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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018
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Press Note of CPI, U.P.
नोएडा में नमाज पर दुर्भावना
से लगाई पाबंदी निरस्त की जाये: भाकपा
लखनऊ- 28 दिसंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव
मंडल ने नोएडा प्रशासन द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर नमाज अदा करने पर लगाई पाबंदी को
पूरी तरह अनुचित बताया है। कल ही केन्द्र सरकार ने लोकसभा में तीन तलाक रोकने के नाम
पर एक ऐसा बिल पास कराया जिसका मुस्लिम महिलाओं के हितों से दूर दूर तक कोई रिश्ता
नहीं। भाकपा ने भाजपा की केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों पर आरोप लगाया कि वे वोटों
के ध्रुवीकरण के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ एकतरफा युध्द छेड़े हुये है।
सभी जानते हैं कि नोएडा प्रशासन ने अनुमति न होने के
नाम पर पार्कों व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पड़े जाने पर रोक लगादी है। इतना ही
नहीं प्रशासन ने नमाज रोकने के नाम पर पार्क में पानी भर दिया। लेकिन उत्तर प्रदेश
की सरकार बिना किसी अनुमति के तमाम पार्कों में आरएसएस की शाखाएं लगाने की छूट दिये
हुये है। जबकि नमाज एक धार्मिक क्रिया है जबकि संघ की शाखाओं में विद्वेष और हिसा फैलाने
का वैचारिक आधार तैयार किया जाता है। गत दिनों तो इन शाखाओं में सुप्रीम कोर्ट के विरोध
में समूह गान गाया जारहा था। सुबह पार्कों में शुध्द वातावरण की तलाश में आने वाले
लोगों को संघ की इन देशविरोधी संविधान विरोधी गतिविधियों से ठेस पहुंचती है। अतएव संघ
की शाखाओं को सार्वजनिक स्थल पर लगाने से रोका जाना चाहिए।
भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने महामहिम राष्ट्रपति महोदय
और उत्तर प्रदेश के राज्य पाल से अपील की है कि वे हस्तक्षेप करें और नोएडा प्रशासन
की इस कार्यवाही को निरस्त करायें।
डा॰ गिरीश
गुरुवार, 27 दिसंबर 2018
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बिखराव की ओर एनडीए और टूट की ओर भाजपा
अपने घनघोर कट्टरपंथी एजेंडे को जनता पर जबरिया थोपने, 2014 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं से किये
वायदों से पूरी तरह मुकरने और काम करने की जगह थोथी बयानबाजी के
चलते राष्ट्रीय
जनतान्त्रिक गठबंधन (एनडीए) और भाजपा के प्रति जनता में भारी आक्रोश पैदा हुआ है।
हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार और पिछले दिनों हुये लोकसभा
और विधानसभा की सीटों के उपचुनावों में उसकी उल्लेखनीय पराजय ने आग में घी का काम किया है। यही वजह है कि आज एनडीए बिखर रहा है
और भाजपा कण कण करके टूट रही है। हालात ये हैं कि 2019 के चुनाव आते आते एनडीए के ध्वंसावशेष ही
दिखेंगे और
भाजपा 2014 के पूर्व की स्थिति में पहुँच जायेगी।
तेलगू देशम पार्टी ने तो एनडीए को पहले ही तलाक देदिया था तो आतंकवाद से निपटने में असफलता के चलते बदनामी
झेल रही भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी से खुद ही हाथ छुड़ा लिया। अब एनडीए के आधा दर्जन से अधिक घटक दल खुल कर विद्रोह पथ पर हैं तो अन्य कई के अंदर अंदर आग सुलग रही है। उनका धैर्य
कब जबाव दे जाएगा और विलगाव के स्वर कब फूट पड़ेंगे कहा नहीं जासकता।
यूपी के फूलपुर और गोरखपुर
के लोकसभा उपचुनावों से शुरू हुयी और कैराना में परवान चढ़ी विपक्षी एकता ने ऐसा ज़ोर पकड़ा कि साल का अन्त
आते आते एनडीए के विखराव की आधारशिला तैयार होगयी। इन चुनावों में सपा,
बसपा और रालोद ने वामपंथी दलों के सहयोग से तीनों प्रतिष्ठापूर्ण सीटें जीत लीं।
इस जीत ने विपक्ष और जनता में आत्मविश्वास जगाया कि भाजपा को हराया जासकता है। तीन
हिन्दी भाषी राज्यों की सत्ता भाजपा के हाथ से निकल जाने पर तो यह आत्मविश्वास
हिलोरें लेने लगा। सत्तापक्ष की हताशा के चलते एक के बाद एक सहयोगी दल के असंतोष
से एनडीए दरकने लगा। भाजपा एक मजबूत पार्टी से मजबूर पार्टी की स्थिति में आगयी।
इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा और असुरक्षा की भावना के चलते भाजपा से भी
लोग किनारा करने लगे।
बिहार की राष्ट्रीय लोक समता
पार्टी साढ़े चार साल तक सत्ता में साथ निभाने के बाद एनडीए को छोड़ कर संप्रग का
हिस्सा बन गयी। उसने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने पिछड़ों और गरीबों के लिये कोई
काम नहीं किया।
कार्पोरेट्स नियंत्रित आज
की राजनीति में विचार और सिध्दांत की जगह चुनावों में जीत हार और सत्ता प्राप्ति
की संभावना पार्टियों के बीच हाथ मिलाने का आधार बनते हैं। जब तक ये संभावनायें
भाजपा के पास थीं, पार्टियों का प्रवाह भाजपा की ओर था। 2014 में
मोदी लहर में जिनको जीत और सत्ता दिख रही थी वे भाजपा के साथ आये,
उनको लाभ मिला। पर आज हालात बदल गये हैं और इस प्रवाह की दिशा भी उलट चुकी है।
केन्द्र सरकार के शासन के
साड़े चार सालों में दलितों के साथ भारी अन्याय हुआ है। इससे वे उद्वेलित और
आंदोलित हैं। इससे विचलित बिहार के दुसाधों के आधार वाली पार्टी लोजपा भी असुरक्षित
समझने लगी। उसके नेताओं ने ताबड़तोड़ बयानबाजी कर भाजपा को बैक फुट पर लादिया। गत
लोकसभा चुनावों में बिहार में 30 सीटें लड़ कर 22 सीटें जीतने वाली भाजपा को मात्र
17 सीटों पर संतोष करना पड़ा। उसे जीती हुयी पांच सीटों की कुर्बानी लोजपा और जदयू
के लिये करनी पड़ी। एक राज्यसभा सीट भी लोजपा को देनी पड़ी।
राजनीति के पर्यवेक्षक अभी
भी इसे स्थायी समाधान नहीं, “पैच अप” मान रहे हैं। यदि भाजपा ने साख बचाने की
गरज से मंदिर निर्माण के लिये अध्यादेश लाने की कोशिश की तो दोनों की राहें जुदा
होसकतीं हैं। क्योंकि दोनों के जनाधार के समक्ष मंदिर नहीं,
किसान- कामगारों की दयनीय स्थिति का मुद्दा प्रमुख है। नीतीश कुमार की भी यही स्थिति
है। वे कह भी चुके हैं कि राम मंदिर का मुद्दा सहमति या अदालत से हल होगा।
महाराष्ट्र में भाजपा की
पुश्तैनी सहयोगी रही शिवसेना भी आँखें तरेर रही है। वह लगातार भाजपा को कठघरे में
खड़ा कर रही है। इसके सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने तो यहाँ तक कह डाला कि 'दिन
बदल रहे हैं, चौकीदार ही अब चोरी कर रहे हैं।'
उद्धव राफेल विमान सौदे में घोटाले को उजागर करने की मांग भी जोरदारी से कर रहे
हैं।
सुभासपा के नेता और योगी
सरकार में काबीना मंत्री श्री ओमप्रकाश राजभर राज्य सरकार के गठन के दिन से ही उस
पर खुले हमले बोल रहे हैं। सुभासपा ने अब भाजपा के केंद्रीय नेत्रत्व पर भी
हल्ला बोल दिया है। वह आरक्षण को तीन
भागों में बांटने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही है। भाजपा की हिम्मत नहीं
कि उसे बाहर का रास्ता दिखा सके।
जातीय और क्षेत्रीय पहचान तथा सामाजिक न्याय के
प्रश्न पर क्षेत्रीय पार्टियों का अभ्युदय हुआ था। भाजपा और संघ का हिन्दुत्वनामी
कट्टरपंथ क्षेत्रीय दलों की आकांक्षाओं को रौंद रहा है। अतएव एनडीए के घटक अपना दल
को भी अपना अस्तित्व खतरे में नजर आरहा है। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने प्रदेश
सरकार पर सम्मान न देने का आरोप लगाया। उन्होने कहाकि ‘मौजूदा हालात में सोचना पड़ेगा कि जहां सम्मान न हो,
स्वाभिमान न हो, वहां क्यों रहें?’
