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रविवार, 31 मई 2020
at 1:03 pm | 0 comments |
Circular of CPI, UP
भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल
22, कैसर बाग, लखनऊ- 226001
दिनांक- 31
मई 2020
सभी राज्य
काउंसिल सदस्यों, जिला सचिवों,
ब्रांच सचिवों एवं सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिये निर्देश पत्र
( यह पार्टी
का आंतरिक दस्तावेज़ है, इसे केवल वाट्स एप के जरिये पार्टी
साथियों को भेजें। फेसबुक, ब्लाग आदि पर पोस्ट न करें )
प्रिय साथी,
क्रान्तिकारी अभिवादन।
जैसा कि आपको ज्ञात है कि कल 1 जून 2020 को बिजली विभाग
के सभी श्रेणी के अभियन्ता एवं कर्मचारी ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण के उद्देश्य से केन्द्र
सरकार द्वारा लाये जारहे विद्युत संशोधन अधिनियम के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध प्रदर्शन/
काला दिवस का आयोजन करने जा रहे हैं।
इस संबन्ध में व्यापक जानकारी देते हुये राज्य केन्द्र
से कल ही एक बयान जारी किया गया है जो फेसबुक एवं वाट्स एप आदि पर मौजूद है। तमाम लोगों
ने न केवल इसे पसंद किया है अपितु कई पार्टियों के नेताओं ने उसे अपना बयान बना कर
प्रसारित किया है।
कार्यक्रम के तहत बिजली कर्मी कार्यस्थलों पर काली पट्टियाँ
बांधेंगे और अपरान्ह 3: 00 बजे विद्युत परियोजनाओं, विभागीय कार्यालयों तथा विद्युत उपकेन्द्रों पर सभा आदि करेंगे। इस संबन्ध
में स्थानीय स्तर पर समाचार पत्रों में उनकी विज्ञप्तियाँ प्रकाशित होरही हैं।
चूंकि हमने उन्हें समर्थन प्रदान करने का फैसला किया
है अतएव राज्य नेत्रत्व ने गहन विचार करके निम्न तरीके से समर्थन प्रदान करने का निर्णय
लिया है।
1- आपके
समीप जहां भी ( परियोजना, कार्यालय अथवा ऊपकेन्द्र ) विरोध प्रदर्शन होने जा रहा हो वहाँ पहुँच कर साथी
समर्थन व्यक्त करें। पार्टी अथवा जन संगठन के पैड पर टाइप किया हुआ अथवा हाथ से लिखा
समर्थन पत्र वाकायदा उन्हें सौंपें।
2- यदि
आपके समीप कहीं प्रदर्शन की सूचना नहीं है तो किसी भी बिजली केन्द्र या दफ्तर पर कार्य
अवधि में ( आम तौर पर 10 से 5 बजे ) पहुँच कर उपस्थित कर्मचारियों में सबसे वरिष्ठ
को अन्य सबके समक्ष लिखित समर्थन पत्र सौंपे।
3- यदि
आप कई साथी हैं तो झण्डा/ बैनर के साथ भी जा सकते हैं। जरूरी नहीं कि वहां जाकर भाषण
ही देना है। यदि वे भाषण कराते हैं तो अच्छी बात है। अन्यथा अपना परिचय दें, उद्देश्य बतायें और समर्थन पत्र उन्हें सौंप दें।
4- यह
कार्यक्रम जिले में अनेक स्थलों पर किया जा सकता है। जहां भी हमारा एक दो भी साथी है
निकटवर्ती विद्युत गृह पर पहुँच कर समर्थन प्रदान कर सकता है। बेहतर यही होगा कि यह
कार्यक्रम अधिक से अधिक जगह हो।
5- समर्थन
पत्र सौंपते हुये और यदि भाषण देने का अवसर मिलता है तो बोलते हुये फोटो लें और सोशल
मीडिया पर साझा करें। समर्थन पत्र और फोटो स्थानीय समाचार पत्रों को भी सौंपे। अथवा
विज्ञप्ति जारी करें।
6- यदि
संभव हो और पूर्व परिचय हो तो अपने पहुँचने की सूचना कर्मियों को फोन पर पहले से ही
दी जा सकती है।
7- यह
कार्यक्रम सफल और व्यापक तभी होगा जब आप अभी से सभी साथियों को अपने तरीकों से अवगत
कराना शुरू कर देंगे। गाँव, गली, मोहल्लों, कस्बों, नगरों, जिला केन्द्रों
और परियोजना स्थलों तक यह कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है।
8- राज्य
काउंसिल के साथी और जिला सचिव एवं उप सचिव यदि इसे गंभीरता से लें तो यह कार्यक्रम
पार्टी की एक शानदार उपलब्धि बन सकता है।
9- राज्य
कार्यकारिणी के साथी तत्काल अपने लिये आबंटित जिलों से संपर्क करें और उन्हें कार्यक्रम
की सूचना दें व भली प्रकार कार्यक्रम आयोजित करने लिये
प्रेरित करें।
10-
समर्थन पत्र कल जारी किए गये बयान के आधार पर अपनी जरूरत के हिसाब से छोटा बड़ा तैयार
किया जा सकता है। यह बयान वाट्स एप के राज्य काउंसिल ग्रुप में तथा फेसबुक पर उपलब्ध
है। वरिष्ठ साथी कनिष्ठ साथियों की इस सब में मदद करें, गाइड करें।
11-
दैहिक दूरी बनाए रखनी है और मुछीका भी जरूर लगाना है।
आशा ही नहीं पूरा विश्वास है
आप इस कार्यक्रम को भी इस अवधि में अब तक किये गये कार्यक्रमों की तरह गंभीरता से लेंगे।
समय बहुत कम है अतएव बिना विलंब किये तैयारियों में जुट जायेंगे।
पुनः क्रांतिकारी अभिवादन के
साथ।
आपका साथी
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
शनिवार, 30 मई 2020
at 7:52 pm | 0 comments |
ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण की कार्यवाही राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल: विद्युत्कर्मियों के आंदोलन का समर्थन करेगी भाकपा
लखनऊ- 30 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने पावर सैक्टर के निजीकरण के लिये केन्द्र सरकार द्वारा
लाये गये विद्युत संशोधन अधिनियम 2020 के खिलाफ समस्त विद्युत कर्मियों और अभियन्ताओं
द्वारा संयुक्त रूप से 1 जून को देश भर में आयोजित विरोध प्रदर्शन/ काला दिवस को समर्थन
प्रदान किया गया है।
इस संबंध में जारी एक बयान में भाकपा ने कहा कि स्वतन्त्रता
प्राप्ति के बाद खाद्य समस्या से निजात दिलाने को क्रषी क्षेत्र के विकास और सिमटे
औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये आधारभूत ढांचा मजबूत करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र
की नींव रखी गयी थी। ऊर्जा भी एक आधारभूत आवश्यकता
है अतएव देश की पहली संसद ने गहन विचार विमर्श के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने की द्रष्टि
इसे सार्वजनिक क्षेत्र में लाने का निर्णय लिया था। सभी जानते हैं कि ऊर्जा के सार्वजनिक
क्षेत्र में आने के बाद ही देश में ऊर्जा निर्माण और वितरण का ढांचा खड़ा किया गया जिससे
भारत क्रषी उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना और उसने औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक प्रगति की।
मौजूदा सरकार आत्मनिर्भरता के जुमले के तहत ही ऊर्जा
का निजीकरण करने पर आमादा है और कोरोना काल में लाक डाउन की स्थितियों का लाभ उठाते
हुये यह विनाशकारी अधिनियम ले आयी है। इस बिल में देश के बाहर बिजली बेचने का प्राविधान
भी किया गया है ताकि प्रधान मंत्री के कारपोरेट दोस्त उनके निजी पावर हाउस द्वारा निर्मित
बिजली को पाकिस्तान को बेच सके। दिन भर पाकिस्तान विरोध के नाम पर राजनीतिक रोटियाँ
सैंकने वाली भाजपा सरकार को अपने चहेते पूंजीपति के आर्थिक लाभ के लिये पाकिस्तान को
बिजली बेचने से कोई गुरेज नहीं।
भाकपा ने आरोप लगाया कि इस बिल में सब्सिडी एवं क्रास
सब्सिडी खत्म करने, डिस्काम ( वितरण ) को कारपोरेट जगत
के हाथों सौंपने और टैरिफ की नयी व्यवस्था लादने के जनविरोधी प्राविधान किये गए हैं।
इससे आम उपभोक्ताओं खासकर किसानों पर भारी बोझ डाला जायेगा। इसकी शुरूआत बिजली दरों
में बढ़ोत्तरी के साथ पहले ही हो चुकी है। इस बिल के लागू होने के बाद किसानों और आम
उपभोक्ताओं को 10 रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली मिलेगी।
भाकपा ने आरोप लगाया कि निजीकरण के अपने कदम को जायज
ठहराने को भाजपा सरकार बिजली को घाटे में होने और विद्युत चोरी जैसे बहाने बना रही
है। जबकि यह घाटा सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियों की देन है। सच तो यह है कि उत्तर
प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र- यूपीपीसील द्वारा
केन्द्रीय पूल के औसत से कम कीमत पर बिजली तैयार की जाती है। जबकि कारपोरेट घराने अत्यधिक
महंगी दरों पर बिजली बना कर केन्द्रीय पूल को देते हैं।
भाकपा ने कहा कि हम विद्युत कर्मियों के आंदोलन को द्रढता
