शुक्रवार, 25 जून 2010
at 9:35 pm | 0 comments |
नये मनुष्य, नये समाज के निर्माण की कार्यशाला: क्यूबा-4
क्यूबा का इंकलाबः एक अलग मामला
क्यूबा की क्रान्ति न रूस जैसी थी न चीन जैसी। वहाँ क्रान्तिकारीकम्युनिस्ट पार्टियाँ पहले से क्रान्ति के लिए प्रयासरत थीं और उन्होंनेनिर्णायक क्षणों में विवेक सम्मत निर्णय लेकर इतिहास गढ़ा। उनसे अलग,क्यूबा में जो क्रान्ति हुई, उसे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी का भीसमर्थन या अनुमोदन हासिल नहीं था। उस वक्त क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टीफिदेल के गुरिल्ला युद्ध का समर्थन नहीं करती थी बल्कि बटिस्टा सरकार केऊपर दबाव डालकर ही कुछ हक अधिकार हासिल करने में यकीन करती थी। लेकिनवक्त के साथ न केवल फिदेल ने क्यूबाई इंकलाब को सिर्फ एक देश के इंकलाबसे बाहर निकालकर उसे एक अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन की अहम तारीखबनाया बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट बिरादरी ने भी क्यूबा के इंकलाबको साम्राज्यवाद से बचाये रखने में हर मुमकिन भूमिका निभाई।चे ग्वेवारा का प्रसिद्ध लेख ’क्यूबाः एक्सेप्शनल केस?’ क्यूबा कीक्रान्ति की अन्य खासियतों पर और समाजवाद की प्रक्रियाओं पर विलक्षणरोशनी डालता है।करिष्मा दर करिश्मा जनता की ताकत से1961 की 1 जनवरी को 1 लाख हाई स्कूल पास लोगों के साथ पूरे मुल्क कोसाक्षर बनाने का अभियान शुरू किया गया और ठीक एक साल पूरा होने के 8 दिनपहले ही क्यूबा को पूर्ण साक्षर करने का करिश्मा कर दिखाया। दिसंबर 22,1961 को क्यूबा निरक्षरता रहित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। ऐसे करिश्मेक्यूबा ने अनेक क्षेत्रों में दिखाए और अभी भी जारी हैं। इंकलाब केतत्काल बाद जमीन पर से विदेशी कब्जे खत्म किए गए और बड़े किसानों वकंपनियों से जमीनें लेकर छोटे किसानों व खेतिहर मजदूरों को बाँटी गईं।इंकलाब के बाद के करीब बीस-पच्चीस वर्षों तक क्यूबा ने तरक्की की अनेकछलाँगें भरीं। बेशक सोवियत संघ व अन्य समाजवादी देशों के साथ सामरिक-व्यापारिक संबंधों की इसमें अहम भूमिका रही। गन्ने की एक फसल वाली खेतीसे शक्कर बनाकर क्यूबा ने सोवियत संघ से शक्कर के बदले पेट्रोल और अन्यआवश्यक वस्तुएँ हासिल कीं। उद्योगों का ही नहीं खेती का भी राष्ट्रीयकरणकरके खेतों में काम करने वाले मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा, छुट्टियाँ,मुफ्त शिक्षा, इलाज की सुविधाएँ और बच्चों के लिए झूलाघर खोले गए।क्रान्ति के महज 7 वर्षों के भीतर क्यूबा की 80 फीसदी कृषि भूमि पर सरकारका स्वामित्व था। निजी स्वामित्व वाले जो छोटे किसान थे, उनके भी सरकारने जगह-जगह कोआॅपरेटिव बनाए और उन्हें प्रोत्साहित किया। सबके लिए भोजन,रोजगार, शिक्षा और सबके लिए मुफ्त इलाज की सुविधा ने क्यूबा को मानवविकास के किसी भी पैमाने से अनेक विकसित देशों से आगे लाकर खड़ा कर दियाथा।
मुश्किल दौर का मुकाबला क्रान्ति के औजारों से
