देश भर की जनता केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ पूंजीवादी दलों की सरकार द्वारा लागू की जारही नीतियों के परिणामों से खिन्न है और वह एक नये नीतिपरक सार्थक विकल्प के लिए उत्सुक है . जनता की इस बेदारी को केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल भी खूब समझ रहे हैं और वे इस जनाक्रोश को पथ विचलित करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं . लेकिन अब यह भी प्रायः सुस्पष्ट हो गया है की जनता की चेतना में अब किसी नीति और कार्य क्रम से रहित राजनीतिक जमाबड़े के लिए कोई जगह नहीं है . यह प्रमुख संदेश है अभी १ जुलाई को दिल्ली के मावलंकर हाल में सम्पन्न देश के चारों प्रमुख वामपंथी दलों के संयुक्त राजनीतिक सम्मेलन का .
भाग लेने वाले कार्य कर्ताओं का उत्साह ऐसा कि सम्मेलन हाल की गैलरी और सीढ़ियों तक में साथी ठसा-ठस भर गये और महसूस हुआ कि इस कार्यवाही के लिए निश्चय ही कोई बड़ा हाल होना चाहिये था . वरिष्ठ वामपंथी नेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव का ० ए ० बी ० बर्धन ने अपने समापन भाषण में जब कहा कि चर्चा तो हो गयी अब इस संदेश को जन-जन तक लेजाना है और इसे आन्दोलन के रूप में जमीन पर उतरना है तो कार्य कर्ताओं का जोश उमड़ पड़ा और मीटिंग हाल संकल्प से लबरेज जोशीले नारों से गूँज उठा .
कन्वेंशन के घोषणा पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि देश की दुर्दशा का कारण पूंजीवादी विकास का वह चरित्र है जो अमीरों को फायदा और गरीबों को नुकसान पहुंचाता है . सरकार की नीतियाँ बड़े कारोबारियों , अमीरों और ताकतवरों के हितों के हिसाब से तय होती हैं . इसका नतीजा यह है कि जनता का विशाल हिस्सा अब भी गरीबी में रहता है , भूख और बेकारी का शिकार है और उसे शिक्षा , स्वास्थ्य और जीवनयापन के समुचित अवसर उपलब्ध नहीं हैं . देश की राजनीति पर पैसे की ताकत का प्रभुत्व है . सांप्रदायिक और विभाजनकारी ताकतों को खुल कर खेलने का पूरा मौका है . एक स्वतंत्र विदेश नीति और राष्ट्रीय संप्रभुता की हिफाजत के साथ बार-बार समझौते किये गये हैं .
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के शासनकाल में महंगाई की मार ने जनता के जीवन को बेहद कठिन बना दिया है और वह जरूरी चीजों खास कर खाने-पीने की वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतों से त्रस्त है . किसान अपनी उपज के उचित मूल्य न मिल पाने , उनकी जरूरत की चीजें बेहद महंगी होने और विकास के नाम पर उनकी जमीनों के अधिग्रहण से परेशान हैं और तमाम किसानों ने तो आत्महत्याएं की हैं .ज्यादातर युवा लोगों के पास उचित रोजगार नहीं है . राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के एक तजा सर्वे के मुताबिक जनवरी २०१० से जनवरी २०१२ के बीच में ही बेरोजगारी १०.२ प्रतिशत की दर से बढ़ी है . पांच साल की आयु से कम के ४५ फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं . पहली कक्षा में दाखिल कुल बच्चों में से केवल १६ फीसदी ही १२ वीं तक पहुँच पाते हैं . शिक्षा का बजट घटाया जारहा है जबकि आबादी बढ रही है . पूरी शिक्षा व्यवस्था को निजी क्षेत्र का चरागाह बना दिया गया है और वह बेहद महंगी तथा आम नागरिकों की पहुँच से बाहर होती जारही है . यही हाल दवाओं और दूसरी स्वास्थ्य सुविधाओं का है .
