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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

हर जोर जुल्म की टक्कर में (शंकर शैलेन्द्र)

हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है
संघर्ष हमारा नारा है

तुमने मांगें ठुकराई हैं तुमने तोड़ा है हर वादा
छीना हमसे सस्ता अनाज तुम छंटनी पर हो आमादा
तो अपनी भी तैयारी है तो हमने भी ललकारा है

मत करो बहाने संकट है, मुद्रा प्रसार इन्फ्लेशन है
इन बनियों-चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है
बगलें मत झांको दो जवाब क्या यही स्वराज तुम्हारा है!

मत समझो हमको याद नहीं वो जून छियालीस की रातें
जब काले गोरे बनियों में चलती थीं सौदे की बातें
रह गई गुलामी बरक़रार हम समझे अब झुटकारा है।

क्या धमकी देते हो साहब दम दांती में क्या रक्खा है
यह वार तुम्हारे अग्रज अंग्रेजो ने भी तो चक्खा है,
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है।

समझौता? कैसा समझौता हमला तो तुमने बोला है
महँगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुंह खोला है,
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे एका अधिकार हमारा है!

अब संभलें समझौतापरस्त घुत्नातेकू ढुलमुल यकीन
हम सब समझौतेबाजों को अब अलग करेंगे बीन बीन
जो रोकेंगा वह जायेगा, यह वह तूफानी धारा है।

हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है
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