उन्होने केन्द्र में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की अनदेखी का आरोप भी लगाया और सभी
विकल्प खुले रखने का संकेत दिया। उल्लेखनीय है कि अपना दल ने पांच साल में यह पहला
बड़ा हमला बोला है।
पंजाब में अकाली दल ने आँखें दिखाना शुरू कर दीं
हैं तो तमिलनाड्डु में भाजपा खोखली होचुकी एआईएडीएमके की बैसाखियों पर निर्भर है।
पूर्वोत्तर में विपरीतधर्मी पार्टियों के साथ हनीमून के दौर से गुजर रही भाजपा से
उनका कब तलाक होजायेगा कोई नहीं जानता।
एनडीए ही नहीं 2019 में पुनर्वास की चिन्ता में डूबी
भाजपा भी आंतरिक विघटन की पीड़ा से गुजर रही है। एक एक कर सहयोगी दल भाजपा से छिटक
रहे हैं। इससे भाजपा में छटपटाहट है। कर्नाटक में जीत के जादुयी आंकड़े से दूर रही
भाजपा के पांच राज्यों में चुनावी हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल और भी टूटा है। वे
अब मोदी के करिश्मे और संघ की दानवी ताकत पर भरोसा नहीं कर पारहे हैं। हार की
ज़िम्मेदारी तय न करने पर भी सवाल उठ रहे हैं। श्री नितिन गडकरी ने इशारों इशारों
में नरेन्द्र मोदी और अमितशाह पर सवाल उठाया कि ‘सफलता के
कई पिता होते हैं पर असफलता अनाथ होती है। कामयाब होने पर उसका श्रेय लेने को कई
लोग दौड़े चले आते हैं, पर नाकाम होने पर लोग एक दूसरे पर
अंगुलियां उठाते हैं।‘
जहाज डूबने को होता है तो चूहे भी उसे छोड़ कर भागने
लगते हैं। पाला बदलने का दौर शुरू होगया है। हर दिन किसी न किसी भाजपाई के पार्टी
छोड़ने की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। 40 से 50
फीसदी सांसदों की टिकिटें काटने की भाजपा की योजना है। टिकिट गँवाने वाले ये सांसद
क्या गुल खिलायेंगे, सहज अनुमान लगाया जासकता है।
कार्पोरेट्स को लाभ पहुंचाने और किसान कामगारों की
उपेक्षा के चलते समस्याओं का अंबार लग गया है और पीड़ित तबके उनसे जूझ रहे हैं। हाल
ही में देश के कई भागों और राजधानी में किसानों ने बड़ी संख्या में एकत्रित हो
हुंकार भरी है। देश के व्यापकतम मजदूर तबके 8 व 9 जनवरी को हड़ताल पर जाने वाले
हैं। शिक्षक, बैंक कर्मी, व्यापारी, दलित, पिछड़े और महिलाएं सभी आंदोलनरत हैं। जमीनी
स्तर पर वंचित और उपेक्षित तबकों की हलचल जिस तेजी से बड़ रही है उसी तेजी से संघ
और भाजपा की बेचैनी बड़ रही है। स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि साढ़े चार साल में
पहली बार भाजपा नेताओं की सभाओं में लोग प्रतिरोध जता रहे हैं। एक ओर लोग ‘मन्दिर नहीं तो वोट नहीं’ जैसे नारे लगा रहे हैं तो
दूसरी ओर महंगाई भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से आजिज़ युवक सभाओं में पत्थर फेंक रहे
हैं।
दशहरे पर अपने भाषण में मन्दिर राग छेड़ने वाले संघ प्रमुख
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से उसकी निस्सारिता को समझ चुके हैं। परन्तु अन्य
कोई विकल्प सामने न देख संघ “मन्दिर शरणम गच्छामि” के उद्घोष
को मजबूर है। गंगा, गाय, नामों के बदलने
और मूर्तियों के निर्माण से भी हानि की भरपाई हो नहीं पारही है। ऐसे में न्यायालय
से मन्दिर- मस्जिद प्रकरण पर जल्द फैसला आता न देख विश्वसनीयता की रक्षा के लिए केन्द्र
सरकार मन्दिर निर्माण के लिये अध्यादेश ला सकती है।
इस अध्यादेश का हश्र क्या होगा यह तो वक्त ही
बताएगा पर बचे- खुचे एनडीए को खंड खंड करने और भाजपा के विघटन के लिये यह काफी
होगा । भाजपा के गैर संघी लोगों को अब यह राह स्वीकार्य नहीं।
डा॰ गिरीश
27- 12- 2018
बुधवार, 12 दिसंबर 2018
at 1:34 pm | 0 comments |
बुलंदशहर की घटना के असली मुजरिमों को बचाने में जुटी है उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मातहत मशीनरी
लखनऊ- उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद में 3 दिसंबर
को हुये अराजकता के नाच को जिसमें कि एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या
और एक तमाशवीन युवक की दर्दनाक मौत हुयी, के दस दिन बीतने
के बाद भी पुलिस और प्रशासन इस पर से रहस्य की चादर हठा नहीं पारहे हैं। उलटे
पुलिस और प्रशासन के रवैये से लग रहा है कि वह येन केन प्रकारेण असली अपराधियों जो
कि स्पष्टतः संघ गिरोह से संबन्धित हैं, को क्लीन चिट देकर
कुछ निर्दोषों और तमाशवीनों को बलि का बकरा बना रहे हैं।
ज्ञातव्य होकि जनपद बुलन्दशहर की स्याना कोतवाली के
अंतर्गत महाव गांव के एक किसान के गन्ने के खेत में कुछ म्रत पशुओं के अवशेष खेत
मालिक को 3 दिसंबर को सुबह पड़े मिले थे। किसान ने इसकी सूचना स्याना पुलिस को दी
तो वह घटनास्थल पर पहुंची और उपस्थित ग्रामीणों को रिपोर्ट लिख कर उचित कार्यवाही
करने का आश्वासन भी दिया। ग्रामीण इससे संतुष्ट भी होगये। पर सुनियोजित उद्देश्यों
के लिये हिंसा भड़काने को उतारू संघ गिरोह को यह मंजूर नहीं था।
अतएव बजरंगदल के जिलाध्यक्ष और भाजपा के दूसरे
आंगिक संगठनों ने वहाँ कथित गोकशी की अफवाहें फैला कर कई गांवों की भीड़ इकट्ठी कर
ली। वे म्रत पशुओं के अवशेष एक ट्रेक्टर में डाल कर पुलिस चौकी चिंगरावटी पर ले आए
और वहां जाम लगा दिया। संघियों ने अपने उत्तेजक बयानों और नारे बाजी से भीड़ को उकसाया
और पथराव शुरू होगया। इस बीच पुलिस को बल प्रयोग भी करना पड़ा। बेहद दुखद है कि
संघियों द्वारा लगाई इस आग के चलते स्याना कोतवाली के इंचार्ज की ह्त्या कर दी गयी
और एक स्थानीय युवक सुमित भी मारा गया।
ज्यों ज्यों समय व्यतीत होरहा है घटना की परतें और
साजिशें सामने आती जारही हैं। बुलंदशर में घटना के कई दिनों पहले से मुस्लिमों का
इज़्तजा चल रहा था जिसमें कि अल्पसंख्यकों की भारी भीड़ जुटी थी। पश्चिमी उत्तर
प्रदेश को हिंसा की आग में झौंकने के लिये संघ गिरोह ने इसे एक नायाब मौका समझा।
उन्होने ग्रामीण क्षेत्रों में अफवाहें फैलायीं कि मुस्लिमों के समारोह में आए
लोगों को गोमांस परोसने के लिये बड़े पैमाने पर गायें काटी जारही हैं। लेकिन आम
जनता सच्चाई जानती थी और वह टस से मस नहीं हुयी। उलटे कई ग्रामों में गैर
मुस्लिमों ने मुस्लिम समारोह में आये अल्पसंख्यकों को नमाज पढ़ने के लिये मंदिरों
और अपने आवासों में जगह दी। इससे संघी बौखला गये।
अपनी साज़िशों को अंजाम देने के लिये संघियों ने
पशुओं की खाल उतारने वाले मजदूरों से गन्ने के खेत में म्रत पशुओं के अंग गिरवा
दिये और बिना जांच के ही कुछ गरीब मुस्लिमों को गिरफ्तार करने को दबाव बनाया। पर
पुलिस इंस्पेक्टर स्याना बिना जांच किए गिरफ्तारी करने को तैयार नहीं थे।
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह दादरी के अखलाक हत्याकांड की जांच से भी जुड़े थे और
उन्हें लगातार धमकियाँ भी मिल रहीं थीं।
अब जनता के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या
संघियों ने एक तीर से कई निशाने साधने की साजिश की थी? क्या उनका उद्देश्य छत्तीसगड और मध्य प्रदेश के चुनावों में भाजपा की
दुर्गति की खबरों के बीच राजस्थान चुनाव से पहले ध्रुवीकरण को अंजाम देने की साजिश
रची थी? अथवा लोकसभा चुनावों से पहले पूर्व की भांति पश्चिमी उत्तर प्रदेश को फिर से हिंसा और हिंसा
के जरिये विभाजन पैदा करने का कोई महाषडयंत्र था?
