लेकिन सूचना के अधिकार के तहत पार्टियों के आजाने के बाद तो पार्टी की अंदरूनी बहसें , प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया आदि भी उसे मुहय्या करनी पड़ सकती हैं और इसका लाभ धनाढ्य पार्टियाँ उठा सकती हैं . दुसरे पार्टी का ताना-बाना देश भर में फैला है और इसका प्रमुख काम शोषित पीड़ित जनता के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष करना है .इन संघर्षों के लिए स्थानीय जनता ही फण्ड इकठ्ठा करती है और आन्दोलन में मदद करती है . इस सबका लेखा-जोखा रखना न तो संभव है न ही व्यावहारिक . इसकी अधिकतर जिला कमेटियां एवं राज्य कमेटियां हमेशा आर्थिक अभाव से जूझती रहती हैं . उनके लिए हर सुचना मुहय्या कराने हेतु स्टाफ रख पाना भी तब तक संभव नही जब तक वे अन्य दलों की तरह लूट-खसोट मचा कर अपनी तिजोरी न भर लें .
एक मित्र ने ये भी सवाल उठाया की उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं . विनम्रता के साथ कहना चाहूँगा कि भाकपा की पहली सरकार काम.अच्युत मेनन के नेत्रत्व में १९५७ में केरल में बनी थी . आज पूरा देश जानता है कि काम.मेनन और उनके मंत्रियों काम. मेनन और उनके मंत्रियों पर कोई दाग नहीं लगा .संयुक्त मोर्चे की सरकार में हमारे दोनों मंत्रियों गृहमंत्री का.इन्द्रजीत गुप्त और काम.चतुरानन मिश्रा की ईमानदारी और कार्य पध्दति की आज तक चर्चा होती है.दो-दो बार केंद्र सरकार को हमने बाहर से समर्थन दिया .कोई लें-दें का आरोप नहीं लगा .कई राज्य सरकारों में पार्टी भागीदार बनी. सब जगह बेदाग रही.
डॉ.गिरीश
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फेसबुक ग्रुप 'जनहित' पर प्राप्त टिप्पणी :
Atique Ahmed---" saf suthri rajnit sirf vampathi hi kerte hain"
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