सोवियत संघ के विघटन से निश्चित ही क्यूबा की अर्थव्यवस्था पर बहुतप्रतिकूल असर पड़ा। भीषण मंदी ने क्यूबा को अपनी चपेट में ले लिया। सोवियतसंघ केवल क्यूबा की कृषि उपज का खरीददार ही नहीं था बल्कि क्यूबा की ईंधनऔर रासायनिक खाद की जरूरतों का भी बड़ा हिस्सा वहीं से ही पूरा होता था।सोवियत संघ के ढहने से क्यूबा में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की उपलब्धता80 फीसदी तक गिर गई और उत्पादन में 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट आई। क्यूबाके प्रति व्यक्ति प्रोटीन और कैलोरी खपत में 30 फीसदी कमी दर्ज की गई।लेकिन क्यूबा इन सभी समस्याओं से बगैर किसी बाहरी मदद के जिस तेजी से फिरसँभला, वह क्यूबाई करिश्मों की गिनती को ही बढ़ाता है। अपने दक्ष वप्रतिबद्ध वैज्ञानिकों और लोगों के प्रति ईमानदार, दृढ़ राजनैतिकइच्छाशक्ति ने 1995 के मध्य तक अपनी कृषि को पूरी तरह बदल कर नये हालातोंके अनुकूल ढाल लिया। रासायनिक खाद के बदले जैविक खाद से खेती की जानेलगी। एक फसल के बदले विविधतापूर्ण फसल चक्र अपनाए गए। आज क्यूबा सारीदुनिया में जैविक खेती और जमीन का सही तरह से इस्तेमाल करने वाले देशोंमें सबसे आगे है।यही स्थिति ऊर्जा के क्षेत्र में भी हुई। सोवियत संघ से पेट्रोलियम कीआपूर्ति बंद हो जाने के बाद क्यूबा के वैज्ञानिकों व इंजीनीयरों ने बड़ेपैमाने पर सौर ऊर्जा और पनबिजली के संयंत्रों पर काम किया। कम बिजली खपतवाले रेफ्रीजरेटर, हीटर, बल्ब इत्यादि बनाए गए और आज क्यूबा वैकल्पिक वप्रकृति हितैषी ऊर्जा उत्पादन में भी दुनिया की अग्रिम पंक्ति में है।पश्चिमी यूरोप में प्रत्येक 330 लोगों की देखभाल के लिए एक डाॅक्टर है;अमेरिका में प्रत्येक 417 लोगों की देखभाल के लिए एक डाक्टर है, जबकिक्यूबा में प्रत्येक 155 लोगों की देखभाल के लिए एक डाॅक्टर है। क्यूबाजैसा छोटा सा देश 70 हजार से ज्यादा डाक्टर्स को प्रशिक्षित कर रहा है औरउन्हें दुनिया के हर हिस्से में मानवता की मदद के लिए भेज रहा है जबकिउससे कई गुना बड़ा अमेरिका करीब 64 से 68 हजार डाक्टरों का ही प्रशिक्षणकर पा रहा है।
-विनीत तिवारीमोबाइल : 09893192740
(क्रमश:)
क्यूबा की क्रान्ति न रूस जैसी थी न चीन जैसी। वहाँ क्रान्तिकारीकम्युनिस्ट पार्टियाँ पहले से क्रान्ति के लिए प्रयासरत थीं और उन्होंनेनिर्णायक क्षणों में विवेक सम्मत निर्णय लेकर इतिहास गढ़ा। उनसे अलग,क्यूबा में जो क्रान्ति हुई, उसे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी का भीसमर्थन या अनुमोदन हासिल नहीं था। उस वक्त क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टीफिदेल के गुरिल्ला युद्ध का समर्थन नहीं करती थी बल्कि बटिस्टा सरकार केऊपर दबाव डालकर ही कुछ हक अधिकार हासिल करने में यकीन करती थी। लेकिनवक्त के साथ न केवल फिदेल ने क्यूबाई इंकलाब को सिर्फ एक देश के इंकलाबसे बाहर निकालकर उसे एक अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन की अहम तारीखबनाया बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट बिरादरी ने भी क्यूबा के इंकलाबको साम्राज्यवाद से बचाये रखने में हर मुमकिन भूमिका निभाई।