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पुलिस इंस्पेक्टर की
हत्या ने संघियों के मंसूबे पर पानी फेर दिया। इस हिंसा से पुलिसकर्मियों और आम
जनता के बीच योगी सरकार और संघ गिरोह के विरोध में जबर्दस्त गुस्सा था जिसकी
चिनगारियों से संघ गिरोह के पंख झुलसते नजर आये। अब कई किस्म की जाँचें बैठा दी
गईं हैं। संघ गिरोह के लोगों को बचाने के प्रयास जारी हैं। एक फौजी को हत्यारा
साबित करने की कवायद चल रही है। डीजीपी सहित तमाम आला अधिकारी पहले तो संघ परिवार
का नाम लेने से बचते रहे और अब संघ परिवार को क्लीन चिट देने को तत्पर जान पड़ते
हैं। पर अब इसका फैसला जनता की अदालत में
होना बाकी है, भले ही कार्यपालिका मामले पर कितनी ही लीपापोती
क्यों न कर दे।
भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने उसी दिन हुयी उस घटना पर गहरा दुख और
आक्रोश व्यक्त किया था। एक प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया
था कि समूची घटना के पीछे भाजपा, बजरंग दल और आरएसएस के
समर्थकों की साजिश है जो 2019 के चुनावों से पहले दंगा भड़काने, समाज को बांटने और कानून व्यवस्था को भंग करने पर उतारू हैं।
भाकपा का आरोप है कि जनता के बीच पूरी तरह बेनकाब
होचुके संघ और भाजपा अब सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने पर उतारू हैं। जगह जगह
गोहत्या का नाटक खड़ा कर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जारहा है। धर्मसभा, कमल यात्रा और अन्य कई तरीकों से उन्माद और भय पैदा किया जारहा है।
लोकसभा चुनावों से पहले ऐसी तमाम वारदातों को अंजाम देने की साजिश है। कुत्सित
राजनैतिक उद्देश्यों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मुजफ्फरनगर की तरह फिर से दंगों
की आग में झौंकने का षडयंत्र है।
भाकपा ने कहाकि
योगीजी यूपी में रामराज्य की बातें करते रहे हैं लेकिन वो रामराज्य तो दूर दूर तक
नहीं दिखाई देरहा। अब तक उनकी गैर कानूनी सेनाएं अल्पसंख्यकों, दलितों और कमजोरों पर हमले बोल रही थीं, अब उनके
निशाने पर पुलिस भी आगयी है। योगीजी और भाजपा को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
भाकपा ने यह भी कहाकि माननीय उच्च न्यायालय को
स्वतः संग्यान लेकर जांच के लिये गठित टीमों की जांच पर निगरानी रखनी चाहिये क्योंकि सत्ता
के दबाव में जांच को हत्याकांड से हठा कर कथित गोकशी की ओर मोड़ा जासकता है और संघ
गिरोह को क्लीन चिट दी जासकती है। भाकपा
ने लावारिश गायों और सांडों को बाड़ों में बंद करने की मांग भी की है जो न केवल किसानों
की फसलें उजाड़ रहें अपितु तमाम लोगों की
जानें भी लेरहे हैं।
भाकपा ने प्रदेश की जनता से अपील की है कि वह
प्रदेश को दंगों और विभाजन की आग में झौंकने की भाजपा और संघ की साजिश से सावधान
रहें और हर कीमत पर शान्ति बनाए रखें। भाकपा ने शहीद इंस्पेक्टर और म्रतक ग्रामीण
के परिवारों को न्याय दिये जाने की मांग भी की है।
डा॰ गिरीश
सोमवार, 3 दिसंबर 2018
at 7:06 pm | 0 comments |
CPI on Bulandashahar carnage
बुलन्दशहर की त्रासद घटना संघ और भाजपा की साजिश का
परिणाम
यूपी में रामराज्य कहाँ है बतायें योगी: भाकपा
लखनऊ- 3 दिसंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने आज जनपद बुलन्दशहर की स्याना कोतवाली के अंतर्गत हुयी
उस घटना पर गहरा दुख और आक्रोश व्यक्त किया है जिसमें एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक ग्रामीण
की हत्या होगयी।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने आरोप लगाया कि समूची घटना के पीछे भाजपा, बजरंग दल और आरएसएस के समर्थकों की साजिश है जो 2019 के चुनावों से पहले दंगा
भड़काने, समाज को बांटने और कानून व्यवस्था को भंग करने पर उतारू
हैं।
भाकपा का आरोप है कि जनता के बीच पूरी तरह बेनकाब होचुके
संघ और भाजपा अब सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने पर उतारू हैं। जगह जगह गोहत्या का नाटक
खड़ा कर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जारहा है। धर्मसभा, कमल यात्रा और अन्य कई तरीकों से उन्माद और भय पैदा किया जारहा है। 6 दिसंबर
से पहले ऐसी तमाम वारदातों को अंजाम देने की साजिश है। कुत्सित राजनैतिक उद्देश्यों
से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मुजफ्फरनगर की तरह फिर से दंगों की आग में झौंका जासकता
है।
डा॰ गिरीश ने कहाकि योगीजी यूपी में रामराज्य की बातें
करते रहे हैं लेकिन वो रामराज्य तो दूर दूर तक नहीं दिखाई देरहा। अब तक उनकी गैर कानूनी
सेनाएं अल्पसंख्यकों, दलितों और कमजोरों पर हमले बोल रही
थीं, अब उनके निशाने पर पुलिस भी आगयी है। योगीजी और भाजपा को
इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि माननीय उच्च न्यायालय को
स्वतः संग्यान लेकर जांच के लिये गठित एसआईटी की जांच पर निगरानी रखनी चाहिये क्योंकि
सत्ता के दबाव में जांच को हत्याकांड से हठा कर कथित गोकशी की ओर मोड़ा जासकता है। भाकपा
ने लावारिश गायों और सांडों को बाड़ों में बंद करने की मांग भी की है जो न केवल फसलें
उजाड़ रहें अपितु लोगों की जानें भी लेरहे हैं।
भाकपा ने प्रदेश की जनता से अपील की है कि वह प्रदेश
को दंगों और विभाजन की आग में झौंकने की भाजपा और संघ की साजिश से सावधान रहें और हर
कीमत पर शान्ति बनाए रखें। भाकपा ने शहीद इंस्पेक्टर और म्रतक ग्रामीण के परिवारों
को न्याय दिये जाने की मांग भी की है।
डा॰ गिरीश
शुक्रवार, 30 नवंबर 2018
at 9:06 am | 0 comments |
Mr. Modee Must Go: Farmers Gathered in Delhi.