घोषणापत्र में ठीक ही कहा गया है कि एक और जनता इस जबरदस्त तंगहाली से गुजर रही है वहीं यूपीए सरकार अपने नव उदारवाद के एजेंडे पर आगे बढ रही है . उसने कारपोरेटों और बढ़े कारोबारियों को जमीन , खनिज , गैस तथा स्पेक्ट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की इजाजत दी है . जनता को दी जारही सब्सिडी ख़त्म की जा रही हैं जबकि पिछले बजट में इन अमीरों पर ५ लाख करोड़ रु . का टेक्स यूँ ही छोड़ दिया गया . विदेशी वित्तीय पूँजी को तमाम रियायतें देकर हमारे घरेलू बाज़ार को चौपट किया जारहा है . इस सबके ऊपर है वह विशालकाय भ्रष्टाचार जो जनता के गाड़े पसीने की कमाई को खुल कर हड़प रहा है .
सरकार की इन्हीं नीतियों के चलते दलित , आदिवासी ,अल्पसंख्यक और महिलाएं सामाजिक अत्याचारों के शिकार हुए हैं . महिलाओं के साथ एक यौन वस्तु के तौर पर वर्ताब किया जारहा है और उनके प्रति यौन हमलों और हिंसा की वारदातों में भारी वृध्दि हुई है . उन्हें समाज में बराबरी और सम्मान का दर्जा नहीं मिल पा रहा है . दलित लगातार उत्पीडन का शिकार तो हो ही रहे हैं उनके बुनियादी हक तक उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं .अपनी जमीन और परिवेश से विस्थापन के चलते आदिवासियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है .
मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सामाजिक-आर्थिक बदहाली को सच्चर कमेटी ने उजागर किया था जिस पर कोई सार्थक पहल की नहीं गयी है . आतंकवाद से निपटने के नाम पर अक्सर ही मुस्लिम नौजवानों को निशाना बनाया जाता है .
कांग्रेसनीत सरकार ने एक ऐसी विदेशी नीति को आगे बदाय है जो भारत को अमेरिका के साथ नत्थी करना चाहती है . सीरिया में बढ़ते अमेरिकी-नाटो हस्तक्षेप के साथ भारत की गुपचुप सहमति और अमेरिकी दबाब में इरान से तेल की आपूर्ति में कटौती इसके ताजा उदहारण हैं .
यूपीए सरकार द्वारा आगे बढ़ायी गयी नीतियाँ निश्चय ही जनविरोधी और जनवाद विरोधी हैं . यदि वैकल्पिक नीतियों को स्थापित किया जाना है तो कांग्रेस और यूपीए को पराजित करना ही होगा . यह इस कन्वेंशन का निश्चित अभिमत है .
कन्वेंशन के घोषणापत्र की राय है कि भाजपा मौजूदा निजाम के एक कहीं ज्यादा प्रतिगामी रूप का प्रतिनिधित्व करती है . भाजपा उस घनघोर सांप्रदायिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है जो मुक्त बाजार के पूंजीवादी चरित्र को आत्मसात किये हुए है . उसके द्वारा आगामी लोक सभा चुनाव के लिये नरेंद्र मोदी को आगे बदाया गया है जो इस प्रतिक्रियावादी मिश्रण का प्रतीक हैं . मोदी का गुजरात माडल मुसलमानों के सामूहिक कत्लेआम और कार्पोरेट्स को मालामाल करने वाला है . बड़े सरमायेदारों द्वारा किया जा रहा मोदी का गुणगान गुजरात के गाँव गरीब और आदिवासियों की बदहाली को छुपा नहीं सकता .
यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार पर हाय-तौबा मचा कर फायदे की उम्मीद लगाये बैठी भाजपा का खुद का दामन भी भ्रष्टाचार और घोटालों की गंदगी से अटा पड़ा है . कर्नाटक की उसकी सरकार तो खनन माफिया के हितों की रक्षक ही बन गयी थी . अवैध खनन से वहां हजारों करोड़ की लूट की गयी . आर एस एस /भाजपा की जोड़ी ने पिछले दो सालों में उत्तर प्रदेश के कई शहरों-कस्बों में सांप्रदायिक तनाव एवं हिंसा फ़ैलाने का काम किया ही और तमाम निर्दोषों के जान-माल की तबाही की है . वे अपना खूंख्वार सांप्रदायिक एजेंडा और चेहरा आगे कर वोट बटोरना चाहते हैं .
कन्वेंशन की निश्चित राय हैकि कार्यक्रम और नीतियों के संबंध में भाजपा कांग्रेस की विकल्प नहीं हो सकती . दोनों ही आर्थिक नवउदारवाद के विनाशकारी तन्त्र को आगे बढाना चाहते हैं . सभी देशभक्त , धर्मनिरपेक्ष और जनवादी ताकतों का यह कर्तव्य है कि भाजपा को सत्ता से दूर , बहुत दूर रखें .
देश की राजनीति में पैसे की ताकत और व्यापारिक समूहों का दबाब और प्रभुत्व लगातार बढ़ता चला जारहा है . इसे रोकना होगा . इसके लिए चुनाव सुधारों की फौरी जरूरत है . बुनियादी सुधार के तौर पर आंशिक सूची व्यवस्था के साथ समानुपातिक प्रतिनिधित्व को लागू करने की जरूरत है . इससे धनबल और बाहुबल पर बहुत हद तक रोक लगेगी .
देश को और अधिक संघीय व्यवस्था की जरूरत है . केंद्र के हाथों में शक्तियों और संसाधनों का संकेन्द्रण कम किया जाना चाहिये . राज्यों की शक्तियों और अधिकारों में इजाफा करना होगा . संसाधनों के हस्तांतरण के लिए पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा दिया जाना चाहिये . इसके लिए केंद्र राज्य संबंधों के पुनर्गठन की आवश्यकता है .
कांग्रेस नीत यूपीए और भाजपा नीत एनडीए दोनों ही अनेक किस्म के अंतर्विरोधों में फंसे हुए हैं और दोनों का ही दायरा काफी सिकुड़ा है . ऐसा इसलिए हुआ की दोनों ही दल उन नीतियों और कार्य क्रमों को आगे बडाने वाले हैं जो जनता के हित में न होकर एक छोटे से तबके का प्रतिनिधित्व करते हैं . आज की जरूरत यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की नीतियों और उनके राजनीतिक मंचों को ख़ारिज किया जाये .
देश को एक विकल्प की जरूरत है . ऐसा विकल्प केवल वैकल्पिक नीतियों के आधार पर ही उभर सकता है . एक वैकल्पिक नीति मंच होना चाहिये जिसके इर्द-गिर्द एक राजनीतिक विकल्प बनाया जा सकता है .
वैकल्पिक आर्थिक नीतियां , धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की हिफाजत , संघीय ढाँचे की मजबूती और एक स्वतन्त्र विदेश नीति , ये सभी वैकल्पिक नीति मंच की विशेषताएं हैं .
इसी विषयवस्तु के आधार पर एक १० सूत्रीय मांगपत्र भी घोषित किया गया है जिसे सही मायने में जन मांगपत्र कहा जाना चाहिये .
घोषणापत्र के अंत में वामदलों ने सभी जनवादी ताकतों और जन संगठनों से अपील की है कि वे इस वैकल्पिक नीतियों के राजनीतिक मंच को अपना समर्थन प्रदान करें . वामदलों ने संकल्प लिया कि वे इस मंच के पक्ष में समर्थन जुटाने को एक राजनीतिक अभियान चलाएंगे .
इस कन्वेंशन को माकपा महासचिव प्रकाश करात , भाकपा महासचिव एस.सुधाकर रेड्डी , फार्बर्ड ब्लाक के महासचिव देवब्रत विस्वास , आरएसपी के नेता अवनी राय , ए.बी .बर्धन एवं सीताराम येचुरी ने भी संवोधित किया .
डॉ . गिरीश
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