गुरुवार, 10 जून 2010
at 6:50 pm | 0 comments | सत्य नारायण ठाकुर
साढ़े तीन करोड़ लोग दरिद्रता में धकेले गये
राष्ट्रसंघ के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के न्यूयार्क स्थित कार्यालय में भारत सरकार के ही प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर बताया है कि विश्वमंदी के बाद भारत में 33.7 मिलियन (3.37 करोड़) लोगों को दरिद्रता के हालात में धकेल दिया गया है। ऐसा मजदूरों की छंटनी, रोजगार के नुकसान, लोगों की आय में भारी गिरावट के कारण हुआ है।इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने “ग्लोबल इम्प्लायमेंट टेªड 2010” नाम से एक प्रतिवेदन प्रकाशित कर बताया है कि पूरी दुनिया में 2008 के मुकाबले 2009 के अंत तक अनौपचारिक (इनफार्मल) मजदूरों की संख्या में तीन प्रतिशत का इजाफा हुआ है। औपचारिक मजदूरों का मतलब होता है कैजुअल रोजगार, अधिकाधिक काम, कम मजदूरी, खतरनाक कार्यदशा कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं। सर्वविदित है कि आईएलओ ने पिछले 10 वर्षो से “उत्कृष्ट श्रम” (डिसेंट वर्क) बनाने का अभियान चला रखा है। उत्कृष्ट श्रम का मतलब होता है, टिकाऊ रोजगार उन्नत कार्यदशा, सम्मानजनक पारिश्रमिक, टेªड यूनियन अधिकार, बेराजगारी की अवस्था में मुआवजा आदि। किंतु इसके बावजूद इसी अवधि में उत्कृष्ट श्रम में भारी कमी आयी है और अनौपचारिक एवं असुरक्षित मजदूरों की संख्या में बाढ़ आ गयी। आईएलओ प्रतिवेदन 2010 में अनौपचारिक मजदूरों की बढ़ती संख्या का आंकड़ाउ निम्नप्रकार दिया गया है।असुरक्षित रोजगार (प्रतिशत में) 2008 2009दक्षिण एशिया 76.9 78.6अफ्रीका 75.5 79.6ओईसीडी देश 9.7 10.7विश्व स्तर पर 49.5 52.8श्रम मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 के प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक भारत में अनौपचारिक मजदूरों की संख्या कुल श्रम बल का 94.34 प्रतिशत है। जिनमें कृषि पर निर्भर लोगों की संख्या 238 मिलियन (23.8 करोड़) है। श्रमबल का यह हिस्सा तो शत-प्रतिशत कवचविहीन और असुरक्षित है। इन्हें किसी प्रकार का सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है।भारत में सेवाक्षेत्र के रोजगार की बड़ी-बड़ी बातेें की जाती हैं। असंगठित क्षेत्र कमीशन (एनसीईयूएस) के आंकड़ों के मुताबिक आउटसोर्सिंग के माध्यम से पक्का नियमित रोजगार को अनियमित (कैजुअल) बनाया जाता है, जिनमें महिलाओं की संख्या सर्वाधिक है। उत्पादन पद्धति में ठेकाकरण के प्रवेश द्वारा सुरक्षित रोजगार को असुरक्षित बनाया जाता है, जिसके चलते भारी तादात में गरीबी रेखा के नीचे लोगों को धकेल दिया जाता है।एनएसएसओ के (63वें चक्र) आंकड़ों के मुताबिक बगैर लाइसेंस के अनिबंधित प्रतिष्ठानों का प्रतिशत सन् 2000 के 61.3 से बढ़कर 2007 में 63.2 हो गया। सेवा क्षेत्र रोजगार में 3.35 करोड़ लोग कार्यरत हैं।इस तरह नियमित रोजगार में भारी कमी और अनौपचारिक असुरक्षित रोजगार में इजाफा देश की बढ़ती बदहाली और दरिद्रता का सबूत है। ये सरकारी आंकड़े ही उन तमाम सरकारी दावों को बेनकाब करते हैं कि देश का विकास हो रहा है, क्योंकि देश का जीडीपी बढत्र रहा है। अब यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि जीडीपी बढ़ने का आम आदमी की खुशहाली के साथ कोई संबंध नहीं है। यह जीडीपी विकास पूंजीपतियों की तिजोरी भरता है। यही है मनमोहनी अर्थशास्त्र का राज, जो आम आदमी का पेट काटकर मगरमच्छ पूंजीपतियों को मालामाल करता है।
- सत्य नारायण ठाकुर
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