के हर अंचल में पार्टी के सदस्य थे और पार्टी के जन संगठनों का आधार लम्बे दौर तक बीस हजार के आस-पास रहा। पार्टी जिला स्तर पर विरोध प्रदर्शनों में हजारों की संख्या में जन समुदाय को सड़कों पर उतारने तथा लखनऊ या दिल्ली ले जाने की सामर्थ्य रखती थी। उन्होंने कहा कि यहां की भाकपा की यह स्ट्राइकिंग पावर ही थी कि सन 1970 के किसान आन्दोलन में केन्द्रीय भूमिका यहां के साथियों को दी गयी थी और कामरेड एस.ए. डांगे ने लखनऊ में गिरफ्तार होने के बावजूद सीतापुर जेल अपना ट्रान्सफर करवा लिया था। राज्य पार्टी के लिए यह चिन्ता की बात है कि पार्टी संगठन अब एक इलाके में सिकुड़ कर रह गया है। ‘ऐसा क्यों हुआ?’ की मीमंासा में समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है और हमें अब अपने पुराने गौरव को हासिल करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने जनपद में नौजवान सभा और स्टूडेन्ट्स फेडरेशन को तुरन्त गठित करने की आवश्यकता रेखांकित करते हुए प्रतिनिधियों से अपील की कि वे आज इसी सम्मेलन में दो नौजवान साथियों को नौजवान सभा बनाने के कार्यभार के लिए नामांकित कर दें और कम से कम दो वर्ष तक उन्हें संगठन बनाने में हर तरह की सुविधा मुहैया करायें।
सम्मेलन में राजनीतिक एवं सांगठनिक रिपोर्ट जिला मंत्री शकील बेग ने पेश करते हुए कहा कि कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण उत्तर प्रदेश में राज्य सम्मेलन और जिला सम्मेलन जल्दी करवाने पड़ गये हैं जिसके कारण पार्टी कांग्रेस के दस्तावेजों के प्रारूप अभी उपलब्ध नहीं हैं। हम अगली बैठकों पर उन दस्तावेजों पर भी चर्चा करेंगे। रिपोर्ट को सर्वसम्मति से पारित किया गया।
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए वयोवृद्ध कम्युनिस्ट नेता जव्वार हुसेन ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों की चर्चा करते हुए राज्य से आये पर्यवेक्षक प्रदीप तिवारी को विश्वास दिलाया कि राज्य की अपेक्षाओं पर सीतापुर के साथी खरे उतरेंगे। 18 अक्टूबर को होने वाले वामपंथी दलों के राज्य-स्तरीय अनशन में भी अधिक से अधिक साथियों को भेजने की व्यवस्था की जायेगी।
जिला सम्मेलन की अध्यक्षता वयोवृद्ध कम्युनिस्ट नेता राम किशन मौर्या तथा हरबंस शुक्ला के अध्यक्षमंडल ने की। सम्मेलन ने शकील बेग को अगली अवधि के जिला मंत्री निर्वाचित किया तथा एक 11 सदस्यीय जिला कौंसिल का गठन किया गया। जिला कौंसिल में जिला मंत्री शकील बेग के अलावा जव्वार हुसेन, हरबंस कुमार शुक्ला, नाजिम अली, मोहम्मद कलीम, राम किशन मौर्य, जियाउल हसन खां, ईदरीस, दुर्जन, शिवपाल तथा श्री राम को शामिल किया गया। राज्य सम्मेलन के लिए जव्वार हुसेन को प्रतिनिधि चुना गया तथा दूसरे प्रतिनिधि के लिए निर्वाचित जिला कौंसिल को अधिकृत किया गया।
जिला सम्मेलन ने मोहम्मद जावेद खां तथा नाजिम अली को नौजवान सभा का कार्यभार देखने के लिए नामित किया। जिला सम्मेलन ने ”पार्टी जीवन“ के अधिक से अधिक ग्राहक बनाने का अभियान चलाने का भी फैसला किया।
at 4:42 pm | 0 comments |
प्रगतिशील लेखक संघ का प्लेटिनम जयंती समारोह
गतिशीलता से काम नहीं चलने वाला है। हमें ऐसी गतिशीलता चाहिए जो समाज को आगे ले जाए। मनुष्यता को आगे ले जाए। हम अपनों से भी लड़ रहे हैं जो ज्यादा मुश्किल काम है। इसके बावजूद हम हैं और हमारा आंदोलन जिंदा है। यह उद्गार थे खगेन्द्र ठाकुर के जब वे नेहरू युवा केंद्र में अतीत की उपलब्धियों को रेखांकित करने के साथ ही भावी चुनौतियों और जिम्मेदारी के सन्दर्भ में बोल रहे थे।