के साथ समर्थन इसलिये दे रहे हैं कि वह किसानों, आम नागरिकों
यहाँ तक कि उद्योग जगत के हितों में है। उद्योग चलेंगे तो रोजगार भी मिलेंगे। लाक डाउन
के बाद भयावह हुयी बेरोजगारी की समस्या को देखते हुये ये अति आवश्यक है। जबकि ऊर्जा
क्षेत्र का निजीकरण और उसको कार्पोरेट्स को सौंपने की मोदी सरकार की कार्यवाही राष्ट्रीय
हितों के प्रतिकूल है।
भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने सभी किसान संगठनों, मजदूर संगठनों उद्योग व्यापार से जुड़े संगठनों और आम जनता से अपील की कि वे
अपने हितों की रक्षा के लिये विद्युतकर्मियों के प्रतिरोध का समर्थन करें और लाक डाउन
की आड़ में देश की सार्वजनिक संपत्तियों को अपने पूंजीपति समर्थकों को बेचने की केन्द्र
सरकार की साजिश के खिलाफ आवाज बुलंद करें।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शुक्रवार, 29 मई 2020
at 5:57 pm | 0 comments |
तमाम किसानों को नहीं मिल पा रही सम्मान निधि की राशि : भाकपा ने प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री से दिलवाने की मांग की
लखनऊ- 29 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने प्रधानमंत्री जी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
जी को पत्र लिख कर तमाम किसानों को किसान सम्मान निधि उपलब्ध कराने की मांग की है।
अपने इस पत्र में भाकपा ने कहा कि हमारी पार्टी के राज्य
मुख्यालय को उत्तर प्रदेश भर से सूचनायें प्राप्त होरही हैं कि केन्द्र सरकार
द्वारा घोषित और बहु- प्रचारित किसान सम्मान निधि की राशि हजारों किसानों को
प्राप्त नहीं हो पा रही है। कुछ किसानों को इस निधि की एक भी किश्त नहीं मिली जबकि
कुछ को आंशिक रूप से किश्तें मिली हैं।
यह किसानों के साथ भारी अन्याय है। खास कर कोरोना
काल में जबकि किसानों की अर्थव्यवस्था लाक डाउन के चलते पंगु हो गयी है और उन्हें
सरकार की आर्थिक सहायता की बेहद जरूरत है।
इस पत्र के माध्यम से भाकपा ने प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री
जी को स्मरण दिलाया कि आप और आपकी पार्टी के सभी जिम्मेदार अधिकारी बार बार
दोहराते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने कहा था कि उनकी सरकार
द्वारा भेजे गए एक रुपये में से 16 पैसे नीचे तक पहुंच पाते हैं। यह एक सचाई थी
जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सदाशयता से कबूला था।
लेकिन भाकपा, उत्तर प्रदेश इस
बात पर अफसोस जाहिर करती है कि किसानों के लिये बहु- प्रचारित किसान सम्मान निधि
जो रुपये 6 हजार वार्षिक है, आपके लाख दावों के बावजूद उन तक
नहीं पहुंच पा रही है।
उत्तर प्रदेश में किसानों को सम्मान निधि की धनराशि
दिलवाने के लिये कई किसान संगठन आवाज उठा चुके हैं। समाचार पत्र से ज्ञात हुआ कि भाजपा
के अनुसूचित जाति मोर्चा ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर किसानों को सम्मान निधि
प्राप्त न होने की शिकायत की है।
किसान तहसील से लेकर अन्य अधिकारियों के यहां चक्कर
काट रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होरही है। कई जगह से इस हेतु किसानों से
सुविधा शुल्क बसूले जाने की शिकायतें भी मिल रही हैं।
भाकपा ने प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी से मांग
की कि समस्त किसानों की वांच्छित सम्मान निधि की राशि उन्हें तुरन्त दिलायें और कोरोना
काल में इसे बढ़ा कर 12 हजार रुपये एकमुश्त किसानों को दिलवाये जायें। भ्रष्टाचार और
घूसख़ोरी को लगाम लगायें।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
मंगलवार, 26 मई 2020
at 7:17 pm | 0 comments |
चर्चा- नहीं मिला लाक डाउन का लाभ
लाक डाउन के औचित्य- अनौचित्य पर दुनियां में गंभीर
बहस छिड़ी हुयी है। यह बहस भारत में अभी भले ही शैशवकाल में हो पर दुनियां अन्य हिस्सों
में काफी ज़ोर पकड़ चुकी है।
अब ब्रिटेन की स्टैनफोर्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और
नोवेल पुरूस्कार विजेता माइकल लेविट ने लाक डाउन के औचित्य पर कई सवाल खड़े कर दिये
हैं।
उन्होने दावा किया है कि महामारी के रोकने में लाक डाउन
का कोई फायदा नहीं हुआ है। उन्होने कहा कि लोगों को घरों के अन्दर रखने का फैसला विज्ञान
के आधार पर नहीं घवराहट के आधार पर लिया गया।
ब्रिटेन में लगाये गए लाक डाउन के बारे में प्रोफेसर
माइकल लेविट ने कहा कि सरकार ने प्रोफेसर नील फ्रेग्यूसन की जिस माडलिंग के आधार पर
लाक डाउन का फैसला लिया है, उसमें मौत के आंकड़ों को वेवजह 10 से
12 गुना तक ज्यादा बढ़ा कर दिखाया गया है।
उन्होने प्रतिष्ठित अमेरिकी वित्तीय कंपनी जेपी मॉर्गन
की रिपोर्ट को आधार बनाते हुये कहा है कि लाक डाउन न सिर्फ महामारी के प्रसार को कम
करने में असफल रहा बल्कि, उसकी वजह से करोड़ों लोगों की नौकरी
भी छिन गयी।
प्रोफेसर लेविट ने कहा, मुझे लगता है लाक डाउन से जिंदगियां बची नहीं हैं, उलटे
उससे कई जिंदगियां गयी जरूर हैं। इससे कुछ सड़क दुर्घटनायें जरूर रुकी होंगी ( भारत
में तो सड़क दुर्घटनाओं में ही हजारों की मौत हो गयी ), लेकिन
घरेलू हिंसा, तलाक और शराब पीने की आदत चरम पर पहुंच गयी हैं।
साथ ही अन्य बीमारियों से जूझ रहे लोगों को भी इलाज नहीं मिला है।
जेपी मॉर्गन के शोधकर्ता मार्को कोलानोविक ने कहा कि
सरकारों को गलत वैज्ञानिक दस्तावेजों के आधार पर लाक डाउन लगाने के लिये भ्रमित किया
गया। लाक डाउन या तो अक्षम पाया गया या कम प्रभावी पाया गया। लाक डाउन हटाये जाने के
बाद से संक्रमण की दर में गिरावट आयी है।
यह संकेत देता है कि वायरस की अपनी गतिशीलता है, जिस पर लाक डाउन का असर नहीं हुआ।
प्रस्तुति-
डा॰ गिरीश
रविवार, 24 मई 2020
at 6:18 pm | 0 comments |
टिड्डियों की समस्या के खिलाफ युध्द स्तर पर अभियान चलायें केन्द्र और राज्य सरकारें: भाकपा
लखनऊ- 24 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने कहा कि वनस्पति भक्षी कीट टिड्डियों के
कई दल राजस्थान और मध्य प्रदेश में कई दिन पहले दाखिल होचुके हैं और यदि उन्हें तत्काल
विनष्ट नहीं किया गया तो शीघ्र ही वे उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, मेरठ आदि मंडलों के दर्जन भर से अधिक जिलों को अपनी चपेट में ले लेंगे।
इससे फल, सब्जी, चारा आदि की खड़ी फसलें नष्ट हो जायेंगी और पहले ही कोरोना और मौसम की मार
से पीड़ित किसान और तवाह होकर रह जायेंगे। बाग बगीचे और पार्क आदि भी बरवाद होजाएंगे।
इस संकट पर गहरी चिन्ता का इजहार करते हुये भाकपा ने
केन्द्र और राज्य सरकार से उन्हें त्वरित रूप से नष्ट करने की मांग की। एक प्रेस बयान
में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को हवाई जहाज और
हेलिकोप्टर्स से कीट नाशक छिड़क कर आसमान में ही इसे नष्ट कर देना चाहिये। जमीन पर भी
फायर ब्रिगेड आदि को तैनात किया जाना चाहिये।
उन्होने कहा कि यदि सरकार ने उच्च तकनीकी और साधनों
का प्रयोग किया होता तो टिड्डियों को कई दिन पहले ही नष्ट किया जा सकता था। ये विमान
और हेलिकोप्टर्स महानुभावों की हवाखोरी के लिये ही हैं, या आपदा नियंत्रण के लिये भी? भाकपा ने सवाल किया है।
भाकपा ने कहा आदेश निर्गत कर दायित्व की इतिश्री करने
वाली राज्य सरकार ने कई इस संबंध में भी कई आदेश जारी कर दिये हैं। पर कई जिलों के
प्रशासन ने टिड्डियों से निपटने की ज़िम्मेदारी किसानों पर ही डाल दी और उन्हें थाली
बेला बजाने जैसे कई टोटके बता कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। यह किसान और जनता
के साथ छलावा है।
डा॰ गिरीश ने कहा कि यह सरकार समस्याओं के निदान से
ज्यादा उनके सांप्रदाईकरण और राजनीतिकरण में जुटी रहती हैं और उसके बुरे परिणाम जनता
