छात्र आंदोलन का उभार 1944-45
हिटलर पर सोवियत संघ की विजय और विश्वयुद्ध की समाप्ति के साथ ही पूरी दुनिया के गुलाम देशों में सम्राज्यवाद से मुक्ति का आंदोलन निर्णायक रूप से तेज हो गया।
विश्वयुद्ध के फौरन बाद आजाद हिंद फौज के तीन अधिकारियांे सहगल, ढिल्लो और शाहनवाज पर ऐतिहासिक मुकदमा शुरू हुआ। इस मुकदमें के विरोध और अधिकारियों की आजादी के लिए पूरे देश में आन्दोलन शुरू हो गए। ए0आई0एस0एफ0 के आवाह्न पर देश भर में छात्रों ने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया।
इसी बीच छात्र आंदोलनों का संगठन केवल देश के पैमाने पर ही नहीं दुनिया के स्तर पर भी खड़ा हो रहा था और इसमें भी ए0आई0एस0एफ0 ने मजबूत भागेदारी दर्ज कराई। नवम्बर 1945 में लंदन में वल्र्ड फैडरेशन आॅफ डेमोक्रेटिक यूथ का गठन हुआ जिसमें ए0आई0एस0एफ0 की तरफ से मिस के बूमला ने शिरकत करते हुए
सर्वाधिक मतों के साथ कार्यकारिणी के चुनाव में जीत दर्ज की।
नौंवाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 के नौंवें सम्मेलन की शुरूआत 20 जनवरी 1946 को आन्ध्र प्रदेश के गंुटूर में हुई। जिसमें देश भर से 571 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन स्थल का नाम अजाद हिंद फौज के समर्थन में चले आंदोलनों के समय शहीद हुए रामेश्वर के नाम पर रखा गया। इसके साथ ही सम्मेलन ने बम्बई मिल मालिकों द्वारा कत्ल करा दिए गए ए0आई0एस0एफ0 मुखपत्र के प्रबन्धक बी0 गोलवला के लिए शोक भी प्रकट किया। फरवरी 1946 में नौसैनिक विद्रोह हुआ जिसके समर्थन में छात्र और मजदूर भी सड़कों पर उतर आए। नौसैनिक विद्रोह के समर्थन में ए0आई0एस0एफ0 से संबद्ध बम्बई छात्र यूनियन ने एक हैण्डबिल निकाल कर हड़ताल का आवाह्न किया और यूनियन के इस आवाह्न पर भारी संख्या में छात्र मजदूरों और नौसैनिकों के समर्थन में आए। आजाद हिंद फौज के कैप्टन रशीद की गिरफ्तारी और जेल के विरोध में एक जनांदोलन बंगाल में उठ खड़ा हुआ। बंगाल प्रांतीय स्टूडेन्ट्स फैडरेशन ने फरवरी 1946 में राज्य भर में प्रदर्शनों और बैठकों की झड़ी लगा दी। 25 जुलाई 1946 को संगठन ने बंगाल एसेम्बली के सामने राजनैतिक कैदियों की रिहाई के लिए बड़ा प्रदर्शन किया जिसमें 15 हजार छात्रों ने भाग लिया। मार्च 1946 में ब्रिटिश सरकार ने तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन का गठन किया। इस मिशन का उद्देश्य राष्ट्रीय नेताओ के बीच मतभेदों को सुलझाने और डोमिनियन स्टेट्स की अपनी इच्छा को लागू करने का था। कैबिनेट मिशन अपने मकसद में बेशक असफल रहा मगर सरकार ने मई 1946 में एक योजना घोषित कर दी। योजना से प्रांतों और रियासतों में डोमिनियन स्टेट्स लागू हो गया। अंग्रेजों ने भारत विभाजन की योजना तैयार कर ली थी साथ ही साम्प्रदायिक आधार पर चुनाव की भी तैयारी हो रही थी। चुनावों के बाद मुस्लिम लीग ने अंतरिम सरकार में शामिल होने से इंकार कर दिया। साथ ही मुस्लिम लीग ने देश विभाजन और पाकिस्तान बनाने की सार्वजनिक घोषणा करते हुए उसके लिए खुला संघर्ष छेड़ने का एलान भी कर दिया। अन्त में अगस्त 1946 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ और सितम्बर 1946 में मुस्लिम लीग भी इसमें शामिल हो गई परन्तु उसने एसेम्बली का बहिष्कार जारी रखा। ए0आई0एस0एफ0 अंग्रेजों की साम्प्रदायिक विभाजन की कुचेष्टा और इससे बचाव के लिए जन आंदोलनों और जन लामबन्दी की जरूरत को पहले ही रेखांकित कर चुका था।