किसानों के हालात भले न बदलें सरकार जरूर बदल देगा
किसानों का आक्रोश
नई दिल्ली- अखिल भारतीय किसान सभा सहित देश के लगभग
दो सौ किसान संगठनों के बैनर तले बड़ी संख्या में यहाँ रामलीला मैदान में पहुँच चुके
हैं। कल चार अलग अलग दिशाओं से किसानों ने रामलीला ग्राउंड तक पैदल मार्च किया। आज
वे रामलीला ग्राउंड से संसद जाने की तैयारी में हैं जहां वे अपनी खुली संसद आयोजित
कर अपनी व्यथा प्रकट करेंगे।
मौसम की दुश्वारियों और यात्रा की कठिनाइयों को झेलते
हुये ये किसान यूं ही दिल्ली नहीं पहुंचे हैं। इसके पीछे उनकी वह महापीड़ा छिपी है जो
उन्हें पूंजीवादी दलों की सरकारों खास कर इन साढ़े चार साल में मोदी सरकार ने दी है।
वर्ष दर वर्ष अपनी बदहाली और कंगाली से झूझते किसान फांसी के फंदे पर झूलते रहे और
राजसत्तायेँ अट्टहास करती रहीं।
अपने चुनाव अभियान में मोदी ने किसानों के कर्जे माफी
और उनकी आमद दो गुना करने का वायदा किया था, लेकिन सरकार ने किसानों
के प्रति वही धोखाधड़ी का रवैया अपनाया जिसे की वह अन्य तबकों के लिए अपनाती रही है।
उन्होने भाजपा और मोदी पर बड़ा भरोसा किया था और उन्हें भारी बहुमत से सत्ता सौंपी थी। लेकिन आमदनी दोगुना करना तो दूर वे और भी बदहाली
के गर्त में धकेल दिये गए।
अतएव आज वे मांग कर रहे हैं कि उनकी आमदनी डेढ़ गुना
करने का बिल संसद में पास किया जाये और एक बार उन्हें सारे कर्जों से मुक्त किया जाये।
वे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की मांग भी कर रहे हैं जिसके बारे में सरकार
और भाजपा भ्रम फैला रही है कि उसे तो लागू कर दिया गया। इसके अलाबा तमाम क्षेत्रीय
समस्याएँ भी हैं। कहीं गन्ने का उन्हे भुगतान नहीं मिला तो कहीं चीनीं मिलें नहीं चलीं।
कहीं धान, बाजरा, आलू प्याज का मूल्य नहीं मिला तो महंगे डीजल, बिजली और फर्तीलाइजर्स ने उनकी कमर तोड़ रखी है। अनेक ऐसे सवाल हैं जो उनके
आक्रोश को बड़ा रहे हैं और उन्हें खींच कर दिल्ली ले आए हैं।
एक तरफ उनमें इस सरकार के प्रति गहरा गुस्सा है तो दूसरी
ओर अपनी अभूतपूर्व एकता पर भारी उत्साह है। यह गुस्सा और उत्साह भले ही उनके हालात
न बदले लेकिन मौजूदा सरकार को जरूर बदल देगा। देखना है सरकार उनके प्रति सहानुभूति
का रवैया अपनाती है या फिर उन्हें कोरे आश्वासन और झूठे दाबों से टरकाती है। पर इतना
तय है कि किसानों का यह सैलाब अब किसी झूठ को और सहने को तैयार नहीं।
डा। गिरीश,
रविवार, 18 नवंबर 2018
at 5:34 pm | 0 comments |
जनता के आम हितों से किनाराकशी भाजपा को महंगी पड़ेगी : भाकपा
लखनऊ- 18 नवंबर: भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी की राज्य काउंसिल की बैठक यहां मथुरा के वरिष्ठ नेता कामरेड गफ्फार अब्बास एडवोकेट
की अध्यक्षता में संपन्न हुयी।
बैठक में देश और प्रदेश के मौजूदा हालात पर राज्य सचिव
डा॰ गिरीश ने एक व्यापक समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर 20 साथियों ने चर्चा में
भाग लिया। बैठक में कार्यक्रम एवं संगठन संबंधी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये।
डा॰ गिरीश ने कहाकि केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकार
हर मोर्चे पर विफल होचुकी हैं। चुनावों के समय भाजपा ने जनता से जो भी वायदे किये उनमें
से एक भी पूरा नहीं किया गया। इन सरकारों की अकर्मण्यता और अहमन्यता ने सारे रिकार्ड
तोड़ दिये हैं। परिणामस्वरूप बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और कमजोर तबकों पर अत्याचार की मार से लोग कराह उठे हैं। रुपये
की कीमत में अभूतपूर्व गिरावट सरकार कथित कुशलता की कलई खोलने को काफी है। इसका नतीजा
है कि सरकार का जनाधार बुरी तरह खिसका है। यही वजह है कि देश भर में हाल में हुये कई
उपचुनावों में भाजपा को भारी पराजय का मुख देखना पड़ा है।
डा॰ गिरीश ने कहाकि पांच राज्यों की विधान सभाओं के
चुनावों और लोकसभा चुनावों में संभावित पराजय
के भय से समूचे संघ परिवार ने विभाजनकारी और सांप्रदायिक एजेंडों पर पूरी ताकत झोंक
दी है। सत्ता के चार सालों में मंदिर निर्माण पर पूरी खामोशी ओड़े रही भाजपा और संघ
गिरोह ने अब मंदिर निर्माण का बेसुरा राग छेड़ दिया है। शहरों के ऐतिहासिक लोकप्रिय
नामों को भी जबरिया बदला जारहा है। इस नाम परिवर्तन की सनक पर जनता का भारी मात्रा
में धन व्यय किया जारहा है। गंगा को स्वच्छ बनाने के नाम पर ये गंगाभक्त बड़ी धनराशि
डकार गये और गंगा की हालत आज भी जैसी की तैसी बनी हुयी है। इनकी गोवंश रक्षा नीति ने आवारा पशुओं के विशाल
झुंड पैदा कर दिये हैं जो किसानों की फसल उजाड़ रहे हैं और लोगों की जानें लेरहे हैं।
समूची जनता त्राहि त्राहि कर रही है।
अतएव जनता की आँखों में धूल झोंकने की गरज से और एक
क्षत्र तानाशाही लादने के उद्देश्य से सर्वोच्च न्यायालय को निशाना बनाया जारहा है।
यह देश लोकतन्त्र और संविधान के लिये बहुत ही घातक है। वोट और सत्ता की भूख ने उन्हें
अंधा बना दिया है। मोदी, योगी, भागवत और
उनके अन्य सभी नेता अनापशनाप झूठ वमन कर रहे हैं और गोदी मीडिया तटस्थता का चोला दूर
फेंक उनके कीर्तन में लगा है। लेकिन भाकपा की राय है कि ये न 1989 है न 1992, जबकि देश की जनता को उन्होने बरगला लिया था। जनहितों से किनारा कर भ्रामक
एजेंडे पर काम करना उनके लिये उलटा पड़ने वाला है, डा॰ गिरीश ने
कहा।
इन चुनौतियों से निपटने को भाकपा ने वामपंथी दलों के
साथ मिल कर व्यापक जन चेतना निर्मित करने को अभियान चलाने पर ज़ोर दिया। 3 से 6 दिसंबर
के बीच जिलों जिलों में “संविधान, धर्मनिरपेक्षता एवं लोकतन्त्र
के समक्ष चुनौतियां” विषय पर विचार गोष्ठियाँ एवं सभा आदि आयोजित की जायेंगी। भारत
की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) से इस मुद्दे पर सहमति बन चुकी है। अन्य वामपंथी
दलों से भी चर्चा की जाएगी।
भाकपा ने अपने जिला स्तरीय नेताओं को राजनैतिक प्रशिक्षण
देने हेतु एक चार दिवसीय शिविर आयोजित करने का निर्णय भी लिया। यह शिविर 6 से 9 दिसंबर
के बीच बदायूं में होगा। इसमें जिला सचिव और सहसचिवों को भाग लेना है।
भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने 29 और 30 दिसंबर को दिल्ली
में होने वाले देश के किसानों के संयुक्त आंदोलन को समर्थन प्रदान किया है और ज्यादा
से ज्यादा किसान साथियों से दिल्ली पहुँचने की अपील की है।
बैठक में पार्टी की लोकसभा चुनावों की तैयारी पर भी