को भुगतने पड़ते हैं। वे कोरोना संकट को जमातियों के मत्थे मढ़ मगरूर बने रहे और वह विकराल
रूप में देश भर में फ़ैल गया। अब वे टिड्डियों को पाकिस्तानी बता कर मगरूर बने हुये
हैं और टिड्डियाँ राजस्थान, मध्य प्रदेश पार कर यूपी तक आने वाली
हैं।
उन्होने कहा जब सारे तकनीकी संसाधन सरकार के पास उपलब्ध
हैं तो इस समस्या को किसानों के मत्थे मढ़ देना उचित नहीं।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शुक्रवार, 22 मई 2020
at 7:37 pm | 0 comments |
Left With Working Class
उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों के शीर्ष नेत्रत्व ने-
मजदूर संगठनों
के प्रतिरोध प्रदर्शन की सफलता के लिये उन्हें बधाई दी
प्रतिरोध
प्रदर्शनों में बाधा उत्पन्न करने पर केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया
कहा- अन्याय
के खिलाफ किसी भी प्रतिरोध की आवाज को दबाना चाहती हैं भाजपा सरकारें
अंफन तूफान
से जन- धन हानि पर जताया दुख: राहत और पुनर्वास के लिये केन्द्र से पर्याप्त धन आबंटन
की मांग की
लखनऊ- 22 मई 2020, उत्तर प्रदेश
और देश के श्रमिक संगठनों के आह्वान पर प्रतिरोध दिवस पर हजारों हजार श्रमिकों के लाकडाउन
की पाबंदियों के बावजूद प्रतिरोध दर्ज कराने पर उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों ने उन्हें
बधाई दी है।
वामपंथी दलों के राज्य नेत्रत्व ने उत्तर प्रदेश के
वामदलों क्रमशः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी- मार्क्सवादी, भाकपा- माले और फारबर्ड ब्लाक के प्रदेश
भर के कार्यकर्ताओं को भी बधाई दी जिन्होने मजदूर वर्ग के आंदोलन के समर्थन में जगह-
जगह धरने दिये और मजदूरों के ऊपर सरकारों द्वारा लादी गयी विपत्ति के खिलाफ आवाज बुलंद
की।
वामपंथी दलों ने आरोप लगाया कि लाक डाउन की आड़ में केंद्र
और राज्य सरकार अन्याय के खिलाफ प्रतिकार की आवाज को दबाने पर उतारू हैं। दिल्ली में
राजघाट पर शांतिपूर्ण प्रतिरोध कर रहे मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों को गिरफ्तार कर
लिया गया। लखनऊ में गांधी प्रतिमा की ओर धरना देने जारहे श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों
को दारुल शफ़ा के समक्ष रोक लिया और वहीं पर ज्ञापन देने को बाध्य किया। अन्य जगह भी
सरकार के निर्देश पर ट्रेड यूनियनों और वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं को स्थानीय प्रशासन
ने एक दिन पहले से ही धमकाना शुरू कर दिया था।
आज फिर सरकार ने उत्तर प्रदेश में 6 माह के लिए किसी
भी किस्म की हड़ताल पर पाबन्दी लगा दी। श्रम कानूनों को तीन साल के लिये सस्पेंड करने
के बाद मेहनतकश तबकों के खिलाफ यह एक और बड़ा हमला है। उत्तर प्रदेश में जनवादी गतिविधियों
को कुचलने का प्रयास गत दिसंबर से ही किया जाता रहा है और सीएए के विरोध में खड़े वामपंथी
दलों व अन्य को गिरफ्तार किया गया अथवा गिरफ्तारी की कोशिशें की गईं। अब फिर बहाने
लगा कर एक विपक्षी दल के नेता को गिरफ्तार किया गया है। वामपंथी दल इस सबकी कड़े से
कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं।
संयुक्त बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा॰ गिरीश, भाकपा- मार्क्सवादी के राज्य सचिव डा॰ हीरालाल यादव, भाकपा- माले के राज्य सचिव सुधाकर यादय एवं फारबर्ड ब्लाक के प्रदेश संयोजक
अभिनव कुशवाहा ने अंफान से बंगाल और उड़ीसा में जन और धन हानि की तवाही पर गहरा दुख
व्यक्त किया है और राहत और पुनर्वास के लिये केन्द्र सरकार से अधिक से अधिक धनराशि
इन राज्यों को मुहैया कराने की मांग की है।
जारी द्वारा-
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
मंगलवार, 19 मई 2020
at 7:15 pm | 0 comments |
CPI Protest in UP
मजदूरों को
राहत पहुंचाने जैसे सवालों पर भाकपा ने प्रदर्शन आयोजित किये
महामहिम राष्ट्रपति
और राज्यपाल उ॰ प्र॰ को संबोधित ज्ञापन प्रेषित किये
22 मई को
मजदूरों के संयुक्त प्रतिरोध का समर्थन करेगी भाकपा
लखनऊ- 19 मई 2020, अनियोजित
लाक डाउन के चलते मजदूरों को मौत के मुंह में धकेल दिये जाने, उन्हें घरों तक पहुंचाने में केन्द्र और राज्य सरकार की विफलताओं, श्रम क़ानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव, रोजगार और
राशन उपलब्ध कराने में सरकारों की घनघोर असफलता, किसानों की
फसल की बरवादी और बिकवाली में उसे राम भरोसे छोड़ देने, दलितों, अल्पसंख्यकों पर होरहे उत्पीड़न और कानून- व्यवस्था में गिरावट, घोषित सरकारी योजनाओं की राहत राशि सभी को न देने,
पेट्रोल डीजल की कीमतों में अत्यधिक बढ़ोत्तरी, केन्द्र सरकार
द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज में देश और जनता के साथ की गयी धोखाधड़ी, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने तथा कोरोना की विपत्ति के दौर में भी
सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने आदि के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केन्द्रीय
आह्वान पर आज समूचे उत्तर प्रदेश में धरने एवं प्रदर्शन किये गये।
यद्यपि एक सप्ताह पूर्व 11 मई को भी भाकपा ने वामदलों
के साथ मिल कर प्रदेशव्यापी प्रदर्शन किये थे और केंद्रीय नेत्रत्व का आह्वान मात्र
4 दिन पूर्व हुआ था फिर भी आज भाकपा ने राज्य के अनेक जिलों में सफल प्रतिरोध प्रदर्शन
किये और महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन स्थानीय अधिकारियों को
सौंपे अथवा ई मेल के जरिये भेजे गये। कई जिलों में कई कई स्थानों पर प्रतिरोध प्रदर्शन
हुये।
राज्य मुख्यालय लखनऊ के अलाबा अभी तक गाजियाबाद, नोएडा, कानपुर, अयोध्या, बाराबंकी, झांसी, मथुरा, गाजीपुर, जौनपुर, चित्रकूट, प्रतापगढ़, गोंडा, निजामाबाद (आजमगढ़
), उरई, शामली,
महाराजगंज, कानपुर देहात, इलाहाबाद, सोनभद्र, बांदा, बहराइच आदि जनपदों
से प्रतिरोध दिवस के आयोजन की खबरें अब तक प्राप्त होचुकी हैं।
भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने मजदूरों, किसानों और अवाम की आवाज उठाने के समस्त कार्यकर्ताओं को पार्टी की राज्य
काउंसिल की ओर से बधाई दी है। साथ ही केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त तत्वावधान
में 22 मई को आयोजित मजदूरों के प्रतिरोध प्रदर्शन को भाकपा की
ओर से सक्रिय समर्थन प्रदान करने का आह्वान किया है।
प्रस्तुत ज्ञापन में मांग की गयी है कि प्रवासी
मजदूरों को घरों तक पहुंचाने के लिए और अधिक ट्रेन और बसें चलायी जायें जिनमें
उन्हें खाना और पानी की सुविधा दी जाये। पहले से ही घरों को निकल पड़े मजदूरों को
रोकने के बजाय उन्हें सम्मानपूर्वक वाहनों में बैठा कर घर पहुंचाया जाये। उन पर
किसी भी तरह का अत्याचार ना किया जाये। सभी मजदूरों को 10 हजार रुपये बतौर खर्च/
यात्रा खर्च दिये जायें। अवसाद से आत्महत्याओं अथवा दुर्घटनाओं में होरही मौतौं पर
रु॰ 20 लाख की मदद और घायलों को रु॰ 5 लाख दिये जायें।
मनरेगा को कमजोर नहीं किया जाये। हर व्यक्ति को
पूर्ण रोजगार देना सुनिश्चित किया जाये। मनरेगा के तहत काम के दिन बढ़ाए जायें और
प्रत्येक परिवार के सभी वयस्क सदस्यों को काम और समय पर भुगतान दिया जाये। शहरी
क्षेत्रों में रोजगार और आवास की गारंटी की जाये। राशन देने के लिये किसी भी तरह की
शर्त ना रखी जाये। हर एक परिवार को हर माह 35 किलो खाद्यान्न निशुल्क देना
सुनिश्चित किया जाये।
श्रम कानून के साथ कोई छेड़छाड़ ना की जाये। उत्तर
प्रदेश सरकार द्वारा 3 सालों के लिये श्रम क़ानूनों को रद्द करने के फैसले को रद्द
किया जाये। सभी संगठित और असंगठित, सरकारी और गैर
सरकारी विभागों/ उद्योगों में संविदा अथवा गैर संविदा कर्मियों व अन्य के बकाया