प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव अली जावेद ने कहा कि मेहनकश अवाम के साथ लेखक के एकाकार होने की जरूरत है आज के साम्राज्यवादी चुनौतियों के दौर में संगठन की जिम्मेदारियां और बढ़ जाती हैं। शेखर जोशी ने कहा कि प्रगतिशील लेखक आंदोलन न होता तो हम लोग न होते। ‘परिप्रेक्ष्य और चुनौतियां’ विषय पर रीवां से आए युवा साहित्यकार डा. आशीष त्रिपाठी ने अगली पीढ़ी तैयार न होने का मुद्दा उठाकर चर्चा को गरमा दिया। डा. त्रिपाठी ने कहा कि युवा विचारक व लेखक नहीं दिखाई दे रहे हैं। अगली पीढ़ी तैयार करनी होगी। इसके लिए हमें फिर विश्वविद्यालय व दूसरे शैक्षिक संस्थानों की तरफ रुख करना होगा।
नाटककार राकेश ने कहा कि लेखन के केंद्र में अभी भी हाशिए का आदमी है। दलित व महिलाएं हैं। हमारे सामने लेखन में धार देने की चुनौती है। डा. रमेश दीक्षित ने कहा कि नए लोगों को जोड़ने के साथ-साथ प्रगतिशील लेखकों का व्यापक संयुक्त मोर्चा बनना चाहिए। अब नए साम्राज्यवाद का दौर है। समाज का एनजीओकरण हो गया है। जनतांत्रिक संगठनों को एक होकर बड़ा संघर्ष शुरू करने की जरूरत है। महाराष्ट्र के जाने माने लेखक श्रीपाद जोशी ने विचारधारा पर एक्शन प्लान की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि लोगों को हमसे आशा हमेशा बनी रही है लेकिन आज अपनी विरासत को लोगों तक पहुंचाने के माध्यम की चुनौती है। हमें संवाद के माध्यमों के बारे में विचार करना होगा। अवसर खोजने होंगे। लेखक डा. श्रीप्रकाश शुक्ल ने जनता की पक्षधरता का मुद्दा उठाते हुए साहित्य को जनता से जोड़ने की कोशिश करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि धर्म और पूंजी के रिश्ते बड़ी चुनौती हैं। डा. रघुवंश मणि, डा. सुखदेव सिंह, मोहन सिंह ने भी चर्चा में अपने विचार रखे।
समारोह की शुरुआत में विरोधाभासी टिप्पणियां कर चुके डा. नामवर सिंह ने समापन भाषण में उन्हें नसीहत दी। उन्होंने दो दिन की चर्चा के बाद एक नया घोषणापत्र तैयार करने पर बल दिया। नई चुनौतियों पर नए कार्यभार तय करने की जिम्मेदारी उन्होंने साथी साहित्यकारों को थमाई और कहा ‘ये कार्य अकेले नहीं किया जा सकता’। इसके लिए उन्होंने एक कमेटी के गठन की आवश्यकता रेखांकित की। उन्होंने कई भावी चुनौतियों के बारे में आगाह करते हुए उनसे लड़ने के लिए समान विचार वाले साहित्यकारों को एकजुट करने की जरूरत बताई। उन्होंने कई बड़ी चुनौतियों की बात करते हुए साहित्यकारों को उनसे आगाह भी किया। उन्होंने कहा कि नए वैश्विक अर्थ संकट के आने की आशंका है। जनवादी लेखक संघ (जलेस) और जन संस्कृति मंच (जसम) के साथ मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
समापन समारोह के पूर्व ‘प्रगतिशील आंदोलन की विरासत - पक्षधरता के जोखिम’ विषय पर लेखक एवं बीएसयू के रिटायर्ड प्रोफेसर चौथीराम यादव ने कहा कि प्रलेस को किसानों व मजदूरों के सहवर्ती आंदोलन से जोड़ना होगा। उनके प्रति प्रतिबद्धता लानी होगी। कबीर और प्रेमचंद की तरह जन पक्षधरता के जोखिम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि सोवियत यूनियन के विघटन को साहित्यकारों द्वारा माकर््सवादी समाजवाद के खात्में के बतौर लेना एक भ्रामक विश्लेषण था। उन्होंने कहा कि साहित्य को फिर से माकर््सवाद को एक विकल्प के बतौर प्रस्तुत करना होगा यही प्रगतिशील लेखक संघ की राजनीतिक जिम्मेदारी है। आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि लेखक ने अपने को वर्ण से मुक्त किया। तमाम विरोधों के बावजूद प्रलेस का आंदोलन बढ़ा है। प्रगतिशील लेखक संघ आधुनिक भारत का पहला ऐसा लेखक आंदोलन था जिसने साहित्य को राजनीति से जोड़ने का काम किया था। आज इस परम्परा को आगे बढ़ाने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक काल में प्रलेस ब्रिटिश साम्रज्यवाद के साथ-साथ धार्मिक कठमुल्लावाद से भी लड़ा था आज इस आंदोलन को फिर से इस भूमिका में आना होगा।