चे ग्वेवारा का प्रसिद्ध लेख ’क्यूबाः एक्सेप्शनल केस?’ क्यूबा कीक्रान्ति की अन्य खासियतों पर और समाजवाद की प्रक्रियाओं पर विलक्षणरोशनी डालता है।करिष्मा दर करिश्मा जनता की ताकत से1961 की 1 जनवरी को 1 लाख हाई स्कूल पास लोगों के साथ पूरे मुल्क कोसाक्षर बनाने का अभियान शुरू किया गया और ठीक एक साल पूरा होने के 8 दिनपहले ही क्यूबा को पूर्ण साक्षर करने का करिश्मा कर दिखाया। दिसंबर 22,1961 को क्यूबा निरक्षरता रहित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। ऐसे करिश्मेक्यूबा ने अनेक क्षेत्रों में दिखाए और अभी भी जारी हैं। इंकलाब केतत्काल बाद जमीन पर से विदेशी कब्जे खत्म किए गए और बड़े किसानों वकंपनियों से जमीनें लेकर छोटे किसानों व खेतिहर मजदूरों को बाँटी गईं।इंकलाब के बाद के करीब बीस-पच्चीस वर्षों तक क्यूबा ने तरक्की की अनेकछलाँगें भरीं। बेशक सोवियत संघ व अन्य समाजवादी देशों के साथ सामरिक-व्यापारिक संबंधों की इसमें अहम भूमिका रही। गन्ने की एक फसल वाली खेतीसे शक्कर बनाकर क्यूबा ने सोवियत संघ से शक्कर के बदले पेट्रोल और अन्यआवश्यक वस्तुएँ हासिल कीं। उद्योगों का ही नहीं खेती का भी राष्ट्रीयकरणकरके खेतों में काम करने वाले मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा, छुट्टियाँ,मुफ्त शिक्षा, इलाज की सुविधाएँ और बच्चों के लिए झूलाघर खोले गए।क्रान्ति के महज 7 वर्षों के भीतर क्यूबा की 80 फीसदी कृषि भूमि पर सरकारका स्वामित्व था। निजी स्वामित्व वाले जो छोटे किसान थे, उनके भी सरकारने जगह-जगह कोआॅपरेटिव बनाए और उन्हें प्रोत्साहित किया। सबके लिए भोजन,रोजगार, शिक्षा और सबके लिए मुफ्त इलाज की सुविधा ने क्यूबा को मानवविकास के किसी भी पैमाने से अनेक विकसित देशों से आगे लाकर खड़ा कर दियाथा।
मुश्किल दौर का मुकाबला क्रान्ति के औजारों से
सोवियत संघ के विघटन से निश्चित ही क्यूबा की अर्थव्यवस्था पर बहुतप्रतिकूल असर पड़ा। भीषण मंदी ने क्यूबा को अपनी चपेट में ले लिया। सोवियतसंघ केवल क्यूबा की कृषि उपज का खरीददार ही नहीं था बल्कि क्यूबा की ईंधनऔर रासायनिक खाद की जरूरतों का भी बड़ा हिस्सा वहीं से ही पूरा होता था।सोवियत संघ के ढहने से क्यूबा में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की उपलब्धता80 फीसदी तक गिर गई और उत्पादन में 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट आई। क्यूबाके प्रति व्यक्ति प्रोटीन और कैलोरी खपत में 30 फीसदी कमी दर्ज की गई।लेकिन क्यूबा इन सभी समस्याओं से बगैर किसी बाहरी मदद के जिस तेजी से फिरसँभला, वह क्यूबाई करिश्मों की गिनती को ही बढ़ाता है। अपने दक्ष वप्रतिबद्ध वैज्ञानिकों और लोगों के प्रति ईमानदार, दृढ़ राजनैतिकइच्छाशक्ति ने 1995 के मध्य तक अपनी कृषि को पूरी तरह बदल कर नये हालातोंके अनुकूल ढाल लिया। रासायनिक खाद के बदले जैविक खाद से खेती की जानेलगी। एक फसल के बदले विविधतापूर्ण फसल चक्र अपनाए गए। आज क्यूबा सारीदुनिया में जैविक खेती और जमीन का सही तरह से इस्तेमाल करने वाले देशोंमें सबसे आगे है।