वेतनों का भुगतान सुनिश्चित किया जाये। ग्रामीण
क्षेत्रों के गरीब और छोटे किसानों के मुद्दों का उचित निवारण किया जाये। मौसम और
लाक डाउन की मार से प्रभावित किसानों के अनाज, फल, सब्जी और दूध को उचित कीमतों पर खरीदना सुनिश्चित किया जाये। किसानों को
12 हजार रुपये की तत्काल एकमुश्त सहायता दी जाये।
बुजुर्गों, विधवाओं और
शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिये पेंशन और दूसरी सामाजिक सुरक्षायें
सुनिश्चित की जायें और बढ़ाई जायें। कैंसर, टीवी, हार्ट, किडनी जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज की फौरन
व्यवस्था की जाये। गर्भवती महिलाओं के लिये घरों पर कंसल्टेशन और प्रसूति की
व्यवस्था की जाये। सभी की कोरोना जांच और इलाज मुफ्त कराये जायें। नोडल सेंटर, कोरोंटाइन केन्द्र, आइसोलेशन केन्द्र एवं अस्पतालों
में अव्यवस्थाएं दूर कर ताजा और ससमय भोजन, पानी, दवाई और सफाई आदि की व्यवस्था की जाये।
आर्थिक राहत पैकेज आसमान में ही लटक कर रह गया है।
इसमें जरूरतमंदों के लिये कुछ नहीं है। लोगों को सीधे राहत दी जाये। आत्मनिर्भरता
के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र को बेचना बंद किया जाये। लाक डाउन के अनुपालन के नाम
पर लोगों की प्रताड़ना, पिटाई,
जबरिया बसूली, चालान और जेल भेजना बन्द किया जाये। दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों पर
जुल्म बढ़ गये हैं। उनकी सुरक्षा की जाये। कानून व्यवस्था ठीक की जाये।
विश्व बाज़ार में कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद
केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने पेट्रौल डीजल के दामों में भारी व्रद्धि कर
दी है जिससे महंगाई और मंदी बढ़ेगी। उन्हें फौरन वापस लिया जाये।
कोरोना की महाविपत्ति के दौर में भी केन्द्र और
उत्तर प्रदेश सरकार न केवल राजनीति कर रही हैं, अपितु
सांप्रदायिक विद्वेष भी फैला रही हैं। इससे कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर होरही है।
इन पर फौरन लगाम लगायी जाये।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
रविवार, 17 मई 2020
at 1:44 pm | 0 comments |
Nation Wise Protest of CPI on 19 May
लोगों को असहायता और निराशा के हाथों बरवाद होने को
छोड़ा नहीं जा सकता
सरकार की
अकर्मण्यता के खिलाफ देशव्यापी प्रतिरोध दिवस आयोजित करेगी भाकपा
लखनऊ- 17 मई, 2020, अनियोजित लाक डाउन के कारण मजदूरों को मौत के मुंह में धकेलने, उन्हें घरों तक पहुंचाने
में केन्द्र और राज्य सरकारों की असफलता, श्रम क़ानूनों में मजदूर
विरोधी बदलाव, रोजगार और राशन उपलब्ध कराने में सरकारों की असफलता, किसानों की फसल की बरवादी और विकवाली में उसे राम भरोसे छोड़ देने, घोषित सरकारी योजनाओं की मदें सभी तक नहीं पहुँचने,
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी तथा आर्थिक पैकेज में आम जनता
के साथ धोखाधड़ी आदि के विरोध में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 19 मई को देश भर में प्रतिरोध
दिवस का आयोजन करेगी।
इस दिन जहां लाक डाउन की बन्दिशें नहीं हैं वहां श्रम
कार्यालयों, जिलाधिकारी अथवा तहसील कार्यालयों पर पहुंच कर प्रतिरोध
दर्ज कराया जायेगा और ज्ञापन दिये जायेंगे। जहां लाक डाउन प्रभावी होगा वहां पार्टी
कार्यालयों अथवा आवासों पर पार्टी कार्यकर्ता धरने, भूख हड़ताल
आदि आयोजित करेंगे। सभी काली पट्टियाँ बांधेंगे, पार्टी के झंडे-
बैनरों- पट्टिकाओं के अतिरिक्त काले झंडे लगायेंगे
तथा महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन भेजे अथवा सौंपे जायेंगे।
सभी को दैहिक दूरी का पालन करना है और मुछीका लगाये
रहना है।
उपर्युक्त के संबंध में भाकपा के राज्य सचिव एवं पार्टी
की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा॰ गिरीश ने कहाकि मेहनतकश तबकों और वाम- लोकतान्त्रिक
शक्तियों के आंदोलन के दबाव में यूपी में काम के घंटे पुनः आठ कराने और मजदूरों को
घर तक पहुंचाने को कदम उठाने को सरकारों को बाध्य करने में हम कामयाब रहे हैं, लेकिन अभी भी सरकार द्वारा थोपी गयी आफतों के पहाड़ से हमें जूझना है। इसीलिए
11 मई को वामपंथी दलों द्वारा उत्तर प्रदेश में तथा भाकपा द्वारा अन्य कई राज्यों में
किये गए आंदोलन के बाद अब भाकपा ने पूरे देश में आंदोलन का बिगुल फूंका है।
भाकपा ने आरोप लगाया कि केन्द्र और राज्य सरकारों की
अकर्मण्यता और उपेक्षा के चलते देश भर में लाखों लाख मजदूर काम- धंधा छिन जाने से दाने
दाने को मुंहताज होगए हैं। उनके पास खाने को नहीं है। अपने घर पहुँचने के लिये पैसे
नहीं हैं। अपनी और अपने परिवार की गुजर बसर करना उन्हें मुश्किल होरहा है। इस सबके
बावजूद सरकार उनकी बदहाली को नजरंदाज कर रही है। तरह तरह की पाबन्दियाँ उन पर थोपी
जा रही हैं जिनके चलते लगभग 400 लोग दुर्घटनाओ आदि में मारे
जा चुके हैं।
प्रधानमंत्री की ओर से की गयी 20 लाख करोड़ रुपये के
पैकेज की घोषणा और वित्त मंत्री द्वारा इसके खर्च का दिया गया धारावाहिक विवरण राजनीतिक
लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं है। उनके पास कोरोना से पैदा हुये संकट से निपटने के लिये
कोई ठोस योजना नहीं है। मोदी सरकार की नव- उदारवादी नीतियों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था
बीमार पड़ गयी है और वह डूब रही है। कोरोना के संकट ने इसे और बढ़ा दिया है। पूंजीवादी
और कार्पोरेटपरस्त सरकार का नेत्रत्व बिगड़ी अर्थव्यवस्था का भार मेहनतकशों और आम जनता
के कंधों पर लाद देना चाहता है। श्रम क़ानूनों, वेतन और भत्तों में
कटौती आदि सरकार की इसी मंशा के सबूत हैं।
ऐसे हालातों में लोगों को असहायता और निराशा के हालातों
में नहीं छोड़ा जा सकता। इसीलिए भाकपा ने 19 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का फैसला
लिया है। पार्टी समर्थकों और सभी जनभक्त लोगों से भी अपने अपने तरीकों से इस आंदोलन
में भागीदारी की अपील की है।
भाकपा के राज्य सह सचिव का॰ अरविन्दराज स्वरूप एवं का॰
इम्तियाज़ अहमद ने भाकपा के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपील की है कि आम जनता की
आवाज बुलंद करने को मुस्तैदी से जुट जायें।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शनिवार, 16 मई 2020
at 7:01 pm | 0 comments |
मजदूरों की लगातार हादसों में मौतों पर भाकपा ने जताया दुख। मजदूरों को घरों तक पहुंचाओ: भाकपा
लखनऊ- 16 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी, उत्तर प्रदेश के सचिव मण्डल ने आज औरैया में 24 मजदूरों
और मध्य प्रदेश के सागर में उत्तर प्रदेश के ही 6 मजदूरों की सड़क दुर्घटनाओं में म्रत्यु
पर गहरी पीड़ा जतायी है। पार्टी ने दोनों दुर्घटनाओं में दर्जनों घायलों के शीघ्र स्वस्थ
होने की कामना की है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा॰
गिरीश ने कहा कि मजदूर वर्ग के प्रति देश प्रदेश की सरकारों ने असहनीय असहिष्णुता का
प्रदर्शन किया है। अनियोजित लाक डाउन की यातनाओं ने उन्हें घर लौटने को मजबूर किया।
जब राजसत्ता और व्यवस्था उन्हें घर लौटने के साधन सुलभ न करा सकी तो वे जान- जोखिम
में डाल कर सड़कों पर निकल पड़े।
आज फिर 24+ 6 मौतों ने हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर
दिया है। पर केन्द्र सरकार दुख व्यक्त करने के ट्वीट तक और राज्य सरकार ‘कड़े निर्देश दे दिये गए हैं’ के बयान तक सीमित होकर रह
गयी हैं। जितने लोग देश- प्रदेश में कोरोना से म्रत हुये हैं उससे कहीं ज्यादा रास्तों
में दम तोड़ चुके हैं। सरकारों के सिवा इसके लिये कौन जिम्मेदार है?