लेखक आबिद सुहैल ने कहा कि हाशिये के आदमी का साहित्य हाशिये पर आ गया है। लेखन पर चिंतन करना होगा। लेखक एवं पत्रकार श्याम कश्यप ने कहा कि जोखिम उठाने का फैसला लेखक का निजी होता है। हम अपने हथियार को भूलने की कोशिश न करें। प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि जोखिम तो अभी उठाया ही नहीं गया है। साहित्यकार अफसरपरस्ती छोड़ें। उन्होंने संघर्ष के साथियों के साथ काम करने की सलाह दी। उर्दू के जाने माने लेखक प्रो. अली अहमद फातमी ने सवाल किया कि आम आदमी के सरोकार क्यों गायब होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बाजारवाद हमें अपने सरोकारों से भटका रहा है।
लखनऊ दूरदर्शन के निदेशक शशांक ने कहा कि जीवनमूल्य क्षण में खत्म नहीं हो जाते। प्रगतिशील लेखन की विरासत को नई चीजों से जोड़ना होगा। परिवहन विभाग के रिटायर्ड प्रधान प्रबंधक एवं लेखक मूलचंद्र सोनकर ने यह सवाल उठाया कि दलितों के बारे में एक दलित लेखक ही बेहतर लिख सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी विरासत का समावेश करने को प्रगतिशील साहित्यकार तैयार नहीं होते हैं। आज दलितों और पिछड़ों के सवालों को भी अपने विमर्श में रखना होगा। उन्होंने कहा कि सावित्री बाई फुले, रमाबाई को आप संज्ञान में नहीं लेंगे तो उनका गलत लोगों द्वारा इस्तेमाल आप नहीं रोक पाएंगे। दिल्ली से आए वरिष्ठ लेखक श्याम कश्यप ने कहा कि संगठन पर अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए जब तक संगठन का पार्टी के साथ संबन्ध रहा, आंदोलन अपनी भूमिका में ज्यादा कारगर साबित रहा।
सम्मेलन में पिछले दिनों लेखिका शीबा असलम फहमी पर हुए हमले की निंदा की गयी।
सम्मेलन को सम्बोधित करने वाले अन्य प्रमुख वक्ता थे - दीनू कश्यप, राजेन्द्र राजन, साबिर रुदौलबी, डा. गया सिंह, जय प्रकाश धूमकेतु, संजय श्रीवास्तव, रवीन्द्र वर्मा, केशव गोस्वामी, पंजाबी लेखक डा. सर्वजीत सिंह, गुरुनाम कंवर व खान सिंह वर्मा, आनन्द शुक्ला, नरेश कुमार, सुभाष चंद्र कुशवाहा, रवि शेखर, एकता सिंह, शाहनवाज आलम आदि शामिल रहे।
प्रगतिशील लेखक संघ का प्लेटिनम जयंती समारोह |
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Manifesto of the Communist Party Karl Marx and Fredrick Engels Prefaces to various language editions 1872 German Edition 1882 Russian Edit...
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल के सचिव डा0 गिरीश ने 17 से 21 सितंबर तक काठमांडू में संपन...
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उठ जाग ओ भूखे बंदी, अब खींचो लाल तलवार कब तक सहोगे भाई, जालिम अत्याचार तुम्हारे रक्त से रंजित क्रंदन, अब दश दिश लाया रंग ये सौ बरस के बंधन, ...
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भाकपा की राज्य कौंसिल बैठक शुरू भाकपा राष्ट्रीय सचिव शमीम फैजी ने जारी किया आन्दोलन का पोस्टर लखनऊ 18 अप्रैल। भारतीय कम्युनिस्ट पार्...
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चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो चलो लहूलुहान पांव ले के भी चले चलो चलो कि आज साथ-साथ चलने की जरूरतें चलो कि ख़त्म हो न जाएं जिन्द...
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हरिशंकर परसाई की कहानियों में पात्र-वैविध्य की बात हम कर चुके हैं, इस वैविध्य का बहुत बड़ा कारण परिस्थितियां, उनसे जूझते चरित्र का निर्मित हो...
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(विगत 26 अप्रेल 2013 को कॉमरेड अनिल राजिमवाले का व्याख्यान रायगढ़ इप्टा और प्रलेस के संयुक्त आयोजन में हुआ था। इसके बाद 27 तथा...
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MANIFESTO OF PROGRESSIVE WRITERS ASSOCIATION ADOPTED IN THE FOUNDATION CONFERENCE 1936 Radical changes are taking place in India...