यही स्थिति ऊर्जा के क्षेत्र में भी हुई। सोवियत संघ से पेट्रोलियम कीआपूर्ति बंद हो जाने के बाद क्यूबा के वैज्ञानिकों व इंजीनीयरों ने बड़ेपैमाने पर सौर ऊर्जा और पनबिजली के संयंत्रों पर काम किया। कम बिजली खपतवाले रेफ्रीजरेटर, हीटर, बल्ब इत्यादि बनाए गए और आज क्यूबा वैकल्पिक वप्रकृति हितैषी ऊर्जा उत्पादन में भी दुनिया की अग्रिम पंक्ति में है।पश्चिमी यूरोप में प्रत्येक 330 लोगों की देखभाल के लिए एक डाॅक्टर है;अमेरिका में प्रत्येक 417 लोगों की देखभाल के लिए एक डाक्टर है, जबकिक्यूबा में प्रत्येक 155 लोगों की देखभाल के लिए एक डाॅक्टर है। क्यूबाजैसा छोटा सा देश 70 हजार से ज्यादा डाक्टर्स को प्रशिक्षित कर रहा है औरउन्हें दुनिया के हर हिस्से में मानवता की मदद के लिए भेज रहा है जबकिउससे कई गुना बड़ा अमेरिका करीब 64 से 68 हजार डाक्टरों का ही प्रशिक्षणकर पा रहा है।
-विनीत तिवारीमोबाइल : 09893192740
(क्रमश:)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...2 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...4 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...4 वर्ष पहले

लोकप्रिय पोस्ट
-
सफल रास्ताजाम एवं व्यापक विरोध प्रदर्शन के लिये भाकपा ने किसानों और कार्यकर्ताओं को दी बधाई उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़े किए गये तमाम अ...
-
अलीगढ़ बालिका की संदिग्ध परिस्थितियो में हत्या की भाकपा ने निन्दा की भाकपा का प्रतिनिधिमंडल डा॰ गिरीश के नेत्रत्व में कल अलीगढ़ पहुंचेगा ...
-
भाकपा के प्रतिनिधिमंडल ने अलीगढ़ के गांव किवलाश पहुंच दलित बिटिया की हत्या के संबंध में गांववासियों से भेंट की , घटनास्थल का निरीक्षण ...
-
उन्नाव कांड की भाकपा ने तीव्र भर्त्सना की। पीढ़ित परिवार के प्रति संवेदना जतायी घटना की सीबीआई से जांच और तीसरी बिटिया को एम्स भेजने की मां...
-
चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो चलो लहूलुहान पांव ले के भी चले चलो चलो कि आज साथ-साथ चलने की जरूरतें चलो कि ख़त्म हो न जाएं जिन्द...
-
लखनऊ-12 अगस, 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने प्रदेश में सत्ता की दौड में शामिल प्रमुख दलों पर आरोप लगाया है कि वे आगाम...
-
लखनऊ- दिनांक- 18- 2-2021 , संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा देश भर में रेल रोकने के आह्वान के समर्थन में उत्तर प्रदेश में आज भारतीय कम्युनिस्ट...
-
अहिंसक आंदोलन के खिलाफ हिंसा पर उतारू है उत्तर प्रदेश सरकार भाकपा ने सभी आंदोलनकारियों को सफल और शांतिपूर्ण कार्यवाहियों के लिये बधा...
-
CPI General Secretary Com. Survaram Sudhakar Reddy's open letter to Mr Narendra Modi, Prime MinisterNew Delhi 29 th May 2015 To, Shri Narendra Modi Hon’ble Prime Minister Government of India ...
-
Suravaram Sudhakar Reddy born on 25 th March 1942 has been an ardent social worker through Communist Party of India (CPI) right from...

0 comments:
टिप्पणी पोस्ट करें