चर्चा हुयी। भाकपा प्रदेश में 10 सीटें लड़ने की योजना पर कार्य कर रही है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
मंगलवार, 6 नवंबर 2018
at 1:42 pm | 0 comments |
हाथरस और हरदोई हादसों पर भाकपा ने गहरा दुख जताया
लखनऊ- 6 नवंबर
2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कल हरदोई
जनपद में रेल हादसे में चार मजदूरों की मौत और हाथरस में पुलिस द्वारा विकलांग दलित
की हत्या पर गहरा दुख और क्षोभ प्रकट किया है। डा॰ गिरीश ने प्रत्येक म्रतक के परिवार
को रुपये 20- 20 लाख का मुआबजा तथा परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में डा॰ गिरीश ने कहाकि भाजपा
शासन में प्रशासनिक लापरवाही और अत्याचारों की सारी हदें टूट गयी हैं। एक माह में ही
केवल उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत कई बड़े रेल हादसे हुये जिनमें दर्जनों लोग जान
से हाथ धो बैठे। अपराधों और सड़क हादसों में भी हर रोज तमाम लोग मारे जारहे हैं। योगी
की पुलिस अब रक्षक नहीं भक्षक का काम कर रही है। इसका सीधा कारण है कि केंद्र और राज्य
की सरकारें हरी कीर्तन में व्यस्त व्यस्त हैं, शासन प्रशासन पर उनका
कतई ध्यान नहीं है।
उन्होने कहाकि इससे बड़ी बिडंबना क्या होगी कि कल हाथरस
में पुलिस ने ठेला लगाकर जीवनयापन करने वाले विकलांग दलित युवक से धौंस मांगी और न
देपाने पर पीट पीट कर उसकी हत्या कर दी। भारी जन दबाव के चलते हत्यारे दरोगा के खिलाफ
एफआईआर दर्ज हुयी है लेकिन अभी उसकी गिरफ्तारी किया जाना जरूरी है। साथ ही म्रतक परिवार
को वो सभी सुविधायें और पावनायें दी जानी चाहिये जो कि लखनऊ में पुलिस द्वारा मारे
गये श्री तिवारी के परिवार को दी गईं थीं, डा॰ गिरीश ने मांग
की है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा , उत्तर प्रदेश
शनिवार, 3 नवंबर 2018
at 1:41 pm | 0 comments |
न्यायिक सक्रियता, संघ की बौखलाहट और मन्दिर राग
अदालतों के हाल के कुछ निर्णयों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ, उसके आनुसांगिक संगठनों खासकर भाजपा की बौखलाहट निरंतर बढ़ती जारही है। इस
बौखलाहट के चलते एक ओर वह सर्वोच्च न्यायालय पर हमलावर हुये हैं वहीं उन सबने अयोध्या
में मन्दिर निर्माण का कीर्तन पुनः तेज कर दिया है। सारी सीमायें लांघ कर सर्वोच्च
न्यायालय पर जिस भौंडे ढंग से हमले किये जारहे हैं वे देश और लोकतान्त्रिक समाज के
लिये बेहद चिंता का सबब बनते जारहे हैं। अंततः ये हमले हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली
और संविधान के ऊपर हैं।
इसी बीच संघ, विश्व हिन्दू
परिषद और संघ के तमाम सहोदरों ने चार साल की हैरान करने वाली चुप्पी को तोड़ते हुये
अयोध्या में मन्दिर आंदोलन को धार देना शुरू कर दिया है। अब बात यहां तक पहुंच गयी
है कि अध्यादेश लाकर और कानून बना कर मन्दिर बनाने की मांग की जारही है। यह मांग
किसी और ने नहीं विजयादशमी पर अपने परंपरागत भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने
स्वयं की। नाटकीयता की हद यह है कि सरकार का नियंता संघ अपनी ही सरकार से मांग
करने का अभिनय कर रहा है।
लेकिन महामुख
के खुलते ही दसों मुख खुल गये हैं। कथित विहिप और संत समाज तो पहले ही अभियान की
रूपरेखा तैयार कर चुके थे अब गिरराज किशोर और सुब्रह्मण्यम स्वामी सरीखे भाजपा के
वाचाल भी सक्रिय होगये हैं। एक दो नहीं संवैधानिक पदों पर बैठे कोई दर्जन भर
दुर्मुख एक ही भाषा बोल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने
तो यहां तक कह डाला कि मन्दिर निर्माण तो जारी है। उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने
कहाकि 2019 से पहले ही मन्दिर का निर्माण अवश्य होगा भले ही उसके लिये कानून बनाना
पड़े। राम भक्त दर्शाने की होड़ मची है। तोगड़िया और शिवसेना प्रमुख देखने में भले ही
अलग दिखाई देते हों पर उनका मन्दिर राग भाजपा और संघ के लिये आधार तैयार करने वाला
ही नजर आरहा है।
केरल के सबरीमाला मन्दिर के मामले में सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा सभी स्त्रियों के प्रवेश के निर्णय पर संघ और भाजपा ने सारी
सीमायें लांघ कर अपनी फौजें सड़कों पर उतार दीं। इतना ही नहीं भाजपा अध्यक्ष अमित
शाह ने सर्वोच्च न्यायालय को खुल्लमखुला नसीहत दे डाली कि सर्वोच्च न्यायालय को
ऐसे निर्णय नहीं देने चाहिये जो जनता की आस्था के विपरीत हों और जिन्हें लागू नहीं
किया जासके। यह सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता और हमारे संविधान पर खुला हमला है
जिसके तहत व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की
सर्वोच्चता स्थापित की गयी है। इस प्रकरण ने संघ और भाजपा के नारी सम्मान और स्वातंत्र्य
के प्रति ढोंग को भी उजागर कर दिया। एक केन्द्रीय महिला मन्त्री ने तो बेहद फूहड़ बयान
देकर नारी की निजता पर घ्रणित हमला बोला।
ऐसा नहीं कि भाजपा ऐसा पहली बार कर रही है। वह ऐसा
बार- बार और लगातार करती आयी है। आस्था और श्रध्दा उसके राजनीतिक कवच- कुंडल हैं। इन्हीं
की आड़ में इस समूह ने 6 दिसंबर 1992 को राष्ट्रीय एकता परिषद को दिये अपने वचन और
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की धज्जियां बिखेरते हुये अयोध्या के विवादित
ढांचे को ही ज़मींदोज़ कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय पर संघ परिवार का ताज़ा हमला उसके
अधीन विचारधीन अयोध्या विवाद की सुनवाई जनवरी 2019 में शुरू करने के फैसले को लेकर
है। संघ भली प्रकार जानता है कि 29 अक्तूबर को सक्षम बेंच के अभाव में सुनवाई संभव
नहीं थी और एक सक्षम बेंच के गठन के लिये भी वक्त चाहिये होता है। लेकिन संघ को तो
राजनीति करनी थी। पहले कहा गया कि यह सब कांग्रेस के दबाव में किया जारहा है। जब
यह पटाखा फुस्स होगया तो कहा जाने लगाकि सर्वोच्च न्यायालय करोड़ों हिंदुओं की
भावना से खिलवाड़ न करे। यह सर्वोच्च न्यायालय को खुली धमकी है जो अपने वोट बैंक को
बरगलाने के लिये की जारही है।
सर्वोच्च न्यायालय ही नहीं तमाम स्वायत्त संस्थाओं
को भी संघ परिवार तहस नहस कर रहा है। निर्वाचन आयोग, सीबीआई, सीवीसी और अब रिजर्व बैंक को निशाने पर लिया गया है।
संघ और भाजपा की इस बौखलाहट और कारगुजारियों के
लिये पर्याप्त कारण भी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और मोदीजी द्वारा