लोग घरों को निकल पड़े हैं, निकल रहे हैं और आगे भी निकलेंगे। अब इस प्रवाह को रोक पाना असंभव है। रोकने
के प्रयास आत्मघाती ही साबित होंगे। अब यही संभव है कि केन्द्र और राज्य सरकारें मिल
कर ब्रहद योजना बनायें। जो जहां है, जिस प्रांत में है, जिस स्थान पर है, उसे वहां से वाहनों में बैठा कर रेलवे
स्टेशनों और मुख्य बस अड्डों पर लाया जाये और वहाँ से भोजन पानी के साथ उन्हें सकुशल
घरों तक पहुंचाया जाये।
भाकपा ने सरकार को एक के बाद एक सुझाव दिये, जिन्हें यदि लागू किया गया होता तो जान माल की इस भयावह बरवादी से बचा जा
सकता था। पर सरकार औरों की सुनती नहीं और खुद कुछ करती नहीं। असफल हो चुकी सरकार नैतिक
ज़िम्मेदारी लेने तक को तैयार नहीं। यह स्थिति अधिक समय तक चली तो देश प्रदेश के जनजीवन
के लिये घातक होगी।
भाकपा दुर्घटनाओं, भूख, प्यास से राहों में म्रतकों के परिवारों को रु॰ 20 लाख की आर्थिक मदद और सभी
घायलों को रु॰ 5 लाख दिये जाने की मांग करती है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शुक्रवार, 15 मई 2020
at 6:03 pm | 0 comments |
हादसों और दुर्घटनाओं से मजदूरों की मौतों से भाकपा व्यथित : सड़क पर आये एक एक मजदूर को घर तक पहुंचाए सरकार
लखनऊ- 15 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने मुजफ्फर नगर और मध्य प्रदेश के गुना में कल सड़क हादसों
में 14 मजदूरों की दर्दनाक मौत पर गहरा दुख व्यक्त किया है। भाकपा ने आज फिर उत्तर
प्रदेश के ही विभिन्न स्थानों पर सड़क हादसों में मजदूरों की मौतों की खबरों को अंतस्तल
तक हिला देने वाली बताया है। भाकपा ने इन हादसों के लिये सीधे राज्य और केन्द्र सरकार
को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी ने केन्द्र और राज्य सरकार के मुखियाओं से इन मौतों
की नैतिक ज़िम्मेदारी लेने की मांग की है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश
ने कहा कि अनियोजित लाक डाउन में मिल रही यातनाओं से पीड़ित और उन्हें समय पर घरों तक
पहुंचाने में केन्द्र और राज्य सरकारों की असफलताओं से प्रवासी मजदूरों का धैर्य टूट
चुका है और वे अपनी जान हथेली पर रख कर घरों को निकल रहे हैं। अब सड़कों पर न निकलने
की सत्ताधारियों की अपील और रेल- बसों से पहुंचाने के उनके बयानों का उनके लिये कोई
महत्व नहीं रह गया है।
‘अब मरता क्या न करता’ की स्थिति
में निकले देश के इन कर्णधारों और पूंजी के निर्माताओं को उनके रास्तों में रोका जारहा
है, उनकी बची खुची पूंजी उनसे छीनी जारही है, उन्हें लाठी- डंडों से खदेड़ा जा रहा है, अपने खर्चे
से जुटाये यातायात के साधन उनसे छीने जारहे हैं, उन्हें शारीरिक
और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जारहा है॰
उनमें से अनेक भूख, प्यास, बीमारी और थकान से जानें गंवा चुके हैं। हर रोज तमाम लोग सड़क दुर्घटनाओं में
जान गंवा रहे हैं। हर दर्दनाक मंजर पर उत्तर प्रदेश सरकार का एक जैसा बयान- “ मुख्यमंत्री
ने घटना का संज्ञान लिया है, घटना पर दुख व्यक्त किया है, घटना की जांच के आदेश दे दिये गये हैं, म्रतको व घायलों
को मुआबजे का ऐलान कर दिया गया है” आदि अब पीड़ितों को ही नहीं हम सबको मुंह चिड़ाने
लगा है। गत तीन सालों में हुयी हजारों घटनाओं की कथित जांच का परिणाम भी आज तक अज्ञात
है।
भाकपा साफ़तौर पर कहना चाहती है कि सड़कों पर निकल पड़े
इन मजबूर मजदूरों को अब सत्ताधारियों के उपदेशों और सहानुभूति की जरूरत नहीं है। उनकी
पहली जरूरत है उन्हें जो जहां है वहाँ से पिक अप ( Pick Up ) कर
घरों तक पहुंचाया जाये। इन तीन सालों में तीन तीन कांबड़ यात्राओं और अर्ध कुंभ को, कुंभ से भी बेहतर तरीके से आयोजित करने का श्रेय उत्तर प्रदेश सरकार लेती
रही है। फिर इन कुछेक लाख मजदूरों की यह जानलेवा उपेक्षा किसी की भी समझ से परे है।
इन असहाय मजदूरों की मौतों पर मुआबजे की मांग तो की
जाती रही है और की जानी ही चाहिये, लेकिन आज हम सरकारों
से एक ही मांग कर रहे हैं कि- ‘जो भी मजदूर सड़क पर दिखे उसे उचित
संसाधन से सुरक्षित घर पहुंचाया जाये। यह सरकार का कर्तव्य है और नैतिक दायित्व भी।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
सोमवार, 11 मई 2020
at 5:15 pm | 0 comments |
Agitation Of Left Parties of U.P.
श्रमिकों
पर टूट रहे सरकारों के कहर और कोरोना के नाम पर तानाशाही लादने के खिलाफ वामपंथी दलों
ने विरोध का बिगुल फूंका
सैकड़ों स्थानों
पर अनशन किया गया, धरने दिये गये और ज्ञापन सौंपे गये
लखनऊ- 11 मई 2020, कोरोना से
निपटने में केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार की अदूरदर्शिता, लाक
डाउन को मनमाने और बचकाने तरीकों से लागू करने से देश और उत्तर प्रदेश की जनता का
बहुमत संकटों से घिर गया है। मजदूरों और प्रवासी मजदूरों की तो सरकारों ने दुर्गति
बना कर रख दी है। आम जनता को इस संकट से उबारने के लिये संजीदा प्रयास करने के
बजाय सरकारें संकट का भार आमजनों खास कर मजदूरों पर थोप रही हैं। अफसोस है कि इस
संकट काल में भी भाजपा और उसकी सरकारें सांप्रदायिक कार्ड खेलने से बाज नहीं
आरहीं। इससे संकट और भी गहरा होगया है। पुलिस का कहीं कहीं मानवीय चेहरा दिख जाता
है परंतु शेष मामलों में वह दमन की पर्याय बन कर रह गयी है।
वामपंथी दल स्पष्टरूप से कहना चाहते हैं कि मजदूरों, किसानों, लघु उद्यमियों, व्यापारियों
और आमजन को तत्काल कदम उठा कर संकट से निकाला न गया तो देश और उत्तर प्रदेश की
जनता को अभूतपूर्व हानि उठानी पड़ सकती है। अतएव इसी परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश
के वामपंथी दलों- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी- मार्क्सवादी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- माले एवं आल
इंडिया फारबर्ड ब्लाक के हजारों कार्यकर्ताओं ने आज उपर्युक्त तबकों को राहत
प्रदान करने की मांग को लेकर अपने कार्यालयों, घरों, तहसीलों एवं जिलाधिकारी कार्यालयों पर सैकड़ो स्थानों पर अनशन अथवा धरने
आयोजित किये।
यद्यपि वामदलों ने कार्यालयों अथवा घरों पर ही धरने
अथवा भूख हड़ताल का आह्वान किया था लेकिन कई जगह उत्साही साथियों ने कलक्ट्रेट, तहसील अथवा खंड विकास कार्यालयों पर प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपे। प्रदेश में
वामदलों के आह्वान पर कई स्वतंत्र वामपंथियों, ट्रेड यूनियनों
और महिला संगठनों ने भी मेहनतकश तबकों और देश हित में अपनी आवाज बुलंद की। एक एक जिले
में कई कई जगह धरने/ अनशन किये गये। कई जगह अधिकारियों से मिल कर ज्ञापन दिये गये तो
कई जगह ईमेल के जरिये ज्ञापन राष्ट्रपति और राज्यपाल को भेजे गये।
सभी 15 सूत्रीय ज्ञापनों में कहा गया है कि केन्द्र
सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार ने पहले से महंगे चल रहे डीजल और पेट्रोल की
कीमतों में भारी व्रद्धि कर दी है, जिसका उद्योग, व्यापार और खेती पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और महंगाई और भी बढ़ जायेगी। अतएव
केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा की गयी व्रद्धियां तत्काल वापस ली जायें। कम से कम
आधी की जायेँ।
ज्ञापनों में कहा गया महामारी का सारा बोझ आम जनता
पर डालना बन्द किया जाये और अमीरों पर अधिक टैक्स लगाया जाये।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों को 3 साल
