1 जुलाई 2010 को चार वामपंथी पार्टियों - भाकपा, भाकपा (मा), फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी ने दिल्ली के मावलंकर भवन में खाद्य सुरक्षा एवं महंगाई पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन ने निम्न घोषणापत्र जारी किया:
"राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं महंगाई पर राष्ट्रीय सम्मेलन इस पर अपनी गंभीर चिन्ता व्यक्त करता है कि
गेहूं, चावल, खाद्य तेलों, चीनी, दालों और सब्जियों समेत आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे देश की आबादी के बड़े तबकों में वंचना तेज हो गयी है और यह ऐसे समय हो रहा है जबकि भूमंडलीय रिपोर्टें दिखा रही हैं कि विश्व में सबसे अधिक कुपोषित एवं अल्पपोषित बच्चे, सबसे अधिक कम वजन के बच्चे और सबसे अधिक रक्ताल्पता की शिकार महिलाएं भारत में हैं और ये सभी लोग भूख के शिकार हैं। भूमंडलीय भूख सूचकांक में 88 देशों में भारत अत्यंत निम्न 66वें स्थान पर है।
राष्ट्रीय सम्मेलन का मानना है कि:
महंगाई के लिए केन्द्र सरकार की नीतियां मुख्यतः जिम्मेदार हैं और केन्द्र सरकार द्वारा इसके लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश अपनी गलत नीतियों को बदलने और महंगाई को रोकने में इसकी अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए है।
केन्द्र सरकार की ये गलत नीतियां हैं:
1 - सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर करना और इसके परिणामस्वरूप बाजार की ऊंची कीमतों को बराबरी पर लाने का दबाव डालने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली जो महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है, उसकी उस भूमिका का क्षरण होना। यह नीति उपभोक्ताओं को बाजार पर निर्भर करने के इरादे से बनायी गयी और इस तरह करोड़ों लोगों को मुनाफाखोरों और चोर-बाजार करने वालों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया।
2 - राज्यों के खाद्यान्न आबंटनों को बहाल करने से सरकार का इंकार। इन आबंटनों को पिछले पांच वर्षों में औसतन 73 प्रतिशत कम कर दिया गया है और केरल में तो यह कटौती 80 प्रतिशत से भी अधिक है। केन्द्र के पास खाद्यान्न का 6 करोड़ टन का विशाल बफर स्टाक है, पर उसने अगले छह महीनों में केवल 30 लाख अतिरिक्त खाद्यान्न ही राज्यों को जारी करने का एक बेहद गलत फैसला लिया है और वह खाद्यान्न अब से ऊंची दरों पर, एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) के मूल्यों से अधिक की दर पर - चावल को 42.7 प्रतिशत अधिक और गेहूं को 38.5 प्रतिशत अधिक की दर पर दिया जायेगा। सरकार ऐसी वाजिब कीमत पर - जिसको लोग सहन कर सकें, खाद्यान्न लोगों को देने के स्थान पर उन्हें खुले में सड़ने या चूहों द्वारा खाये जाने को तरजीह देती है।
3 - सरकार ने आवश्यक वस्तुओं - जिनमें गेहूं, दालों की कई किस्में, खाद्य तेल, यहां तक कि आलू जैसी सब्जियों तक के भी वायदा कारोबार की इजाजत दे रखी है। कमोडिटी एक्सचेंजों में वायदा बाजार के जबरदस्त बढ़ते कारोबार से नगद कीमतों पर असर पड़ता है जो इनकी कीमतों में बृद्धि कर देती है, यह चीज खुले आम मुनाफाखोरी को दर्शाती है जो भी सरकार ने आवश्यक खाद्य वस्तुओं में वायदा कारोबार पर रोक लगाने से मना कर दिया है।