जनता को तमाम सब्जबाग दिखाये गये थे। आज उनकी कलई पूरी तरह खुल गयी है। दो करोड़
नौजवानों को हर वर्ष रोजगार देने का वायदा अब उन्हें पकौड़े तलने की नसीहत में बदल
गया है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने, विदेशों से
कालाधन वापस लाकर हर खाते में रुपये- 15 लाख पहुंचाने,
आतंकवाद की रीड़ तोड़ने, पाकिस्तान की आँखों में आँखें डाल कर
बात करने जैसे झांसे और “न खाऊँगा न खाने दूंगा” जैसी कसमें सभी तार- तार होचुके
हैं। भाजपा स्वयं इन्हें चुनावी जुमला बता चुकी है।
नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के दुष्परिणाम सभी के
सामने हैं। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में
अभूतपूर्व व्रध्दी और कमरतोड़ महंगाई, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार
में रुपये की निरंतर गिरती कीमत और भ्रष्टाचार के मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता
ने भाजपा के पैरों तले से जमीन खिसका दी है। राफेल विमान सौदे में सीधे
प्रधानमंत्री की लिप्तता ने डूबते जहाज की पैंदी में एक और छेद कर दिया। इसे भाजपा
भी समझ रही है और संघ भी। विकास, स्वच्छता अभियान और विदेशों
में छवि निर्माण के ढोंग भी परवान नहीं चड़ सके। सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा पर चढ़
कर फायदा उठाने का मंसूबा आरएसएस के बारे में सरदार पटेल के स्पष्ट विचारों ने
धराशायी कर दिया।
हाल के कुछ न्यायिक फैसलों ने भी संघ और भाजपा की
कथनी करनी और दोगलेपन को उजागर किया है। सबरीमाला मन्दिर में सभी आयु की महिलाओं
के प्रवेश, शहरी नक्सल के नाम पर गिरफ्तार बुध्दिजीवियों
की गिरफ्तारी के मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार के लिये स्वीकार करना, सीबीआई प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता,
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 31 वर्ष पुराने हाशिमपुरा मामले में दोषियों को आजीवन
कारावास की सजा सुनाना और उत्तर प्रदेश में 68,500 शिक्षकों
की भर्ती में हुये घोटाले की इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई से जांच के
आदेश पारित करना आदि तमाम मामले हैं जो भाजपा, संघ और उनकी
सरकारों की कारगुजारियों को बेनकाब करते हैं।
इन सब से बौखलाया संघ परिवार मन्दिर मुद्दे की
सुनवाई को जनवरी तक बढ़ाए जाने को कुटिलता से आस्था का प्रश्न बना कर सर्वोच्च
न्यायालय पर हमले बोल रहा है। हर तरफ से घिरे और पूरी तरह बेनकाब संघ के सामने
“मन्दिर शरणम गच्छामि” के अलाबा कोई रास्ता नहीं है। अतएव अध्यादेश लाकर अथवा
कानून बना कर मन्दिर बनाने की आवाजें तेज हो गईं हैं। मोहन भागवत और भाजपा अध्यक्ष
अमित शाह के बीच हुई गुफ्तगू भी इसी उद्देश्य से है। संघ के महासचिव ने 1992 जैसा आंदोलन
छेड़ने की धमकी दी है। यह साख बचाने और चेहरा छिपाने की कवायद भी होसकती हैं।
अब देखना यह है कि क्या संघ के निर्देशों का पालन
करते हुये केन्द्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र से पहले मन्दिर निर्माण के लिये
अध्यादेश लाएगी? या फिर संसद में कोई बिल लाकर यह जताने का
प्रयास करेगी कि वह तो मन्दिर निर्माण के लिये प्रतिबध्द है। लेकिन इस बिल के अधर
में लटक जाने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। पर भाजपा को लोगों को भ्रमित करने का
बहाना तो मिल ही जाएगा। कानूनी पेंच यह भी है कि अयोध्या के विवादित भूखंड का
अदालती निर्णय आने से पहले वहाँ कोई निर्माण संभव नहीं है। भाजपा और संघ यह भली
प्रकार जानते हैं। अतएव मन्दिर राग अलापना उनकी मजबूरी है तो न्यायपालिका को धमकाना
उनकी राजनैतिक जरूरत। इसे वे निरंतर जारी रखेंगे भले ही देश के लोकतान्त्रिक ढांचे
को कितनी ही क्षति क्यों न उठानी पड़े।
डा॰ गिरीश
गुरुवार, 1 नवंबर 2018
at 5:20 pm | 0 comments |
CPI on Hashimpura
हाशिमपुरा पर न्यायपालिका का फैसला संवैधानिक मूल्यों
के प्रति उम्मीद जगाने वाला है
भाकपा ने फैसले का किया स्वागत
लखनऊ- 1 नवंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य
सचिव मंडल ने 31 वर्ष पुराने मेरठ के हाशिमपुरा जनसंहार के दोषी 16 पीएसी कर्मियों को आजीवन
कारावास की सजा के फैसले का स्वागत किया है। ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश और देश में
कई संगीन मामलों के पीड़ित न्याय की आस लगाये बैठे हैं, इस फैसले ने उनमें न्याय के लिये नई उम्मीद
जगाई है। भाकपा ने पीड़ितों की हानि की विकरालता को देखते हुये उन्हें पर्याप्त मुआबजे
की मांग भी की है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा॰
गिरीश ने कहाकि अभी मोब लिंचिंग, सांप्रदायिक दंगों और नरसंहार, बम ब्लास्ट, फर्जी मुठभेड़ें और जेनयू के छात्र नजीब
के लापता होने के कई मामले जांच और न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। देर से ही मगर
दुरुस्त आये इस फैसले ने जहां पीड़ित वर्ग में न्याय की उम्मीद जागी है वहीं आस्था, धर्म, जातीय और सांप्रदायिक विद्वेष से लथपथ ताकतों
को म्यान में रहने का संदेश दिया है। यह प्रशासनिक मशीनरी और उन सुरक्षा बलों के लिये
भी एक सबक है जो घ्रणा और हिंसा की राजनीति करने वालों के हाथों की कठपुतली बन कर भक्षक
बन जाते हैं।
यह फैसला इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यकवाद
और तुष्टीकरण का हौवा खड़ा करने वाली भाजपा और आरएसएस जैसी ताकतों को भी यह कठघरे में
खड़ा करता है। ये ताक़तें अल्पसंख्यकों की रक्षा हेतु आवाज उठाने वाली ताकतों पर अल्पसंख्यकवाद
और तुष्टीकरण के मिथ्या आरोप मढ़ती रहती हैं और अपनी हिंसा, विद्वेष और सांप्रदायिक राजनीति को जायज ठहराने की कोशिशों में लिप्त रहती
हैं। इतना ही नहीं ये ताक़तें प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षाबलों में अपनी घुसपैठ और उनके
सांप्रदायीकरण का निरंतर प्रयास करती रहती हैं, खासकर तब जब वे
सत्ता में होती हैं।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय
को निशाना बना कर हत्याएं की गई हैं। यह हिरासत में मौत का मामला है। इसमें मानवाधिकार
का हनन किया गया है और पीड़ितों को न्याय दिलाने में तीन दशक लग गए। इतने समय बाद न्याय
मिलना न्यायपालिका के उद्देश्य को पूरा नहीं करता है। इस मामले में निर्दोष और निहत्थे
लोगों की जानबूझ कर हत्या की गई है। यह किसी भी सुरक्षाबल और राज्य व्यवस्था के लिये