के लिये रद्द करने और काम के घंटे बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। यह लाक डाउन से
लुटे-पिटे मजदूरों पर आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा हमला है। इन कदमों को अविलंब वापस
लिया जाये।
न्यूनतम वेतन रु॰ 21 हजार किया जाये। सभी संगठित और
असंगठित, सरकारी और गैर सरकारी विभागों/ उद्यमों में संविदा अथवा अन्य श्रमिकों के
बकाया वेतनों का भुगतान सुनिश्चित किया जाये। समस्त प्रवासी मजदूरों की घर वापसी
सरकारी खर्चे पर शीघ्र से शीघ्र सुनिश्चित की जाये। रास्ते में उनका उत्पीड़न रोका
जाये। हर एक श्रमिक को रु॰ 7500 की एकमुश्त मदद तत्काल दी जाये।
राशनकार्ड अथवा गैर राशनकार्डधारी हर परिवार को 35
किलो खाद्यान्न हर माह निशुल्क देना सुनिश्चित किया जाये। हर व्यक्ति को पूर्ण
रोजगार सुनिश्चित किया जाये। कोरोना वायरस से लड़ने के नाम पर जनता को भयाक्रांत और
दंडित करना बन्द किया जाये।
कैंसर, टीवी, हार्ट, किडनी जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज की फौरन
व्यवस्था की जाये। अस्पताल खोले जायें, सभी का इलाज
सुनिश्चित किया जाये। गर्भवती महिलाओं के लिये घर पर कंसल्टेशन और प्रसूति की
व्यवस्था की जाये।
मौसम की मार और लाक डाउन के प्रहार से व्यथित किसानों
के उत्पाद- अनाज, सब्जी, फल, दूध सब्जी आदि को उचित कीमत पर खरीदना सुनिश्चित किया जाये। अभी तक उत्तर
प्रदेश में गेहूं खरीद 25% भी नहीं हुयी। मौसम से प्रभावित गेहूं की भी खरीद की
जाये। प्रत्येक खरीद का तत्काल भुगतान किया जाये। किसानों को रु॰ 12 हजार की
एकमुश्त मदद की जाये। मंडी कानून में किसान विरोधी संशोधन वापस लिये जायें। आँधी-
तूफान से प्रतिदिन होरही जन और धन हानि की आर्थिक भरपाई की जाये।
कुटीर, लघु, मध्यम उद्योगों और छोटे व्यापारियों के लिये राहत पैकेज की घोषणा की
जाये। कोरोना की बीमारी के अलाबा लाक डाउन की विभिन्न कमजोरियों से अब तक लगभग 450
लोगों की जानें जा चुकी हैं। इन अवसाद, अभाव से पीड़ित
आत्महत्या करने वालों, रास्ते में दम तोड़ने वालों और
दुर्घटनाओं में म्रत श्रमिकों के परिवारों को रु॰ 50 लाख की आर्थिक सहायता दी
जाये।
सभी की कोरोना जांच मुफ्त कराई जाये। मुफ्त
चिकित्सा कराई जाये। कोरोंटाइन और आइसोलेशन केन्द्रों की स्थितियों में सुधार किया
जाये। जांच और इलाज में प्रशासनिक ढील बंद की जाये।
दलितों, अल्पसंख्यकों और
महिलाओं का उत्पीड़न और उन पर हिंसा रोकी जाये। लाक डाउन के नाम पर नागरिकों को जेल
भेजना, पीटना, वाहनों का चालान काटना
और जुर्माना बसूलना बंद किया जाये।
कोरोना की इस महा विपत्ति के समय भी भाजपा, संघ और सरकार द्वारा सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति बन्द की जाये। कोरोना
की आड़ में तानाशाही लादने को नए नये नये कानून थोपना बन्द किया जाये।
कोरोना से मुक़ाबले के लिये सभी दलों की बैठकें हर
स्तर पर बुलाई जायेँ और संयुक्त समितियां बनायी जायें। राजनैतिक गतिविधियों पर
थोपी हुयी पाबंदियां फौरन हटायी जायें।
भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश, भाकपा- मार्क्सवादी के राज्य सचिव
का॰ हीरा लाल यादव, भाकपा- माले के राज्य सचिव का॰ सुधाकर यादव
एवं फारबर्ड ब्लाक के राज्य संयोजक अभिनव कुशवाहा ने आज के महत्वपूर्ण आंदोलन को सफल
बनाने वाले वामपंथी कार्कर्ताओं और समर्थकों को बधाई दी है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शुक्रवार, 8 मई 2020
at 7:07 pm | 0 comments |
16 मजदूरों की मौत पर भाकपा ने जताया रोष
लखनऊ- 8 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आज औरंगाबाद में रेलवे ट्रैक पर मालगाड़ी से कुचल कर 16
मजदूरों की मौत पर गहरा अफसोस, पीड़ा और आक्रोश का इजहार किया
है। पार्टी ने कल विशाखापत्तनम में एक फैक्टरी में गैस रिसाब से हुयी 12 श्रमिकों और
नागरिकों की मौत पर भी गहरा दुख व्यक्त किया है। पार्टी ने रेल से कुचल कर म्रत मजदूरों
के परिवार को 50 लाख रु॰ प्रति म्रतक राहत राशि देने की मांग की।
यहां जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा॰
गिरीश ने कहाकि कोरोना संकट के शुरुआत से ही मजदूरों के प्रति सरकार का रवैया बहुत
ही शत्रुतापूर्ण रहा है। पहले उन्हें लाक डाउन में भूखे प्यासे मरने को छोड़ दिया गया।
और जब भूख और अर्थाभाव के चलते जान हथेली पर रख कर वे घरों की ओर चल दिये तो रास्तों
में उन्हें पीटा गया, क्वारंटाइन किया गया और कई जगह सड़कों
पर ही तड़पते छोड़ दिया गया। भूख, प्यास,
बीमारी से कई दर्जन मजदूरों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
वामपंथी दलों और विपक्ष के दबाव में सरकार ने बेमन से
मजदूरों को घर पहुंचाने का निर्णय लिया मगर अब भी उनके रास्ते में अनेक किस्म के रोड़े
अटकाए जारहे हैं। उनसे रेल किराया बसूला जारहा है, यदि वे अपना
खर्च कर बस, ट्रक आदि से चल पड़े तो वाहन जब्त कर उन्हें खदेड़
दिया गया। और अब जो पैदल ही जा रहे हैं वे सड़क दुर्घटनाओं में मारे जारहे हैं। यदि
सरकार ने सतर्कता बरतते हुये अपने दायित्व का निर्वाह किया होता तो ये 16 मजदूर भी
मौत के झपट्टे से बच जाते। सच तो यह है कि कोरोना संकट से पूंजीवाद और पूंजीवादी सरकार
का मजदूरों, गरीबों और आम जनता के प्रति घिनौना चरित्र उजागर
होगया है।
भाकपा मांग करती है कि सरकार/ सरकारें अपना रवैया बदलें।
एक एक मजदूर को रेल/ बसों से सुरक्षित घर पहुंचायें। मजदूरों के जीवन और अधिकार छिनने
से बाज आयें सरकारें, भाकपा आगाह करना चाहती है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
गुरुवार, 7 मई 2020
at 3:47 pm | 0 comments |
जनता के हितों की रक्षा के लिये 11 मई को उत्तर प्रदेश में प्रतिरोध दर्ज करायेंगे वामपंथी दल : डा॰ गिरीश
लखनऊ- 7 मई 2020, उत्तर
प्रदेश के वामपंथी दलों- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की
कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी, भाकपा- माले एवं आल इंडिया फारवर्ड
ब्लाक ने कहा कि केन्द्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और भाजपा
की अन्य राज्य सरकारें कोरोना संकट की आड़ में मजदूरों,
किसानों और आम जनता पर अपना एजेंडा थोप रहीं हैं। निरंतर जनता की परेशानियों में
इजाफा करने वाले और तानाशाहीपूर्ण कदम उठा रही भाजपा विपक्षी दलों पर राजनीति करने
का आरोप लगा रही है। जबकि वह खुद पल पल सांप्रदायिक और विद्वेष की राजनीति कर रही
है।
लाक डाउन की बन्दी के चलते बड़ी संख्या में लोगों की
आर्थिक हालात बद से बदतर हो चुकी है फिर भी
केन्द्र सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर उत्पाद
शुल्क बड़ा दिया जो अब तक की सबसे बढ़ी बदोत्तरी है। ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने
पेट्रोल पर 2 रु॰ तथा डीजल पर 1 रु॰ प्रति लीटर वैट बढ़ा कर रही- सही कसर पूरी कर
दी। इस कदम से पेट्रोल डीजल पर 69 प्रतिशत टैक्स होगया है जो दुनियाँ में सबसे
अधिक है। यह सब उस समय किया जारहा है जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें
बेहद कम हैं। कीमतें बढ़ा कर सरकार ने जनता को कच्चे तेल की कमी के लाभ से वंचित कर
दिया है।
पूँजीपतियों के कहने पर प्रवासी मजदूरों को अपने
घरों को वापस आने से रोका जारहा है। कर्नाटक सरकार ने मजदूरों को लाने वाली रेल
