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शनिवार, 2 मई 2015
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भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की 21वीं कांग्रेस (विशाखापट्नम) के उद्घाटन सत्र में 14 अप्रैल को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी का भाषण
सर्वप्रथम मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जिसकी 22वीं पार्टी कांग्रेस हाल ही में पुडुचेरी में हुई, की नवनिर्वाचित राष्ट्रीय परिषद की तरफ से आप सबका अभिनंदन करता हूं। मजदूर वर्ग के संघर्षों के गौरवपूर्ण इतिहास वाले, ऐतिहासिक बन्दरगाह शहर विशाखापट्नम में यहां आपकी कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लेने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को दिए गए आमंत्रण के लिए मैं आपकी पार्टी, हमारे देश में सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्यों को धन्यवाद करता हूं।
पटना में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 21वीं कांग्रेस के बाद से, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पिछले तीन सालों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति पर गंभीर विचार-विमर्श एवं गहन विश्लेषण से ताजा-ताजा आते हुए, मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की तरफ से इस तथ्य को रेखांकित करना चाहता हूं कि हमारे देश के हाल के राजनीतिक घटनाचक्र ने हमारे देश और जनता को दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी सांप्रदायिक एवं फूटपरस्त ताकतों के चंगुल से बचाने की जिम्मेदारी हमको सौंपी है। हमारी पार्टी कांग्रेस विश्व पूंजीवाद के गहरे संकट और हमारे देश में दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया के सत्ता में आ जाने की पृष्ठभूमि में हो रही है।
यह एक हकीकत है कि 2014 में हुए आम चुनावों के बाद भारत की संसद में कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रतिनिधित्व अत्यंत कम हो गया है। यद्यपि हम यह महसूस करते हैं कि यह एक गंभीर चुनावी विफलता है परंतु भारत की जनता ने कम्युनिस्टों को अस्वीकार नहीं किया है। इसके बजाय, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में पूरी तरह बदनाम तत्कालीन यूपीए-2 सरकार के विकल्प के संघर्ष में जनता ने उस समय उपलबध एक मात्र विकल्प अर्थात भाजपा और उसके गठगंधन एनडीए का विकल्प चुना इस उम्मीद के साथ कि एक बार जब वे सत्ता में आ जाएंगे तो हालात में बेहतरी की दिशा में बदलाव होगा।
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पुडुचेरी में कामरेड सी.के. चन्द्रप्पननगर में होने वाले समूचे विचार-विमर्श में और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 22वीं कांग्रेस के समापन दिवस पर आम सभा में जो बात गूंज रही थी वह थी और अधिक मजबूत वाम एकता और उसे मजबूत करने का आह्वान। मैं यह बात भी रिकॉर्ड पर रखना चाहताूं कि कामरेड प्रकाश करात समेत भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों के शीर्ष नेताओं की उपस्थिति ने न केवल हमारे डेलीगेटों को बल्कि हमारे शुभचिंतकों एवं वामपंथी आंदोलन के मित्रों को भी अनुप्राणित किया जिन्होंने बाद में हमारे पार्टी मुख्यालय को अपने संदेशों के जरिये इसका वामपंथी एकता, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय संकट की इस नाजुक घड़ी में सर्वाधिक आवश्क है, के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में स्वागत किया।
भूख, बेरोजगारी, अल्परोजगार, लोकतांत्रिक एवं मानव अधिकारों का दमन और पूंजीवाद द्वारा निर्मम शोषण- ये सब आज की कठोर एवं नग्न वास्तविकताएं हैं। पूंजीवाद गहरे संकट में है, विशेषकर अमरीका और यूरोप में। सुपर मुनाफों की इसकी ललक के साथ मुक्त बाजार का नजीता हजारों बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के दिवालियेपन के रूप में निकला, इसके फलस्वरूप बेरोजगारी और बढ़ी, महंगाई अधिक बढ़ी और साथ ही जनता की मुश्किलें-तकलीफें बढ़ी।
संकट के बावजूद, कारपोरेटों और अन्य धनी व्यक्तियों की धन-दौलत बढ़ती जा रही है और अमीर और गरीब के बीच का फासला असामान्य तरीके से बढ़ रहा है। संकट के बोझ को बेरहमी के साथ मेहनमकश लोगों, गरीबों और यहां तक कि वृद्ध आयु के पेंशनयाफ्ता लोगों के ऊपर डाला जा रहा है।