4 - सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के प्रशासित मूल्य तंत्र को हटाकर इसके मूल्य तय करने का अधिकार बाजार पर छोड़ दिया है जिससे पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के मूल्यों में वृद्धि हो गयी है और अन्य सभी वस्तुओं की कीमतों पर उसका असर पड़ा है। पेट्रोलियम उत्पादों के वर्तमान मूल्य ढांचों में केन्द्र सरकार के टैक्सों का बड़ा हिस्सा होता है जिससे सरकारी राजस्व मिलता है, जबकि इससे आम लोगों को इनकी बढ़ी कीमतें झेलनी पड़ती हैं। पेट्रोल एवं डीजल के मूल्यों में और अधिक वृद्धि का वर्तमान कदम विनाशकारी होगा। यह सम्मेलन सरकार को इस तरह के फैसले के विरूद्ध चेतावनी देता है।
यह सम्मेलन खाद्य वस्तुओं के ऊपर मूल्य नियंत्रण की मांग करता है। खाद्य सुरक्षा सुरक्षित करने के लिए बनायी जाने वाली नीति में निम्न बातें शामिल की जानी चाहिए:
(1) सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया जाये और राज्यों को एपीएल की मूल्य दरों पर खाद्यान्न आबंटनों को फिर से चालू किया जाये।
(2) आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाया जाये।
(3) पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम की जायें।
(4) आवश्यक वस्तुओं में मुनाफाखोरी और कालाबाजारी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाये जायें।
खाद्य सुरक्षा एवं महंगाई पर राष्ट्रीय सम्मेलन इसकी कठोर आलोचना करता है कि:
केन्द्र सरकार हमारे देख के नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक असरदार कानून को पेश करने में देरी कर रही है। मंत्रि-समूह जिस मसविदे पर विचार-विमर्श कर रहा है, वह खाद्य सुरक्षा देने के बजाय खाद्य असुरक्षा पैदा करेगा क्योंकि उसमें वर्तमान आबंटन को कम किया गया है, जो लोग पात्र हैं, उनकी संख्या में कटौती की है और वर्तमान अन्त्योदय प्रणाली को वस्तुतः समाप्त कर दिया गया है।
बदतर बात यह है कि वर्तमान मसविदे में लक्षित करने की प्रणाली बनाकर और आबादी को एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) और बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) में बांटने को कानून का एक हिस्सा बनाकर असल में, गरीबी की अत्यंत अस्पष्ट एवं अनिश्चित परिभाषाओं के आधार पर गरीबों के अत्यंत बड़े तबकों को खाद्य सुरक्षा के दायरे से बाहर करने को कानूनी स्वरूप दे दिया गया है। इस लिहाज से, वर्तमान मसविदा और खाद्य सुरक्षा की जिस अवधारणा को यह पेश करता है, वह एक पीछे ले जाने वाला कदम होगा और यदि इसे मंजूर कर लिया गया तो उससे, जब कोई कानून ही नहीं था उससे भी अधिक नुकसान पहुंचेगा।
यह सम्मेलन,
गरीबी का अनुमान लगाने और गरीबी की परिभाषा करने के नाम पर चल रही ओछी राजनीति और कितने परिवारों को इसमें शामिल किया जाये या बाहर रखा जाये, उस बारे में चल रही सौदेबाजी की भर्त्सना करता है। यह राजनीति और सौदेबाजी इस तरह चल रही है कि मानों करोड़ों लोगों की जिन्दगी और भविष्य नहीं, बल्कि बाजार में किसी वस्तु की कीमत दाव पर लगी है। मुद्दा यह कदापि नहीं है कि इस या उस नेता को खुश करने के लिए ”कुछ और अधिक लोगों को बीपीएल में शामिल कर लिया जाये“ या नहीं, बल्कि मुद्दा यह है कि वर्तमान कवायद का आधार ही अवैज्ञानिक है। आधिकारिक तौर पर गठित तीन समितियों ने गरीबी के अलग-अलग अनुमान बताये हैं जिनमें भारी अंतर है। इन अनुमानों में आबादी के 77 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत और 37.5 प्रतिशत (ग्रामीण भारत के लिए) तक लोग गरीब बताये गये हैं। इसी से पता चलता है कि मुद्दा गरीबी के आकलन के आधारों के अवैज्ञानिक होने का है।