शर्मनाक है।
निश्चय ही हमारी न्यायपालिका का यह फैसला हमारे संविधान
में विहित धर्मनिरपेक्षता, लोकतन्त्र और न्यायिक समानता के मूल्यों
को परिपुष्ट करता है और दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाला है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
इस फैसले का तहे दिल से स्वागत करती है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018
at 5:50 pm | 0 comments |
श्री नारायण दत्त तिवारी के निधन पर भाकपा ने शोक जताया
लखनऊ- 18 अक्तूबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, पूर्व राज्यपाल, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को समर्पित, उदार, सहज तथा लोकप्रिय नेता श्री नारायण दत्त तिवारी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त
किया है। पार्टी ने शोक संतप्त परिवार और उनके सगे- संबंधियों के प्रति सहानुभूति प्रकट
करते हुये उन्हें इस पीढ़ा को सहन कर पाने में समर्थ होने की कामना की है।
यहां जारी एक प्रैस बयान
में पार्टी के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहाकि श्री तिवारी आजीवन सांप्रदायिकता, जातिवाद और विभाजन की राजनीति का विरोध करते रहे।
सत्ता पक्ष में और सत्तासीन रहते हुये भी उन्होने सभी को सहज सम्मान दिया और विपक्ष
की बात को भी पूरा महत्व दिया। मौजूदा व्यवस्था में विकास की तमाम सीमाओं के बावजूद
उन्होने उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के विकास को हर संभव प्रयत्न किया। आम जनता के
लिए भी वे सहजता से उपलब्ध्द रहे। उनका जीवन आज के दंभी, मौकापरस्त और फूटपरस्त नेताओं के लिए एक गहरे सबक
की तरह है। उनके निधन से सादगी, मिलनसारिता और सबके प्रति मैत्री भाव के एक युग की सामाप्ति होगयी है, जिसको पुनर्जीवित करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
उत्तर प्रदेश भाकपा उन्हें श्रध्दा सुमन अर्पित करती है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
गुरुवार, 11 अक्तूबर 2018
at 1:21 pm | 0 comments |
Constitute JPC on Rafel Deal: CPI. CPI will organise protest on ground label.
राफेल डील की JPC से जांच की मांग को लेकर भाकपा का राष्ट्रीय अभियान 24 अक्तूबर को
लखनऊ- 11 अक्तूबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी राफेल डील घोटाले के खुलासे और इसके लिये संयुक्त संसदीय कमेटी ( JPC )
के गठन की मांग को लेकर आगामी 24 अक्तूबर को जिलों जिलों में आन्दोलन करेगी। आन्दोलन
के तहत प्रदर्शन,
धरने,
आम सभाएं और गोष्ठियां आयोजित की जायेंगी।
उपर्युक्त जानकारी यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल के सचिव डा॰ गिरीश
ने यहां जारी एक प्रेस बयान में दी। उन्होने यह भी बताया कि 24 अक्तूबर को ही वामपंथी
दलों द्वारा नई दिल्ली के मावलंकर हाल के कान्स्टीट्यूशन क्लब में राफेल डील की संयुक्त
संसदीय समिति द्वारा जांच कराये जाने की मांग को लेकर संयुक्त कन्वेन्शन का आयोजन किया
जारहा है।
डा॰ गिरीश ने कहाकि राफेल डील का मामला जो पहले
ही काफी गंभीर मामला बन चुका था,
अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केन्द्र सरकार से डील की सारी प्रक्रिया बन्द लिफाफे में
मांग लेने से और भी गंभीर बन गया है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन के अचानक फ्रान्स
जाने से इस पर शंकाओं और रहस्य के बादल और भी गहरा गए हैं। विपक्ष के विरूध्द निरंतर
दहाड़ने वाले प्रधानमंत्री भी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस गंभीर सवाल पर निरंतर चुप्पी
साधे हुये हैं। उनकी यह चुप्पी देश में बेचैनी पैदा कर रही है।
कारण स्पष्ट है कि इस बात के पहले से ही काफी
प्रमाण हैं कि इस घोटाले में भारत सरकार,
प्रधानमंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय पूरी तरह से संलिप्त हैं।
भारत सरकार लगातार कह रही है कि यह डील गोपनीय
समझौते के तहत आता है। लेकिन अब फ्रान्स के राष्ट्रपति कह रहे हैं कि कीमतों की खुली
घोषणा की जासकती है और इस पर उन्हें कोई एतराज नहीं है। फ्रेंच कंपनी के अनुसार मौजूदा
डील की कीमतें पहले से तीन गुना अधिक हैं।
इस डील का सबसे अधिक आपत्तिजनक पहलू यह है कि
भारत में इसके असेंबलिंग का काम विमान निर्माण में दक्षता प्राप्त भारत के सार्वजनिक
क्षेत्र के उपक्रम ‘हिंदुस्तान
ऐरोनौटिक्स लिमिटेड’
( HAL )
को न देकर श्री अनिल अंबानी की नयी नवेली कंपनी को दे दिया गया। फ्रान्स के पूर्व राष्ट्रपति
हौलांडे ने खुलासा किया है कि अनिल अंबानी की कंपनी के नाम का प्रस्ताव किसी अन्य ने
नहीं खुद भारत सरकार ने किया था।
भारत सरकार इसका खंडन करती रही है। लेकिन क्या
सरकार बतायेगी कि क्यों डील पर हस्ताक्षर के वक्त प्रधानमंत्री मोदी एचएएल के प्रतिनिधियों
के बजाय अनिल अंबानी को साथ लेगये। फ्रान्स के अधिकारियों के अनुसार भारत सरकार ने
अनिल अंबानी को रुपये 30 हजार करोड़ का सीधा लाभ पहुंचाया है। यह क्रौनी कैपिटलिज्म
को बढ़ाने वाला नहीं है क्या?
क्या इससे एचएएल को बन्दी और बेरोजगारी के गर्त में नहीं धकेल दिया गया है? सवाल यह भी उठता
है कि इतने महत्वपूर्ण और संवेदनशील समझौते के वक्त प्रधानमंत्री जी रक्षामंत्री और
विदेशमंत्री को साथ क्यों नहीं लेगये?
भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि देश की सुरक्षा और
भारी भ्रष्टाचार से जुड़े इस सवाल की अनदेखी नहीं की जासकती। अतएव भाकपा ने 24 अक्तूबर
को देशव्यापी आन्दोलन का निश्चय किया है। उत्तर प्रदेश में हर स्तर पर अन्य वामदलों
का सहयोग प्राप्त करने का प्रयास भी किया जायेगा। भाकपा ने अपनी समस्त जिला इकाइयों
का आह्वान किया है कि वे इस अभियान से अधिकाधिक जनता को जोड़ें।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा , उत्तर
प्रदेश
बुधवार, 10 अक्तूबर 2018
at 6:49 pm | 0 comments |
CPI, U.P. Condemned Rail exedent in Raibareli
भाकपा ने उत्तर
प्रदेश में हुये रेल हादसों पर गहरी चिंता जताई
मृतक परिवारों और
घायलों को पर्याप्त आर्थिक मदद की मांग की
लखनऊ- 10 अक्टूबर 2018,
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आज उत्तर प्रदेश के रायबरेली में
हुये रेल हादसे पर गहरी चिन्ता और पीड़ा जतायी है. अभी अभी झांसी के निकट मालगाड़ी
के इंजन के पटरी से उतरने की खबर ने और भी चिंता पैदा करती है.