मजदूरों, किसानों और आम आदमी को जिंदा रहने और शालीन जिंदगी गुजराने के बुनियादी अधिकार तक से वंचित कर जनता की कीमत पर अमीर परस्त एजेंडे पर अमल किया जा रहा है। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पहले पूरे केंद्रीय बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक क्षेत्र की स्कीमों के बजट आवंटनों में अत्यंत अमानवीय बड़ी कटौती की घोषणा की गई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के तहत ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम को खत्म किया जा रहा है। इस प्रकार ग्रामीण भारती में गरीबों को जो न्यूनतम सरकारी मदद मिल रही थी उसे खत्म किया जा रहा है। सबसे बेरहम हमला किसानों पर संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल 2015 के रूप में किया गया; प्रधानमंत्री स्वयं अमीरों, कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों की तरफ से इस संशोधित बिल को पारित कराने के लिए अपनी पूरी ाकत के साथ लगे हुए हैं।
यही गंभीर हमला है कि जिसके विरूद्ध हमारी पार्टी कंाग्रेस ने 14 मई 2015 को पैशाचिक, किसान विरोधी, राष्ट्र विरोधी भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल के विरूद्ध अखिल भारती विरोध दिवस मनाने का फैसला किया है। हमारी पार्टी कंाग्रेस ने आगामी अवधि में एकताबद्ध वामपंथ के झंडे के तले वर्ग संघर्ष छेड़ने का आह्वान किया है। हमारा विश्वास है कि यह दशक वर्ग संघर्षों का दशक होगा। मुझे पक्का विश्वास है कि आपकी पार्टी कांग्रेस वामपंथी एकता और संयुक्त संघषोें के संबंध में विचार करेगी। आइए, वर्तमान एनडीए सरकार ने जो चुनौतियां पेश की हैं, क्रांतिकारी पार्टियां होने के नाते उन्हें नाकाम करने के लिए हर संभव कोशिश करेें।
आइए, हम अपने आपको आश्वस्त करें कि हमने सब कुछ नहीं खो दिया है। अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट एवं वर्कर्स पार्टियों के परिवार का हिस्सा होने के नाते हमें यूरोप में महान संघषों के जरिये कम्युनिस्ट पार्टियों के पुनः प्रादुर्भाव के संकेतों पर गर्व होना चाहिए। जनता नव-साम्राज्यवादी ताकतों के एक धु्रवीय, तानाशाही भरे तरीकों को चुनौती े रही है। जहां कहीं भी वामंपथ में कुछ ताकत है जबरदस्त हड़तालें और प्रदर्शन हो रहे हैं। ग्रहस में हाल के चुनावों ने यूरोपीय संघ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष को एक झटका दिया है।
किफायतशारी के जिन कदमों ने मेहनतकश तबकों की जिंदगी में तबाही ढायी उनके विरूद्ध ग्रीस की जनता के दृढ़ संकल्प से निश्चय ही यूरोप के लोगों को यूरोपीय संघ द्वारा आम आदमी पर किये जाने वाले हमलों के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा मिलेगी। रूस, जापान और नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की ताकत में वृद्धि को संतोष के साथ नोट किया जाना चाहिए। लैटिन अमेरिका में वामपंथी एवं समाजवादी ताकतों की बढ़ती मजबूती और अमेरिका द्वारा यह स्वीकार करना कि क्यूबा के विरूद्ध उसकी पुरानी पड़ी नाकेबंदी एक विफलता थी- ये बातों क्यूबा और लैटिन अमेरिका की ऐहिासिक जीतें हैं। इसी प्रकार बसंत क्रांति अमेरिकी सरकार की उन कठपुतली सरकारों के विरूद्ध अरब के आम लोगों के आक्रोा की अभिव्यक्ति है जो भ्रष्टाचारी और तानाशाही किस्म की है, यद्यपि फिलहाल वह कमजोर पड़ गई है। यह एक ज्वालामुखी है जो कभी भी फिर से फूट सकता है। जनता के विभिन्न समुदायों के बीच गृहयुद्ध छेड़ने के लिए साम्राज्यवादी ताकतें अंध-उन्मादग्रस्त इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों की मदद कर रही है ताकि आम लोगों का ध्यान मुख्यधारा संघर्षों से डायवर्ट हो जाए। साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा आईएसआईएस आतंकवादियों को जबरदस्त तरीके से हथियाबंद किया गया जिसका नतीजा भयंकर खून-खराबे और हजारों मासूम लोगों की मौत के रूप में सामने आ रहा है।
हमारे देश में 28 करोड़ लोग घनघोर गरीबी के शिकार हैं और अत्यंत दयनीय हालत में जिंदगी गुजार रहे हैं जबकि 68। परिवार या कारपोरेट घराने हमारी राष्ट्रीय धन-दौलत के 25 प्रतिशत हिस्से को लूट रहे हैं। किसाल बदहाल है; विदर्भ, तेलंगाना, कर्नाटक एवं अन्य स्थानों पर कर्ज के जाल से बचने के लिए आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार इन तथ्यों को स्वीकार करने से इंकार करती है।