देश का विशाल बहुमत असंगठित क्षेत्र में काम करता है; उनकी कोई निश्चित आमदनी नहीं, महंगाई बढ़ने पर उससे बचाव का कोई तरीका नहीं। सरकार के स्वयं के ही द्वारा गठित ”असंगठित क्षेत्र के लिए आयोग“ ने अनुमान लगाया है कि देश की 77 प्रतिशत आबादी 20 रूपये प्रतिदिन से कम पर गुजारा करती है। इससे स्वयं जाहिर है कि देश में एक ऐसी वाजिब कीमत पर जिसका लोग बोझ उठा सकें, खाद्यान्नों एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की गारन्टी के लिए सार्वजनिक वितरण की एक सार्वभौम प्रणाली (जिसके दायरे में सभी लोग आ जायें) की जरूरत है।
यह सम्मेलन दोहराना चाहता है कि:
केवल एक सार्वभौम सार्वजनिक वितरण प्रणाली ही कम से कम न्यूनतम खाद्य सुरक्षा की गारंटी कर सकती है। इसका अर्थ है कि वर्तमान लक्षित प्रणाली को और खाद्य, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे मुद्दों के लिए एपीएल और बीपीएल के विभाजन को खत्म किया जाये।
यह सम्मेलन मांग करता है कि:
सरकार संसद के आगामी अधिवेशन में एक संशोधित खाद्य सुरक्षा बिल लाये जिसमें निम्न न्यूनतम बातें शामिल हों:
(1) यह एक सार्वभौम अधिकार होना चाहिए।
(2) उसमें प्रत्येक नाभिक परिवार (ऐसी सामाजिक इकाई जिसमें माता, पिता और बच्चे शामिल हैं) को कम से कम 35 किलोग्राम खाद्यान्न मासिक की गारंटी होनी चाहिए।
(3) खाद्यान्न की कीमत दो रूपये प्रति किलो तय की जानी चाहिए। खाद्यान्नों में मोटे अनाज भी शामिल होने चाहिये, जो भारत के अनेक हिस्सों में मुख्य खाद्य हैं और अत्यंत पोषक हैं।
(4) उसमें दोपहर के भोजन (मिड डे मील) और समेकित विकास योजना (आईसीडीसी) के लिए आबंटन की कानूनी गारन्टी के जरिये स्कूल-पूर्व बच्चों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रावधान होने चाहिए।
(5) उसमें अन्य कुछ आवश्यक वस्तुओं को शामिल किये जाने को सुनिश्चित किया जाना चाहिए जैसा कि कई राज्य सरकारें कर रही हैं।
यह सम्मेलन,
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है। सम्मेलन भूमि सुधारों और भूमिहीनों को फालतू भूमि के वितरण पर जोर देता है। साथ ही साथ भूमि के आवश्यक विकास के लिए आबंटन भी किया जाना चाहिए जिससे करोड़ों भूमिहीन लोगों को अपनी आजीविका के साधनों को बढ़ाने में मदद के अलावा खाद्य सुरक्षा को जबर्दस्त बढ़ावा मिलेगा। इस संदर्भ में सम्मेलन इसकी भर्त्सना करता है कि केन्द्र सरकार के एजेंडे पर भूमि सुधार का काम है ही नहीं।
कृषि में कम वृद्धि से सरकार द्वारा कृषि विकास और किसान समुदाय के अधिकारों एवं कल्याण को प्राथमिकता न दिये जाने का पता चलता है। सम्मेलन मांग करता है कि ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए और बिजली, सिंचाई सुविधाओं एवं किसानों के लिए कृषि प्रसार सेवाओं के प्रावधान के लिए सरकारी खर्च में पर्याप्त वृद्धि की जाये।