अन्तर्राष्ट्रीय छात्र सम्मेलन 31 अगस्त 1946 को चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में हुई। इसमें दुनिया भर के 39 देशों से 300 छात्रों ने भाग लिया। भारत का प्रतिनिधित्व ए0आई0एस0एफ0 की तरफ से गौतम चटोपाध्याय ने किया। सम्मेलन ने इंटरनेशनल यूनियन और स्टूडेन्ट्स (आई0यू0एस0) की स्थापना की। इस बीच शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के विषय पर ए0आई0एस0एफ0 ने एक विशेष सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें इस विषय पर एक ऐतिहासिक महत्व का दस्तावेज भी पेश किया गया।
1946 में देश के कई भागों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। जिसमें हिंदू-मुसलमान दोनों पक्षों के निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। देश ने पहली बार इस स्तर के नरसंहार को देखा था। इन दंगों की पटकथा ब्रिटिश साम्राज्यवाद के मंसूबो के साथ मिलकर मुस्लिम लीग, आर0एस0एस0, हिंदू महासभा और अन्य साम्प्रदायिक संगठनों ने लिखी थी। दंगों की इस आग में कलकत्ता, बिहार और बम्बई जैसे कई महत्वपूर्ण शहर सुलग उठे। नोआबाली ने इस अभूतपूर्व नरसंहार के सबसे अमानवीय रूप को देखा। बावजूद इसके कम्युनिस्ट और कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष लोग दंगों की रोकथाम के लिए सामने आए। ए0आई0एस0एफ0 ने दंगांे की परवाह नहीं करते हुए सक्रियता के साथ राहत कार्यो में भाग लिया। यह ए0आई0एस0एफ0 ही था जिसने दंगांे की परवाह नहीं करते हुए भी दंगों की आग के बीच दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम एकता यात्रा की पहल की। ए0आई0एस0एफ0 ने ही बंगाल में दंगा राहत फण्ड की शुरुआत की।
दसवाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 के दसवंे सम्मेलन की शुरुआत 3 जनवरी 1947 को दिल्ली में हुई जिसमें 1500 प्रतिनिधियों और पर्यवेक्षकों ने भाग लिया। सम्मेलन के फौरन बाद ए0आई0एस0एफ0 ने 21 जनवरी को वियतनाम दिवस के रूप में मनाया। आॅल इण्डिया स्टूडेन्ट्स कांग्रेस और मुस्लिम स्टूडेन्ट्स लीग ने भी कलकत्ता में इसका स्वागत किया। कलकत्ता के 50 हजार छात्रों ने इस दिन हड़ताल में भाग लिया। शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा और वे सड़कों पर उतर आए। भारी विरोध प्रदर्शन के साथ रैली हुई जिस पर पुलिस ने गोलीबारी की जिससे दो छात्र प्रदर्शन के साथ स्थल पर ही शहीद हो गए। अगले ही दिन सरकार को भारी विरोध प्रदर्शनों और हड़ताल का सामना करना पड़ा। विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों का यह दौर पूरे फरवरी माह चलता रहा। वियतनाम स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन ने अपने मार्च सत्र में मारे गए छात्रों की याद में विशेष प्रस्ताव पारित किया।
(क्रमश:)