भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

उत्तर प्रदेश में 2012 के विधान सभाओं चुनावों की पैतरेबाजी शुरू






8 अगस्त को समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने घोषणा की कि उनकी पार्टी आसन्न पंचायत चुनावों में नहीं उतरेगी। ऐसी ही घोषणा प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती बहुजन समाज पार्टी के बारे में कर चुकी हैं। वे तो यहां तक कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी विधान सभा के आम चुनावों तक प्रदेश में होने वाले किसी भी चुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारेगी। कारण साफ है कि दोनों ही नहीं चाहते थे विधान सभा के 2012 में होने वाले आम चुनावों के पहले किसी तरह का कोई नकारात्मक सन्देश उनकी चुनावी हार को लेकर जनता में जाये।
जुलाई के अंतिम दिनों में मुख्यमंत्री मायावती ने छुआछूत के आगे घुटने टेक दिये थे। हुआ यह कि बसपा सरकार ने पहले मध्यान्ह भोजन रसोईयों के पदों पर आरक्षण लागू कर दिया। इस आरक्षण के लिए सरकार ने व्यवस्था दी थी कि हर स्कूल में भर्ती होने वाला पहला रसोईया दलित होगा। शायद ऐसा उन्होंने अपने जातिगत आधार को व्यापक करने के लिए दिया था। यह व्यवस्था लागू होते ही कई स्थानांे पर दलितों द्वारा पकाये गये खाने को खाने से इंकार करने के समाचार आये। पहले समाचारों में तो दलितों द्वारा भी दलितों का बनाया खाना न खाने के मामले भी थे। यह साफ-साफ छुआछूत का मामला था। परन्तु दलित-सवर्ण-मुसलमान का वोट बैंक बनाने में लगी मायावती को शायद यह लगा कि इससे उनके ब्राम्हणों एवं अन्य उच्च जातियों के साथ भाईचारे में आने वाले चुनावांे तक समस्या खड़ी हो सकती है तो उन्होंने घुटने टेक दिये। उन्होंने इस आदेश को ही वापस ले लिया और बाद में स्पष्टीकरण दिया कि ये नियुक्तियां ठेके पर होती हैं अतः इनके ऊपर आरक्षण लागू नहीं होता है। वैसे इस आरक्षण के बारे में उनके प्रतिद्वंद्वी मुलायम सिंह यादव ने पहले ही उनकी आलोचना कर दी थी। शायद उनके दिमाग में भी चुनावों के वोट तैर रहे थे।
प्रदेश के चारों प्रमुख राजनीतिक दल - बसपा, सपा, कांग्रेस और भाजपा कभी अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के हित चिन्तक नहीं रहे। उन्होंने कभी भी उनके शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन स्तर को सुधारने के लिए कुछ नहीं किया। कांग्रेस को छोड़ दें तो बाकी तीनों ने आपस में समझौता कर उत्तर प्रदेश में राज्य सरकारों का समय-समय पर गठन किया। 1977 में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह मंत्री थे। पिछला विधान सभा चुनाव मायावती से हारने के बाद मुलायम सिंह को हार का डर ज्यादा सता रहा था। पिछड़ों में उनके पास केवल यादवों का वोट है जो स्वतंत्र रूप से उन्हें चुनाव नहीं जिता सकता है। उन्होंने सोचा कि अयोध्या के विवादित ढांचे के ध्वंस के नायक कल्याण सिंह के साथ मिल जाने से एक अन्य पिछड़ी जाति लोध का वोट उन्हें मिल जायेगा। इस अति उत्साह में उन्होंने कल्याण सिंह से हाथ मिला लिया। ध्यान देने योग्य बात है कि वे ऐसा पहले भी कर चुके थे। 2002 में मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह के बेटे राजबीर को मंत्री बनाया था। इस गठजोड़ से वे इतने अधिक उत्साहित हुए कि उन्होंने सपा के सीटिंग अधिसंख्यक मुसलमान सांसदों को टिकट देने से मना कर दिया। लोकसभा में समाजवादी पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। उसके बाद मुलायम के अमर भाई भी उन्हें छोड़ कर चले गये। आजम खां जैसे तो पहले ही धता बता चुके थे। 2012 में होने वाले विधान सभा के आम चुनावों को देखते हुए मुलायम को मुसलमानों की बहुत याद आने लगी। उन्होंने मुसलमानों से माफी मांग ली। उन्होंने कल्याण सिंह को गलत तत्व बताते हुए कहा कि वे किसी भी सूरत में अब किसी भी ऐसे आदमी से हाथ नहीं मिलायेंगे जिसका हाथ बाबरी मस्जिद को गिराने में रहा हो। वैसे इसके लिए वे एक बार पहले भी मुसलमानों से माफी मांग चुके हैं।
दलितों के घर जाकर अखबार में फोटो छपवाने वाले राहुल गांधी के नेतृत्व में मिशन 2012 की तैयारी में लगी कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्षा रीता बहुगुणा जोशी कहां चुप रहने वाली थीं। कांग्रेस की जीत का पूरा दारोमदार जो मुसलमानों के हाथ में है। मुसलमान प्रदेश की आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हैं। किसी जमाने में इनका वोट कांग्रेस को मिलता था तो कांग्रेस की सरकार प्रदेश में तो बनती ही थी दिल्ली में भी रास्ता मिल जाता था। उन्होंने मुलायम को अवसरवादी बताते हुए कहा कि मुसलमान उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। जैसे मुसलमानों ने उन्हें अपनी इकलौती प्रवक्ता बना दिया हो। वह बात तो दीगर है कि चुनाव आते-आते अल्पसंख्यक मुसलमानों का क्या रूख होगा। मुख्यमंत्री मायावती भी कहां चुप रहने वाली थीं। उन्होंने भी इतिहास के पेज पलटते हुए मुसलमानों को यह बताने की कोशिश की कि मुलायम सिंह बाबरी मस्जिद गिराने वालों के साथ कितनी बार हाथ मिला चुके हैं। उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया कि वे भी बाबरी मस्जिद गिराने वालों के सहयोग से कितनी बार मुख्यमंत्री बनी हैं और जिनके घर रक्षाबंधन पर प्रेस फोटोग्राफरों को लेकर राखी बंधाने जाती थीं, वे लालजी टंडन कौन हैं?
भाजपा भी व्याकुल है। लेकिन उसके पास संकट ज्यादा है। उसकी काठ की हांडी एक बार चढ़ चुकी है। दुबारा उसे प्रयोग में लाया नहीं जा पा रहा। मुसलमान उनसे भ्रमित होने वाले नहीं हैं। दलित और पिछड़ी जातियों का वोट उन्हें पूरे प्रदेश में मिल नहीं सकता। ब्राम्हण और राजपूत भी उनके पास पूरा का पूरा है नहीं। कुछ मायावती के भाईचारे में उनके पास है तो कुछ कांग्रेस के पास। वणिक वोट प्रदेश में इतना है नहीं कि वह उन्हें चुनाव की वैतरणी पार करवा सके। आपस में गुटबाजी भी जोरों पर है।
जात-पांत और धर्म में बंटी उत्तर प्रदेश की मुख्य राजनीति में लोगों को लुभाने का दौर शुरू हो चुका है। नेताओं के मुंह से निकलने वाला एक-एक शब्द और नारा 2012 के विधान चुनावों को ध्यान में रख कर निकाला जा रहा है। वामपंथ को भी 2012 की तैयारियों पर ध्यान अभी से ध्यान देना होगा, उसकी अभी से तैयारी शुरू करनी होगी।
- प्रदीप तिवारी
»»  read more
Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य