गाड़ियाँ रद्द करा दीं। गुजरात और अन्य कई भाजपा की राज्य सरकारें मजदूरों के घर
लौटने में तरह तरह की बाधाएं खड़ी कर रही हैं। तमाम मजदूर महिलाओं बच्चों और बुजुर्गों
को लेकर पैदल और साइकिलों से ही घर पहुँचने को मजबूर हैं। उनमें से अनेकों की भूख-प्यास, बीमारी और दुर्घटनाओं से रास्ते में ही मौत
होगयी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने तो एक कदम और आगे बढ़ा कर तीन
साल के लिये श्रम क़ानूनों को ही रद्द कर दिया। काम के घंटे बड़ा दिये जबकि काम के घंटे
घटाये जाने चाहिये ताकि सभी को रोजगार मिल सके। विशेष ट्रेनों में उनसे किराया भी
वसूला जारहा है। कईयों को तो रास्ते में खाना- पानी तक नहीं मिला। परदेश में वे
अभाव, भूख और गंदे शेल्टर होम्स में नारकीय जीवन बिता रहे थे, यहां जिन क्वारंटाइन केन्द्रों में उन्हें रखा गया है, उनकी स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। आज़ादी के बाद मजदूर वर्ग इतिहास की
सबसे बड़ी विपत्ति का सामना कर रहा है, और यह विपत्ति सरकारों
ने उनके ऊपर थोपी है।
इन तीन माहों में कोरोना से निपटने में सरकार ने
अक्षम्य गलतियाँ की हैं और कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। यह सरकार कोरोना के
इलाज में लगे सवास्थ्यकर्मियों को अच्छी और पर्याप्त पीपीई किटें व अन्य जरूरी उपकरण
समय पर नहीं दे पायी और उनमें से अनेक संक्रमित होरहे हैं। कई की तो जान चली गयी। लेकिन
उनके सम्मान और सुरक्षा के नाम पर तमाम नाटक किए जारहे हैं। बीमारी छिपाने, यात्रा करने, थूकने और कोरोना योद्धाओं की रक्षा के
नाम पर कड़ी सजाओं वाले कानून बना दिये गए हैं और उन क़ानूनों के दुरुपयोग को रोकने
की कोई गारंटी नहीं की गयी है। आरोग्य सेतु को जबरिया लोगों पर थोपा जारहा है।
गौतम बुध्द नगर जनपद में तो आरोग्य सेतु डाउन लोड न करने पर मुकदमा दर्ज करने का प्राविधान
कर दिया गया है। यह सब कोरोना के बहाने जनता को अधिकाधिक भयभीत और दंडित करने वाली
कार्यवाहियाँ हैं, जिनके परिणाम आमजन को बहुत दिनों तक भुगतने
पड़ेंगे।
सरकार ने तमाम अस्पतालों और निजी अस्पतालों को बन्द
कर दिया है। इससे कैंसर, ह्रदय, लिवर, टीवी एवं किडनी आदि गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों को मौत के मुंह में
जाने को छोड़ दिया है। जबकि कई निजी चिकित्सालय छिप कर इलाज कर रहे हैं और मरीजों
से कई गुना धन वसूल रहे हैं। गरीब लोग इतना महंगा इलाज करा नहीं पारहे। इलाज के अभाव
में लोग मर रहे हैं और मोतौं की खबर को छिपाया जा रहा है। अवसाद और अभाव के चलते कई
लोग एकाकी तो कई ने परिवार सहित आत्महत्याएं की हैं।
आए दिन बिगड़ने वाले मौसम से किसानों की फसलें बरवाद
हुयी हैं और लाक डाउन के चलते सब्जियों और फलों की कीमत गिरी है। किसान सब्जी की
फसलों को खेतों में ही नष्ट करने को मजबूर हुये हैं। गेहूं खरीद केन्द्रों पर भीगा
गेहूं बता कर अथवा वारदाने का अभाव बता कर किसानों को वापस किया जारहा है और वे निजी
व्यवसायियों को कम कीमत पर गेहूं बेचने को मजबूर हैं। खरीदे माल का तत्काल भुगतान भी
नहीं किया जा रहा।
इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की
हालत में भारी गिरावट आयी है। महिला हिंसा, दलितों-
अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न आदि अपराधों में तेजी से व्रद्धि हुयी है। लाक डाउन में
छोटी छोटी गलतियाँ करने पर लोगों को सीधे जेल भेजा जारहा है,
लाठीयों से धुना जा रहा है और बड़े पैमाने पर वाहनों के चालान काटे जारहे हैं। लोग
जरूरी सामान तक नहीं खरीद पारहे। छोटे व्यवसायी कारोबार कर नहीं पा रहे। गरीबों को
धन और खाद्य पदार्थों के अभाव से जूझना पढ़ रहा है। सरकार की मदद पर्याप्त नहीं है।
उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों ने सरकार की इन जन
विरोधी और जनतंत्र विरोधी कार्यवाहियों पर अपना प्रतिरोध दर्ज करने का निश्चय किया
है। आगामी 11 मई को वामपंथी दलों के कार्यकर्ता लाक डाउन की मर्यादाओं का पालन
करते हुये अपने आवासों पर अथवा कार्यालयों पर भूख हड़ताल/ धरना आदि करेंगे और जहां जैसे
संभव होगा अधिकारियों को ज्ञापन देंगे।
बुधवार, 6 मई 2020
at 7:16 pm | 0 comments |
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में व्रद्धि अनुचित : वापस ले उत्तर प्रदेश सरकार-- भाकपा
लखनऊ- 6 मई 2020, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल की कीमतों
में की गयी व्रद्धि की आलोचना की और उसे वापस लेने की मांग की है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने
कहा कि यह कोरोना से प्रभावित अर्थव्यवस्था और आम आदमी के ऊपर बड़ा बोझ लाद दिया गया
है। राजस्व बढ़ाने के लिये उद्योग, व्यापार और आम आदमी के जीवन को
संकट में डाल दिया है।
और यह उस समय किया गया है जबकि अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार
में कच्चे तेल- जिससे कि पेट्रोल और डीजल बनते हैं, की कीमतें
बेहद कम हैं। सस्ते तेल का लाभ जनता और अर्थव्यवस्था को मिल सकता था, लेकिन केन्द्र सरकार उन पर लगातार ऊंचे टैक्स थोप कर पेट्रोल एवं डीजल की
कीमतें ऊंची बनाये हुये है। अब राज्य सरकार ने पेट्रोल, डीजल
की कीमतों में व्रद्धि करके लाक डाउन से खोखली हो चुकी आम जनता और मंदी से जूझ रही
अर्थव्यवस्था के सामने गहरा संकट खड़ा कर दिया है।
अतएव भाकपा जनहित में इन जबरिया थोपी हुयी व्रद्धियों
को तत्काल वापस लेने की मांग करती है।
सोमवार, 4 मई 2020
at 5:07 pm | 0 comments |
कार्ल मार्क्स की 202 वीं जयंती: कोरोना काल और मार्क्सवाद की प्रासंगिकता-- डा॰ गिरीश
कोरोना काल में समूचे विश्व और भारत में मेहनतकशों
पर बरपी मुसीबतों ने उन्हें सारी दुनियां के ध्यान के केन्द्र में ला दिया है।
इसके साथ ही उनकी किस्मत के कायापलट के उद्देश्य से रचे गए सिध्दांत और उसके
स्रजेता – कार्ल मार्क्स को भी विमर्श के सघन केन्द्र में ला दिया है। यद्यपि वे
बौध्दिक और व्यावहारिक विमर्श से कभी बाहर नहीं हुये थे।
5 मई 1818 को जन्मे कार्ल हेनरिक मार्क्स का नाम
इतिहास के सर्वाधिक अनुयायित महापुरुषों में विशिष्ट स्थान रखता है। उन्होने अपने
मित्र और सहयोगी फ़्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिल कर साम्यवाद की विजय के लिये, सर्वहारा के वर्ग- संघर्ष के सिध्दांत की विजय के लिये सर्वहारा वर्ग-
संघर्ष के सिध्दांत तथा कार्यनीति की रचना की थी। यह दोनों ही व्यक्ति इतिहास में
विश्व के मेहनतकश वर्ग के विलक्षण शिक्षकों, उनके हितों के
महान पक्षधरों, मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी आंदोलन के
सिध्दांतकारों और संगठनकर्ताओं के रूप में सदैव अमर रहेंगे।
मार्क्स ने विश्व को सही ढंग से समझने तथा उसे
बदलने के लिये मानव जाति और उसके सबसे ज्यादा क्रांतिकारी वर्ग, सर्वहारा वर्ग को एक महान अस्त्र का काम करने वाले अत्यंत विकसित एवं
वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से लैस किया था, जिसका नामकरण बाद में
उन्हीं के नाम पर- मार्क्सवाद किया गया। उसके बाद महान लेनिन ने उसे अपनी सामयिक
परिस्थितियों के अनुकूल व्याख्यायित और विकसित कर सर्वहारा के स्वप्नों को अमलीभूत
करने वाले राज्य – सोवियत संघ की स्थापना कर डाली। तदुपरान्त यह सिध्दांत
मार्क्सवाद- लेनिनवाद कहलाया।