निर्यात के लिए नकदी फसलों को प्रोत्साहन देने की सरकार की नीतियों से खाद्यान्न-उत्पादन में आत्मनिर्भरता के प्रति सरकार के उदासीन दृष्टिकोण का पता चलता है। बड़ी संख्या में किसान आत्महत्याओं से पता चलता है कि भारत के किसान जबरदस्त संकट में हैं। एम.एस.स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले किसान आयोग ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सिफारिशें देने के साथ ही साथ किसानों के इस संकट से पार पाने के लिए अत्यंत मूल्यवान एवं किसान हितैषी सिफारिशें की थीं। पर सरकार ने उन सिफारिशों पर अमल नहीं किया।
कृषि के मामले में सरकार कितनी निर्दय है, इसका पता इससे चलता है कि उसने उर्वरक अनुदान में 3000 करोड़ से भी अधिक की कटौती कर दी। बीज उपलब्धता के वर्तमान संकट, बीजों के मूल्य में भारी वृद्धि और खाद्य उत्पादन में निवेश होने वाली वस्तुओं की बढ़ती लागत से भारी तादाद में देश के किसानों के लिए खेती लाभप्रद नहीं रह गयी है। इनमें से 70 प्रतिशत किसान सीमांत किसान हैं। ये ऐसे खतरनाक लक्षण हैं जो इशारा कर रहे हैं कि यदि भारत महंगे खाद्यान्न आयात पर निर्भर हो गया और ताकतवर खाद्य निगमों की लूट का निशाना बन गया तो देश का भविष्य क्या होगा।
यह सम्मेलन ऐसी किसानपरस्त नीतियों की मांग करता है जो कृषि निवेश की वस्तुओं के नियंत्रण मूल्य पर मिलने, उत्पादों के लिए वाजिब मूल्य, खरीद केन्द्रों के एक मजबूत नेटवर्क, खाद्यान्नों एवं दालों के उत्पादन को प्रोत्साहन को सुनिश्चित करे। अधिकांश आदिवासी किसान अत्यधिक गैर उपजाऊ जमीन पर खेती करते हैं। सम्मेलन मांग करता है कि उन्हें एक विशेष पैकेज दिया जाये। उनके उत्पादों के लिए वाजिब मूल्य और खरीद की व्यवस्था की जाये, सूखी एवं गैर सिंचित जमीन के लिए अनुकूल मोटे अनाज ज्वार, बाजरा, कोदो, सावां आदि के उत्पादन के लिए उन्हें प्रोत्साहन दिया जाये।
सम्मेलन सरकार की उन नीतियों को, जिनके फलस्वरूप लोगों की बदहाली, कंगाली और मुसीबतें बढ़ी है, महंगाई बढ़ी है, खाद्य असुरक्षा बढ़ी है, बदलने के लिए और खाद्य सुरक्षा एवं उपर्वर्णित सार्वभौम सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर आधारित प्रभावी खाद्य सुरक्षा कानून के लिए संघर्ष को तेज करने का संकल्प करता है और शहरों एवं मोहल्लों तक इस संदेश को पहुंचाने के लिए देश भर में अगस्त में एक महीना लम्बे अभियान और संघर्ष का आह्वान करता है। इस अभियान में धरना, पदयात्राओं, जीप जत्थों, जुलूसों, प्रदर्शनों, घेराव जैसे कार्यक्रम शामिल होंगे जिनके बारे में स्थानीय एवं राज्य स्तर पर फैसले किये जा सकते हैं।
इस सम्मेलन का आह्वान है कि खाद्य सुरक्षा के अपने अधिकारों और महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए जोर डालने के लिए जनता के विशाल एवं व्यापकतम तबकों तक पहुंचा जाये।
सरकार की नीतियों को बदलो!
महंगाई के जरिये जनता की लूट बंद करो!!
एपीएल के नाम पर गरीबों को खाद्य सुरक्षा से बाहर रखने की साजिश बंद करो!
लक्षित प्रणाली खत्म करो!
सार्वभौम सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू करो!
खाद्यान्नों को गोदामों से निकाल जनता को दो!
चूहों को नहीं जनता को खाद्यान्न खिलाओ!!!