यहां जारी एक प्रेस बयान
में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि आज फिर एक बढ़ा रेल हादसा होगया जिसमें
कई लोगों की जानें चलीं गयीं और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं. दुर्घटना के कई
घंटे बाद भी घटनास्थल पर अफरा तफरी मची है, यहाँ तक कि दुर्घटना में अनाथ हुये
अबोध बच्चे तक वहीं भटक रहे हैं. यह केन्द्र और राज्य सरकार की संवेदनहीनता को
उजागर कर देता है.
उन्होंने कहाकि श्री मोदीजी
के शपथ ग्रहण के दिन से शुरू हुआ भीषण रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला आज उनके शासन के
साढ़े चार साल बाद भी अबाध तरीके से जारी है. इससे रेल यात्रियों में भारी असुरक्षा
व्याप्त है. जो सक्षम हैं और जहां उपलब्धता है लोग ट्रेन के बजाय हवाई जहाज से
यात्रा कर रहे हैं. जो मजबूर हैं वे यमराज की पर्याय बनी रेल से यात्रा करने को
मजबूर हैं.
सुरक्षा के नाम पर किये
जारहे उपायों के नाम पर हर रोज तमाम ट्रेनें घंटों लेट की जारहीं हैं और यात्री
हलकान होरहे हैं. झांसी के पास मालगाड़ी के रेल इंजन के पटरी से उतरने की एक खबर भी
अभी अभी आयी है. इससे समस्या की जटिलता और स्थिति की भयावहता को आसानी से समझा
जासकता है.
भाकपा ने मांग की सरकार रेल
हादसे रोकने के लिये पर्याप्त कारगर कदम उठाये, प्रति मृतक के परिवार को रु. बीस
लाख मुआबजा दे, घायलों का इलाज सक्षम सरकारी अस्पतालों में कराया जाए और गंभीर रूप
से घायलों को दो व कम घायलों को एक लाख रु. का मुआबजा दिया जाए. जो बच्चे अनाथ हुए
हैं उनके लालन पालन और शिक्षा की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार बहन करे.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा , उत्तर प्रदेश
सोमवार, 8 अक्तूबर 2018
at 6:05 pm | 0 comments |
CPI condemned Attack on U.P.and Bihar people in Gujaraat
भाकपा ने गुजरात में उत्तरा प्रदेश और बिहार के लोगों पर हमलों की कड़े
शब्दों में निन्दा की
मोदी- योगी से हमलों की नैतिक जिम्मेदारी लेने और उत्तर प्रदेशवासियों
से क्षमा मांगने की
की मांग
लखनऊ- 8 अक्तूबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने
गुजरात में उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले लोगों
पर होरहे शारीरिक हमलों की कड़े शब्दों में निन्दा की है। पार्टी ने इन हमलों के लिए
मोदी और योगी से नैतिक जिम्मेदारी लेने की मांग की है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य
सचिव डा॰ गिरीश ने कहाकि महाराष्ट्र के बाद अब गुजरात में भी बिहार और उत्तर प्रदेशवासियों
पर गंभीर शारीरिक हमले होरहे हैं। इन हमलों के विरूध्द गुजरात के मुख्यमंत्री को कड़ी
चेतावनी देने के बजाय योगी आदित्यनाथ उनसे वार्ता का नाटक कर रहे हैं और हर मामले की
तरह इन घटनाओं की जिम्मेदारी गुजरात के कथित विकास से ईर्ष्या रखने वालों पर डाल रहे
हैं। पल पल मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने तो इन खतरनाक घटनाओं पर मुह तक
नहीं खोला।
भाकपा ने मोदीजी से सवाल किया कि क्या आपका यही
गुजरात माडल है?
क्या भाजपा और संघ का यही राष्ट्रवाद है?
जिस उत्तर प्रदेश के लोगों ने मोदीजी को भारी बहुमत से वाराणसी से जिताया, भाजपा को उत्तर प्रदेश
से 71 लोकसभा सीटें दीं और उसे प्रदेश में पूर्ण बहुमत देकर भाजपा की सरकार बनायी उस
प्रदेश के निवासियों के साथ मोदी के अपने प्रदेश में ऐसा घिनौना वरताव असहनीय है। समय
आने पर उत्तर प्रदेशवासी इसका जरूर माकूल जबाव देंगे।
भाकपा राज्य सचिव ने गुजरात में रह रहे और अपने
परिश्रम से गुजरात को धनवान बनाने में अतुलनीय योगदान कर रहे हिंदीवासियों को कड़ी सुरक्षा
देने,
उनके इलाज की समुचित व्यवस्था करने तथा उन पर हमले करने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही
करने की मांग की है। उन्होने कहाकि मोदीजी और योगीजी को इन घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी
लेते हुये उत्तर प्रदेशवासियों से माफी मांगनी चाहिये।
डा॰ गिरीश
शनिवार, 29 सितंबर 2018
at 2:59 pm | 0 comments |
CPI condemned encountar of Vivek in Lucknow: Demanded resignation of CM Yogii
विवेक तिवारी हत्याकांड की भाकपा ने की कड़े शब्दों में निन्दा
मुख्यमंत्री से की त्यागपत्र की मांग
लखनऊ- 29 सितंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने गत रात राजधानी लखनऊ में एपल कंपनी के एरिया मैनेजर श्री
विवेक तिवारी की पुलिस द्वारा हत्या की कड़े शब्दों में निन्दा की है। भाकपा ने आरोप
लगाया कि अब तक प्रदेश में कमजोर तबकों के एंकाउंटर किए जारहे थे और योगी सरकार अपनी
पीठ थपथपा रही थी तथा पुलिसजनों को महिमामंडित कर रही थी। इससे बड़े मनोबल वाली पुलिस
ने अब राजधानी में यह जघन्य हत्याकांड कर डाला।
भाकपा राज्य सचिव
डा॰ गिरीश ने कहा कि लोकतन्त्र में ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी जनता द्वारा चुने शासकों
की बनती है। अतएव मुख्यमंत्री के ‘एक्टिविज्म’ मात्र से काम चलने
वाला नहीं। मुख्यमंत्री को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिये और अपने पद से तत्काल
इस्तीफा दे देना चाहिये। उन्होने कहाकि श्री तिवारी के परिवार की मांग पर सीबीआई से
जांच कराया जाना जरूरी है,
पर योगी के सत्ता में रहते निरपेक्ष जांच असंभव है।
भाकपा राज्य सचिव
ने मांग की कि पीड़ित परिवार को रुपये 50 लाख का मुआबजा दिया जाये, म्रतक की पत्नी को
सरकारी नौकरी दी जाये तथा श्री तिवारी की सहकर्मी सना को केस समाप्त होने तक सुरक्षा
दी जाये। डा॰ गिरीश ने कहाकि अब वक्त आगया है कि योगीराज में हुये फर्जी एंकाउंटर्स
और मोब लिंचिंग की घटनाओं की जांच के लिये एक न्यायिक आयोग बैठाया जाये ताकि जिम्मेदारियाँ
निर्धारित की जासकें और दोषियों को जेल के सींखचों के पीछे भेजा जासके।
भाकपा राज्य सचिव
मंडल ने अपनी जिला कमेटियों का आह्वान किया कि वे लखनऊ, अलीगढ़ और प्रदेश
के अन्य हिस्सों में होरहे एंकाउंटर्स,
मोब लिंचिंग की घटनाओं और भाजपा तथा उसकी पुलिस की हिंसा के खिलाफ कल से ही विरोध जताएं
और राज्यपाल के नाम ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपें।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
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