महर्षि मार्क्स ने ही समाजवाद को काल्पनिकता के
स्थान पर वैज्ञानिक रूप प्रदान किया तथा पूंजीवाद के अवश्यंभावी पतन व साम्यवाद की
विजय के लिये एक विशद एवं सर्वांगीण सैध्दांतिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।
उन्होने ही अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन तथा
मजदूर वर्ग की प्रारंभिक क्रांतिकारी पार्टियों का गठन किया था। इन पार्टियों ने
वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को स्वीकार किया।
उन्होने ही पूंजीवाद को नेस्तनाबूद करने और
समाजवादी ढंग पर समाज के क्रांतिकारी रूपान्तरण के लिये पूंजीवादी उत्पीड़न के
विरूध्द उठाने वाले मजदूरों के स्वतःस्फूर्त आंदोलनों को सचेत वर्ग- संघर्ष का रूप
प्रदान किया।
मार्क्स प्रथम व्यक्ति थे जिनहोने सामाजिक विकास का
नियंत्रण करने वाले नियमों की खोज के बल पर मानव कल्याण और प्रत्येक व्यक्ति को
शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति के सर्वांगीण विकास तथा सामाजिक उत्पीड़न को समाप्त
करके सम्मानजनक जीवन- पध्दति के अनुरूप आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करने के
लिये मेहनतकशों को सही रास्ता और उपाय समझाया था।
मार्क्स के पहले के सामाजिक सिध्दांत नियमतः धनिक
वर्ग का पक्ष- पोषण करते थे। उनसे गरीबों की बेहतरी की कोई आशा नहीं की जा सकती
थी। वर्गीय समाज के संपूर्ण इतिहास में शासक और शोषक वर्ग शिक्षा, वैज्ञानिक उपलब्धियों, कलाओं और राजनीति पर एकाधिकार
जमाये हुये थे जबकि मेहनतकश लोगों को अपने मालिकों के फायदे के लिये मेहनत करते
हुये अपना पसीना बहाना पड़ता था। यद्यपि समय समय पर दलितों के प्रवक्ताओं ने अपने
सामाजिक विचारों को परिभाषित किया था, पर वे विचार
अवैज्ञानिक थे। उनमें अधिक से अधिक चमक मात्र थी, पर समग्र
रूप से ऐतिहासिक विकास के नियमों की समझदारी का उनमें अभाव था। वे स्वाभाविक विरोध
और स्वतःस्फूर्त आंदोलन की एक अभिव्यक्ति ही कहे जा सकते थे।
इसी दौर में आगे बढ़ रहे मुक्ति आंदोलनों को
वैज्ञानिक विचारधारा की नितांत आवश्यकता थी, जिसकी भौतिक और सैद्धांतिक
पूर्व शर्तें कालक्रम से परिपक्व हो चुकी थीं।
औद्योगिक क्रान्ति के दौरान उत्पादक शक्तियों के
तीव्र गति से होने वाले विकास ने मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण की समाप्ति और
मजदूर वर्ग की मुक्ति के ऐतिहासिक कार्य
के प्रतिपादन के लिये वास्तविक आधार तैयार कर दिया था। पूंजीवाद के विकास के साथ
ही एक ऐसी सक्षम सामाजिक शक्ति का उदय होगया था जो इस कार्य को पूरा कर सकती थी।
उस शक्ति का नाम था- मजदूर वर्ग।
मजदूर वर्ग के हितों की वैज्ञानिक अभिव्यक्ति के
रूप में मार्क्सवाद सर्वहारा के वर्ग संघर्ष के साथ निखरा और विकसित हुआ। पूंजीवाद
के आंतरिक अंतर्विरोधों के प्रकाश में आने से यह निष्कर्ष सामने आया कि पूंजीवादी
समाज का विध्वंस अवश्यंभावी है। साथ ही मजदूर वर्ग के आंदोलन के विकास से यह
निष्कर्ष उजागर हुआ कि सर्वहारा ही आगे चल कर पूंजीवादी पध्दति की कब्र खोदेगा तथा
नए समाजवादी समाज का निर्माण करेगा।
इस संबन्ध में लेनिन ने एक बहुत ही सुस्पष्ट व्याख्या
प्रस्तुत की। उन्होने लिखा, “ एकमात्र,
मार्क्स के दार्शनिक भौतिकवाद ने ही सर्वहारा को ऐसी आध्यात्मिक गुलामी से निकालने
का रास्ता सुझाया जिसमें संपूर्ण दलित वर्ग अभी तक पीसे जा रहे थे। एकमात्र, मार्क्स के आर्थिक सिध्दांत ने ही पूंजीवादी व्यवस्था के दौरान सर्वहारा
वर्ग की सही नीति की व्याख्या की थी।“
सामाजिक संबंधों के विकास संबंधी विशद विश्लेषण से
मार्क्स और एंगेल्स की यह समझदारी पक्की हुयी कि इन संबंधों में क्रान्तिकारी
परिवर्तन करने, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने
और समाजवादी समाज के निर्माण के लिये एक सक्षम शक्ति के रूप में सर्वहारा को महान
ऐतिहासिक भूमिका निभानी होगी। सर्वहारा वर्ग की वर्तमान स्थिति से ही उसकी युग
परिवर्तनकारी भूमिका निःस्रत होगी। पूंजीवादी शोषण के जुए से समस्त मेहनतकशों को
मुक्त कराये बिना वह खुद भी मुक्त नहीं हो सकता। मार्क्स ने इस काम को सर्वहारा के
वर्ग- संघर्ष का उच्च मानवीय उद्देश्य माना था, जिसका लक्ष्य
मेहनतकश इंसान को पूंजीवादी समाज की अमानवीय स्थिति से मुक्ति दिलाना था।
मार्क्सवाद हमें यह भी सिखाता है कि विशुध्द वैज्ञानिक
क्रान्तिकारी सिध्दांत और क्रांतिकारी व्यवहार की एकता कम्युनिज़्म की मुख्यधारा है। क्रान्तिकारी व्यवहार के बिना, और मार्क्सवादी विचारधारा को जीवन में अपनाए वगैर, यह
सिद्धान्त महज ऊपरी लफ्फाजी तथा सुधारवाद व अवसरवाद के लिये एक आवरण मात्र बन कर रह
जाता है। विज्ञान और सामाजिक विकास के बारे में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के बिना क्रान्तिकारी
कार्यवाही का पतन दुस्साहसवाद के रूप में हो जाता है जो अराजकता की ओर लेजाता है।
मजदूरवर्ग के हितों का वाहक कौन बनेगा इस पर भी मार्क्स
का सुस्पष्ट द्रष्टिकोण है-
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग के आंदोलनों के संपूर्ण इतिहास, विश्व की क्रांतिकारी प्रक्रिया तथा विभिन्न देशों में होने वाले क्रान्तिकारी
संघर्षों के उतार- चढ़ाव ने अकाट्य रूप से यह साबित कर दिया है कि केवल मार्क्सवाद-
लेनिनवाद के क्रान्तिकारी सिध्दांतों से निर्देशित पार्टी ही एक लड़ाकू अगुवा दस्ते
का काम कर सकती है।
लेनिन ने रूस के मजदूर वर्ग के आंदोलन के शुरू में ही
मार्क्स के सिध्दांतों का क्रान्तिकारी निचोड़ प्रस्तुत करते हुये लिखा था, “इस सिध्दांत का, जिसको समस्त देशों के समाजवादियों
ने अपनाया है, अपरिहार्य आकर्षण इस तथ्य में निहित है कि इससे
सही अर्थों में, सर्वोपरि रूप से वैज्ञानिकता और क्रान्तिकारिता
का अपूर्व सामंजस्य है। इसमें उन गुणों का आकस्मिक सामंजस्य केवल इसलिए नहीं है कि
उस सिध्दांत के प्रणेता के व्यक्तित्व में एक वैज्ञानिक और क्रान्तिकारी के गुणों का
समावेश है, अपितु उनमें एक स्वाभाविक और अटूट समंजस्य है।“
आज कोविड- 19 के आक्रमण ने विश्व पूंजीवादी व्यवस्था
की निरीहता की कलई खोल के रख दी है। यह व्यवस्था अपने नागरिकों और समाज को बीमारी के
प्रकोप से बचाने के बजाय विधवा प्रलाप कर रही है। पूंजीवाद ने बड़ी ध्रष्टता से संकट
का भार सर्वहारा के कंधों पर लाद दिया है। दौलत पैदा करने वालों को कोरोना और भूख के
हाथों मरने को छोड़ दिया है। आज अपने ही वतन में वे बेघर और बेगाने नजर आरहे हैं। शारीरिक, मानसिक और आर्थिक आघात झेल रहे हैं। उनके अनुभवों ने सिध्द कर दिया है कि
मौजूदा व्यवस्था में उनका वाजिब स्थान नहीं है। उन्हें इस व्यवस्था से मुक्ति हासिल
करनी ही होगी। उनके मुक्तियुध्द में मार्क्सवाद ही पथ- प्रदर्शक की भूमिका निभा सकता
है। यह भूमिका यह पहले भी निभाता आया है। अब यह संगठित- असंगठित मार्क्सवादियों का
दायित्व है कि वे सर्वहाराओं की मुक्ति के काम को आगे बढ़ाएं। मार्ग कठिन भी है और मौजूदा
दौर में खतरनाक भी। घबराइए नहीं, मार्क्स यहाँ भी आपका मार्गदर्शन
करते नजर आते हैं। वे कहते हैं-
“यदि हमने अपने जीवन में वह रास्ता अख़्तियार किया है
जिसमें हम मानव जाति के लिये अधिकाधिक कार्य कर सकते हैं तो कोई भी ताकत हमें झुका
नहीं सकती”
दिनांक- 4॰ 5॰ 2020
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