बैठक में भाजपा में चल रहे भारी घमासान पर भी चर्चा की गई और पार्टी की राज्य मन्त्रिपरिषद ने अपने स्थापित दृष्टिकोण को दोहराया कि श्री लालकृष्ण अडवाणी हों या श्री नरेंद्र मोदी, दोनों ही आरएसएस की खतरनाक सांप्रदायिक नीतियों के वाहक हैं। भाकपा की स्पष्ट राय है कि गत शताब्दी के नवें दशक में श्री अडवाणी ने जो रथयात्रा निकाली थी उसके कारण देश में हुए दंगों में सैकड़ों लोगों की जानें चली गई थीं। इस यात्रा की चरम परिणति बाबरी मस्जिद के ध्वंस के रूप में हुई। ये भी जगजाहिर है कि बाबरी विध्वंस के लिये 6 दिसंबर को अयोध्या में जमा भीड़ को श्री अडवाणी ने उकसाया था। अभी भी बाबरी विध्वंस का मामला अदालत में विचाराधीन है और श्री अडवाणी उसमें ‘निष्कलंक’ घोषित नहीं किये गये है।
इसी तरह मोदी गुजरात नरसंहार के लिए कुख्यात हैं और भाजपा अपने इन दोनों घोर सांप्रदायिक मुखौटों के इर्द गिर्द ही गोलबंद है। भाकपा राज्य मंत्रिपरिषद ने स्पष्ट किया कि 11 जून को राष्ट्रीय सहारा एवं अन्य समाचार पत्रों में प्रकाशित तथा एक एजेंसी द्वारा प्रसारित भाकपा के सचिव का. अतुल कुमार सिंह अनजान का बयान जिसमें कि अडवाणी को ‘निष्कलंक’ बताया गया है, भाकपा की राय नहीं है। भाकपा लगातार दोहराती रही है कि श्री अडवाणी की राजनीति बेहद सांप्रदायिक है और उसने देश के सौहार्द तथा शांति को हमेशा पलीता लगाया है।
कार्यालय सचिव
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