भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

आओ और सड़कों पर फैला ख़ून देखो...

सब कुछ
एक भारी चिल्लाहट थी, नमकीन चीज़ें,
धड़कती हुई रोटी के ढेर,
मेरी आर्ग्यूवेलस की बस्ती के बाज़ार में जहां मूर्ति
सागर की सफ़ेद मछलियों के बीच एक बेजान दावत-सी लगती थी,
जैतून का तेल जहां कलछुली तक पहुंचता था,
पांवों और हाथों की गंभीर धड़कन जहां
रास्तों में भर जाती थी,
जहां जिंदगी की तेज़ गंध
ढेरों में रखीं मछलियां,
जहां सर्द धूप पड़ती हुई छतों के सांचे, जिन पर
वायु-सूचकों के मुर्गे थक जाते हैं,
जहां आलुओं के सुहावने उन्मत् हाथी-दांत,
सागर तक फैले हुए टमाटर जहां थे

और एक सुबह सब-कुछ जल उठा
और एक सुबह आग की लपटें
पृथ्वी से बाहर लोगों को निगलती हुईं
निकल आईं,
और तबसे आगे आग
और तबसे आगे बारूद
और तबसे आगे ख़ून

डाकू वायुयानों और मूरों के साथ
डाकू अंगूठियों और राजकुल-महिलाओं के साथ
डाकू काले चोगे पहने हुए मठाधीशों के साथ
हवा से होकर बच्चों को मारने आए
और सड़कों पर बच्चों का ख़ून बहने लगा
बच्चों का ख़ून जैसा होता है

विश्वासघाती
सेनापतियो:
मेरे मृत आवास को देखो
टुकड़े हुए स्पेन को देखो:
लेकिन हरेक मृत आवास से फूलों की जगह
प्रज्वलित धातु बाहर निकलती है
स्पेन के हरेक गह्वर से
स्पेन बाहर निकलता है
लेकिन हरेक मृत बच्चे की आंखों से एक बंदूक बाहर आती है
लेकिन हरेक जुर्म से गोलियों का जन् होता है
जो तुम्हारे अंदर वह जगह ढूंढ ही लेंगी
जहां दिल रहता है

तुम पूछोगे: क्यों नहीं मेरी कविता
तुमसे नींद की, पत्तियों की, मेरी मातृभूमि के
भव् ज्वालामुखियों की बात करती है
आओ और देखो
सड़कों पर फैला ख़ून
आओ और सड़कों पर फैला ख़ून देखो...
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हम

हम लेखक हैं
कथाकार हैं
हम जीवन के भाष्यकार हैं
हम कवि हैं जनवादी।
चंद, सूर,
तुलसी, कबीर के
संतों के, हरिचंद वीर के
हम वंशज बढ़भागी।
प्रिय भारत की
परम्परा के
जीवन की संस्कृति-सत्ता के
हम कर्मठ युगवादी
हम श्रस्ता हैं,
श्रम शासन के
मुद मंगल के उत्पादन के
हम द्रष्टा हितवादी।
भुत, भविष्यत्,
वर्तमान के
समता के शाश्वत विधान के
हम हैं मानववादी।
हम कवि हैं जनवादी।


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