भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

मंगलवार, 16 अगस्त 2016

स्वतंत्रता दिवस मोदी जी और मैं

कल लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के भाषण पर मीडिया में खूब सराहना उंडेली गयी है. क्यों न उंडेली जाय. आखिर मीडिया भी तो उनका है जिनके श्री मोदी जी हैं. कार्पोरेट्स और धन कुबेरों के. लेकिन श्री मोदीजी ने यह नहीं बताया कि कश्मीर में शांति बहाली के लिये उनकी सरकार क्या कदम उठाने जा रही है. सरकार कश्मीर में तनाव खत्म करने, लोगों का विश्वास जीतने और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिये क्या कर रही है? न हीं उन्होने कश्मीर में भाजपा की सहभागी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस आरोप का जबाव दिया कि कश्मीर में पूर्व का और आज का राष्ट्रीय नेत्रत्व विफल रहा है. मोदी जी! आपने पाक अधिकृत कश्मीर, बलूचिस्तान और गिलगिट पर जुमले फेंक खूब वाह वाही बटोरी है. पर क्या इसका यह कारण नहीं कि कश्मीर और पाकिस्तान के संबंध में आपकी विफल नीति और कथित गोरक्षकों पर आपकी टिप्पणी से बौखलाये संघियों को आप पुन: प्रशन्न करना चाहते थे. और वे प्रशन्न हो भी गये हैं. मोदी जी, आपसे बेहतर कौन जानता है कि फिल्म शोले गब्बर की वजह से देखी जाती है, तीन सुपर स्टारों और एक सुपर हीरोइन की वजह से नहीं. मोदी जी, जब आप लाल किले की प्राचीर से दहाड़ रहे थे, आपके ही राज्य गुजरात के ऊना में दलितों पर आग्नेयास्त्रों से नृशंस हमले हो रहे थे. आपके मात्र संगठन द्वारा बोयी गयी विष बेल का रस पान कर मदमत्त लोग दलितों और अल्पसंख्यकों पर अमानुषिक हमलों का सिलसिला लगातार चलाये हुये हैं लेकिन आपने अपने संबोधन में उनके लिये एक भी शब्द नहीं बोला. पीड़ितों को अन्याय से छुटकारा कैसे मिलेगा, आप मौन ही रहे. ‘मौनं स्वीकृति लक्षणम’ यह शास्त्रों में विहित है, कोई मार्क्सवादी अवस्थापना नहीं. आपने ठीक कहा मोदी जी कि आपकी सरकार अपेक्षाओं की सरकार है, पर यह नहीं बताया कि गत 27 महीनों में आपने कौनसी अपेक्षाओं को पूरा कर दिया. कोई एक भी की हो तो बताइये जरूर. आपने मुद्रास्फीति 6 फीसदी के भीतर रखने का कीर्तिमान बनाने का दाबा किया है, पर हमें तो दाल रु.- 200 प्रति किलो मिल रही है उसका जिम्मेदार कौन? बेरोजगारों को हर वर्ष दो करोड़ रोजगार और किसानों को पचास फीसदी लाभ देने का क्या हुआ मोदी जी. गन्ना किसानों को सौ फीसद भुगतान दिलाने और हाथरस के ग्राम‌- फतेला में बिजली दौड़ाने के आपके दाबों की सच्चाई तो आपने अपने परमप्रिय मीडिया पर देख ही ली होगी. और भी कुछ लिखना चाहता था. पर आपके स्वच्छता अभियान का शिकार हुआ बैठा हूँ. लखनऊ में थोडी सी वारिश होगयी है, और हमारे 22, केसरबाग स्थित कार्यालय में हर रोज की तरह जल प्लावन होगया है. मेज के पायदान पर पैर रख कर टिप टिप कर रहा हूँ. बिजली भी नहीं है, लेपटाप के स्क्रीन की रोशनी का सहारा मिला हुआ है. बिजली की रोशनी के लिये तो मान लेता हूँ कि अखिलेश बाबू जिम्मेदार हैं. पर यह जलप्लावन तो आपके ही चहेतों की देन है. लखनऊ के मेयर तो सौ प्रतिशत आपके हैं पर आपके स्वच्छता हो या कोई और अभियान. आपके ही लोग पलीता लगा रहे हैं. इससे पहले कि बैटरी भी जबाव देजाय- भवं भवानी, सहितं नमामि, डा. गिरीश, राज्य सचिव भाकपा , उत्तर प्रदेश
»»  read more

ऊना में दलितों पर हमले बंद करो, हमले के दोषियों को कड़ी सजा दो: भाकपा

लखनऊ- 16, अगस्त 2016. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल गुजरात के ऊना में दलितों और अल्पसंख्यकों की संयुक्त रैली में उमडी भारी भीड़ से बौखलाये सामंती और संघी सोच वाले तत्वों द्वारा दलितों पर किये गये जानलेवा हमलों की कठोर शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने गुजरात और समूचे देश में अपने भयावह उत्पीड़न के खिलाफ और आर्थिक और सामाजिक आज़ादी पाने के लिये संघर्षरत दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों के आंदोलनों के प्रति पूर्ण एकजुटता प्रदर्शित की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गुजरात और देश के दूसरे भागों में गौहत्या और अन्य बहानों से दलितों और अल्पसंख्यकों पर होरहे निर्मम हमलों के खिलाफ गुजरात के अहमदाबाद से यात्रा निकाली गयी थी जिसका कल स्वतंत्रता दिवस पर ऊना में समापन होना था. इस रैली में भाग लेने को दलितों के भीतर भारी आक्रोशजनित उत्साह था. अल्पसंख्यकों की इसमें शिरकत की खबरों से यह उत्साह और भी बढ गया था. इससे पहले से ही हमलाबर सामंती और संघी तत्व पूरी तरह बौखला गये. रैली में आने से पूर्व दलितों को गांव गांव में न केवल धमकाया गया अपितु कई जगह तो उन्हें गांवों से बाहर निकलने तक नहीं दिया गया. पुलिस और सामंती तत्व मिल कर उन्हें रैली की ओर जाने वाले रास्तों पर रोक रहे थे. पूरा ऊना शहर छावनी बना दिया गया था ताकि दहशत के मारे दलित रैली में शामिल न हों. लेकिन फिर भी रैली में जब भारी भीड़ जुट गयी तो इन्हीं तत्वों ने रैली से लौट रहे दलितों पर गोलियां बरसाईं और उनके वाहनों में आग लगा दी. सैकडों की तादाद में दलित जख्मी हुये हैं और सरकारी तथा गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. आज भी गांवों में दलितों पर हमले होने की खबर है. इतना ही नहीं इस रैली में भाग लेने पहुंचे जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और दलित नेताओं की अहमदाबाद में होने वाली प्रेस कांफ्रेंस को सरकार ने रद्द करा दिया जबकि उसकी पहले से अनुमति थी. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर शर्मनाक हमला है. डा. गिरीश ने कहा कि यह सब उस समय होरहा है जब कल ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने दलितों पर अनाचार को लेकर कठोर टिप्पणियां की हैं और कडी कार्यवाही किये जाने पर बल दिया है. इससे श्री मोदी के गुजरात माडल और संघ के कथित हिंदू राष्ट्र का मुखौटा उतर गया है. सवाल उठता है कि ये कठोर कार्यवाही कब होगी. भाकपा का स्पष्ट मत है कि गुजरात सरकार से पीड़ितों को न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती. अतएव इस समूचे प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत न्यायधीश से कराई जानी चाहिये. डा. गिरीश
»»  read more
Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य