एक तरफ, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार हमेशा की तरह बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री के कामकाज की शैली तानाशाह, गोपनीय एवं व्यक्तिवादी किस्म की है। दूसरी तरफ, हिन्दुत्ववादी ताकतें “घरवापसी” - जो धर्मांतरण की एक किस्म है- के नाम पर अल्पसंख्यक विरोधी आतंक अभियान छेड़ रही है। ईसाई चर्चों पर दिल्ली एवं अन्य स्थानों पर हमले किए जा रहे हैं, उनमें तोड़-फोड़ की जा रही है। संघ परिवार के मार्ग दर्शन में सांस्कृतिक आतंकवाद पर आचरण किया जा रहा है। ऐतिहासिक पुस्तकों को जलाने का आह्वान, उनकी सनक के अनुसार उनका पुनर्लेखन, वैज्ञानिक मनोवृति, कलाकारों एवं लेखकों पर हमले जैसी घटनाएं अधिकाधिक शुरू की जा रही है। महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलनों के अन्य नेताओं की छवि को उनक स्थान पर गोडसेपंथ को लाने के लिए बिगाड़ा जा रहा है।
देश के प्रमुख मुद्दों से जनता का ध्यान डायवर्ट करने के लिए तनाव एवं भय मनोवृत्ति पैदा करने के लिए देश को धार्मिक लाइनों पर बांटने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं, असहिष्णुता एवं घृणा में वृद्धि हो रही है। हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दक्षिणपंथी ताकतों के विरूद्ध अनथक योद्ध एवं कामरेड गोविन्द पानसरे सांप्रदायिकता के विरूद्ध और वैज्ञानिक मनोवृत्ति के प्रसार के लिए अपने निरंतर संघर्ष में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पहले शहीद बन गए हैं।
परंतु जन विरोधी आर्थिक नीतियों और सांप्रदायिकता की गंदी चालों के विरूद्ध जनता आवाज बुलंद कर रही है। तमाम केंद्रीय टेªड यूनियन संगठनों द्वारा कोयला हड़ताल, बैंक हड़ताल, पोस्टल डिपार्टमेंट कर्मचारियों की हड़ताल, केंद्र सरकार के कर्मचारियों की प्रस्तावित हड़ताल, केंद्रीय टेªड यूनियनों द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन, किसान संघर्ष- ये इसका हिस्सा है।
हमारे महान देश की एकता को बचाने के लिए धर्मनिरपेक्षता की हर कीमत पर रक्षा करनी होगी। लोकतंत्र की रक्षा की जानी है। अमीर और ताकतवर लोगों के हमले ने मेहनतकश लोगों के कठिन संघर्षों के बाद प्राप्त अधिकारों को छीन लिया है। इन अधिकारों को वापस हासिल करना है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए।
हमारी पार्टी कांग्रेस ने रेखांकित किया है कि इस कठिन लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए हमें जनता का विश्वास हासिल करने की जरूरत है। हम जिस व्यापक वामपंथी लोकतांत्रिक एकता को हासिल करना चाहते हैं उसके लिए वामपंथी एकता पूर्व शर्त है। आइए, एकताबद्ध हों और जनता में विश्वास पैदा करे। आइए, अपने आधारों को मजबूत बनाएं। आइए, जनता के मुद्दों पर और उनसे फिर से जुड़ने के लिए वर्ग संघर्ष छेड़ें।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विश्वास है कि हमारा देश आज जिस मुश्किल स्थिति का सामना कर रहा है वामपंथ उस पर अवश्य पार पायेगा और एकताबद्ध होकर आत्मविश्वास एवं साहस के साथ आगे बढ़ेगा। वामपंथ ही अकेला है जो हमारे लेखकों, इतिहासकारों, कलाकारों, धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों, आदिवासी किसानों एवं मेहनतकश लोगों के तमाम हिस्सों की रक्षा कर सकता है जो बड़ी उम्मीद की नजरों से वामपंथी की तरफ देख रहे हैं।
प्रिय कामरेडों, पश्चिम बंगाल में भाकपा (मा) तृणमूल कांग्रेस के गुंडों का सबसे बड़ा निशाना बन गई है जिसके फलस्वरूप अनेक हत्याएं, हमले, भाकपा (मा) दफ्तरों को जलाने की घटनाएं हो रही हैं। भाकपा (मा) और वामपंथ इस आतंक के विरूद्ध और नागरिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोकतंत्र के लिए इस संघर्ष में हम आपके साथ हैं। हम अपने समर्थन एवं एकजुटता का भरोसा दिलाते हैं। पश्चिम बंगाल में हमें भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों के विरूद्ध संघर्ष करना है। हमें पक्का विश्वास है कि इन संघर्ष में हमारी जीत होगी।
प्रिय कामरेडों, इन शब्दों के साथ मैं आपकी कांग्रेस की पूर्ण सफलता की कामना करता हूं।
आप सबको लाल सलाम!
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिन्दाबाद!
वामपंथ की एकता जिन्दाबाद!
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